अनुमान लगाए कौन सा देश ?
अनुमान लगाए कौन सा देश ?
Guess the Country? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
भारत, लोकसभा चुनावों के मध्य में है, और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है,क्योंकि अन्य सभी चुनावों की तरह ही यह एक आमूल परिवर्तन काल वाला चुनाव है, और ये चारों ओर समाचार और उसकी लहर बना रहा है।
इससे अलग मेरे पास सुनाने के लिए एक सरल सी कहानी है, और मुझे पूरा यकीन है कि आप सभी ,उस कहानी की घटनाओं से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे जो कि मैं सुनाने जा रहा हूँ।
एक समय ऐसा था जब एक राष्ट्र अस्तित्व में था, जिसकी लोकतंत्र की ओर उसकी यात्रा ने विश्व को मंत्र मुग्ध कर दिया था और जो एक सम्माननीय वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में पूरी तरह से बदल रहा है।
यह राष्ट्र परंपराओं में निहित था और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए उच्च आकांक्षाओं को रखता था।
इसकी सीमाओं के भीतर विविधता पनपी; विभिन्न धर्म और धार्मिक आस्थाएँ सद्भावपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में थीं, और वे सभी सामाजिक विभाजनों से परे थे।
अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि और समुदायों के बावजूद, बच्चे स्कूल और खेल के मैदान आपस में साझा करते थे, जिससे धार्मिक *पंथ, रंग या धर्म से परे एकता की भावना को बढ़ावा मिलता था।
एक पारंपरिक देश जिन सुपरिचित चुनौतियों और राजनीतिक माहौल के बीच में, सामान्य रूप से व्यापार, राजनीति और समुदाय के बीच से गुजरता है, ये राष्ट्र, पारंपरिक साधनों के माध्यम से विकसित हुआ।
इस राजनीतिक परिदृश्य के बीच में एक छोटी सी पार्टी उभरी, जिसे तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी कहा जाता है। जो देश को नया रूप देने और एक राष्ट्र बनाने के लक्ष्य तक पहुँचाने की महान महत्वाकांक्षा रखती है।
शुरू में, वे हाशिए पर थे, लेकिन पार्टी ने जल्द ही राष्ट्रवाद के शक्तिशाली आकर्षण यानी लोगों की देशभक्ति की भावना के प्रति जागरूकता को पहचान लिया, और इस तरह पार्टी ने आबादी पर गहरा प्रभाव डाला।
देशभक्ति की भावना की ताकत को समझते हुए, पार्टी के सदस्यों ने राष्ट्र की आत्मा के संरक्षक और देश के मसीहा के रूप में उस जगह पर खुद को तैनात दिखाया।
इसलिए, उन्होंने मज़बूत देशभक्ति और राष्ट्रवादी विचारधारा के अपने झंडे के साथ, खुद को देश के भविष्य ही नही बल्कि, एक उज्ज्वल भविष्य के रूप में पेश किया।
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राष्ट्रीय रक्षक के उनके संदेश ने जनसाधारण को प्रभावित किया
राष्ट्रीय रक्षक के उनके संदेश ने जनसाधारण को प्रभावित किया और धीरे-धीरे, कई वर्षों में, यह लोगों के बीच एक गहरे विश्वास के रूप में विकसित हो गया।
लोगों ने इस पार्टी पर वह जो कह रहे थे उसपर यकीन रख कर भरोसा करना शुरू कर दिया था। बेशक, लोगों के दिलों में बसा हुआ, डर, समर्थन जुटाने का एक साधन बन गया, और इसने लोगों की धारणा और निष्ठा को नया आकार देना शुरू कर दिया।
विश्वास से, यह भरोसे में बदल गया, और अब, भरोसे से, यह उनकी निष्ठा बन गया, और लोगों में ये बदलाव उनके दृढ़निश्चय से भरा था।
कुछ और समय बीत गया, और पार्टी बड़ी हो गई, लोगों की इसके प्रति जागरूकता बढ़ी, और धीरे-धीरे, * प्रतीकवाद (Symbolism) उनकी भाषा बन गया।
फिर, वर्दी (Uniform) अस्तित्व में आई, ड्रेस कोड (परिधान संहिता) इसकी जीवनशैली में आ गया, और इसका प्रतीक चिन्ह इस पार्टी के प्रतीक के रूप में काम करने लगा।
इसी तरह पार्टी ने एक रंग को अपनाया और उस रंग को उन्होंने अपने धर्म और जाति से जोड़ा।
सड़कें पार्टी का मंच बन गईं और लोग सड़कों पर एक खास तरीके से चलने लगे।
पार्टी के कार्यकर्ता, पार्टी की शक्ति को दिखाने के लिए परेड करते थे, जिससे वे लोगों में पार्टी की धाक और उसके प्रति आज्ञाकारिता का भाव पैदा कर सके ।
आश्चर्य की बात नहीं कि फिर पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई और बेशक, इसने पूरे देश को अपने प्रभाव में लाना शुरू कर दिया।
