रतन टाटा जी की जीवन यात्रा समाप्त: किंतु, उनका असर आगे भी जारी
रतन टाटा जी की जीवन यात्रा समाप्त: किंतु, उनका असर आगे भी जारी
RATAN TATA का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
रतन टाटा जी की याद में : (1937-2024)
भारत, उद्योग जगत के, एक ऐसे दिग्गज, दूरदर्शी व्यक्ति के निधन पर शोक मना रहा है, जिनका जीवन, व्यापार की सीमाओं से परे गया
और जिन्होंने अपनी विन्रमता, समाज को बेहतर बनाने की अपनी अटूट प्रतिबद्धता और दयालुता के कारण कई लोगों को अपना मुरीद बना लिया था।
रतन टाटा, जिनके निधन से एक महत्वपूर्ण काल का अंत हो गया, सिर्फ एक उद्योगपति ही नहीं थे; वे भारत की आकांक्षाओं, लचीलेपन और *नैतिक नेतृत्व (Ethical leadership) के प्रतीक थे।
86 वर्ष की आयु में टाटा जी का निधन होना देश के कॉर्पोरेट परिदृश्य में एक गहरा खालीपन छोड़ गया है, और वैश्विक व्यापार के इतिहास में एक गहरी जड़ो वाली विरासत अंकित हो गई है।
रतन टाटा जी की यात्रा असाधारण विरोधाभासों से भरी रही।
विशेषाधिकार प्राप्त परिवार में जन्मे रतन टाटा ने, परिवार के नाम की शोहरत पाकर, उसके दम पर आराम करने का नही सोचा।
बल्कि, इसके बजाय, उन्होंने टाटा ग्रुप को - जो 1868 से भारतीय उद्योग की आधारशिला है - अज्ञात क्षेत्रों में ले जाकर उसका मार्गदर्शन किया और उसके नाम को फिर से परिभाषित करने का प्रयास किया।
उनका नेतृत्व ऐसे महत्वपूर्ण समय पर आया, जब 1990 के दशक के शुरआत में भारत में *आर्थिक उदारीकरण हुआ, जिसने देश को वैश्विक बाजार के लिए खुलने का अवसर दिया।
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टाटा एक बहुत ही सिद्धांतवादी व्यक्ति थे, उनकी विनम्रता, ईमानदारी और परोपकारिता की प्रशंसा की जाती थी
उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने विदेशों में नए व्यापार जोखिम (Bold ventures) शुरू किए, जो उनके महान दृष्टिकोण के प्रतीक थे।
इनमें 2000 में ‘टेटली टी’ (Tetley Tea ) की खरीद, 2007 में एंग्लो-डच स्टील निर्माता ‘कोरस’ की खरीद, तथा 2008 में ‘जगुआर लैंड रोवर’ (Jaguar Land Rover) का अधिग्रहण शामिल है, जिससे ‘टाटा’ (TATA) न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में एक प्रभावशाली नाम बन गया।
फिर भी, टाटा की महत्वाकांक्षाओं को मिले- जुले नतीजे मिले। टाटा ग्रुप को वैश्विक बनाने के उनके प्रयासों को आर्थिक संकटों, *अल्पनिवेश (Underinvestment) और बाजार की गतिशीलता में परिवर्तन से चुनौती मिली।
कोरस (Corus) के संघर्ष और दुर्भाग्यपूर्ण टाटा नैनो कार (Tata Nano car) परियोजना जैसी असफलताओं के बावजूद, टाटा जी अडिग रहे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि, भारत विश्व मंच पर मुकाबला करने की क्षमता रखता है।
उनके नेतृत्व ने टाटा समूह को सर्वाधिक खुले विचारों वाले भारतीय समूहों में से एक बना दिया, तथा प्रगति, नई खोज और राष्ट्रीय गौरव के लिए प्रतिबद्ध कॉर्पोरेट इकाई के रूप में इसकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया।
व्यवसाय से परे, टाटा एक बहुत ही सिद्धांतवादी व्यक्ति थे, उनकी विनम्रता, ईमानदारी और परोपकारिता की प्रशंसा की जाती थी।
बेहिसाब दौलत और फ़िजूलखर्ची की इस दुनिया में, टाटा जी इस सबसे दूर थे, वे चुपचाप अपने प्रभाव का उपयोग बेहतर और अच्छे के लिए करते थे।
उन्होंने स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा से लेकर पशु कल्याण तक, अपने दिल के करीब के मुद्दों का समर्थन किया, जिसमें टाटा मुख्यालय में आवारा कुत्तों को शरण देने की अनुमति देना भी शामिल है।
कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व में उनका विश्वास मुनाफे से कहीं आगे तक विस्तारित था; यह समाज के प्रति उनकी गहरी कर्तव्य की भावना से कूट - कूट के भरा था।
टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts), जिसके माध्यम से उनके अधिकांश परोपकारी कार्य संचालित होते थे, एक समतापूर्ण और न्यायपूर्ण विश्व की उनकी परिकल्पना का साक्षी बना हुआ है।
टाटा का व्यक्तिगत जीवन शांत और गरिमा से भरा था।
