कैसे कैमरों ने बदल दिया इतिहास
कैसे कैमरों ने बदल दिया इतिहास
Cameras have Changed History का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
हमें शायद ही इस बात का एहसास हो कि, कैमरे वास्तविक घटनाओं की स्थायी छवियां बनाकर दुनिया को बदल रहे हैं।
जब से वे अस्तित्व में आए हैं, तब से ही वे परिवर्तनों में योगदान दे रहे है। कैमरा 180 से अधिक वर्षों से अधिक समय से है। उस समय से, इसने इतिहास को परिभाषित करने वाले अनगिनत क्षणों को कैद किया है।
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कैमरा 180 से अधिक वर्षों से अधिक समय से है
20वीं सदी की शुरुआत में उन पलों को जनता के साथ तस्वीरों और समाचार फ़िल्म (न्यूज़रील) के रूप में साझा किया गया था।
आज 21वीं सदी में, तुरंत लाइव स्ट्रीमिंग, असीम रूप से बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, समय के अंत तक छवियों को बनाए रखते हैं, उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं को रिकॉर्ड करना जारी रखते हैं, जो वहां नहीं हो सकते।
वे आवाजों को तैयार करने और दुनिया को बदलने के लिए यादों और संदर्भ निर्देशों का निर्माण कर रहे हैं।
4 जून 1913, एमिली वाइल्डिंग डेविडसन को कैमरे में कैद किया गया था, जब वह एप्सम घुड़दौड़ के मैदान में 'किंग जॉर्ज पंचम' के घोड़े के सामने आ गयी थी।
यह दृश्य नारी - मताधिकार आंदोलन के लिए एक विवादास्पद क्षण था। कैमरे ने ब्रिटेन की महिलाओं की हताशापूर्ण कोशिश को कैद कर लिया था जो कि, मत देने का अधिकार चाहती थी।
इस समय तक, कई देशों ने महिलाओं को लोकतंत्र में भाग लेने की अनुमति नहीं दी थी। यह फुटेज (फ़िल्म का हिस्सा) दुनिया भर में बदलाव लाने के लिए एक प्राणशक्ति बना।
हम में से शायद बहुत से लोग यह नहीं जानते कि, यह नारी-मताधिकार आंदोलन ही था, जिसने दुनिया भर में महिलाओं को वोट देने के अधिकार का मार्ग प्रशस्त किया।
इस तरह की अनियोजित कैमरे में कैद होने की घटनाओं का हमारे आधुनिक इतिहास में बहुत महत्व है।
कुछ पल जो कैद किये गए, वह उस समय के लोगों की भावनाओं को परिभाषित कर रहे थे। विश्व युद्ध की समाप्ति का जश्न मनाते हुए, टाइम्स स्क्वायर पर नर्स को चूमते हुए एक नाविक की 1945 की तस्वीर इसका ही एक उदाहरण है।
हजारों से अधिक जोड़ों ने शान्तिपूर्ण दुनिया में बदलने के परिवर्तनकाल को चिह्नित करने के लिए इस मुद्रा को दोहराया। क्या इस तस्वीर से कोई फर्क पड़ा? हाँ, यह अब सैनिकों के मौत के चंगुल से छूटने और युद्धों को खत्म करने की इच्छा का प्रतीक है।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर के 1963 के "आई हैव ए ड्रीम" भाषण को कौन भूल सकता है? हालांकि यह एक नियोजित कार्यक्रम था, लेकिन वक्ता (स्पीकर) और कैमरे दोनों ने अमेरिका और दुनिया में स्वतंत्रता के विचार को लाने में समान भूमिका निभाई। एक को हटा दें, तो उन शब्दों के निरंतर प्रभाव की प्रभावकारिता कम हो जाएगी।
ऐसी कई छवियां और चलचित्र (Motions) हैं, जिनके द्वारा कैमरों ने इतिहास को प्रभावित किया है। उनमें से कुछ जानबूझकर, और अन्य आकस्मिक ही कैमरे में कैद हुए।
6 अगस्त 1965 सेल्मा में पुलिस की बर्बरता को कैमरे में कैद किया जा रहा था। अखबार की रिपोर्टिंग के माध्यम से जो कहानी सुनाई जा रही थी, वह समाचार फ़िल्म (न्यूज़रील) के साथ वास्तविकता के करीब थी।
