जी.डी.पी - सकल विनाश समस्या का मापक सूत्र
जी.डी.पी - सकल विनाश समस्या का मापक सूत्र
Is GDP Gross Destruction Problem? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
जी.डी.पी (GDP) का अर्थ है कि कुल गणना में मानवीय, प्राकृतिक और सामाजिक संसाधनों का विनाश भी शामिल है इसलिए जी.डी.पी एक गलत आँकड़ा है । यह एक सांख्यिकी है जिससे असलियत छिप जाती है ।
1934 से, दुनिया को इसके बारे में गलत जानकारी दी जा रही है और हम सभी अपने नाश को लेकर बेहतर महसूस करने के लिए इसमें व्यय कर रहे है ।
किन्तु जी.डी.पी क्यों मायने रखती है?
देशों को उनकी जी.डी.पी के आधार पर आंका जाता है । हरेक देश का वित्त मंत्रालय सबसे शक्तिशाली संख्या दिखाते है । राजकोष (ट्रेज़री) विभाग अपने तिमाही परिणाम जारी करता है जो दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था कितना अच्छा कर रही है ।
इसलिए, शासन की नीतियाँ जी.डी.पी की संख्या को कैसे ऊपर लाया जाए, इसके इर्द-गिर्द ही घूमती है । जो विदेशी निवेशक और वित्तीय संस्थान, निवेश करना चाहते है, वे उच्च जी.डी.पी गंतव्य स्थानों की तलाश करते है, जो महत्वपूर्ण कारकों में से एक है ।
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यह एक सांख्यिकी है जिससे असलियत छिप जाती है
भू-राजनीति भी जी.डी.पी के आंकड़ों पर ही आधारित है । महाशक्तियों का श्रेष्ठ संघ, G-8, उभरती अर्थव्यवस्थाएं G-20,अपनी जी.डी.पी की दर और आकार पर आधारित है ।
इसकी तुलना में, उन्हीं देशों में उनके लाखों नागरिक संघर्ष कर रहे हैं और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं ।
यह एक मतप्रचार (Propaganda) का साधन भी हैं जिसे राजनीतिक पार्टियां और सरकारें अपने अभियानों को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल करती हैं ।
जी.डी.पी के साथ क्या समस्या है ?
जी.डी.पी किसी देश की परिस्थिति, विशेष रूप से सामाजिक और मानवीय पक्ष को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है । यहां तक की देश का आर्थिक पक्ष भी विकृत है ।
सरलीकरण के लिए, ब्राज़ील का एक परिकल्पित मामला लें । किसी दिन, अगर ब्राज़ील के राष्ट्रपति पुरे अमेज़न जंगल को काटने और उसकी लकड़ी (चाहे वह कच्ची लकड़ी के रूप में ही क्यों न हो), दुनिया को बेचने का फैसला करते है तो यह अगले 20 वर्षों तक उच्च जी.डी.पी वाला देश होगा ।
क्या यह सही माप होगा? बोत्सवाना यही कर रहा है जैसा की इसके राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आकर्षित करने के लिए अपने संपन्न इमारती लकड़ी संसाधनों का प्रचार कर रहे हैं ।
यही हाल खनन और खनिजों का भी है । चिप और मोबाइल निर्माताओं के लिए खनिज के बाद कोबाल्ट एक अत्यधिक मांग वाला धातु तत्व है ।
अफ्रीका महाद्वीप के, गरीब देशों मे से एक देश के, सबसे दरिद्र समुदाय मे, इस कीमती धातु का खनन कार्य होता है । यह समुदाय जन्म दोषों और बांझपन के साथ गंभीर स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहा है ।
किसी भी देश की जी.डी.पी में यह मानवीय पीड़ा शामिल नहीं है ।
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किसी भी देश की जी.डी.पी में मानवीय पीड़ा शामिल नहीं है
अब तक, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जी.डी.पी की गणना आधारभूत रूप से गलत है । यह गतिविधि का सकल लाभ (कुल लाभ) है, चाहे यह प्रक्रिया देश के लिए लाभदायक हो या न हो ।
