सरकार और कम्पनियाँ - शुद्ध और अशुद्ध साझेदारी
सरकार और कम्पनियाँ - शुद्ध और अशुद्ध साझेदारी
Government and Corporates – Holy and Unholy Partnership का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
बड़े औषधालय
बड़ी ऊर्जा
बड़ी कृषि
बड़े हथियार
बड़ा वित्त
बड़े वाहन
बड़े शीतल पेय
पिछले साल, वैश्विक भ्रष्टाचार निरोधक संगठन 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' (Transparency International) ने अपना पहला 'भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक' (Corruption Perceptions Index) जारी किया जो, सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के स्तर के आधार पर 'देशों' को 'श्रेणी' में रखता है।
2021 में, डेनमार्क पहले स्थान पर , अमेरिका 27 वें स्थान पर और भारत 180 देशों में से 85 वें स्थान पर था।
यह कोई रहस्य नहीं है कि, व्यापार अधिक जटिल होता जा रहा है और सरकारें अधिक जवाबदेह होती जा रही हैं। इसलिए, सरकारों और निगमों को सावधानी से चलना चाहिए।
यह मामला ऐसा क्यों है, इसके कई कारण हैं।
सबसे पहले, सरकारें कानूनी और नियामक ढांचा प्रदान करती हैं जिसके, भीतर व्यवसाय संचालित होते हैं। इसमें पर्यावरण मानकों को स्थापित करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि, कंपनियां कराधान कानूनों का पालन करती हैं।
इस ढांचे के बिना,व्यवसायों को प्रभावी ढंग से संचालित करना बहुत कठिन होगा। इसके अलावा, निगमों के शक्तिशाली विशेष हित होते हैं जिन्हें, नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।
दूसरा, सरकारों की भी आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी होती है। इसमें बुनियादी ढांचे में निवेश करना और व्यवसायों को निवेश के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल है।
एक साथ काम करके, सरकारें और कंपनियां रोजगार पैदा करने, नई पद्धतियों को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास को चलाने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाने में मदद कर सकती हैं।
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निगमों के शक्तिशाली विशेष हित होते हैं जिन्हें, नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है
अंत में, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि, व्यवसाय, करों के भुगतान के माध्यम से सरकारी सेवाओं के वित्तपोषण में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं। कर राजस्व के बिना, सरकारों के लिए जनता को सेवाएं प्रदान करना चुनौतीपूर्ण होगा।
हितों का टकराव क्यों?
एक आदर्श दुनिया में, सरकारें इस आधार पर निर्णय लेंगी कि, उनके नागरिकों के लिए सबसे बेहतर क्या है और व्यापारसंघ हमेशा अपने कर्मचारियों और ग्राहकों को सबसे पहले रखेंगे।
हालांकि, इसके विपरीत वास्तविकता यह है कि, सरकारें और व्यापारसंघ दोनों अक्सर स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। जिस वजह से दोनों के बीच हितों का टकराव हो सकता है। परिणामस्वरूप, प्रत्येक पक्ष जनता के खर्चें पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है।
निगम 'लाभ' को अधिकतम करना चाहते हैं, जबकि, सरकार को सत्ता में बने रहने के लिए सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए। अतः, निगम अक्सर सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया पर बहुत अधिक असर डालते हैं।
यह बहस 2008 के वित्तीय संकट के मद्देनजर सामने आई जब यह पता चला कि, कई सरकारी अधिकारियों का वित्तीय उद्योग से घनिष्ठ संबंध था।
