भ्रष्टाचार सूचकांक: भारत की चिंताजनक गिरावट
भ्रष्टाचार सूचकांक: भारत की चिंताजनक गिरावट
Corruption Index: India's Alarming Fall का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के द्वारा जारी किया गया *‘भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक’ (Transparency International's Corruption Perception Index) दिखाता है कि भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार, एक गंभीर चिंता का विषय है।
कुल मिलाकर, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक पर 180 देशों के बीच भारत की रैंकिंग 85 से गिरकर 93 हो गई है।
पिछले 20 वर्षों से, भारत की रैंकिंग 70 और 96 के बीच घटती- बढ़ती रही है, यह दर्शाता है कि देश अभी भी भ्रष्टाचार की अतिसंवेदनशीलता का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर पा रहा है।
हर साल, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के प्रकाशित होने के बाद, देश, टूटे हुए रिकॉर्ड प्लेयर की तरह उसी बहस में फिर शामिल हो जाता है।
भारत में भ्रष्टाचार की समस्या एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। हमारे पड़ोसी देश चीन के इतिहास से इसकी तुलना करने पर पता चलता है कि स्थिति बेहतर नही हुई है।
स्कोर तक पहुंचने की कार्यप्रणाली विश्व बैंक (World bank ) और विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) जैसी संस्थाओं से आती है, जिसमें विभिन्न नामचीन संस्थाओं द्वारा 13 अलग-अलग भ्रष्टाचार आकलन शामिल हैं।
एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि भारत, कजाकिस्तान और लेसोथो के साथ रैंकिंग साझा करता है, जो सवाल उठाता है जब दो बिल्कुल अलग तरह की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना की जाती हो।
रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में, रिश्वतखोरी, व्यक्तिगत लाभ के लिए सार्वजनिक पद (कार्यालय) का दुरुपयोग, लालफीताशाही, सार्वजनिक क्षेत्र
में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने की सरकार की क्षमता, सही प्रथाओं के बारे में लोगों का अनुभव, कर धोखाधड़ी, *अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (Informal economy) और *अवैध वित्तीय प्रवाह (illicit financial flows) जैसे मापदंडों को शामिल नहीं किया गया है।
यह दिलचस्प है, क्योंकि ये मापदंड अक्सर भ्रष्टाचार के उपकरण और तरीके होते हैं।
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व्हिसलब्लोअर (मुखबिर) सुरक्षा, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का एक और महत्वपूर्ण पहलू है
अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाएँ अभी भी भारतीय वित्तीय प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा बनातीं हैं, जो इसे भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील बनाती हैं, भले ही यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार की धारणा में योगदान न दे।
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक, की गणना कैसे की जाती है, इसकी सख़्त सीमाएँ हैं।
तथ्य यह है कि इसके नाम में "धारणा" शब्द शामिल है, जो सूचकांक के पीछे के विचार को परिभाषित करता है - यह धारणा पर आधारित है, ठोस सबूत पर नहीं। कई लोगों का तर्क है कि यह किसी देश की स्थिति की निश्चित और संपूर्ण रूप से तस्वीर प्रदान नहीं करता है।
विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार के अलग-अलग तरीके हैं। जबकि भारत में भ्रष्टाचार को अक्सर रिश्वतखोरी और नौकरशाही के रूप में देखा जाता है, अन्य देश जैसे चीन और कुछ विकसित देश, बड़े पैमाने पर धन तक पहुंच में शामिल हो सकते हैं।
इस बारे में संदेह पैदा होता है कि क्या सूचकांक भ्रष्ट धन की मात्रा को प्रदर्शित करता है या किसी विशेष प्रक्रिया का जोखिम मूल्यांकन प्रदान करता है।
भ्रष्टाचार अक्सर विकासशील देशों में प्रचलित देखा जाता है, लेकिन विकसित देश भी विभिन्न भ्रष्ट प्रथाओं का प्रदर्शन करते हैं।
अमेरिका को लॉबिंग, राजनीतिक अभियान के वित्तपोषण, रिश्वतखोरी और प्रभाव के व्यापार (influence peddling) से जुड़े कॉर्पोरेट घोटालों के जरिए गंभीर भ्रष्टाचार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
इसी तरह, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जापान के भी अपने -अपने भ्रष्टाचार के मुद्दे हैं।