उदाहरणार्थ, सिगरेट उत्पादन और इस खतरनाक उत्पाद को बेचना जी.डी.पी का बहुत बड़ा हिस्सा है । किन्तु एक मरीज की कैंसर से मृत्यु होना, जी.डी.पी का हिस्सा तब तक नहीं होगा, जब तक की उसके इलाज में खर्चा ना हो ।
जीवन की हानि, पारिवारिक परेशानी, सामाजिक व्यवधान (दुर्घटना) और उत्पादकता की हानि का कोई हिसाब जी.डी.पी में नहीं है ।
एक अन्य परिप्रेक्ष्य में, जी.डी.पी के लिए यह अच्छा है की लोग बीमार पड़े और महंगा इलाज शुरू करें । इसके विपरीत यदि जनसंख्या स्वस्थ है, तो यह जी.डी.पी के लिये बुरा होगा ।
उसी तरह, साइकिल चालक सकल जी.डी.पी के लिए खराब है क्योंकि वे सड़क-कर (road tax), बीमा प्रीमियम, पार्किंग, ईंधन का भुगतान नहीं करते और इसकी मरम्मत भी न्यूनतम है ।
जिसके कारण पर्यावरण स्वच्छ होता है, और प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं भी कम होती है । एक पक्षीय प्रभाव के रूप में यह लोगों को तंदुरुस्त बनाता है ।
परिणाम स्वरूप, राष्ट्र के रूप में तंदुरुस्त आबादी के साथ, यहां पर कम चिकित्सा सेवाएं होंगी । हालांकि जी.डी.पी कम होगी, किन्तु आबादी का कल्याण अधिक होगा ।
इसके विपरीत की स्थिति भी एक सच है । जितना अधिक लोग बीमार पड़ेंगे उतनी ही जी.डी.पी में बढ़ोतरी होगी ।
अगर बुद्धिमत्ता पूर्वक देखें तो, सेना की जंगी कार्यवाही में यदि कोई सैनिक गोली से घायल होकर मर जाता है तो, यह जी.डी.पी में नहीं गिना जाता, जबकि वही गोलियों का उत्पादन जी.डी.पी मे शामिल है ।
इंसानियत आर्थिक गुणकों और जी.डी.पी की गणना के बीच क़ैद होकर रह गयी है ।
अगर मोहल्ले का एक अच्छा पड़ोसी बीमार को अस्पताल ले जाए, यह एक नुकसान होगा जी.डी.पी के लिए क्योकि इसमें कोई आर्थिक गतिविधि नहीं हुई । इसके विपरीत, यदि एम्बुलेंस को बुलाया जाए तो यह अर्थशास्त्री को सुनने में अच्छा लगेगा ।
हम शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के योगदान की गणना कैसे करते है? एकमात्र मापदंड जिसकी अनुमति जी.डी.पी देता वह है उनका वेतन ।
यह उनकी प्रेरणा और आशावादी भावना को सम्मिलित नहीं करता, जिन्हें एक शिक्षक नई पीढ़ियों में उत्पन्न करता है, और एक विद्यार्थी को सुदृढ़ राष्ट्र बनाने को प्रेरित करता है ।
सरकार या निजी व्यक्ति द्वारा भुगतान करने से आर्थिक गतिविधि प्रोत्साहित होती है। पश्चिमी देशों (जहां यह सब शुरू हुआ) की मैक्रो- पॉलिसी * में जी.डी.पी के प्रभाव के कारण अभाव देखा गया ।
यहां परिवार का ढांचा खंडित हो गया, क्योंकि परिवारों के कर्तव्य के अंदर आने वाली सभी देखभाल सेवाओं को मुद्रीकृत (Monetized) कर दिया गया । इसलिए वृद्धाश्रम देशव्यापी और वयोवृद्ध देखभाल सेवाएं प्रचलित (व्याप्त) है ।
* मैक्रो पॉलिसी वह नीति है जो पूरे देश (या क्षेत्र) को प्रभावित करती है। यह मौद्रिक, राजकोषीय, व्यापार और विनिमय दर की स्थितियों के साथ-साथ आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति और राष्ट्रीय रोजगार स्तरों से संबंधित है।
इसने सामान्य रूप से समाज के सम्मान को घटाया और व्यक्तिगत देखभाल से प्रेरित संवेदनशीलता का स्थान बदलकर पेशावर लोगों के पास यह अधिकार चला गया ।
यदि इन सेवाओं को निजी रूप से वित्त पोषित किया जाता तो जीवन भर की बचत 'स्रोत' बन जाती।