परिणामस्वरूप, बड़े बैंकों को समर्थन दिया गया, जबकि, छोटे व्यवसायों को इस वित्तीय संकट के दौरान विफल होने के लिए छोड़ दिया गया था।
निगमों के लिए यह असामान्य नही है कि, वे सरकारों को, कानून निर्माण को प्रभावित करने के लिए राजी कर सके । इसके परिणामस्वरूप, 'अधिनियमित कानून' बन सकते हैं जो, सार्वजनिक व्यय के धन से निगम को लाभान्वित करते हैं।
इसके अलावा, सरकारी अधिकारियों को प्रलोभन दिया जा सकता है कि, वे अपने मित्रों या परिवार के सदस्यों को अनुबंध देने का निर्णय करने के लिए, अपनी शक्ति का उपयोग करें।
उदाहरण के लिए, जब निगम 'कम करों' की पैरवी करते हैं तो, वे 'कम नियमों' की मांग कर सकते हैं जो, श्रमिकों या पर्यावरण की रक्षा कर सकें।
उदाहरण के लिए, कंपनियों के मुनाफे को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरणीय नियमों में ढील दी जा सकती है, भले ही यह सार्वजनिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
'अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स' लॉबिंग समूह (US Chamber of Commerce) सांसदों को प्रभावित करने के लिए सालाना 2 अरब 60 करोड़ डॉलर खर्च करता है जो, किसी भी अन्य 'हित समूह' से ज्यादा है।
2015-2016 के चुनावी चक्र में, उन्होंने राजनेताओं को 8 करोड़ 60 लाख डॉलर का दान दिया। यह कोई संयोग नहीं है; यह रणनीतिक है।
बड़े व्यवसायों को एहसास हुआ कि, उन्हें अपने लिए लाभदायक कानूनों को पारित करवाने के लिए सरकार को प्रभावित करने की आवश्यकता है।
हाल के वर्षों में, सरकारों और निगमों के बीच पक्षपात बढ़ा है। उदाहरण के लिए अमेरिका में, यह अनुमान लगाया गया है कि, सभी सरकारी अनुबंधों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा उन कंपनियों को दिया जाता है जिनके, पास राजनीतिक रूप से जुड़े अधिकारी हैं।
'सेंटर फॉर पब्लिक इंटीग्रिटी' (Center for Public Integrity) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में आधे से अधिक 'राज्य विधायकों' ने लॉबिस्टों (lobbyists) से उपहार स्वीकार किए हैं।
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि, 1998 के बाद से लॉबिस्ट-प्रायोजित यात्राओं की संख्या दोगुनी हो गई है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि, सभी राज्य विधायकों में से लगभग एक तिहाई अब लॉबिस्ट के रूप में काम करते हैं।
दुनिया भर के कई अन्य देशों में भी यही तरीका अच्छा है।
इसका एक सुर्खियों में रहने वाला उदाहरण तेल उद्योग है।
2010 में, 'बीपी' (ब्रिटिश पेट्रोलियम) (British Petroleum) 'डीपवाटर होराइजन तेल रिग' (Deepwater Horizon oil rig) में विस्फोट हो गया जिसके, परिणामस्वरूप इतिहास की सबसे खराब पर्यावरणीय आपदाएँ हुईं।
इसके पानी मे फैल जाने ने समुद्री जीवन को व्यापक नुकसान पहुंचाया और कई 'तटीय समुदायों' की आजीविका को प्रभावित किया। दुर्घटना के बाद पता चला कि, 'बीपी' ने कमजोर सुरक्षा नियमों के लिए बड़े पैमाने पर पैरवी की थी।
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1998 के बाद से लॉबिस्ट-प्रायोजित यात्राओं की संख्या दोगुनी हो गई है
यदि 'बीपी' सरकारी नीति को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होता तो, 'डीपवाटर होराइजन आपदा' को रोका जा सकता था।
हाल के वर्षों में, 'शेल' (Shell) और 'बीपी' (BP) जैसी तेल कंपनियां 'फ्रैकिंग' (fracking) में शामिल होने को लेकर विवादों में घिरी हुई हैं। आलोचकों का तर्क है कि, ये कंपनियां लोगों के आगे मुनाफा रख रही हैं और उनके कार्यों से भयानक पर्यावरणीय क्षति हो रही है।
