आईसीजे (ICJ) में दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल: गाजा नरसंहार मामला
आईसीजे (ICJ) में दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल: गाजा नरसंहार मामला
South Africa vs Israel at ICJ: Gaza Genocide Case का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि दक्षिण अफ़्रीकी सरकार ने इज़राइल के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) (International Court of Justice - ICJ) में एक मामला दायर करके गाजा में संभावित नरसंहार के बारे में अपनी चिंताओं को उठाया है।
दक्षिण अफ्रीका जैसे देश ने आखिर इजराइल के खिलाफ ऐसा रुख क्यों अपनाया?
*नरसंहार कन्वेंशन (Genocide Convention), अनुच्छेद 9 के तहत, किसी भी राज्य दल को किसी अन्य, आईसीजे (ICJ) सदस्य के खिलाफ कदम उठाने की अनुमति देता है।
दक्षिण अफ़्रीका और इज़राइल क्रमानुसार 1998 और 1950 में, आईसीजे में शामिल हुए।
आईसीजे (ICJ) के सामने लाए गए 160 से भी अधिक मामलों के बाद अदालत ने देशों को इन मामलों को नरसंहार के मामलों के रूप में संबोधित करने की अनुमति दी जिसका अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुदैर्ध्य मानदंड (peremptory norm) के रूप में उसके दर्जे के कारण, किसी भी प्रकार से अपमान की अनुमति नहीं है।
2001 के आईसीजे के फैसलों ने सिद्ध किया कि उसके आदेश विवश करने वाले हैं, लेकिन ‘प्रवर्तन तंत्र’ (enforcement mechanisms) में विशेष रूप से कमी है।
हाल ही में, दिसंबर 2022 में, आईसीजे (ICJ) के फैसले ने गाम्बिया को रोहिंग्या संकट के आधार पर म्यांमार के खिलाफ नरसंहार के दावे पेश करने की अनुमति दी।
दक्षिण अफ्रीका बनाम इज़राइल मामले में, अदालत ने नरसंहार को रोकने, प्रतिबंधित करने और दंडित करने के लिए सभी राज्य दलों के सार्वजनिक हित (जन हित) पर जोर दिया।
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दक्षिण अफ़्रीका और इज़राइल क्रमानुसार 1998 और 1950 में, आईसीजे में शामिल हुए
हालाँकि अदालत ने फिलिस्तीनियों के अधिकारों और अपूरणीय (जिस स्थिति को सुधारा ना जा सके) नुकसान से बचाव के बीच एक सत्य और वैध संबंध पाया, लेकिन यह गाजा में नरसंहार की घटना को निश्चित तौर पर नहीं बता सका, जिससे फैसला पूरा नही हो पाया और अंतरिम कर दिया गया।
ऊपर प्रस्तुत तथ्य फिलिस्तीनी अधिकारों के उल्लंघन का संकेत देते हैं, ठीक उसी तरह जैसे यूक्रेन बनाम रूस मामले में स्थिति से निपटने के लिए कोई कदम नही उठाए गए और कोई तत्काल युद्धविराम (ceasefire) आदेश जारी नहीं किया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) (The International Criminal Court) पहले से ही इज़राइल और हमास दोनों द्वारा युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों की जांच कर रहा है।
इस बीच, आईसीजे (ICJ) ने इज़राइल और दक्षिण अफ्रीका से *अनुपालन रिपोर्ट (compliance reports) और नरसंहार के संबंध में अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन पर अदालत से निर्णायक निर्णय का अनुरोध किया है। इसके लिए सुनवाई बाद में होगी।
अगले कदम में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) (United Nations Security Council (UNSC) शामिल है, जो आईसीजे के फैसले पर चर्चा करेगी।
देश बहुत संभव है कि आईसीजे (ICJ) के फैसले को इज़राइल के लिए बाध्यकारी बनाने की कोशिश करेंगे।
हालाँकि, ऐतिहासिक मिसालें इज़राइल और फिलिस्तीन से संबंधित मुद्दों पर यूएनएससी की, जटिलताओं को दर्शाती हैं, अमेरिका ने इज़राइल को बचाने के लिए कई बार अपनी वीटो शक्ति (veto power) का इस्तेमाल किया है।
(इज़राइल पर अमेरिकी स्थिति के वैश्विक जटिल प्रभाव, न केवल युद्धविराम के संबंध में है, बल्कि म्यांमार में उत्पीड़न और यूक्रेन जैसे संघर्ष की भू-राजनीतिक जटिलताओं को खुद में शामिल करते हुए रेखांकित करते हैं।)
2013 - 2016, फिलीपींस बनाम चीन मध्यस्थता मामले में, ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea (UNCLOS) के तहत अधिकरण (अर्ध - न्यायिक संस्था ) ने स्थापित किया कि दक्षिण चीन सागर पर चीन के ऐतिहासिक दावे का कोई कानूनी आधार नहीं है।
इसने जोर देकर क्या कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के संप्रभुता के अधिकारों का उल्लंघन किया है।
इसके जवाब में, चीन ने अधिकरण के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है और वह इसके निर्देशों का पालन नहीं करेगा।
