भारत में न्यायेतर हत्याओं में बढ़ोतरी और बिश्नोई गिरोह
भारत में न्यायेतर हत्याओं में बढ़ोतरी और बिश्नोई गिरोह
Rise of Extrajudicial Killings in India & BISHNOI Gang का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
12 अक्टूबर 2024 को प्रभावशाली राजनेता बाबा सिद्दीकी की हत्या उनके ही कार्यालय के बाहर हो जाना , एक गंभीर मामला है। वह महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में एक प्रमुख मुस्लिम चेहरा थे, और इसने अटकलों और आरोपों की लहर पैदा कर दी है।
हालांकि हत्या के पीछे का मकसद अभी तक साफ नहीं है, लेकिन यह घटना यक़ीनन भारत में 1990 के दशक की यादें ताजा कर देती है, जब राजनेता और फिल्मी सितारे मुंबई के अंडरवर्ल्ड के लगातार निशाने पर थे।
अब, इस पर कई तरह की अफवाहें फैल रही हैं, कुछ लोग इसको लेकर मनोरंजन उद्योग, यानी बॉलीवुड से जुड़े संगठित अपराध समूहों की ओर इशारा कर रहे हैं। जबकि कुछ अन्य इस घटना के पीछे राजनीतिक संबंधों के हाथ होने की ओर इशारा कर रहे है।
लेकिन इनमें से शायद सबसे दिलचस्प अटकल बाबा सिद्दीकी के बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान के साथ करीबी संबंधों के इर्द - गिर्द घूम रही हैं।
क्योंकि, सलमान खान हमेशा से बिश्नोई गिरोह के निशाने पर रहे हैं । 1998 के काले हिरण शिकार मामले (Black Buck poaching case ) से उनके संबंध बताए जाते हैं, जिसमें उनके
खिलाफ भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (Indian Wildlife (Protection) Act ), 1972 की धारा 9 और 51 के तहत आरोप तय किए गए थे। यह मामला सलमान खान को वर्षों तक चकमा देता रहा।
इसी मामले की वजह से सलमान खान और बिश्नोई गैंग के बीच दुश्मनी चली आ रही है।
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गिरोह ने कथित तौर पर 700 से अधिक सदस्यों का नेटवर्क बना लिया है और वे न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काम कर रहे हैं
इस बिश्नोई गिरोह का नेतृत्व लॉरेंस बिश्नोई कर रहा है और आश्चर्य की बात यह है कि वह 2015 से गुजरात की साबरमती जेल में कैद है, फिर भी उसने सिद्दीकी की हत्या की जिम्मेदारी खुले तौर पर ली है।
ऐसा कहा जा रहा है कि उनके गिरोह ने हाल ही में सलमान खान की हत्या का प्रयास भी किया था।
लेकिन फिर आज हर कोई बिश्नोई गिरोह पर उंगली क्यों उठा रहा है?
ऐसा नहीं है कि उनकी आपराधिक गतिविधियां सिर्फ भारत में ही फैली हुई हैं, बल्कि उनकी पहुंच विदेशों तक भी है।
गिरोह ने कथित तौर पर 700 से अधिक सदस्यों का नेटवर्क बना लिया है और वे न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काम कर रहे हैं।
दरअसल, कनाडा सरकार ने बिश्नोई गिरोह को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जोड़ा है, जो कनाडा में एक सिख अलगाववादी नेता थे।
इस आरोप के कारण भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया गया है।
बिश्नोई गिरोह की संजीदगी इस हद तक है।
वापिस भारत पर आते है तो यहाँ न्यायेतर हत्याओं और मुठभेड़ों का ये चलन गंभीर चिंताएं खड़ी कर रहा है।
मिसाल के तौर पर, अप्रैल 2023 में टेलीविजन पर लाइव प्रसारित अतीक अहमद की हत्या से लेकर जुलाई 2020 में मुठभेड़ में गैंगस्टर विकास दुबे की मौत तक, ऐसा लगता है कि ये एक चलन बन गया है।
ये दोनों ही मामले उत्तर प्रदेश के हैं।
ऐसा लगता है कि इन हमलों की तरफ जनता का रुझान और उनकी भावनाएं सामान्यीकरण की ओर बढ़ रही है।
कई मामलों में, सार्वजनिक रूप से कोई विरोध होने की संभावना नहीं है, क्योंकि मुठभेड़ों और न्यायेतर हत्याओं के शिकार खूंखार गैंगस्टर और अपराधी थे।
मुनासिब सवाल यहां पर यह है कि - क्या भारत असल में इस तरह से न्याय प्रदान करेगा ?
