सत्तर घंटे का कार्य सप्ताह - उत्पादकता पर पुनर्विचार
सत्तर घंटे का कार्य सप्ताह - उत्पादकता पर पुनर्विचार
Seventy Hour Work Week – Rethinking Productivity का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
जब श्री * नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) ने सुझाव दिया कि, भारतीय युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए, तो वह भारत की कम उत्पादकता की समस्या से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहे थे। जिसके संभावित परिणाम लाभकारी और सफलता दिलाने वाले हो सकते है।
दुर्भाग्य से, इस प्रसिद्ध नेता के सुझाव में कई गलतियाँ हैं ।
श्री मूर्ति जी की पीढ़ी में , लाखों भारतीयों ने सप्ताह में 70 घंटे काम किया था। क्योंकि, यह वह समय था जब हर किसी का ध्यान राष्ट्र निर्माण पर था।
उस वक़्त लोगों का लक्ष्य था औपनिवेशिक गरीबी को दूर करना और भारत को फिर से महान बनाना। तब यह एक नया भारत था, जिसकी आकांक्षाएं मुख्य रूप से देशभक्ति से प्रेरित थीं।
किन्तु, आज समय बिल्कुल अलग है. कंपनी का मुनाफ़ा श्री मूर्ति की 70 घंटे/सप्ताह की मांग को पूरा करने के लिए ही बाध्य करता है । उन लंबे घण्टों तक काम करने वाले कर्मचारी केवल अपनी कमाई में ही वृद्धि करेंगे।
लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि वह कंपनियां, विशेष रूप से वे वैश्विक दिग्गज, जो अपने करों तक का उचित हिस्सा नहीं चुकाते हैं, देखें कि, दुनिया भर में इन कंपनियों के पास अपने कर मुद्दों को लेकर, मुकदमों की कितनी संख्याएं है।
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तब यह एक नया भारत था, जिसकी आकांक्षाएं मुख्य रूप से देशभक्ति से प्रेरित थीं
2018 में हमारी 5 बड़ी आईटी (IT) कंपनियों के ऊपर करीब 15,000 करोड़ रुपये का कर विवाद था।
अत्यधिक काम करके, कम उत्पादकता को दूर नहीं किया जा सकता। दक्षता, नए कौशल सीखने, बेहतर बुनियादी ढांचे और * स्मार्ट (S.M.A.R.T) नियमों और विनियमों से आती है।
विडम्बना यह है कि, युवा भारत का इन मापदंडों पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसलिए, उत्पादकता में सुधार की उम्मीद के साथ सप्ताह में 70 घंटे काम करना, पंक्चर टायरों के साथ दौड़ लगाने जैसा है।
70 घंटे/सप्ताह के बजाय, मांग मिशन-संचालित कंपनियों की होनी चाहिए थी।
दिल्ली में प्रदूषण को 100% कम करने या सड़कों पर यातायात भीड़ को 50% तक कम करने के लिए पेटेंट आवेदनों या नवाचारों में 20% वृद्धि की मांग होनी चाहिए थी।
भारत में कार्यस्थल पर शून्य आकस्मिक मृत्यु का आंकड़ा क्यों नहीं हो सकता ? भारत में अभी भी ऐसे कर्मचारी हैं जो नग्न हाथों से सेप्टिक टैंकों में काम करते हैं ।
क्या यह कोई ऐसा मिशन नही, जो लक्ष्य बनाने लायक हों? जिस वक्त कि हम सुन रहे है, खबर यह है कि महाराष्ट्र के रायगढ़ में एक फैक्ट्री दुर्घटना में चार श्रमिकों की मौत हो गई, और 11 अन्य लापता हैं।
आज बेंगलुरु शहर की सड़कों पर, जहां श्री मूर्ति जी रहते हैं, उनकी खुद की कंपनी के कर्मचारी रोजाना 2 से 3 घंटे सड़क पर बिताते हैं।
यहाँ पर यह गणना सुझाई जा सकती है. जैसे कि,
यदि हम यातायात का समय कम कर दें, तो देश की उत्पादकता प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह कम से कम 15 घंटे बढ़ जाएगी।
यह दो दिन के अतिरिक्त मूल्यवान समय के बराबर है। इसकी कल्पना कीजिए कि हम ट्रैफिक लाइटों पर कितना पेट्रोल/डीजल ख़र्च करते हैं।
इसे 50% कम करने से हमारे तेल आयात बिल से अरबों डॉलर की कीमती विदेशी मुद्रा बच जाएगी।
क्या वह लाभकारी है?
इसलिए, उत्पादकता में सुधार की जिम्मेदारी केवल कर्मचारियों पर नहीं होनी चाहिए, बल्कि उससे अधिक कंपनियों पर होनी चाहिए, खासकर कि, बड़ी कंपनियों पर।
यहाँ पर एक तरकीब लगाई जा सकती है.