लेकिन सरकारें अधिकाधिक वृद्धाश्रम बनाने को प्रोत्साहित हुई, जिसके परिणामस्वरूप सेवानिवृत्ति बचत को खर्चे द्वारा जी.डी.पी में बदलती रही।
समय बीतने के साथ, वह नैतिक सिद्धान्त जो समाज की ताकत का आधार थे, वे कमजोर हो गए ।
जब तक आबादी व्यय (Spending) करे, जी.डी.पी अर्थशास्त्री खुश है । इसलिए पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं भी उपभोक्तावाद को लेकर विरूपित है ।
जैसे सभी नीतियां नई चीजें खरीदने को प्रोसाहित और मरम्मती को हतोत्साहित करती है, इसलिए मरम्मत करवाना बहुत अधिक महंगा हो चुका है, और मरम्मत बनाम नई खरीदारी साध्य (Viable ) मामला नहीं बनाता ।
इसी वजह से, कूड़ा घर में लोग अपने सामानों को फेंक रहे है, जिनकी मरम्मत आसानी से हो सकती थी । कई उदाहरणों में वह बेचे हुए सामान अच्छी स्थिति में होते है और गरीब देशों में तो सुख साधन (Luxury) भी हो सकते है ।
ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका कई मिटरी टन अच्छे और इस्तेमाल कपड़ो को अफ्रीकी और एशियाई देशों को निर्यात करता है ।
यह कपड़े सिर्फ इसलिए दे दिए जाते है क्योकि राष्ट्रीय आदत को अधिक खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, रफ़्तार से बदलते फैशन को बनाए रखने की वजह से ।
किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए की इनमें से कई कपड़े शायद ही एक बार भी पहने गए हो । अगर फैशन उद्योग को दोष देना हो, तो वे साल में कई बार बदलाव लाने के लिए जिम्मेदार है ।
उन्होंने बाजार को कई परतों में भी विभाजित किया, जिससे खपत की कुल मात्रा में कई गुना वृद्धि हुई है ।
यह हमें अगली चिंता पर ले जाता है जिसमे उपभोक्तावाद अर्थव्यवस्था को गतिमान (Moving) रखना है जी.डी.पी को ऊपर उठाने के लिए । लेकिन पर्यावरण के लिए कहीं कोई स्पष्टीकरण नहीं है ।
प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास (Depletion) इस ग्रह के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते है ।
सूखती नदियां, अत्यधिक उपयोग किये गए खेत, मछली रहित महासागर और लुप्तप्राय (Endangered) समुद्री जीवन, जल प्रणाली में प्लास्टिक कचरा और सिंथेटिक (कृत्रिम रंगों के उपयोग से बना) खाना, जी.डी.पी की वृद्धि के परिणाम है ।
वायु, जल और मृदा प्रदूषण- सभी आगे बढ़ते देशों में निरंतर बढ़ रहा जिसपर कोई अपवाद नहीं । उनके अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणाम कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के लिए चिंता का विषय है किन्तु अर्थशास्त्रियों के लिए नहीं ।
जी.डी.पी केंद्रित अर्थशास्त्री और राजनेता बिना उत्तरदायित्व के हो जाते है ।
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जी.डी.पी केंद्रित अर्थशास्त्री और राजनेता बिना उत्तरदायित्व के हो जाते है
9/11 हमले के बाद, अमेरिका और यूरोप में सभी पार्टियों ने लोगों को अधिक व्यय करने वाला बनाने के लिए जी.डी.पी को मतप्रचार कार्यावली बना दिया ।
जी.डी.पी में गिरावट का मतलब होगा की आतंकवादी आबादी को उनके घरों में भयभीत करने में सफल हो जाएंगे ।
अतः सरकारों ने जनता को खर्च करने की आदत पर वापिस लौटने के लिए इन्हें विज्ञापित किया । जनता का आह्वान किया गया, जो इस तरह प्रतीत हो रहे थे -