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उन्होंने स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा से लेकर पशु कल्याण तक, अपने दिल के करीब के मुद्दों का समर्थन किया
उन्होंने विवाह न करने का निर्णय भी यह कहकर लिया था कि टाटा समूह के प्रति उनकी निष्ठा के कारण उन्हें अपना पूरा ध्यान उस पर ही केन्द्रित करना होगा।
यह जीवन में एक ही लक्ष्य को अपना आधार बनाकर रखना ही, उनके सम्पूर्ण चरित्र को दर्शाता है: एक ऐसा व्यक्ति जो अपने से बड़े उद्देश्य के लिए जीया,
जिसका प्रत्येक निर्णय उन लोगों के प्रति जिम्मेदारी की भावना से निर्देशित था, जिनका वह नेतृत्व कर रहा था और जिस देश की वह सेवा कर रहा था।
रतन टाटा जी का निधन, भारत और व्यापार जगत के लिए एक बड़ा नुकसान है।
फिर भी, उनकी विरासत कायम रहेगी - टाटा समूह की बड़ी उपलब्धियों में, उनके द्वारा स्थापित नैतिक मानकों में, तथा उनके परोपकारी कार्यों से प्रभावित लाखों लोगों के जीवन में।
आनंद महिंद्रा के शब्दों में, "मैं रतन टाटा जी की गैरमौजूदगी को स्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ।" शेष भारत भी इसी भावना की गूँज को महसूस कर रहा है।
भारत उन्हें न केवल उनकी उपलब्धियों के लिए याद रखेगा, बल्कि उस शांत गरिमा के लिए भी याद रखेगा, जिसके साथ उन्होंने जीवन जिया और टाटा ग्रुप का नेतृत्व किया।
( ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे )
आर्थिक उदारीकरण एक आर्थिक सिद्धांत है जो बाज़ारों में न्यूनतम हस्तक्षेप की वकालत करता है। इसकी जड़ें अर्थशास्त्री एडम स्मिथ द्वारा प्रचारित सिद्धांतों में हैं जो बाज़ारों में न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप की मांग करते हैं।
जब देश आर्थिक उदारीकरण को बढ़ावा देते हैं, तो इसका परिणाम अक्सर मुक्त व्यापार को बढ़ाने, करों को कम करने और परिसंपत्तियों के निजी स्वामित्व को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों में होता है।
आर्थिक उदारीकरण की परिभाषा सूक्ष्म आर्थिक सुधार के समान है। सूक्ष्म अर्थशास्त्र अर्थशास्त्र का एक क्षेत्र है जो व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा लिए गए निर्णयों के प्रभाव पर विचार करता है।
व्यक्तियों द्वारा लिए गए निर्णयों की दक्षता को अधिकतम करने से आर्थिक उदारीकरण में देखी जाने वाली समान नीतियां सामने आती हैं, जैसे मुक्त व्यापार और न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप।
मुक्त व्यापार वस्तुओं और सेवाओं का ऐसा प्रवाह है जिसमें सरकार द्वारा टैरिफ या कोटा जैसे नियम निर्धारित नहीं होते।
नैतिक नेता अपनी टीम को प्रेरित करते हैं, सम्मान की संस्कृति और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपके कर्मचारी काम पर सम्मानित, सशक्त और समर्थित महसूस करें तो यह एक महत्वपूर्ण कौशल है -
नैतिक नेतृत्व तब होता है जब व्यवसाय के नेता कार्यालय के अंदर और बाहर दोनों जगह - मान्यता प्राप्त सिद्धांतों और मूल्यों के अनुरूप - उचित आचरण का प्रदर्शन करते हैं।
अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से, नैतिक नेतृत्व का अर्थ है मजबूत नैतिक सिद्धांतों का प्रदर्शन करना जो गलत कामों को इंगित करेंगे (भले ही इससे उनके व्यवसाय को लाभ न हो) और यह दिखाना कि नैतिक नेता होने के मूल में क्या सही है।
नैतिक नेता कंपनी के बाकी लोगों के लिए उदाहरण स्थापित करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनके कार्यों और शब्दों का सम्मान किया जाएगा और उनके कर्मचारियों से भी उसी दृढ़ विश्वास के साथ उनका पालन किया जाएगा।
*अल्पनिवेश समस्या वित्तीय अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तावित एक एजेंसी समस्या है जो शेयरधारकों और ऋण धारकों के बीच मौजूद होती है, जिसमें एक लीवरेज्ड कंपनी मूल्यवान निवेश अवसरों को छोड़ देती है क्योंकि ऋण धारक परियोजना के लाभ का एक हिस्सा हड़प लेते हैं, जिससे इक्विटी शेयरधारकों को अपर्याप्त रिटर्न मिलता है।
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