'टी.आर.पी' (TRP) - दोषपूर्ण तब भी शक्तिशाली प्रभावक
'टी.आर.पी' (TRP) - दोषपूर्ण तब भी शक्तिशाली प्रभावक
TRP – Flawed yet Powerful Influencer का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
भारत में टी.आर.पी (TRP)
'टीआरपी', या 'टेलीविज़न रेटिंग बिंदु' (Television rating point) किसी कार्यक्रम की लोकप्रियता को मापने की एक प्रणाली है। इसे 1975 में अमेरिका में शुरू किया गया था और तब से दुनिया भर में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
'टी.आर.पी प्रणाली' भारत में 1999 में शुरू की गई थी और इसकी गणना 'प्रतिशत में टेलीविजन दर्शकों की संख्या' के आधार पर की जाती है। भारतीय टेलीविजन उद्योग 'टी.आर.पी' की गणना के लिए लगभग 44,000 घरों में "बार-ओ-मीटर"(BAR-O-meters) का उपयोग करता है।
भारत में 'टी.आर.पी प्रणाली' और विज्ञापन राजस्व हमेशा एक दूसरे से जुड़ें रहे हैं। यह आवश्यक भी है क्योंकि, यह सीधे प्रसारण- कर्ताओं के मुनाफे को प्रभावित करता है। अधिक विज्ञापन राजस्व का मतलब है, गुणवत्ता कार्यक्रमों में अधिक निवेश ।
एक कार्यक्रम की गुणवत्ता में कई कारक योगदान करते हैं, जैसे कि,कहानी, अभिनय, निर्देशन, बौद्धिक वजन और उत्पादन मूल्य।
टी.आर.पी(TRP) एक ऐसी व्यवस्था है जिसे, अच्छे प्रयोजन के साथ पेश किया गया था। यह कार्यरचना की गुणवत्ता को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए माना जाता था । यह दर्शकों को एक रास्ता भी देता था जिससे वह चैनलों को नियंत्रित रख सके ताकि वे जो सामग्री परोस रहे है, उसके प्रति जवाबदेह रहे।
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भारत में 'टी.आर.पी प्रणाली' और विज्ञापन राजस्व हमेशा एक दूसरे से जुड़ें रहे हैं
हालांकि 'टी.आर.पी' (TRP) का उल्टा असर हुआ। इसका कारण था, इसे जिस तरह से डिज़ाइन किया गया। 'टी.आर.पी' चैनलों को सस्ते, निम्न-गुणवत्ता वाली विषय वस्तु को पेश करने के लिए बढ़ावा देती है जो, सबसे कम जनसंख्या को आकर्षित करती है।
कुछ लोगों का कहना है कि, बेहतर 'टी.आर.पी' पाने की दौड़ में, प्रसारण चैनल और निर्माता सस्ते और लोकवादी (populist) युक्तियों का सहारा ले रहे हैं जो, समाज को नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर भारत जैसे देश में, जहां टेलीविजन लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हाल के वर्षों में, 'टी.आर.पी' (TRP) की अपने विषय वस्तु का कथित तौर पर निम्नीकरण करने के लिए कड़ी आलोचना हो रही है। जितनी अधिक 'टी.आर.पी' उतना ही अधिक कंपनियों के लिए उस चैनल पर या कार्यक्रम के दौरान विज्ञापन देना महंगा होगा।
अतः, कुछ आलोचकों ने तर्क दिया है कि, 'टी.आर.पी-संचालित' विज्ञापन टेलीविजन पर सूचना सामग्री के निम्नीकरण की ओर ले जाता है।
यह पाया गया है कि, 'टी.आर.पी' (TRP) खराब गुणवत्ता वाली विषय वस्तु को बढ़ावा देती है क्योंकि, 'शॉक वैल्यू' (दुख की कीमत) वाले कार्यक्रम अधिक 'टी.आर.पी' उत्पन्न करते हैं।
इसके अलावा, वे अक्सर त्रुटिपूर्ण होते हैं, जिसके कारण अपर्याप्त गुणवत्ता वाले कार्यक्रमों को अनुचित तरीके से पुरस्कृत किया जाता है और अच्छे कार्यक्रमों की अनदेखी की जाती है।
अंत में, यह निम्न-गुणवत्ता वाले कार्यक्रमों के लिए अधिक प्रसारण अवधि प्राप्त करने का कारण बन सकता है क्योंकि, वे आसानी से अधिक दर्शकों को अपनी ओर खींच सकते हैं।
खराब गुणवत्ता वाली विषय- वस्तु का परिणाम
लोकवादी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए 'टी.आर.पी' (TRP) की अक्सर आलोचना की जाती है क्योंकि, उच्च 'टी.आर.पी' वाले कार्यक्रम आमतौर पर सबसे कम जनसंख्या को आकर्षित करते है।
यह कलात्मक गुणवत्ता में गिरावट शुरू कर सकता है क्योंकि, 'टी.आर.पी', का पीछा करने वाले प्रसारणकर्ता अप्रबुद्ध कार्यक्रमों में निवेश करने की अधिक संभावना रखते हैं जिनमें, गहराई या वास्तविकता की कमी होती है।
