सुंदरता की अवधारणा
सुंदरता की अवधारणा
Idea of Beauty का हिन्दी रूपांतर
~ सोनू बिष्ट
मन में जब भी सुंदरता का विचार आता है तो 'नारी ' ही उस चित्र के केंद्र में रही है । जब से हमने पढ़ना, लिखना,वर्णन करना और गाना सीखा है,यह विचार मानव कल्पना में सबसे आगे है ।
हालांकि दुनिया के विभिन्न भागो में सुंदरता के अनेक वर्गीकरण थे,जो मुख्य रूप से स्थानीय संस्कृतियों से प्रभावित थे,सुंदरता की स्पष्ट परिभाषा नहीं थी । आज के इस सटीक और सांख्यिकीय सूक्ष्मता (Statistical accuracy) वाले युग में,यह मामला अभी भी व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) है ।
'सौन्दर्यबोधी सिद्धांत' (aesthetic principles) सुंदरता की विस्तृत संकल्पना का हिस्सा है और सिर्फ चेहरे के आकार तक उसको सीमित रखना अनुचित है ।
आज के इस नवीन युग में,नारी सौंदर्य का उपयोग उत्पादों को, आकर्षक दिखाने और बेचने के लिए किया जाता है, इसका दुरूपयोग शोषण की सीमा तक हो रहा है, और इसे अनुचित तरीके से, प्रस्तुत किया जा रहा है ।
एक अनियंत्रित उद्योग होने के कारण यह अन्य उद्योगों की विपणन (Marketing) की रणनीतियों से बंधा हुआ है, कारों से लेकर घरेलू सामानों और फैशन के सामान तक, नारी सौंदर्य का उपयोग निरंतर यह सन्देश देने के लिए किया जा रहा है, की जो अच्छा दिखता है वही अच्छा है, उसे ही ख़रीदे ।
जो महिलाएं इस विपणन (Marketing) उद्योग में अपने चेहरे का व्यवसायीकरण कर रही है, उन्होंने शल्य चिकित्सा का उपयोग चेहरे को नया स्वरूप देने के लिए किया है । कुछ लोगों का मानना है - यह आज़ादी है,कुछ अन्य का, सुंदरता के सर्वांगीण संकल्पना के साथ प्रतिद्वंद्विता (Contest ) ।
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जो अच्छा दिखता है वही अच्छा है, उसे ही ख़रीदे
सौंदर्यशास्त्र बन गया सौंदर्य -
प्राचीन ग्रीस में,एक मूर्तिकार और गणितज्ञ थे, फिडियास ( phidias ), इन्होंने अपनी मूर्तियों को डिज़ाइन करते समय एक अनुपात का उपयोग किया,जिसके अनुसार जब एक रेखा को 1:1.618 के अनुपात में विभाजित किया जाता है,तो वह एक आकर्षक अनुपात बनाता है ।
इस प्रकार, इस सुनहरे अनुपात को ''फी'' (PHI ) कहा गया । तत्पश्चात (Subsequently ) पुनर्जागरण काल में, कलाकारों ने अपनी चित्रकारी में, इस सुनहरे अनुपात का इस्तेमाल शुरू कर दिया ।
चेहरे सौंदर्य की दृष्टि से आकर्षक थे, किन्तु शेष शरीर के हिस्से, समकालीन थे क्योंकि उनके नाप के लिए कोई स्पष्ट 'सूत्र ' नहीं था ।
यदि हम पुनर्जागरण चित्रों में चित्रित महिलाओं के शरीर के अनुपात की तुलना आज के चित्रों से करते है, तो एक बहुत बड़ा अंतर पायेंगे,जबकि सुंदर चेहरे के लिए सुनहरे अनुपात के नियम का पालन जारी रहा । वही सुंदरता का विचार पूरी तरह से बदल गया है ।
अनजाने में, चेहरे की सुंदरता को अनुपात और सुडौलपन से आंका जाता है । चेहरा ''फी'' (Phi ) के नियम से जितना करीब आता है,उतना ही देखने वाला को वह सुन्दर लगता है ।
यह एक मान्यता है की अनुपात सभी संस्कृतियों और जातियों के लिए मान्य है । तथ्य यह है की 'सुनहरे अनुपात ' की सीमा में, मानव आबादी का सिर्फ एक तिहाई (1/3) हिस्सा है,अन्य 'फी' से कम या लम्बे है । इस तरह से दुनिया की केवल एक तिहाई आबादी ही इस समाज में आती है ।
वर्तमान में सुंदरता -
आज के समय में सुंदरता का विचार, ज्यादातर मिस वर्ल्ड जैसी सौंदर्य प्रतियोगिताओं से व्युत्पन्न (Derived) होते है । अगर पहली मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता ब्रिटेन में 27 जुलाई 1951 को शुरू हुई,तो अमेरिका भी इसमें पीछे नहीं रहा था ।
इसके बाद 1952 में कैलिफ़ोर्निया (California ) में मिस यूनिवर्स सौंदर्य प्रतियोगिता आई, जिसकी स्थापना पैसिफिक निटिंग मिल्स (Pacific knitting mills ) द्वारा हुई ।