इस पार्टी की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती गईं और निस्संदेह, यह संकेत दे रहा था कि पार्टी का नेतृत्व, राष्ट्र पर नियंत्रण पाने के लिए दृढ़ संकल्पी था।
पार्टी अपने कार्यकाल के दौरान, जनता की नजरों में, अपने नेता की आकांक्षाओं का पर्याय बन गई और उस नेता ने पार्टी से ऊपर उठकर खुद को उससे अधिक महत्वपूर्ण मान लिया और इस तरह, पूरे राष्ट्र की सोच पर भी कब्जा कर लिया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, नेता ने वैश्विक मंच पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उनकी महत्वाकांक्षाएं कोई सीमाएं नहीं जानती थी।
नेता एक नश्वर इंसान से बढ़कर बन गया, उसे, एक दिव्य व्यक्ति का दर्जा प्राप्त हो गया जो अत्यधिक सम्मान का पात्र था।
उनकी रैलियों में जोशपूर्ण नारे गूंजने लगे, जो आने वाले खतरे से निपटने के लिए उनपर अटूट निष्ठा की आवश्यकता को दर्शाते थे। जहाँ भी नज़र उठाकर देखो तो, नेता की छवि ही बड़ी दिखाई देती थी।
अखबार , मीडिया, होर्डिंग्स (सड़क किनारे लगे विज्ञापन पट) और सरकारी दस्तावेज पार्टी की निष्ठा के प्रतीकों के साथ थे।
लोगों को एक सुनियोजित संदेश के माध्यम से साँचे में ढाला गया था, और वे सभी सत्ता के आकर्षण, उस नेता के आकर्षण के आगे झुक गए, जिसे करिश्माई और विशाल व्यक्तित्व जैसा दिखाया गया था। इसके अलावा एक और रोमांचक बात यहां पर हो रही थी।
नेता के कार्य धार्मिकता की आड़ में किए गए थे, जिससे सही और गलत के बीच की रेखाएँ धुंधली हो गई थीं। विपक्ष की आवाज़ों को दबा दिया गया और असहमतियों को सत्तावादी शासन के बोझ तले कुचल दिया गया।
इसलिए जिन लोगों ने पार्टी के बयानों को चुनौती देने की हिम्मत की, उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और उनकी आवाज़ें दबा दी गईं या फिर वे लोग जो अंतरआत्मा की आवाज के साथ थे उन्हें भूमिगत कर दिया गया।
मीडिया दुष्प्रचार का प्रतिनिधि बन गया, असहमति का दम घोंट दिया गया और नेता के पक्ष में जनमत को तैयार किया गया।
न्यायिक स्वतंत्रता भी खत्म हो गई क्योंकि, प्रमुख पदों पर बैठे वफादार न्यायाधीशों ने शासन के स्वार्थ को पूरा करने के लिए कानून को तोड़ना-मरोड़ना शुरू कर दिया। कुछ मामलों में तो, न्यायाधीश पार्टी में ही शामिल होने लगे।
राष्ट्र, नेता के दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करने लगा। राष्ट्र नेता की विचारधारा को प्रतिबिम्बित करने लगा और असहमति जताने वालों को राज्य का दुश्मन और राष्ट्र-विरोधी करार दिया जाने लगा।
साथ ही, समानांतर रूप से, लक्षित समुदायों को बलि का बकरा बनाकर राष्ट्रीय एकता के नाम पर बड़ा खतरा करार दिया जाने लगा और खास तौर पर एक समुदाय को तो बहुत अधिक खतरा करार दिया जाने लगा।
मीडिया ने भी इसमें भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होंने *लक्षित समुदाय को समाज के लिए एक खतरा और बाहरी लोगों के रूप में चित्रित करना शुरू कर दिया।
नफ़रत भरे भाषण ने भेदभाव को बढ़ावा दिया और इसने आबादी के बीच विभाजन और दुश्मनी को जन्म देना शुरू कर दिया। इसलिए, हमारा पड़ोस अब एक मासूम पुराना पड़ोस नहीं रह गया है।
नेता के लिए, डर फैलाना, नियंत्रण का एक साधन बन गया। पार्टी के लिए, इसने हाशिए पर पड़े समुदायों के प्रति अविश्वास और संदेह पैदा करना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, सत्तावादी नियंत्रण, दैनिक जीवन में फैल गया और इसने आबादी के मानदंडों, व्यवहार और अनुरूपता को निर्देशित करना शुरू कर दिया।
शिक्षा, मतारोपण के लिए युद्ध का मैदान बन गई, और इसने युवा दिमागों को नेता को अपना आदर्श बनाने , पार्टी को अपना आदर्श बनाने के लिए, नया आकार देना शुरू कर दिया।
स्कूल, पार्टी के प्रति निष्ठा उत्पन्न करने का प्रजनन स्थल बन गया। उन्होंने ऐसी सामग्री भेजना शुरू कर दी जो नेता और पार्टी की छवि के साथ युवा दिमागों को अपने अनुरूप ढालती थी।
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अधिनायकवाद (Authoritarianism) ने जड़ें जमा लीं