यह तर्क दिया गया है कि, 'टी.आर.पी' (TRP) प्रणाली चैनलों को उन कार्यक्रमों को प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित करती है जो गुणवत्ता में कम हैं और हिंसा, सस्ते नाटक, सेक्स और अश्लीलता से भरे हुए हैं। यह समाज में मूल्यों की व्यापक अवनति की शुरूआत करता है।
इतना ही नहीं, इसने भारत में 'जनाधिकारवाद' के उदय में भी योगदान दिया है। 'टी.आर.पी' (TRP) तय करती है कि, दर्शक क्या देखना चाहते हैं, जो हमेशा वास्तविकता का सटीक प्रतिबिंब नहीं होता।
अतः, टीआरपी-संचालित चैनल एक ऐसे समाज को बनाने में मदद कर रहे हैं जो, षड्यंत्र के सिद्धांतों और फर्जी खबरों में विश्वास करने में अधिक प्रवृत्त है।
'टी.आर.पी' (TRP) प्रणाली एक स्वस्थ संस्कृति के विकास के लिए हानिकारक है क्योंकि, लोकवादी संस्कृति को अधिक उच्च गुणवत्ता वाली जानकारी और कौशल के ऊपर बढ़ावा दिया जाता है। यह समाज की एक सामान्य गतिशीलता को भी सीमित करना शुरू कर देता है।
बदले में, यह समग्र रूप से समाज को नुकसान पहुँचाता है। क्योंकि, लोगों को ऐसी जानकारी दी जाती है, जिसे विचारपूर्ण या विचार करने पर मजबूर करने वाला होने के बजाय जल्दी से उपभोग करने और भूल जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है
नतीजतन, 'टी.आर.पी' (TRP) प्रणाली संचालित कार्यक्रम अक्सर सार्वजनिक प्रवचन की गुणवत्ता को घटाते हैं और कम सूचित समाज की ओर ले जाते हैं।
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आज, ' भारत' समाचार चैनलों पर तीव्र, उग्र, अपशब्दपूर्ण प्राइम-टाइम चर्चाओं का गवाह है
आज, 'भारत' समाचार चैनलों पर तीव्र, उग्र, अपशब्दपूर्ण प्राइम-टाइम चर्चाओं का गवाह है। यह 'टी.आर.पी' -मार्गदर्शित कार्यक्रमों के बाद में दिखने वाले परिणाम है।
इसके अतिरिक्त, 'टी.आर.पी' - संचालित प्रोग्रामिंग अक्सर नकारात्मक रूढ़िबद्ध धारणा को बढ़ाता है और विषाक्त मूल्यों को बढ़ावा देती है। 'टी.आर.पी' प्रणाली पर 'सूचना प्रदूषण' फैलाने का भी आरोप लगाया गया है।
अधिक संतुलित और निष्पक्ष सूचना प्रसार प्रणाली बनाने के लिए 'टी.आर.पी' में सुधार किया जाना चाहिए।
शोध से पता चला है कि, 'टी.आर.पी' (TRP) से प्रेरित प्रोग्रामिंग समाज के गरीब और हाशिए वाले वर्गों को लक्षित करती है। यह उनको और अधिक किनारे करता जा रहा है।
इसके अलावा, यह एक विशेष प्रकार की संस्कृति का महिमामंडन करता है और शहरी-ग्रामीण, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित विभाजन को और अधिक चौड़ा कर रहा है ।
'टी.आर.पी' प्रणाली को अक्सर अमीर और शक्तिशाली लोगों का सबसे कम जनसंख्या को आकर्षित करके जनसाधारण के साथ हेरफेर करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
इसने एक ऐसा समाज बनाया है जो उच्च गुणवत्ता वाली जानकारी तक पहुंच रखने वालों और ना रखने वालों के बीच विभाजित है जो कि, भारत में पहले से ही प्रचलित है। इस प्रकार 'टी.आर.पी' प्रणाली को समाज को आर्थिक और बौद्धिक आधार पर विभाजित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
इसके अतिरिक्त, 'टी.आर.पी' प्रणाली दोषयुक्त है और हितों का टकराव इसकी सबसे बड़ी समस्या है। 'टी.आर.पी' प्रणाली कमजोर है और उसमें हेराफेरी की जा सकती है उन लोगों द्वारा जो निहित स्वार्थ के साथ विशिष्ट कार्यक्रमों को सफल होते देखना चाहते है।
कुछ निजी एजेंसियां इसकी गणना करती हैं जिन पर, अक्सर पक्षपाती होने का आरोप लगाया जाता है। 'टी.आर.पी' हमेशा एक बहस का विषय रहा है क्योंकि, इसमें हेरफेर की संभावना होती है। 'टी.आर.पी' में हेरफेर करने के कई तरीके हैं जैसे; बार-ओ-मीटर (BAR-O-meters) के वितरण के रूप में, लक्षित दर्शकों का चयन आदि।