यदि कंपनियां वास्तव में उत्पादकता में सुधार करना चाहती हैं, तो उन्हें अपने कर्मचारियों को उनकी दैनिक यात्रा के समय, के लिए भुगतान करना शुरू करना चाहिए।
इससे यह हो सकता है कि वे कंपनियाँ बेहतर बुनियादी ढांचे के लिए संबंधित सरकारों पर दबाव डालना शुरू कर दें।
समय की बर्बादी के कारण कम उत्पादकता का विचार, ठीक हो जाएगा - यह केवल एक उदाहरण है।
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2018 में हमारी 5 बड़ी आईटी (IT) कंपनियों के ऊपर करीब 15,000 करोड़ रुपये का कर विवाद था
दुनिया के दूसरे हिस्से में, श्री मूर्ति जी के दामाद के, देश के भीतर , कंपनियाँ सप्ताह में केवल 4 दिन काम कर रही हैं।
पहले ही 61 कंपनियों पर किए गए एक प्रयोगात्मक अध्ययन में, लगभग 90% ने यानी उनमें से 56 कंपनियों ने कहा कि, वे इस 4-दिवसीय कार्य-सप्ताह अभ्यास को जारी रखेंगे, और उनमें से 18 ने तो सप्ताह में 4-दिनों के कार्यदिवस को स्थायी बना दिया है।
भारत अभी भी अमेरिका या यूरोप की तरह नहीं बना है. हम भारत में वैसी ही जीवन की गुणवत्ता लाने तथा मानव विकास सूचकांक (Human development index) को ऊपर उठाने की आकांक्षा रखते हैं, किन्तु, भारत के पहले से ही अत्यधिक परिश्रम करने वाले लोगों की शारीरिक यातना और कठिन कार्य करने की कीमत पर नहीं।
कार्य सप्ताह का आकार और प्रति सप्ताह घंटों की गणना बहुत आसान मुद्दा है। यह होना अच्छा है, लेकिन अधिक गंभीर मुद्दा कर्मचारियों की गुणवत्ता का है; उनके कौशल और व्यक्तिगत स्वास्थ्य सर्वोपरि हैं।
भारत में सबसे व्यापक, सूचना प्रौद्योगिकी - कुशल कार्यबल (IT-skilled workforce) है। फिर भी, गूगल ( Google), फेसबुक (Facebook), ट्विटर (Twitter), ओरैकल (Oracle) या माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) क्लब में हमारी एक भी कंपनी नहीं है।
70 घंटे के कार्य सप्ताह के साथ, एक कर्मचारी का निजी जीवन केवल काम करने, आवागमन, सोने और फिर से काम करने तक ही सीमित रहेगा।
70 घंटे के कार्य सप्ताह के साथ, कंपनियां, एक पिता और एक मां को उनके बच्चों के जीवन से अलग कर देंगी।
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भारत अभी भी अमेरिका या यूरोप की तरह नहीं बना है, हम भारत में वैसी ही जीवन की गुणवत्ता लाने की आकांक्षा रखते हैं
परिवार की एकजुटता ख़तरे में पड़ जाएगी. यह उन कंपनियों की गुलामी करने जैसा भी होगा, जिन्होंने अपना उद्देश्य केवल लाभ कमाना बना रखा है।
तो फिर, इस तरह कंपनियां कितनी दूर तक जा पाएंगी?
यह अनुचित है!
4 दिन काम करने का मतलब आलसी होना नहीं है । यह स्मार्ट तरीके से, प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक काम करने के बारे में है।
जो लोग मानते हैं कि काम के बाहर, कंपनियों की कोई भूमिका नहीं है, तो उत्पादकता के उनके विचार को पुनर्विचार की आवश्यकता है।
*नागवार रामाराव नारायणमूर्ति (जन्म: २० अगस्त १९४६) भारत की प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति हैं।
* स्मार्ट एक स्मरणीय संक्षिप्त नाम है, जो लक्ष्यों और उद्देश्यों की स्थापना में मार्गदर्शन के लिए मानदंड देता है , जो बेहतर परिणाम देने वाले माने जाते हैं, उदाहरण के लिए परियोजना प्रबंधन , कर्मचारी- प्रदर्शन प्रबंधन और व्यक्तिगत विकास में । यह शब्द पहली बार प्रबंधन समीक्षा के नवंबर 1981 अंक में जॉर्ज टी. डोरान (George T. Doran) द्वारा प्रस्तावित किया गया था । उन्होंने सुझाव दिया कि लक्ष्य स्मार्ट ( विशिष्ट , मापने योग्य, निर्दिष्ट करने योग्य, यथार्थवादी और समय से संबंधित) होने चाहिए ।
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