'फ्रैकिंग' में चट्टान को तोड़ने और प्राकृतिक गैस छोड़ने के लिए, उच्च दबाव में पानी और रसायनों को जमीन के भीतर पहुंचाना शामिल है।
हालांकि, 'फ्रैकिंग' एक सस्ता और दक्ष ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकता है किन्तु, यह गंभीर पर्यावरणीय जोखिम भी पैदा करता है। उदाहरण के लिए, 'फ्रैकिंग' में प्रयुक्त कुछ रसायनों को कैंसर और भूजल दूषण से जोड़ा गया है।
'रक्षा उद्योग' अमेरिका में सरकारी अनुबंधों पर कुप्रसिद्ध रूप से निर्भर है। यह निर्भरता इस उद्योग को सरकार की नीति के ऊपर प्रभुत्व देती है।
परिणामस्वरूप,अमेरिकी सरकार 'रक्षा ठेकेदारों' के हितों को प्राथमिकता देती है। 'शस्त्र उद्योग' (War industry) इस अशुद्ध रिश्ते का स्वाभाविक परिणाम है और कई लोग मानते हैं कि, इस उद्योग क्षेत्र को चलाने के लिए 'युद्ध' उत्पन्न किए जाते हैं।
एक ओर तो, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि, रक्षा जैसे विशिष्ट उद्योग सरकारी अनुबंधों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
यह एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकता है जिसमें कंपनियां सरकारी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर हो जाती हैं जिससे, पक्षपात और भ्रष्टाचार होता है।
तो दूसरी ओर, कड़े सरकारी नियम कभी-कभी नवपरिवर्तन और रचनात्मकता को दबा देते हैं।
ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां, निगमों ने सरकारी नीतियों पर अनुचित प्रभाव डाला है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में 'तंबाकू लॉबी' (समर्थक वर्ग ) ने सरकार को धूम्रपान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से रोका है।
परिणामस्वरूप, हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण हजारों लोग मारे जाते हैं।
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यदि 'बीपी' सरकारी नीति को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होता तो, 'डीपवाटर होराइजन आपदा' को रोका जा सकता था
नई दवाएं और चिकित्सा उपचार विकसित करने में 'दवा कंपनियां' महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
अतः, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि, 'औषध उद्योग' (pharmaceutical industry) बहुत अधिक शक्ति को संभाले हुए है।
न केवल वे दुनिया के सबसे अधिक लाभदायक उद्योगों में से एक हैं, बल्कि, सरकारी नीति पर भी उनका महत्वपूर्ण प्रभाव है।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में, शीर्ष 10 दवा कंपनियां लगभग 60% बाजार को नियंत्रित करती हैं।
शक्ति का यह केंद्रीकरण उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतें और कम विकल्प की ओर ले जा सकता हैं।
परिणामस्वरूप, यह संबंध दवा की उच्च कीमतों और दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता के आसपास पारदर्शिता की कमी की ओर ले जा सकता है।
विशिष्टताओं के बावजूद, व्यापार और सरकार के बीच इस घनिष्ठ संबंध का अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण के लिए, दवा कंपनियां अपने उत्पादों के निर्माण के नियमों में ढील देने के लिए जानी जाती हैं, जिसमें ऐसी दवाएं भी शामिल हैं जो, सार्वजनिक उपयोग के लिए असुरक्षित हो सकती हैं।
इसके अलावा, वे अपने प्रभाव का उपयोग प्रतिस्पर्धी उद्योगों, जैसे 'जेनेरिक दवा' निर्माताओं के लिए सरकारी वित्त पोषण को हतोत्साहित करने के लिए भी कर सकते हैं। भारत इसमें ऐसा ही एक मामला है।