ये वे हाई-प्रोफाइल हत्याएं और मुठभेड़ें हैं जिनसे भारत जूझ रहा है।
एक बात तो साफ है, ऐसा लग रहा है कि जनता की राय इस मामले में न्याय की भावना पर हावी हो रही है और यहीं वो समस्या है।
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न्यायेतर हत्याओं और मुठभेड़ों का ये चलन गंभीर चिंताएं खड़ी कर रहा है
क्योंकि, जब लोग किसी गैंगस्टर की मौत पर इस तरह जश्न मनाते हैं या इस पर चुप्पी साध लेते हैं, तो यह जनता की अपेक्षाओं में एक चिंताजनक बदलाव का संकेत है।
यह एक सही पुरानी कानूनी प्रणाली के बजाय सतर्कता न्याय वाले तरीके पर बढ़ते भरोसे की तरफ इशारा करता है।
हमने यह चलन दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी देखा है।
1920 और 1930 के दशक में, अमेरिका में सड़कों पर गिरोह हिंसा का बोलबाला था। मेक्सिको के सबसे हालिया इतिहास में, लगभग 30 वर्षों में, ड्रग माफिया वहां के कानून के शासन की अवहेलना करते हुए काम करते हैं।
दक्षिण एशियाई देशों में भी राजनीतिक हत्याएं अजीब नहीं हैं और इनके लिए जासूसी एजेंसियों की कार्रवाई को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
दुनिया के दूसरे भागों के इतिहास से मिले इन सबकों के साथ, क्या भारत भी उसी राह पर आगे बढ़ रहा है?
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1920 और 1930 के दशक में, अमेरिका में सड़कों पर गिरोह हिंसा का बोलबाला था
यहां पर एक और संभावना है।
अगर भारत न्यायेतर हत्याओं की रणनीति अपना रहा है, तो इसके लंबे समय में नतीजें खतरनाक हो सकते हैं, खासतौर पर तब जब कनाडा सरकार द्वारा वहां हुई एक हत्या के आरोप को भारत सरकार से जोड़ा जा रहा हो।
यह चलन न केवल नुकसानदेह होगा, बल्कि दुनिया के मंच पर भारत की स्थिति के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
इससे न केवल भारत की अंदरूनी शांति को खतरा है, बल्कि इससे धार्मिक और सामाजिक सद्भाव को भी खतरा है।
इस इंटरनेट से जुड़ी हुई दुनिया में, समाचार और गलत सूचनाएं, अपना असर रखती हुए सटीकता की परवाह किए बिना, सोच की रफ्तार से भी तेज फैलती हैं।
इसलिए, जो कुछ अपना पैर पसार रहा है उस पर गहराई से जांच करना बहुत जरूरी है।
यदि बिश्नोई गिरोह वास्तव में इस सबमें शामिल है, जैसा कि वे दावा करते हैं, मई 2022 में गायक सिद्धू मूसे वाला की हत्या, अप्रैल 2024 में सलमान खान के आवास पर गोलीबारी, और हाल ही में बाबा सिद्दीकी की हत्या और अंतर्राष्ट्रीय जमीन पर आपराधिक गतिविधियों, जैसे कि कनाडा में हरदीप सिंह की हत्या करवाना। ये सभी घटनाएं, इस बारे में एक अहम सवाल खड़ा करती हैं।
भारत में जेलों की प्रासंगिकता क्या है?
गिरोह का सरगना लॉरेंस बिश्नोई गुजरात की जेल में बंद है, फिर भी गिरोह भारत और विदेशों में जटिल हिंसक कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है।
दुनियाभर के अनेकों हिस्सों में हो रही यह चौंका देने वाली गतिविधियां भारतीय न्याय प्रणाली की स्थिति के बारे में बहुत कुछ कहती है।
यदि अपराधी सलाखों के पीछे से खतरनाक न्यायेतर हत्याओं को नियंत्रित और निर्देशित कर सकते हैं, तो यह भारत में जेल की बुनियादी ढांचे की मजबूती के बारे में क्या दर्शाता है?