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राजनीतिक फंडिंग, अवैध धन की आपूर्ति श्रृंखला में, भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण है
हाई-प्रोफाइल मामलों में 2015 का फीफा भ्रष्टाचार घोटाला (FIFA corruption scandal) शामिल है, जहां अधिकारियों को विश्व कप की मेजबानी के अधिकारों और अनुबंधों से बचने के लिए रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप में दोषी ठहराया गया था।
*वोक्सवैगन उत्सर्जन घोटाला (Volkswagen emissions scandal) और यूके (UK) में सम्मान के बदले नकद घोटाला (cash-for-honors scandal) इसके अन्य उदाहरण हैं।
इस सूचकांक गणना के लिए उपयोग की जाने वाली पद्धति भारत के जीएसटी (GST) और दिवाला कानून (insolvency law) जैसे संस्थागत तंत्र से प्रभावित है, जो भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के खिलाफ सकारात्मक बढ़ावा प्रदान करती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण कारक सभी को न्याय उपलब्ध कराना है; भारत एक तेज गति वाली और मजबूत ‘न्याय वितरण प्रणाली’ (justice delivery system) के न होने की समस्या से जूझ रहा है, जिसमें विभिन्न अदालतों में दो करोड़ मामले लंबित हैं।
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत के खराब प्रदर्शन के बावजूद, अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद से ही देश ने कई हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन देखे हैं।
भ्रष्टाचार कोई अकेला (stand - alone) मुद्दा नहीं है; यह विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शक्ति संरचना और अवसर कारकों के बीच की एक परस्पर क्रिया है।
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक रिपोर्ट में अधिक स्कोर लेकर लगातार शीर्ष पर बने रहने वाले देश हैं, फिनलैंड, डेनमार्क, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, सिंगापुर और स्वीडन । इन देशों ने लगातार भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।
भ्रष्टाचार से निपटना एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, और इसके कोई रातोंरात समाधान नहीं है।
भारत को लगातार ठोस कदम उठाने होंगे। पर्याप्त संसाधनों, स्वायत्तता और जांच शक्तियों (investigative powers) के साथ भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों (Anti-corruption agencies) द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका महत्वपूर्ण है।
*व्हिसलब्लोअर (मुखबिर) सुरक्षा, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का एक और महत्वपूर्ण पहलू है।
सूचना का अधिकार (Right to information) और ई-गवर्नेंस (E-governance) जैसे साधनों का उपयोग करके जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने से भ्रष्ट प्रथाओं पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है।
राजनीतिक फंडिंग, अवैध धन की आपूर्ति श्रृंखला में, भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण है, जिसमें पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
भ्रष्टाचार मुख्य रूप से एक मानवीय मनोवैज्ञानिक समस्या है, जो एक सामाजिक और तार्किक मुद्दे के रूप में प्रकट होती है। यह लालच, सत्ता की इच्छा और तर्कसंगत और नैतिक निर्णय लेने की कमी से प्रेरित है।
यह व्यक्तित्व विशेषता असमानता, शक्ति असंतुलन और सीमित संसाधन तक पहुंच जैसे सामाजिक और तार्किक मुद्दों के कारण विकसित होती है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि मनोवैज्ञानिक समस्या किस अवस्था में, भ्रष्ट आचरण की संस्कृति के रूप में तेजी से बढ़ जाती है और खराब प्रशासन और पारदर्शिता की कमी के साथ संस्थानों को कमजोर करती है।
यह अनियंत्रित गुणक कारक (Multiplier factor) के साथ आने वाली एक महामारी की तरह है।
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक की कोई सीधी व्याख्या नही है। कोई केवल सूचकांक के मूल्य से एक सांकेतिक दृष्टिकोण बना सकता है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में बर्लिन (जर्मनी) में की गई थी।
इसका प्राथमिक उद्देश्य नागरिक सामाजिक भ्रष्टाचार-रोधी उपायों के माध्यम से वैश्विक भ्रष्टाचार का समाधान करना तथा भ्रष्टाचार से उत्पन्न होने वाली आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम हेतु कार्रवाई करना है।