दुनिया भर में सरकारों और निगमों के बीच सकारात्मक और नकारात्मक संबंधों के उदाहरण हैं।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में कई व्यवसाय जीवित रहने के लिए सरकारी अनुबंधों पर निर्भर हैं।
इससे अक्षमता और बर्बादी हो सकती है, किन्तु, यह कई व्यवसायों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी प्रदान करता है।
ब्रिटेन में, सरकार पर विशेष रूप से वित्तीय क्षेत्र में विशिष्ट व्यवसायों के बहुत करीब होने का आरोप लगाया गया है। इसने पक्षपात और एक पारदर्शिता की कमी के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है।
ऑस्ट्रेलिया और भारत दो अन्य देश हैं जिनका, इस संबंध में अलग-अलग दृष्टिकोण है।
ऑस्ट्रेलिया में, सरकार ने अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है जिससे, व्यवसायों को काफी हद तक खुद को बचाने के लिए छोड़ दिया गया है।
इसके मिश्रित परिणाम रहे हैं, कुछ कंपनियां संघर्ष कर रही हैं जबकि, अन्य फल-फूल रही हैं।
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अमेरिका में, शीर्ष 10 दवा कंपनियां लगभग 60% बाजार को नियंत्रित करती हैं
दूसरी ओर, भारत का व्यापार और सरकार के बीच घनिष्ठ संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है।
भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के आरोप अक्सर सुर्खियां बटोरते हैं किन्तु, इसने आर्थिक विकास के लिए प्रेरित होने में भी मदद की है।
'राजनीतिक अनुदान ' चिंता का एक गंभीर विषय है और इसने देश में लोकतंत्र को विकृत कर दिया है।
स्वीडन का अक्सर एक ऐसे देश के रूप में उल्लेख किया जाता है जो, इस मुद्दे से बचने में कामयाब रहा है। स्वीडन में, सरकारी अधिकारियों को राजनीतिक संबद्धता के बजाय योग्यता के आधार पर नियुक्त किया जाता है।
परिणामस्वरूप, स्वीडन को लगातार दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट देशों में से एक के रूप में स्थान दिया गया है।
तटस्थता और पारदर्शिता के प्रति इस प्रतिबद्धता ने स्वीडन को अपने नागरिकों द्वारा उसपर उच्च स्तर का विश्वास बनाए रखने में मदद की है जबकि, अन्य देश तेजी से ध्रुवीकृत हो गए हैं।
राजनेताओं सहित सरकार और निगम अधिकारियों को जनता के विश्वास को बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है, किन्तु, वे अक्सर खुद को 'हितों के टकराव' के बीच उलझा हुआ पाते हैं।
राजनेता अक्सर अपने अभियानों को निधि दिलवाने और अपनी मनपसन्द परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए निगम दान पर भरोसा करते हैं।
उदाहरण के लिए, निगम अनुकूल कानूनों या विनियमों के लिए सरकारों की पैरवी कर सकते हैं या उनके एजेंडे का समर्थन करने वाले राजनेताओं को अभियान दान प्रदान कर सकते हैं।
इस सहजीवी संबंध पर दोनों पक्षों की ओर से पक्षपात का आरोप लगाया जाता है।
कानून निर्माताओं और पैरवी करने वालों ने हमेशा एक करीबी रिश्ते का आनंद लिया है किन्तु, हाल के वर्षों में यह रिश्ता चिंताजनक ढंग से घनिष्ठ हो गया है।
कई विकासशील देशों में, भ्रष्ट राजनेता अक्सर भ्रष्ट व्यवसायियों के साथ जुड़कर विकास परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करते हैं।
परिणामस्वरूप, लोग कष्ट झेलते हैं जबकि, राजनेता और व्यवसायी एक सुख- सुविधा से पूर्ण जीवन शैली का आनंद लेते हैं।
ये टकराव साधारण वित्तीय हितों से लेकर जटिल पारिवारिक संबंधों तक कई रूप ले सकते हैं।
कुछ मामलों में, जैसे कि, जब किसी अधिकारी के पास सरकारी अनुबंध प्राप्त कंपनी में पूँजी की भागीदारी(स्टॉक) होती है तो, टकराव हल्का होता है और नुकसान की संभावना भी सीमित होती है।