"देशभक्ति का काम करना होतो, अपने भंडार को संभाले रखो और अधिक खरीदो, हवाई जहाज़ पर चढ़ो और व्यापार करना जारी रखो'' ।
एक सफल कारक के रूप में जी.डी.पी का प्रभाव ऐसा है कि आतंकवादी भी अपनी गतिविधियों को इस अनुपयुक्त आर्थिक मापदंड से मापते है । यद्पि राष्ट्रीय सरकारों ने जी.डी.पी से लड़ाई सफलतापूर्वक जीत ली, किन्तु वह आतंकवाद से युद्ध हार चुके है ।
नतीजतन, दुनिया भर में अरबों यात्रियों की हवाई अड्डों पर अमानवीय रूप से (आंशिक रूप से) खुद और उनके सामान की तलाशी जारी है। हमले के बीस साल बाद - भी उड़ानों में आतंक अविवादास्पद ढंग से जारी है ।
लेकिन इस मामले में जी.डी.पी और आतंकवादी दोनों ही विजेता हैं ।
जी.डी.पी की गणना एक और समस्या क्षेत्र है, जो एक त्रुटिपूर्ण तस्वीर देता है । जैसे, 2010 में, घाना ने जी.डी.पी के आकलन के लिए अपनी आधार वर्ष कार्य पद्धति को बदल दिया ।
अचानक से इसने गरीब अफ्रीकी देश से एक मध्यम आय वाले देश में छलांग लगा दी । यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस उद्देश्य के लिए कौन सी गणना आसानी से की जा सकती है ।
विश्व विकास संकेतक (World Development Indicators), पेन विश्व टेबल या मेडिसिन प्रोजेक्ट डेटाबेस का उपयोग करते हुए विश्व बैंक के अनुसार जी.डी.पी, राष्ट्र की स्थिति और जी.डी.पी को अलग-अलग संख्या देती है ।
अगर जी.डी.पी राष्ट्र की ताकत का संकेतक होता, तो इसके शीर्ष पर बैठे देश कोविड महामारी के दौरान दयनीय ढंग से विफल नहीं हुए होते । सबसे बुरी तरह से प्रभावित देश समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं के जी.20 (G20) संघ में शामिल है ।
अतः जी.डी.पी हम सभी को जिस दिशा में ले जा रही है उसमें कुछ गंभीर गलती (चूक) है ।
जी.डी.पी के विकल्प क्या है?
जी.डी.पी विकास का पैमाना हो सकता है, किन्तु निस्संदेह यह लोगों की भलाई और आर्थिक कल्याण का मापक नही । मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं, और ग्रह पर जीवन एक नाजुक संतुलन पर टिका हुआ है ।
विभिन्न प्रभावक समूहों* (Pressure Groups) को एहसास हुआ की जी.डी.पी विकास का सही पैमाना नहीं है । यहां तक की जी.डी.पी के अविष्कारक, कुज़नेट, को भी जी.डी.पी के असीमित उपयोग के बारे में संशय था ।
इसलिए उन्होंने नीति निर्माताओं से निवेदन किया था कि वह आर्थिक विकास की "मात्रा" और उसकी असल "गुणवत्ता" के बीच अंतर करे ।
यद्पि एक संख्या विकास को प्रकट कर सकती है, लेकिन यह निश्चित रूप से मानवता की प्रगति और कल्याण में परिवर्तित नहीं हो रही ।
प्रभावक समूह या pressure groups -
यह ऐसे समूह है जो अपने हितों की रक्षा और वृद्धि के लिए राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्रियाओं को प्रभावित करता है अर्थात जो सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके कुछ विशेष हितों को सुरक्षित करने के लिए काम करता है ।
वे कभी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन ना करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं परंतु यह शक्तिशाली समूह होते है। इस तरह से यह समूह प्रशासनिक संरचना से बाहर रहकर केवल प्रभाव या दबाव डालकर अपने हितों की सिद्धी करता है।
जैसे मजदूर संघ, व्यापारी संघ, विद्यार्थी संघ, हरित शांति (Green Peace), डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (Doctors without borders) आदि।