दिलचस्प बात यह है की इन दोनों प्रतियोगिताओं को, स्विमसूट को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया था, क्योंकि तब यह एक नई संकल्पना (Concept) थी । इसे अनैतिक माना जाता था और समाज की इस मानसिकता में बदलाव की जरूरत थी ।
शुरुवात में यह सौंदर्य स्पर्धा, बिकनी उत्सव प्रतिद्वंदिता के रूप, में ब्रिटेन के एक महोत्सव का हिस्सा थी, किन्तु लोकप्रियता के कारण 'पॉपुलर प्रेस '(Popular Press) ने इसे मिस वर्ल्ड 'शब्द' दिया और तत्पश्चात (Subesquently) संस्थापक ने इसे " व्यावसायिक चिन्ह "(Trademark) दे दिया ।
पैसिफिक बुनाई मिल्स (Pacific Knitting Mills) केटालिना (Catalina) नामक स्विमवियर के निर्माता थे ।
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अब हम समझ सकते है कि सुंदरता का विचार और उसके व्यवसायीकरण की उत्पत्ति स्विमसूट से हुई
क्या यह गलत दिशा में बढ़ गया है ?
पहली सौंदर्य प्रतियोगिता जो लंदन में हुई, उसमें स्कोरिंग प्रणाली सरल और स्पष्ट थी । जज आकार के लिए के लिए 50 %,चेहरे की सुंदरता के लिए 20 %, पोज़ के लिए 20 % और 10 % अंक दर्शकों की तालियों के लिए देते थे ।
पर अब कोई भी इन प्रतियोगिताओं में शुरू किये हुए मूल तत्वों (Fundamentals) को नहीं जानता, हालांकि, आजकल पूर्ण स्कोर का विवरण किसी से साझा नहीं किया जाता है, सबसे अच्छे अनुमान के लिए प्रतियोगियों को उनकी दिखावट, स्विमसूट में आकृति,उनकी कैटवॉक और पाश्च्यात पोशाक में वे कैसी नजर आ रही है, इन सबसे आंका जाता है ।
जजों के सवालों के जवाबों के आधार पर भी उन्हें आंका जाता है ।
जहा प्रतियोगी गम्भीरतापूर्वक सामरीवाद (Samaritanism) की घोषणा करते है, किन्तु बाद में उसका अनुसरण कभी नहीं करते । बहुत सारी किताबें और कोचिंग उपलब्ध है, जिन्हें प्रतियोगी 'प्रवंचक पत्र' (Cheet Sheet) के रूप में सौंदर्य स्पर्धा में सवालों के जवाब देने के लिए रट लेते है ।
उन्हें निश्चित रूप से एक एथलीट की तरह पारदर्शी और सटीक स्कोरिंग प्रणाली के साथ नहीं आंका जाता है । प्रतियोगी सूची में कोई भी विजेता हो सकता क्योंकि 'विभेदक कारक ' (Differentiating Factors) कम ही है ।
यह अपने आप में व्यक्तिनिष्ठ (Subjective ) है कि, प्रतियोगी अपने देश का प्रतिनिधित्व करते है । छोटे से देश जमैका (Jamaica) से लेकर,भारत जैसे विविधतापूर्ण देश से किसी एक लड़की को देश कि सुंदरता का प्रतिनिधित्व करने के लिए चयनित करना ही एक 'उपहास्य' है ।
यह इस काल्पनिक तथ्य को दृढ़ करता है कि एक देश की सभी महिलाएं एक जैसी ही दिखती है ।
उदाहरणार्थ भारत से पांच (5) मिस वर्ल्ड विजेता रही है, जो की दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों से थी । देश के अन्य भागो की सुंदरता का अप्रतिनिधित्व रहा है और देश की अवास्तविक (False) छवि दिखाई गई है ।
तत्पश्चात इन सभी ने या तो मॉडलिंग या फिल्म अभिनय का व्यवसाय चुना । सन्देश साफ़ है की सुंदरता सिर्फ, इन दोनों व्यवसायों से जुड़े लोगों तक ही सीमित रह गया है ।
सुंदरता का मत, केवल प्रतियोगियों के भविष्य व्यवसाय तक सीमित नहीं है बल्कि जाति और रंग भी इस मूल्यांकन (निर्णय ) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 1951 के बाद से,केवल ( 4 ) अश्वेत अफ्रीकी लड़कियों को मिस वर्ल्ड का ताज पहनाया गया है ।
यदि, नस्लवाद को नकार दे तो, जो श्वेत महिला विजेताओ की सुंदरता के मापदंड को अश्वेत महिलाओं कि सुंदरता के ऊपर लाया गया है, यह प्रवृति 'शंकास्पद' (Questionable) है ।
हालांकि सौंदर्य उद्योग में पहले से सृजनित 'अचेतनता' (Inertia ) इतनी विशाल है, कि उसे परिवर्तित करना कठिन है । फिर भी सवाल उठाए जाने चाहिए, ताकि एकीकृत सुंदरता की परिभाषा, पर रोक लगाई जा सके ।
यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी ने इतनी व्यापकता से, इस विषय के बारे में लिखा हो, यद्पि अनेको बार,सुंदरता के विचार पर आलोचकों ने सवाल किये है ।
पहली बार 1951 में ही, जब सुंदरता कि संकल्पना (concept) की गयी और सौंदर्य प्रतियोगिता, औपचारिक रूप से शुरू हुई, तब ही कुछ ने इसकी आलोचना की थी ।
कई धार्मिक परंपराओं वाले देशों ने इस प्रतियोगिता को वापिस लेने के लिए धमकी दी । बिकनी प्रतियोगिता की निंदा करने में आदरणीय पॉप पायस Xll भी पीछे नहीं रहे थे ।
सुंदरता के सर्वव्यापी (Universal) विचार को कौन चला रहा ?
सुंदरता को परिभाषित करने की आवश्यकता तब सामने आयी जब,नारी के चेहरे, रंग रूप का व्यवसायीकरण शुरू हुआ ।
उत्पाद जो चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाते है, दागो को छिपाते और रंग को तबदील करते है, आवश्यक रूप से हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो चुके है । इन सौंदर्य उत्पादों को बेचने में लगी कंपनियों ने सुंदरता का एक नया विचार दिया,जिसका उद्देश्य महिलाओं के वैश्विक बाजार को एकजुट करना था ।
सौंदर्य, जो विपणन रणनीति (Marketing strategy) द्वारा तैयार किया गया था, सभी महिलाओं के लिए आगे बढ़ने का एक मंच बन गया । अब महिलाये स्वयं विज्ञापित मॉडलों के जरिये, उत्पादों के उपयोग के परिणाम देख सकती है ।
कंपनियां अपने विज्ञापनों में उन मॉडलों का इस्तेमाल करते है, जिनके चेहरे 'फी' (PHI ) के करीब आते है । जो अच्छा दिखता है वही अच्छा है,विज्ञापनों के पीछे का यही दिमागी खेल है । इसने सौंदर्य स्पर्धा और प्रतिस्पर्धी उत्पादों के लिए बाजार शुरू कर दिया है ।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां विशाल शोध और विज्ञापन बजट के साथ सौंदर्य बाजार में दाखिल हुई । ऐसा प्रतीत होता है, सुंदरता का एकीकृत विचार लाने के लिए यही दोषी है ।
अगर आप देश – विदेश में सौंदर्य उत्पादों के, विज्ञापन देखे तो वो एक जैसे ही है, हालाँकि इन विज्ञापनों में उपयोग की जाने वाली मॉडल्स देश के लिए स्थानीय है ।
इन सुपर मॉडल्स को ब्रांड एम्बेसडर के लिए भी,नामांकित किया जाता है, जो की समान ही होती है । अकसर यह दर्शकों को अपने मूल देश के साथ भ्रमित कर सकते है ।
दुर्भाग्यवश इस दृष्टिकोण का परिणाम, सुंदरता के विचार की विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है । फलस्वरूप, यह विज्ञापन देश की पीढ़ी का ख़ौफ़नाक मार्गदर्शन कर रही है, एक ही दिशा की ओर ख़ास तरीके से देखने के लिए, जो की सार्वलौकिक (Universal) है ।
उसी प्रकार,यदि आप उन अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य पत्रिकाओं को उठा कर देखे, जो किसी भी देश में प्रकाशित हुई हो,उनमें मॉडल्स तो बदल जाती है, पर वह सभी एक समान ही लगती है ।
आभूषणों के डिज़ाइन, कपड़े, जूते टोपी ओर अन्य सामान सार्वलौकिक होते है । वहां पर स्थानीयकरण "उपेक्षणीय " (Negligible) है । इस बाजार को एकीकृत करने के लिये,उपभोक्ता व्यवहार में हेरफेर करना, एक धूर्त अभ्यास नजर आता है ।
इस तथाकथित सौंदर्य बाजार में, कुछ ही प्रकार के उत्पाद है बेचने के लिए । जिन्हें सभी देशों,क्षेत्रों,जातियों,रंगो ओर चेहरे के प्रकारों की आवश्यकता को पूरा करना है ।
विक्रेताओं द्वारा अपनाई गयी एकीकृत रणनीति व्यवसायिक रूप से बहुत अच्छा काम कर रही है । नतीजतन,एक यूरोपियन प्रसाधन सामग्री (Cosmetic) को बिना किसी सार्थक रूपांतरण के एशिया,अमेरिका और अफ्रीका के देशों में बेचा जा सकता है ।
दूसरी तरफ,यदि सौंदर्य उत्पाद कंपनियां को अपने उत्पादों को उन सभी 194 देशों के, रुचि के अनुरूप बनाना पड़े तो, यह एक विशाल कार्य होगा । यदि सम्भव न हो पाया तो निर्माण और विपणन महंगा हो जायेगा,असाध्य और जटिल भी ।
तो आखिर सौंदर्य की अवधारणा है क्या ?
इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं द्वारा क्या यह प्रसारित किया जा रहा है ? क्या सुंदरता की संकल्पना को सामान्य रूप से, समाज के लिए खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए?
क्या सौंदर्य प्रतियोगिताओं को सामान्य महिलाओं के साथ आयोजित नहीं किया जा सकता, यह दूसरा तर्क सामने रखा जा सकता है ? क्यों दुनिया ने आज तक, कोई चश्मा पहने, कम लम्बाई वाली या जो पतली ना हो, ऐसी प्रतियोगिता विजेता नहीं देखी ?उप - सहारा देशों में से कुछ देश इसके उदाहरण है,जो चमकदार पत्रिकाओं के सुंदरता के विचार की अवहेलना (Defy ) करते है ।
इसी तरह अमेरिकन और यूरोपियन सुंदरता के विचार से चीनी देश और भारतीय सौंदर्य की धारणा अलग है ।
सभी संस्कृतियों में परियों की कहानियों में, सुंदरता को रूप -रंग से नहीं बल्कि संवेदनाओं से परिभाषित किया गया है । सुंदरता की इस संकल्पना के साथ बच्चे बड़े होते है,उनकी किताबों में रूप -रंग को दूसरे दर्जे पर रखा गया है । वयस्कता आने के साथ यह विचार पूरी तरह से बदल जाता है ।
कोरोना महामारी ने, बाह्य सुंदरता के आगे आंतरिक सुंदरता की महत्ता को उजागर किया है । महिलाओं ने अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए, प्राथमिक या फिर सौंदर्य उत्पादों का उपयोग ना के बराबर किया ।
सच्ची सुंदरता सामने आई । वेब कैमरा (Web Camera) के पीछे बिना प्रसाधन सामग्री (Cosmetics ) के रहना महिलाओं को स्वीकार्य हुआ । यह उनके लिए मायने तब रखता है, जब वे सार्वजनिक स्थानों पर हो ।
अब जबकि दुनिया ने प्राकृतिक सौन्दर्य और प्रसाधन युक्त सौन्दर्य को देख लिया है, तो क्या यह सौंदर्य उत्पादों के इस्तेमाल को नए सिरे से परिभाषित करेगा । इस विषय की प्रासंगिकता एक बार फिर उभर कर आई है ।
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कोरोना महामारी ने, बाह्य सुंदरता के आगे आंतरिक सुंदरता की महत्ता को उजागर किया है
चेहरे की अनुपातिकता के साथ सौंदर्य उत्पादों की बिक्री की परस्पर क्रिया शंकास्पद है । इन दोनों में से, किसी एक को, समीकरण से हटाने पर,सुंदरता का विचार उड़ान भरने में विफल हो जाएगा । सौन्दर्य का भविष्य, इसके 'पारिभाषिक शब्द' को स्थिर करने में निहित है ।
अभी सौंदर्य उत्पाद, सौंदर्य के लिए नहीं है ,बल्कि वे सौंदर्य प्रसाधन है,जो विशुद्ध (Authentic) सुंदरता के विचार को छिपा रहे है ।
अतिरिक्त टिपण्णियां-
आदर्श चेहरे के अनुपात को मापने के लिए हम सुनहरे अनुपात का उपयोग कैसे करते है ?
नाक के ऊपर से होठो के बीच की दूरी,होठो के बीच से ठुडी तक की दूरी का
1. 618 गुना होना चाहिए ।
ऊपरी पलक की हेयरलाइन ऊपरी भौ के ऊपर से निचली पलक तक की लम्बाई की 1.618 गुना होनी चाहिए ।
ऊपरी से निचले होठ की आयतन का आदर्श अनुपात 1 :1.6 है (निचले होठ में ऊपरी होठ की तुलना में थोड़ा अधिक आयतन होना चाहिए )
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