हालांकि, अन्य मामलों में, जैसे कि, जब किसी अधिकारी का जीवनसाथी अनुकूल नियमों पर जोर देने वाली लॉबिंग फर्म (पैरवी फर्म) के लिए काम करता है तो, टकराव बहुत अधिक गंभीर होता है।
अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं के साथ सरकार में निगम कार्यपालक (Corporate executive) एक और विवादास्पद विषय हैं।
अमेरिका में सरकारी शीर्ष पदों पर काम करने वाले 'निगम कार्यपालकों' के कुछ उदाहरणों में 'गोल्डमैन सॅक्स'(एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक और वित्तीय सेवा कंपनी है) के 'हेनरी पॉलसन' (ट्रेजरी सचिव 2006-2009) और रॉबर्ट रुबिन (ट्रेजरी सचिव 1995-1999) शामिल हैं।
यूके (UK) में, वर्तमान प्रधान मंत्री 'लिज़ ट्रस' (Liz Truss) 'शेल'(Shell) कंपनी में कार्यरत थीं। ऊर्जा संकट से संबंधित उनकी नीतियां ऊर्जा कंपनियों के पक्ष में बताई जाती हैं। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि, उन्होंने उन पर अप्रत्याशित कर लगाने से इनकार कर दिया है।
सरकार में निगम अधिकारियों के समर्थकों का तर्क है कि, इन व्यक्तियों के पास विचारपूर्ण निर्णय करने का अनुभव और विशेषज्ञता है।
दूसरी ओर, इनके आलोचकों का तर्क है कि, इन व्यक्तियों के पक्षपातपूर्ण निर्णयों को लेने की अधिक संभावना है जो, आम जनता के बजाय उनके निगम को लाभ पहुंचाते हैं।
परिणाम सभी जगह समान ही है: योग्यता-आधारित निर्णय की जगह पक्षपात ले लेता है और जिस कारण जनता का विश्वास खत्म हो जाता है। सौभाग्यवश, 'हितों के टकराव' के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं।
इस पक्षपात के उदाहरण हर जगह हैं कि,किस प्रकार से निगमों को सरकारी अनुबंध मिलते हैं और कैसे जब वे वित्तीय संकट में पड़ जाते हैं तो, करदाताओं द्वारा उबार लिए जाते है।
यह पक्षपात व्यापार के लिए बुरा और लोकतंत्र के लिए बहुत बुरा है।
समाधान
स्पष्ट समाधान यह है कि, हितों के टकराव को नियंत्रित करने वाले सख्त कानून लागू करके इस पक्षपात को समाप्त किया जाए। किन्तु अब तक, सरकार और 'लॉबिंग फर्मों' के बीच इस आने जाने के चक्र को रोकने के प्रयास काफी हद तक असफल रहे हैं।
यह आंशिक रूप से इसलिए है क्योंकि, यह समस्या गहराई से अपनी जड़े जमा चुकी है: कॉर्पोरेट लॉबिस्टों (प्रचारकों ) के पास बहुत अधिक धन शक्ति होती है और वे इसका इस्तेमाल खुद को रोकने वाले किसी भी विधायी प्रयास को विफल करने के लिए करने से डरते नहीं हैं।
इस पक्षपात को खत्म करने के कुछ तरीके हैं। एक समाधान सरकारों के लिए यह है कि, वह नियम और अधिनियम बनाए जो, निगमों के लिए उन्हें प्रभावित करना मुश्किल बनाए।
एक अन्य उपाय शेयरधारकों के लिए यह हो सकता है कि, वह कॉर्पोरेट नेताओं से अधिक जवाबदेही की मांग करें।
उदाहरण के लिए, अधिकारियों को नियमित रूप से अपने वित्तीय हितों का खुलासा करने की आवश्यकता हो सकती है।
लेकिन यहां पर एक आशा की किरण है। 2016 में, इलिनॉय (अमेरिकी राज्य) में मतदाताओं ने भारी मात्रा में एक मतपत्र उपाय को मंजूरी दी जिसने, राज्य के विधायकों के लिए एक ठोस हितों के टकराव का कानून बनाया।
और अंत में, नागरिकों को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अत्यधिक संलग्न होने की आवश्यकता है।
क्योंकि, केवल एक साथ काम करके ही हम, इस पक्षपात को समाप्त कर सकते हैं और एक निष्पक्ष ,अधिक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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