यह लगभग न्याय प्रणाली का मजाक उड़ाने जैसा है।
यह तथ्य कि इस तरह के हाई-प्रोफाइल और पेचीदा अपराधों का संयोजन जेल की दीवारों के अंदर से किया जा रहा है, भारतीय न्याय प्रणाली की गंभीर कमजोरियों को उजागर करता है।
इससे पता चलता है कि आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए बनाई गई संस्था अब शक्तिहीन हो गई है या इससे भी बदतर ये हो सकता है कि, इसमें उसकी ही मिलीभगत है।
जो कुछ हो रहा है वह हत्याओं या हत्या के प्रयासों का सिर्फ एक सिलसिला नहीं है।
बल्कि यह एक गहराता संकट है जो न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास खत्म कर रहा है।
एक सामान्य नागरिक, कानून और व्यवस्था पर कैसे भरोसा कर सकता है, जब सबसे खतरनाक अपराधी भी बिना किसी सज़ा के अपनी गतिविधियां बेरोकटोक चलाते दिखते हैं?
यदि जेलें गिरोह के सरगनाओं के प्रभाव को रोकने में असमर्थ हैं, तो क्या भारतीय न्याय व्यवस्था और दंड प्रणाली इन बढ़ती हुई संगठित अपराधों की लहर से निपटने में समर्थ है?
क्या यह विश्वसनीयता और नियंत्रण को बहाल करने के लिए गंभीर बदलाव का समय है? आखिरकार, हिंसा की ये विचारधाराएं, जो कि अब हाई-प्रोफाइल हैं, भविष्य में आम आदमी के जीवन में भी उतर जाएंगी ।
इसलिए स्थिति खतरनाक हैं।
यदि यह चलन जारी रहा तो इससे न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा होगा, बल्कि इस वजह से भारत की विविधतापूर्ण समाज की छवि, विविधता में एकता की छवि, तथा वैश्विक मंच पर भारत की एकजुट समाज की छवि भी कलंकित होगी।
इसलिए, अब कड़ा रुख अपनाते हुए महत्वपूर्ण तरीके से, कड़े सुधारों को करने का समय आ गया है।
भारत को एक परिपक्व लोकतंत्र और स्थिर राष्ट्र के रूप में गंभीरता से लिए जाने के लिए, न्याय सही माध्यमों और अदालतों के जरिए से होना चाहिए, ना कि बंदूकों के जरिए।
चूंकि भारत, कानूनी शासन के बाहर राजनीतिक और आपराधिक हत्याओं के दोराहा का सामना कर रहा है, इसलिए मजबूत न्यायिक पारदर्शिता की जरूरत और भी अधिक बढ़ जाती है।
1920 और 1930 के दशक के अमेरिका से लेकर आधुनिक मैक्सिको तक के इतिहास से हमें यह सीख मिलती है कि अपराधों को अपराध करके हराया जा सकता।
हिंसा से केवल और खतरनाक रूप से हिंसा ही बढ़ती है।
परिचय:
न्यायेतर हत्या से तात्पर्य राज्य या उसके एजेंटों द्वारा बिना किसी न्यायिक अथवा कानूनी कार्यवाही के किसी व्यक्ति की हत्या करने से है।
इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे, उचित प्रक्रिया या किसी कानूनी औचित्य के मार दिया जाता है।
इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे कि न्यायेतर मृत्युदंड (Extrajudicial Executions), अविलंबित मृत्युदंड (Summary Executions) और बलपूर्वक गायब किया जाना आदि। ये सभी कार्य अवैध हैं और मानवाधिकारों तथा कानून के शासन का उल्लंघन करते हैं।
अक्सर कानून व्यवस्था बनाए रखने अथवा आतंकवाद का मुकाबला करने के नाम पर ऐसे कार्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों अथवा सुरक्षा बलों द्वारा किये जाते हैं।
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