परदे के पीछे से - "विंपल" (शिरोवस्त्र)
परदे के पीछे से - "विंपल" (शिरोवस्त्र)
From Behind the Veil का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
हम महिलाओं के सिर ढकने के कपड़े के बारे चर्चा करेंगे, दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों से : इस्लाम, ईसाई और हिंदू धर्म ।
ईसाई धर्म में सिर ढकना
धर्म, संस्कृति और परंपराएं अक्सर आदेश देते हैं कि, महिलाओं को कैसे कपड़े पहनने चाहिए, जो कि, ईसाई धर्म में विशेष रूप से सत्य है।
धर्म के शुरुआती दिनों से ही सिर ढकना ईसाई धर्म का एक हिस्सा रहा है और इस प्रथा का अभी भी दुनिया भर में लाखों आस्तिकों द्वारा पालन किया जाता है।
कई ईसाई समुदायों में, परंपरागत रूप से, सिर ढकने को, चर्च और ईश्वर के प्रति अनुसेवा और विनम्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
यह आज्ञापालन का संकेत है, जिसका मतलब चर्च की श्रृंखला में महिलाओं को उनके स्थान की याद दिलाना है।
जैसा कि, नया नियम में,1 कुरिन्थियों 11:2-16, पौलुस, महिलाओं को निर्देश देता है कि, वे परमेश्वर और अपने पति के प्रति सम्मान की निशानी के रूप में चर्च में अपना सिर ढकें।
"हर ऐसी स्त्री जो बिना सिर ढके प्रार्थना करती है या जनता में परमेश्वर की ओर से बोलती है, वह अपने पुरुष का अपमान करती है जो उसका सिर है। वह ठीक उस स्त्री के समान है जिसने अपना सिर मुँडवा दिया है।
यदि कोई स्त्री अपना सिर नहीं ढकती तो वह अपने बाल भी क्यों नहीं मुँडवा लेती। किन्तु, यदि स्त्री के लिये बाल मुँडवाना लज्जा की बात है तो, उसे अपना सिर भी ढकना चाहिये।" (1 कुरिन्थियों 11:5,6)
ग्रीको-रोमन संस्कृति में, विवाहित महिलाओं को घर से बाहर निकलते वक्त अपना सिर ढकना पड़ता था। यह सड़क पर अन्य लोगों को उनकी 'वैवाहिक स्थिति' के बारे में एक संदेश होता था।
'सिर को ढकना' सार्वजनिक रूप से एक संदेश प्रसारित करने के लिए था कि, वह एक समर्पित और ईमानदार पत्नी है। यूरोप में विभिन्न संस्कृतियों में विवाहित महिलाओं को अपने सिर और बाल ढकना आवश्यक था।
आज, अगर कुछ समाज इस पुराने नियम का पालन कर रहे हैं, तो हम जानते हैं, यह कम से कम बीस सदियों पुराना है।
साथ ही, अंतिम संस्कार जैसे मौन अवसरों पर, कई ईसाई समुदायों में महिलाओं को सम्मान दिखाने के लिए अपना सिर ढकना आवश्यक होता है।
सभी ईसाई शादियों में दुल्हन को 'पर्दा' पहनना आवश्यक होता है। हालांकि, यह केवल किसी मौके पर, सिर्फ एक सिर को ढकने वाला होता है, किन्तु, इसकी उत्पत्ति उसी धार्मिक प्रथा से हुई है।
हिजाब और विम्पल (शिरोवस्त्र)
हिजाब, या मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले सिर का आवरण को लेकर एक आम भ्रांति है कि, यह ईसाई ननों द्वारा पहने जाने वाले सिर के आवरण "विंपल"(शिरोवस्त्र) के समान है। हालाँकि, दोनों के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं।
कुछ देशों को छोड़कर, सभी मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है। इसके विपरीत, कैथोलिक ईसाई साध्वियों को सिर के आवरण को, ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण के प्रतीक के रूप में पहनना चाहिए।
इसके अलावा, वे सिर ढकने को, कुवांरी मरियम और अन्य बाइबिल के पात्रों का अनुसरण करने के तरीके के रूप में देखते हैं।
ज्यादातर मामलों में, जो महिलाएं हिजाब पहनना पसंद करती हैं, वे ऐसा अपने विश्वास की अभिव्यक्ति के रूप में करती हैं।
ननों (साध्वियों) के लिए, हालांकि, 'विम्पल' (शिरोवस्त्र) सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक से कही अधिक है; यह ब्रह्मचर्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।
ननों ने शालीनता और ईश्वर की भक्ति के प्रतीक के रूप में सदियों से अपना सिर ढका हुआ है, किन्तु इसने, महिलाओं के शोषण, उत्पीड़न या हिजाब जैसे अंतर्राष्ट्रीय विवाद जैसी कोई बहस नही उठायी है।
विम्पल ( शिरोवस्त्र) 'कैथोलिक' नन (साध्वी) की परंपरा का एक निर्विवाद अभिन्न अंग रहा है।
“
