भोपाल गैस त्रासदी मुआवजा: भारत के पीड़ितों का अपमान
भोपाल गैस त्रासदी मुआवजा: भारत के पीड़ितों का अपमान
Bhopal Gas Tragedy Compensation: Insult to India’s Victims का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
2 दिसंबर 2023 को *भोपाल गैस त्रासदी के 39 साल बीत चुके हैं और दुख की बात है कि इस त्रासदी के सभी पहलुओं पर अभी भी विवाद चल रहा है। इसके पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है और उन्हें मुआवज़े के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
हम कुछ ऐसे तथ्य साझा करना चाहते हैं जिन्हें बहुत से लोग नहीं जानते।
इस दुर्घटना के समय यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (Union Carbide Corporation) की भारत सरकार के साथ 22% की भागीदारी थी। इसलिए इस त्रासदी के लिए जितनी ज़िम्मेदार यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन है, उतनी ही ज़िम्मेदार भारत सरकार भी है।
आपदा के समय सरकार ने कहा था कि 3,500 लोग मारे गए, और जिसका परिणाम यह हुआ कि मुआवज़े की गणना मौतों की इसी संख्या के आधार पर की गई।
यद्यपि लोगों के स्वास्थ्य पर इसके लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव को कम करके आंका गया, इसे या तो आंका ही नहीं गया या फिर कुछ हद तक ही आंका गया।
कुछ अभियानकर्ताओं का दावा है कि मौतों की संख्या 25,000 तक है, लेकिन एक्सपर्टएक्स में, हमारा मानना है कि यह इससे कहीं ज़्यादा है। साथ ही, गैस का असर आज भी जारी है और अगली पीढ़ी में भी जारी रहेगा।
बहुत कम लोग जानते हैं कि, इस संयंत्र को बहुत हल्के भार वाला संयंत्र माना जाता था, जो कि खतरनाक उद्योगों के लिए एक आवश्यक नियम था।
इसे हल्के औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित किया जाना था, न कि किसी व्यवसायिक क्षेत्र में। इसमें केवल एक छोटी मात्रा में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) लाने की योजना थी, जो कि कीटनाशकों के लिए तैयार किया जाने वाला रसायन है।
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आपदा के समय यूसीसी (UCC) के भोपाल संयंत्र में 120 टन जहरीला पदार्थ मौजूद था
इसके बाद, कंपनी ने सरकार की साझेदारी के साथ मिलकर कुछ *पिछड़ा एकीकरण (Backward integration) करने का निर्णय लिया, जैसे कि लागत कम करने के लिए बड़ी मात्रा में सामग्री लाना और अंतिम उत्पाद को सही स्थान पर तैयार करना।
इस तरह लागत कम करने का मतलब है अधिक लाभ कमाना, लिहाजा इस मामले में लोगों से पहले लाभ को अहमियत दी गई।
पिछड़ा एकीकरण लागू किया गया तथा मूल कंपनी से बड़ी मात्रा में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) अमेरिका से लायी गई।
इस तरह से हमें पता चला कि आपदा के समय यूसीसी (UCC) के भोपाल संयंत्र में 120 टन जहरीला पदार्थ मौजूद था।
आश्चर्य की बात यह है कि आपदा के पांच साल बाद यानी 1989 में 470 मिलियन (47 करोड़ ) डॉलर का मुआवजा दिया गया। आज के मूल्य के हिसाब से यह करीब 1.8 बिलियन डॉलर यानी करीब 15,000 करोड़ रुपये बनता है।
मौतों की संख्या पर विचार करते हुए तथा पीड़ित लोगों के स्वास्थ्य और उनकी आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले इसके आजीवन प्रभाव को देखते हुए, यह मुआवजा बहुत कम प्रतीत होता है, और यह उचित न्याय का हिस्सा भी नहीं है।
ऐसा क्यों ? आइए जानें।
कई लोग भोपाल त्रासदी की तुलना अमेरिका में हुई ऐसी ही आपदा से करना चाहेंगे।
1990 के एस्बेस्टस मुकदमे *(Asbestos litigation ) से इसकी तुलना करें, जो लगभग उसी समय हुआ था जब भोपाल गैस त्रासदी घटी थी, तो भोपाल पीड़ितों के लिए 40 करोड़, डॉलर का मुआवजा, यदि एस्बेस्टस मुकदमे के समान दर से गणना की जाती, तो लगभग 1000 करोड़ डॉलर होना चाहिए था।
यह लगभग 20 गुना या 30 गुना या उससे भी अधिक होता। इसके अलावा, आज, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि, एस्बेस्टस मुकदमे की कुल लागत लगभग 20000 करोड़ डॉलर से 27500 करोड़ डॉलर रही होगी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय जीवन की कीमत को आंकने में हुई असमानता चकित कर देने वाली है।
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अभियानकर्ताओं का दावा है कि मौतों की संख्या 25,000 तक है