इसी घटना के छह महीने बाद, राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन कानून में 'मतदान अधिकार अधिनियम' पर हस्ताक्षर कर रहे थे। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के मतदान अधिकारों के लिए, 'नस्लीय भेदभाव' को समाप्त करना था।
अमेरिकी न्याय विभाग के अनुसार, इस अधिनियम को अमेरिका में अब तक के नागरिक अधिकार कानून का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया था।
हालांकि, जहां तक 'ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन की बात आती है तो, अमेरिका में अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला था, यहां तक कि, जब यह औपचारिक नाम नहीं था, तब भी 1991 में रॉडनी किंग पर पुलिस की बर्बरता को देखकर दुनिया भयभीत हुई थी।
फुटेज वास्तविकता का एक स्पष्ट अनुस्मारक (Reminder) और केवल आँखों देखी के लिए अस्तित्व में था।
दुनिया को इस बारे में मालूम था,किंतु इस बार दुनिया को इसे अपनी आंखों से देखना था. आगामी आक्रोश के बाद के फुटेज ने लॉस एंजिल्स पुलिस विभाग (एल ए पी डी) को मूल रूप से बदलने के लिए मजबूर किया।
क्रिस्टोफर आयोग ने घटना पर अपनी रिपोर्ट जारी की और नस्लवाद, लिंगवाद और अत्यधिक पुलिस बल को कम करने के तरीकों की सिफारिश की। लेकिन बदलाव रातोंरात नहीं आएगा जैसे कि, हम सभी दुर्भाग्यवश मई, 2020 में जॉर्ज फ्लॉयड मामले के साक्षी रह चुके है।
1972 में, जब एसोसिएटेड प्रेस के फ़ोटोग्राफ़र निक यूट ने वियतनाम में नेपालम बम से भागे बच्चों को कैमरे में कैद किया, तो इसने अमेरिका में युद्धविरोधी बल को एकजुट किया ।
इसने राष्ट्र की चेतना को प्रज्वलित (Ignited ) किया कि, वियतनाम युद्ध मानव अधिकारों का एक क्रूर उल्लंघन है।
वियतनाम युद्ध विरोधी भावनाओं ने औपचारिक स्थिति के रूप में शांति के लिए कई आंदोलनों को आगे बढ़ाया। इसने युद्ध के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण को युद्धरत राष्ट्र के भीतर से प्रभावित किया।
दुनिया भर के स्वयंसेवक और कार्यकर्ता एकजुट होने लगे। संगीतकारों, कलाकारों, मनोरंजन जगत की मशहूर हस्तियों ने युद्ध के खिलाफ हाथ मिलाया। ये आंदोलन कई संरक्षणों के नीचे जारी हैं।
यह उन दृश्यों की शक्ति है जो, जो सीमावर्ती इलाकों से आई, जिसने प्रभावितों की आवाज में फर्क डाला और युद्ध के नेतृत्व वाली राजनीति के भविष्य की दिशा को बदला ।
1989 में चीन में लोकतंत्र खत्म होने की कगार पर था। देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए छात्र थियानमेन चौक पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। सरकार के इस विरोध प्रदर्शन पर क्रूर प्रतिक्रिया के तहत वहाँ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और उनके टैंकों को तैनात किया गया था।
कैमरे के जादू ने इस घटना को कैद कर लिया जिससे बाकी की दुनिया सीख लेगी और पीढ़ियां उससे प्रेरणा ।
निहत्था प्रदर्शनकारी युद्धक टैंकों के सामने निडर होकर खड़ा हो गया और बारूद से भरे स्टील के टुकड़ों को यह एहसास करवा रहा था कि वे, शक्तिहीन है। वे दृश्य किसी ताकतवर के खिलाफ अवज्ञा की बाइबिल से कम नहीं हैं।