कई ईसाई समुदायों में, परंपरागत रूप से, सिर ढकने को, चर्च और ईश्वर के प्रति अनुसेवा और विनम्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है
निष्कर्ष
समय बदल गया है।
अब महिलाओं का लूट की वस्तु की तरह सड़क से अपहरण नहीं किया जाता। आवश्यक सुरक्षा अलग तरह के दर्ज़े की है जो, 21वीं सदी से जुड़ी हुई है।
ऐसे मानवाधिकार हैं जिनके, बारे में लोगों को अब 'इंटरनेट' (Internet) की बदौलत जानकारी हैं।
इस आधुनिक अवधारणा के बारे में केवल एक सैद्धांतिक ज्ञान ही सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त है।
आधुनिक समाज भी 'व्यक्तिवाद' की ओर बढ़ रहा है। इसका अर्थ यह है कि,व्यक्ति के मामलों में उसी समय हस्तक्षेप करना चाहिए, जबकि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप करे।
कानून के प्रति सम्मान और कानून का पालन करने की मांग बढ़ रही है। अतः शरीर को ढकने के इस्तेमाल से जुड़ा 'सुरक्षा का तत्व' सड़कों पर से फीका पड़ने लगा है।
इसलिए, महिलाओं के कपड़ों से जुड़े "सुरक्षा" के तर्क को, समाप्त करने का समय आ गया है।
बल्कि, औद्योगीकरण और उपभोक्तावाद को लोगों की आवश्यकता होती है अपनी योग्यता और प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए ताकि वे आगे बढ़ सके।
प्रतियोगिता की इस आधुनिक दुनिया में सभी क्षेत्रों में 'दृष्टि विद्या' अत्यावश्यक है। बहुत आसान काम, इसे उपयुक्त ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अन्य गुणों के साथ में 'ड्रेसिंग' (पुरुष और महिला दोनों) की आवश्यकता होगी।
कोई भी चेहरा या शरीर ढकने की कोशिश प्राचीन धारणा को फिर से बहाल करती है, कि, पुरुष विकृत हैं और एक महिला को इनकी परभक्षी आंखों से खुद को बचाने के लिए पूरी तरह से ढके रहने की आवश्यकता है।
दुख की बात है कि, यह आंशिक रूप से सच है। क्योंकि, 21वीं सदी में भी, महिलाओं के खिलाफ अपराध एक वैश्विक मुद्दा बना हुआ है, चाहे युद्ध हो या शांति। इसके उलट कोई स्थिति नही है।
यदि शरीर को ढकना महिलाओं की रक्षा का एक उपाय था तो, एक कुरूप तथ्य अभी भी बना हुआ है।
पश्चिम के आधुनिक समाज में, जहाँ, 'उदारवाद' महिलाओं के पहनावे को मज़बूती से समर्थन देता है, वही महिलाओं के खिलाफ अपराध ठीक उतने ही अधिक और समान है जैसे कि, प्रतिबंधात्मक समाज में है।
महिलाओं के शोषण, लैंगिक असमानता और भेदभाव का स्तर आँकड़ो की दृष्टि से भिन्न हो सकता है, किन्तु फिर भी, यह बुराइयाँ हर जगह उल्लेखनीय ढंग से मौजूद हैं। अतः, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि, महिलाएं खुद को ढक कर रखती हैं या नहीं।
धर्म एक अत्यधिक व्यक्तिगत मामला है और प्रत्येक महिला को अपना सिर ढकना है या नहीं, इस बारे में अपना निर्णय स्वयं करना चाहिए।
किन्तु, आखिरकार,सवाल यही है कि, हम धर्म की व्याख्या कैसे करते हैं और अनुयायियों पर धार्मिक प्रथा कैसे थोपी जाती है।
यदि राज्य, 'ड्रेस कोड' के साथ हस्तक्षेप नहीं करता है और इसे महिलाओं की पसंद पर छोड़ देता है, तो इसपर विवाद कम होगा। ऐसा करने पर, महिलाओं के चेहरे को ढकने का मुद्दा, एक कठोर कानून से हटकर जो की महिलाओं की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
एक प्रतिबंधात्मक परंपरा की ओर मुड़ जाएगा जिसमें, आलोचनात्मक समीक्षा की आवश्यकता होती है। इसके साथ-साथ, यह लोगों को इस प्रथा की व्याख्या करने और इसे चुनने के लिए और अधिक स्वतंत्रता देगा।
आज़ाद ख्याल के मानदंडों और धर्मनिरपेक्ष जीवन शैली के बारे में तेजी से जागरूक होती इस दुनिया में, 'धार्मिक स्वतंत्रता' की रक्षा करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
इस प्रकार से, यह 'सिर ढकना' या 'ड्रेसिंग' नहीं है जो, समाज में हिजाब, विंपल या घुंघट की भूमिका को परिभाषित करता है।
बल्कि, यह तत्व है धर्म, संस्कृति, परंपरा, भय, संरक्षण, शिक्षा, कानून, राज्य और प्रभुत्व के लिए संघर्ष का मिश्रण। यह सभी, जटिलता में लिपटे हुए , इतिहास द्वारा परिभाषित है, जिनका, महिला पर असर भारी है।
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