CPI विश्व भर के 180 देशों तथा क्षेत्रों को उनके सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के अनुमानित स्तर के आधार पर 0 (अत्यधिक भ्रष्ट) से 100 (भ्रष्टाचार मुक्त) के पैमाने पर स्कोर करता है।
इसके सबसे उल्लेखनीय प्रकाशनों में ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर और करप्शन परसेप्शन इंडेक्स शामिल हैं।
*व्हिसिल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 ( निरसन और संशोधन अधिनियम, 2015 की दूसरी अनुसूची द्वारा व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 का नाम बदला गया ) भारत की संसद का एक अधिनियम है जो कथित भ्रष्टाचार और दुरुपयोग की जांच करने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।
लोक सेवकों द्वारा शक्ति प्रदान करना और सरकारी निकायों, परियोजनाओं और कार्यालयों में कथित गलत कार्यों को उजागर करने वाले किसी भी व्यक्ति की रक्षा करना।
गलत कार्य धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन के रूप में हो सकता है। यह अधिनियम झूठी या तुच्छ शिकायतों के लिए सजा भी सुनिश्चित करेगा।
इस अधिनियम को देश की नौकरशाही में भ्रष्टाचार को खत्म करने के अभियान के हिस्से के रूप में भारत की कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था और 27 दिसंबर 2011 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था। विधेयक 21 दिसंबर को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था।
फरवरी 2014 और 9 मई 2014 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।
*वोक्सवैगन उत्सर्जन घोटाला , जिसे कभी-कभी डीज़लगेट या एमिशनगेट के नाम से जाना जाता है, पहली बार 2015 में सामने आया था, जब संयुक्त राज्य पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) ने स्वच्छ वायु अधिनियम के उल्लंघन का नोटिस जारी किया।
यह पता चला था कि कंपनी उत्सर्जन परीक्षणों में धोखाधड़ी करने के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही थी।
सॉफ़्टवेयर, जिसे "डिफ़िट डिवाइस" के रूप में जाना जाता है, को वाहन के परीक्षण के दौरान उत्सर्जन नियंत्रण को चालू करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, लेकिन जब वाहन को सड़क पर चलाया जा रहा था तो उन्हें बंद करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
परिणामस्वरूप, उत्सर्जन परीक्षण के मुकाबले सामान्य ड्राइविंग स्थितियों के दौरान वाहनों ने काफी अधिक स्तर के प्रदूषक उत्सर्जित किए।
वोक्सवैगन ने मॉडल वर्ष 2009 से 2015 तक दुनिया भर में लगभग 11 मिलियन कारों में इस सॉफ़्टवेयर को तैनात किया, जिसमें अमेरिका में 500,000 कारें शामिल थीं।
*अवैध वित्तीय प्रवाह (आईएफएफ) एक देश से दूसरे देश में धन या पूंजी की अवैध आवाजाही है। अवैध वित्तीय प्रवाह के कुछ उदाहरणों में शामिल हो सकते हैं:
एक ड्रग कार्टेल, प्रयुक्त कारों की बिक्री से प्राप्त वैध धन को नशीली दवाओं की बिक्री से प्राप्त अवैध धन के साथ मिलाने के लिए व्यापार-आधारित मनी लॉन्ड्रिंग तकनीकों का उपयोग करता है;
एक आयातक सीमा शुल्क, मूल्य वर्धित कर या आयकर से बचने के लिए व्यापार गलत चालान का उपयोग कर रहा है ;
संयुक्त राज्य अमेरिका में एक बैंक खाते में गंदा धन स्थानांतरित करने के लिए एक गुमनाम शेल कंपनी का उपयोग करने वाला एक भ्रष्ट सार्वजनिक अधिकारी ;
एक मानव तस्कर नकदी का एक ब्रीफकेस सीमा पार ले जा रहा है और इसे एक विदेशी बैंक में जमा कर रहा है; या
किसी आतंकवादी संगठन का एक सदस्य एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के किसी संचालक तक पैसा पहुंचा रहा है ।
*अनौपचारिक अर्थव्यवस्था उन उद्यमों का प्रतिनिधित्व करती है जो पंजीकृत नहीं हैं, जहाँ नियोक्ता कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।
इसे आर्थिक इकाइयों की एक श्रेणी के रूप में जाना जाता है जो मुख्य रूप से व्यक्तियों के निजी स्वामित्व एवं संचालन में होते हैं और एक या एक से अधिक कर्मचारियों को नियमित रूप से नियोजित रखते हैं।
इसमें किसान, खेतिहर मज़दूर, छोटे उद्यमों के मालिक एवं उनमें कार्यरत लोग और स्वरोज़गार करने वाले लोग (जो किसी कामगार को नियोजित नहीं करते) शामिल हैं।
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