भारत को जो दिया गया वह 2010 में *मैक्सिको की खाड़ी में ब्रिटिश पेट्रोलियम डीपवाटर होराइजन तेल रिसाव मामले (British Petroleum Deepwater Horizon Oil Spill Case) के समय, अमेरिकियों को दिए गए मुआवजे की तुलना में बहुत ही कम था।
उस समय पीड़ितों को दिया गया मुआवजा लगभग 2000 करोड़ डॉलर था, जो 2010 के डॉलर मूल्य के अनुसार लगभग 1,80,000 करोड़ रुपये था।
जब मुआवजा देने की बात आई तो अमेरिकी कंपनियां पूरी तरह से कंजूस बनी रहीं, लेकिन जब मुआवजा खुद पाने की बात आई तो, वे दबाव डालने और मजबूर करने वालों लोगों से कम नहीं रहीं।
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की जिंदगी की कीमत को आंक कर जो मूल्य उसका लगाया गया, उसमें भारी अंतर को देखना कोई कठिन काम नहीं है।
भारतीयों की स्वास्थ्य देखभाल और सेहत की हानि, जैसे कि भोपाल के लोगों के मामले में की गई, एक स्पष्ट असमानता को दिखाती है।
ये कुछ ऐसे बिंदु हैं जो भोपाल गैस त्रासदी के बारे में हमारी सामान्य बातचीत का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन न्याय के संबंध में महत्वपूर्ण अंतर को आकार देते हैं।
*भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।
भोपाल गैस काण्ड में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था।
* भोपाल गैस त्रासदी का कारण क्या था?
2 दिसंबर, 1984 की देर शाम को पानी के एक साइड पाइप से टैंक E610 में घुसने का संदेह था। टैंक E610 में 42 टन MIC था जो अक्टूबर के अंत से वहां था।
जब पानी टैंक में गया, तो इसने एक अनियंत्रित एक्सोथर्मिक प्रतिक्रिया को ट्रिगर किया। प्रदूषकों, उच्च परिवेश के तापमान और कई अन्य स्थितियों, जिसमें जंग खा रही पाइपलाइनों से लोहे की उपस्थिति शामिल होने, के कारण प्रतिक्रिया बढ़ गई।
हालांकि रात 10:30 बजे टैंक E610 में दबाव 2 psi (पाउंड-फोर्स प्रति वर्ग इंच) पर न्यूनतम था, लेकिन रात 11 बजे तक यह 10 psi तक बढ़ गया था। दो वरिष्ठ कर्मचारियों ने रीडिंग को गलत बताया।
MIC क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों ने रात 11:30 बजे तक MIC गैस के संपर्क में आने के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया और रिसाव की तलाश शुरू कर दी। रात 11:45 बजे तक, एक रिसाव की खोज की गई और उस समय ड्यूटी पर मौजूद MIC पर्यवेक्षक को इसकी सूचना दी गई।
*बैकवर्ड इंटीग्रेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक कंपनी अपने तैयार उत्पाद के उत्पादन में आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले अन्य व्यवसायों का अधिग्रहण या विलय करती है।
व्यवसाय इस उम्मीद के साथ बैकवर्ड इंटीग्रेशन का अनुसरण करते हैं कि इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप लागत बचत, राजस्व में वृद्धि और उत्पादन प्रक्रिया में बेहतर दक्षता होगी।
कंपनियाँ प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त करने और नए उद्योग में प्रवेश करने वालों के लिए प्रवेश में बाधाएँ पैदा करने के तरीके के रूप में भी बैकवर्ड इंटीग्रेशन का उपयोग करती हैं।
*20 अप्रैल 2010 को डीपवाटर होराइजन (जिसे BP स्विस कंपनी ट्रांसओशन के साथ मिलकर संचालित करती थी) में विस्फोट हुआ, जिसके कारण अनुमानतः पांच मिलियन बैरल तेल मैक्सिको की खाड़ी में फैल गया और 11 श्रमिकों की मृत्यु हो गई।
दो दिन बाद यह डूब गया। जिस कारण प्रतिदिन 12,000 से 19,000 बैरल तेल रिसाव होता था।
*एस्बेस्टस मुकदमा अमेरिकी इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सामूहिक अपराध है।
इसकी शुरुआत 1960 के दशक में एस्बेस्टोसिस और मेसोथेलियोमा के दावों के साथ हुई थी। इसमें उत्पाद दायित्व, लापरवाही, व्यक्तिगत चोट और गलत तरीके से हुई मौत जैसे कानून के क्षेत्र शामिल हैं।
एस्बेस्टस छह प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले खनिज रेशों का एक समूह है। इसका उपयोग हजारों अमेरिकी उत्पादों में किया गया था क्योंकि यह गर्मी, बिजली और जंग के प्रति प्रतिरोधी है। एस्बेस्टस कार्सिनोजेनिक है और मेसोथेलियोमा, फेफड़ों के कैंसर और अन्य कैंसर का कारण बनता है।
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