अगर केवल कैमरा अनुपस्थित होता, तो आज की दुनिया इस 'लोकतंत्र के प्रतीक' से अनभिज्ञ होती - प्रणाम है, उन अज्ञात आंदोलनकारियों और कैमरामैन को ।
जैसे-जैसे कैमरों की अंतर्निहित तकनीक अधिक परिष्कृत होती गई, वैसे-वैसे जनता तक इसकी पहुंच भी बढ़ी- सार्वजनिक जीवन के प्रजातंत्रीकरण में एक महत्वपूर्ण बदलाव।
सरकार, कंपनियों, निजी नागरिकों और जनता की अधिक से अधिक कार्रवाइयों की छानबीन की गई है। कई नामी-गिरामी लोग सिर्फ इसलिए लपेटे में आये क्योंकि, वे कैमरे पर, अपने असली मकसद का खुलासा कर रहे थे।
कंपनियों और सरकारों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया गया है। बड़े पैमाने पर जनता उपयुक्त रूप से व्यवहार करने के लिए इनके जांच के दायरे में रही है।
धीरे-धीरे और सूक्ष्म तरीके से कैमरा, सरकार और शासन दोनों के हाथों में 'सत्ता के खेल' का एक उपकरण बन गया है।
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धीरे-धीरे और सूक्ष्म तरीके से कैमरा, सरकार और शासन दोनों के हाथों में 'सत्ता के खेल' का एक उपकरण बन गया है
2020 की 'मई' महीने में, पुलिस की बर्बरता सबसे बुरी तरह से देखी गई। अमेरिका के मिनियापोलिस के अश्वेत निवासी, जॉर्ज फ्लॉयड, की एक पुलिस अधिकारी ने गला रेत कर हत्या कर दी।
एक राहगीर ने जॉर्ज की गिरफ्तारी और मौत को कैमरे में कैद कर लिया। आठ मिनट की इस भयावह मौत को दर्शाने वाला वीडियो सबसे नए निराशाजनक बिंदु को दर्शाता है कि, सरकारी बल कैसे अपने संदिग्ध नागरिकों पर कार्रवाई करते हैं।
जबकि इस घटना के प्रति नाराज़गी का परिणाम पूरे अमेरिका और दुनिया भर में दंगों के रूप में हुआ, इसने नस्लीय भेदभाव पर आधारित सामाजिक न्याय की बहस को भी फिर से शुरू किया।
नस्लीय पक्षपात के खिलाफ अधिनियम, कानून की किताबों में अपना स्थान पाएंगे। लेकिन बहस तब तक जारी रहेगी जब तक क़ानून अमल में नही लाये जाएंगे। हालांकि जमीन पर जो होता है, उसमें समय और मेहनत लगती है।
लेकिन पहले से ही, यह घटना महाद्वीपों में अपनी लहर बना रही है और 'मूक क्रांति' में परिवर्तित होने की कगार पर है। वे आठ मिनट इतिहास में अंकित हैं और परिवर्तन की आशा को फिर से प्रज्वलित कर रहे है।
जॉर्ज फ्लॉयड मामले में जनआक्रोश को बड़ा आकार देने में कैमरे ने जो भूमिका निभाई वह केवल 'कैमरे की शक्ति' पर जोर देता है। यह इस बात को भी दोहराता है कि, कैमरा आज मानव अस्तित्व और एक इंसान के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन गया है।
यह मानव शरीर का एक विस्तार है जो, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर सकता है और किसी भी कानून या धार्मिक पाठ से अधिक, समुदायों पर प्रभाव डाल सकता है।
यह इस मुद्दे पर इस हद तक ध्यान केंद्रित कर सकता है कि, बहुत कम लोगों को ही अभी भी याद है कि, ऊपर वर्णित उन प्रतिष्ठित क्षणों के पीछे कैमरामैन कौन थे।
इसलिए, कैमरे के पीछे एक पहचानहीन व्यक्ति, अगर सही जगह और सही समय पर उपस्थित है तो, वह सर्वशक्तिमान बन गया है।
बदलाव करने के लिए उसे बस एक क्लिक और फ़ोटो लेना है। इसलिए इसके बिना घर से बाहर न निकले, क्या पता कि, आप अगले परिवर्तनकारी बन जाए।
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