'टी.आर.पी' (TRP) यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से दर्शकों की संख्या के लिए उत्तरदायी नहीं है, जो तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह समझा जा सकता है कि, 'टी.आर.पी' किसी कार्यक्रम की लोकप्रियता का सही पैमाना नहीं है।
विज्ञापनदाता गलत सूचना के आधार पर भुगतान करना जारी रखे हुए हैं।
अंत में, 'टी.आर.पी' (TRP) हमेशा एक कार्यक्रम की गुणवत्ता को नहीं दर्शाती है; वे केवल जागरूक लोगों की संख्या को मापते हैं।
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लोकप्रियता के लिए कार्यक्रम की गुणवत्ता को भूल जाना 'टी.आर.पी' का मूलभूत दोष है
लोकप्रियता के लिए कार्यक्रम की गुणवत्ता को भूल जाना 'टी.आर.पी' का मूलभूत दोष है।
इसलिए, जब दर्शक उच्च 'टी.आर.पी' कार्यक्रमों में विज्ञापित उत्पादों को खरीदते हैं, तो बदले में वे, भारतीय संस्कृति, मूल्यों और बौद्धिक पतन के अपकर्ष का निधिकरण करते हैं।
जनता के सामने निम्न-श्रेणी के कार्यक्रमों को पेश करने के बजाय, इन कार्यक्रमों को यथाक्रम (Gradually) उच्च और गहरी विषय- वस्तु के साथ समाज का उत्थान करना चाहिए।
समस्या के लक्षण के रूप में 'टी.आर.पी' (TRP)
'टी.आर.पी' (TRP) उस अधिक महत्वपूर्ण समस्या का केवल एक लक्षण मात्र है। भारत में 'टी.आर.पी' प्रणाली को अक्सर सस्ती, लोकवादी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मान्यता प्राप्त है।
'टी.आर.पी' प्रणाली ने निश्चित ही सस्ती और निम्नस्तरीय गुणवत्ता वाली जानकारी दी है। हालांकि, 'टी.आर.पी' भारत में संस्कृति के पतन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है। 'टी.आर.पी' प्रणाली भारतीय समाज में एक गहरी समस्या का लक्षण मात्र है।
प्रणाली केवल सस्ते और खराब तरीके से बनाई गई विषय -वस्तु की मांग को दर्शाता है। वही एक ऐसे समाज में जहां गरीब लोगों के पास गुणवत्तापूर्ण जानकारी तक पहुंच नहीं है।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, वे अधिक सादा, परिपक्व और उच्च गुणवत्ता वाली विषय- वस्तु के ऊपर विषाक्त मनोरंजन को अपेक्षाकृत अधिक पसंद करेंगे।
वास्तविक समस्या यह है कि, भारत एक ऐसा समाज है जहां, लोग गरीब हैं और गुणवत्तापूर्ण जानकारी तक उनकी पहुंच नहीं है। तो मूल कारण भारतीय जनता की गरीबी और शिक्षा की कमी में निहित है।
यह कहना सही नहीं होगा कि, सभी 'टी.आर.पी' - संचालित विषय वस्तु खराब है, किन्तु यह जानना महत्वपूर्ण है कि, प्रणाली लोगों को प्राप्त होने वाली जानकारी को कैसे विकृत कर सकती है।
हालांकि, कई लोगों ने दर्शकों की पसंद को मापने के लिए एक मूल्यवान उपकरण के रूप में 'टी.आर.पी' प्रणाली का समर्थन किया है। इसके बावजूद, चुनावों को नियंत्रित करना जनता की स्वेछा के विरुद्ध माना जा सकता है और यह लोकतांत्रिक सार और चुनने की स्वतंत्रता के विरुद्ध भी जाता है।
इसपर बहस जारी रहेगी।
'टी.आर.पी' (TRP) गणना
'टी.आर.पी' (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) (Television rating point) माप की एक प्रणाली है जिसका, उपयोग टेलीविजन कार्यक्रम की लोकप्रियता को मापने के लिए किया जाता है।
'टी.आर.पी' की गणना 'प्रतिशत में टेलीविजन दर्शकों की संख्या' के आधार पर की जाती है। भारतीय टेलीविजन उद्योग 'टी.आर.पी' की गणना के लिए लगभग 44,000 घरों में बार-ओ-मीटर (BAR-O-meters) का उपयोग करता है।
इसका अनुमान किसी नाटक की 'औसत दर्शकों की संख्या' को लेकर और फिर इसे टेलीविजन तक पहुंच रखने वाले लोगों की कुल संख्या से विभाजित करके लगाया जाता है।
टेलीविज़न नेटवर्क इसका उपयोग लोकप्रिय नाटक निर्धारित करने और विज्ञापनदाताओं से वे कितना शुल्क ले सकते हैं, इसके लिए भी करते हैं।
विज्ञापनदाता तब फिर 'टी.आर.पी' (TRP) का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए करते हैं कि, उन्हें एक लोकप्रिय नाटक के दौरान विज्ञापन पर कितना खर्च करना चाहिए।
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