विकसित दुनिया के कई अन्य सरकारों की तरह, फ्रांसीसी सरकार ने भी मानव कल्याण के वैकल्पिक सूचक की संभावना पर पुनर्विचार करने के लिए एक आयोग की स्थापना की । अंतिम रिपोर्ट ने तीन भागों में मापन करने का सुझाव दिया ।
पहला, शास्त्रीय (Classical) (द्विभाजन) जी.डी.पी मामले में सुधार किया गया आर्थिक कल्याण को मापने के लिए । इसका अर्थ यह होगा की जनसंख्या आर्थिक गतिविधियों में शामिल है और सभी के लिए समान अवसर है।
दूसरे भाग में प्रत्येक नागरिक के लिए मापी जाने वाली जीवन की गुणवत्ता शामिल थी, और तीसरा था स्थायी विकास और निरंतरता ।
यह निष्कर्ष निकाला कि सभी विकास विधियों के साथ होने चाहिए जो की लोगों और ग्रह समेत संसाधनों को विनाश की ओर नहीं ले जाएंगे ।
दुनियाभर में ऐसे कई विशेषज्ञ रहे जिन्होंने देश के वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिनिष्ठ प्रगति के लिए विभिन्न सूचकांकों के सुझाव दिए । निम्नलिखित वह सूची है ।
· मानव आवश्यकताओं की पूर्ति सूचकांक (एफ एच एन आई) - क्लार्क
· सामाजिक प्रगति का सूचकांक (आई एस पी) - एस्टेस
· मानव स्तर विकास मॉडल- मैक्स- नीफ
· सस्टेनेबल सोसाइटी इंडेक्स (एसएसआई) -- वैन डी कर्क और मैनुअल
· कैलवर्ट- हेंडरसन जीवन संकेतकोंकी गुणवत्ता- कैलवर्ट और हेंडरसन
· जीवन सूचकांक की भौतिक गुणवत्ता (PQLI) -मॉरिस
· हैप्पी लाइफ- एक्सपेक्टेंसी (HLE) - विनहोवन
· आर्थिक कल्याण का सूचकांक (IEWB) - ओसबर्ग और शार्प
· मानव विकास सूचकांक (HDI) -- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
· कल्याण के आर्थिक पहलू (EAW) - जोलोटास
· सतत आर्थिक कल्याण का सूचकांक (ISEW) --डेल और कोब
· घरेलू प्रगति का उपाय-- जैक्सन
· पर्यावरण स्थिरता सूचकांक (ईएसआई) -- एल विश्वविद्यालय
· वास्तविक बचत उपाय (एस *) - विश्व बैंक
· पारिस्थितिक पदचिह्न-- वेकरनागेल और रीस
· यूरोस्टेट-- सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र आयोग पर आधारित यूरोपीय मानक पर्यावरण की दृष्टि से समायोजित शुद्ध घरेलू उत्पाद (ea NDP)
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ जो चुनौती बनी हुई है, वह है इन सूचकांकों के लिए माप की एक मानक इकाई को एकजुट करना ।
इस एकीकरण में चुनौतियां है क्योंकि विभिन्न देशों के पास प्रगति की ओर अलग-अलग रास्ते है और उनकी प्रगति का आधार विचारधारा है ।
यह काफी हद तक देश के आर्थिक इतिहास पर निर्धारित होता है ।
एक संक्षिप्त उदाहरण के रूप में, प्रगति के लिए अमेरिका के मापदंड भूटान के मापदंड से काफी भिन्न होंगे, जो बहरहाल, पहला देश था जिसने अपनी प्रगति का आधार "खुशहाली सूचकांक" को बनाया ।
आखिरकार, हम कहाँ हैं?
जी.डी.पी (सकल घरेलू उत्पाद) को पाने की कोशिश ने देशों, उनके समाज और लोगों को एक वस्तु बना दिया है । एक संख्या तक पहुंचने के लिए उनकी सेवाओं पर निगाह रखी जाती (खोज या पता लगाना) और मुद्रीकृत किया जाता है ।
पिछले इतने सालों में, जी.डी.पी के आविष्कार के बाद से, अर्थशास्त्र इतना शक्तिशाली हो गया है कि इसने लोगों को बाज़ार की शक्तियों का दास बना लिया और परिणाम स्वरूप आज आर्थिक दुनिया को देखने का एकमात्र तरीका बन गया है ।
अतः,
यहां कोई राष्ट्र नहीं,
कोई संस्कृतियाँ नहीं,
कोई इंसान नहीं,
यहां केवल बाज़ार हैं ।
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