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दिसंबर 2022 में, आईसीजे (ICJ) के फैसले ने गाम्बिया को रोहिंग्या संकट के आधार पर म्यांमार के खिलाफ नरसंहार के दावे पेश करने की अनुमति दी
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में एक और ऐतिहासिक कानूनी विवाद 1984 से 1986 तक हुआ। यह निकारागुआ बनाम अमेरिका का मामला था।
इस मामले की पृष्ठभूमि तब सामने आती है जब निकारागुआ की सरकार ने अमेरिकी सरकार पर सशस्त्र विद्रोही समूहों, जिन्हें कॉन्ट्रा विद्रोही (Contra rebels) भी कहा जाता है, का समर्थन करने का आरोप लगाया।
निकारागुआ सरकार ने दावा किया कि अमेरिका उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना चाहता था।
आईसीजे (ICJ) ने निकारागुआ के पक्ष में फैसला सुनाया।
अमेरिका को संप्रभुता के उल्लंघन और बल प्रयोग पर रोक के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था। अदालत ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गैर-हस्तक्षेप और बल के गैर- प्रयोग के सिद्धांतों पर भी ध्यान दिया।
अमेरिका ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कि और जोर देकर कहा कि, वे अदालत के फैसले का पालन नहीं करेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि वे इस मामले में अदालत के क्षेत्राधिकार को स्वीकार नहीं करते हैं और उनकी कार्रवाई उचित है।
यह ऐतिहासिक मामला, निकारागुआ बनाम अमेरिका, महत्वपूर्ण है क्योंकि, यह अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में आईसीजे की क्षमता पर प्रकाश डालता है।
अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली देशों के साथ फैसले को लागू करने में होने वाली असमर्थता का एक इतिहास रहा है, क्योंकि ये देश फैसले को मानने से इनकार कर देते हैं।
लेकिन, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय गाजा नरसंहार पर यूएनएससी (UNSC) की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभर कर आता है कि : नरसंहार को रोकने में आईसीजे (ICJ) का फैसला कितना मूल्यवान और व्यावहारिक है?
मगर, दक्षिण अफ्रीका का यह कदम अंतरराष्ट्रीय न्याय और 21 वीं सदी के वैश्विक संघर्षों पर इसके प्रभाव पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए मंच तैयार कर रहा है।
कानूनी ढांचे और भू-राजनीति के एक दूसरे से जुड़े होने से संबंधित आईसीजे (ICJ) की भूमिका में स्पष्ट विरोधाभास हैं।
चीन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली राज्यों का इतिहास अदालत के फैसले की *प्रवर्तनीयता (enforceability) पर काली छाया डालता है। जब बात विश्व मंच पर अपनी भूमिका की आती है तो अमेरिका न्याय के पक्ष में खड़ा होता है।
विडम्बना यह है कि, न्याय की बात जब अपनी दहलीज पर आती है तो वह असफल हो जाता है।
गाजा के मामले में, युद्धविराम लाने की जरूरत समय की मांग है।
लेकिन फिर किसी फैसले पर जोर देने और उसे लागू करने में अदालत की असमर्थता, भले ही एक अंतरिम आदेश ही क्यों ना हो, कानून और अंतरराष्ट्रीय शक्तियों, आदर्शों और व्यावहारिकता के बीच परस्पर संबंध को उजागर करता है, जो वैश्विक न्याय के विचार को उसके भाग्य पर छोड़ देता है।
*एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो नरसंहार को अपराध मानती है और राज्य दलों को इसके निषेध को लागू करने के लिए बाध्य करती है।
यह नरसंहार को अपराध के रूप में संहिताबद्ध करने वाला पहला कानूनी साधन था, और संयुक्त राष्ट्र महासभा के तीसरे सत्र के दौरान 9 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से अपनाई गई पहली मानवाधिकार संधि थी ।
कन्वेंशन 12 जनवरी 1951 को लागू हुआ और 2022 तक इसमें 152 राज्य पार्टियाँ हैं ।
*अनुपालन शब्द सरकारी निकायों द्वारा निर्धारित कानूनों और विनियमों का अनुपालन करने के लिए कंपनियों द्वारा पूरी की गई रिपोर्ट है। अनुपालन रिपोर्ट वे रिपोर्टें होती हैं जिनमें किसी कंपनी के अनुपालन का विस्तृत विश्लेषण होता है। इसे कंपनी के CCO (मुख्य अनुपालन अधिकारी) द्वारा बनाया गया है।
किसी कंपनी का सीओओ यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियमों का अनुपालन कर रही है और आंतरिक नियंत्रण और प्रक्रियाओं का आकलन कर रही है जो सुनिश्चित करती है कि नियमों का पालन किया जा रहा है। अनुपालन रिपोर्ट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रक्रिया जवाबदेह है।
*प्रवर्तनीयता का अर्थ है कि एक समझौते में कानून के तहत लागू होने में सक्षम होने के लिए आवश्यक घटक शामिल होते हैं।
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