शासन और संस्थाएं भी पार्टी के प्रभाव के आगे झुकने लगीं और उन्होंने राष्ट्र पर कब्जा करने वाली केंद्रीकृत और सत्तावादी शक्ति के पक्ष में अपनी स्वायत्तता को त्यागना शुरू कर दिया।
व्यवसाय और व्यावसायिक घराने भी पार्टी की विचारधारा के साथ चलने लगे और व्यवसायिक लाभ या अस्तित्व में बने रहने के लिए उन्हें भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया।
सभी पार्टियों की तरह, यहां भी आंतरिक असंतोष था, लेकिन फिर उस असंतोष को दबा दिया गया, और एक नेता की निष्ठुरता के बोझ तले उनकी अंतरात्मा को कुचल दिया गया।
उनकी निजी जीवन को चुनौती दी गई और वे खतरे में आ गए।
तो, इस तरह आंतरिक असंतोष को पूरी तरह से दबा दिया गया। समय के साथ, *अधिनायकवाद (Authoritarianism) ने जड़ें जमा लीं, और इसने सत्ता को मजबूत करना शुरू कर दिया और राष्ट्रीय शक्ति के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचलना शुरू कर दिया।
लोगों ने प्रतिबंधों को उचित ठहराना शुरू कर दिया।
लोगों ने नेता के प्रति निष्ठा में, मतारोपण को, राष्ट्रीय एकता के रूप में उचित ठहराना शुरू कर दिया। जो लोग इसका विरोध करते थे, उन्हें कुचला जाता था, असहमति जताने वालों को बल और धमकी के माध्यम से चुप करा दिया जाता था, और उनके अधिकार छीन लिए जाते थे।
उन्हें बिना किसी आरोप के सजा दी जाती थी।
बेशक, इसके परिणामस्वरूप, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कम हो गई। अगर इसके पीछे पार्टी नहीं होती, तो सरकार इस चुप्पी के खिलाफ कानून लागू करने के लिए तेजी से प्रतिकार के साथ आती।
तो आखिर, संसद को क्या हुआ, क्योंकि यह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र था?
बहुत जल्दी और उचित तरीके से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म कर दिया गया और सत्ता को मजबूत करने के लिए शासन ने कानूनी धाराओं को दरकिनार कर दिया।
उन्होंने प्रशासनिक तरीकों का इस्तेमाल करके कानून को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। जो कानून बनाए गए थे, उन्हें उलट दिया गया।
तो, जैसा कि हम इस कहानी में देख सकते हैं, कैसे एक साधारण पार्टी के सत्ता में आने से जो शुरू हुआ, वह नेताओं के अवतार रूप में उनकी राष्ट्रीय पहचान के रूप में साकार हुआ।
कैसे एक राष्ट्र की नियति, नेताओं , एक व्यक्ति, एक राष्ट्र ने राष्ट्र की विचारधारा को आकार दिया, देश की विचारधारा को आकार दिया और किस तरह इसने जनसंख्या के भविष्य को निर्देशित किया।
तो प्रिय पाठकों, अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं अपनी कहानी में किस देश की बात कर रहा हूँ।
हाँ, आप का अनुमान सही है।
उत्तर - जर्मनी, 1930 का दशक। हिटलर का जर्मनी !
हिटलर के जर्मनी ने एक समृद्ध, खुशहाल और मेहनती देश को, जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता था, पूरी तरह बर्बाद कर दिया। उस दौर की मृत्यु और विनाश, नस्लों के बीच की दुश्मनी, आज भी महसूस की जाती है।
इस तरह की बर्बरता हो सकती है, यह शर्म की बात आज भी बनी हुई है।
जब भी हम कोई सामाजिक नीति बनाते हैं, तो हम 1930 के दशक में जर्मनी में जो हुआ, उसे याद करते हैं।
ये बुरे दिन किसी भी देश में कभी न आएं।
अगर आपके देश में हिटलर के जर्मनी जैसे कोई भी संकेत दिखें, तो उन्हें अभी रोकें!
*धर्म या पन्थ किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है।
साहित्य में, प्रतीक वह चीज़ होती है जो किसी और चीज़ का प्रतिनिधित्व करती है। प्रतीक कोई वस्तु, चिह्न, छवि, चरित्र, नाम या स्थान हो सकता है - लगभग कोई भी चीज़ प्रतीक के रूप में काम कर सकती है।
प्रतीकवाद एक साहित्यिक युक्ति है जो किसी कहानी में अर्थ भरने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करती है।
आप हर कला रूप में प्रतीकवाद का सामना करते हैं, जिसमें पेंटिंग, फिल्म और टीवी, मूर्तिकला, संगीत, फोटोग्राफी और नाटक शामिल हैं। आप रोजमर्रा की जिंदगी में भी प्रतीकों को देखते और पहचानते हैं।
दिल प्यार या भक्ति का प्रतीक हो सकता है, फूल माफी का प्रतीक हो सकते हैं, अक्षर x खतरे का प्रतीक हो सकता है, कुत्ता संगति का प्रतीक हो सकता है, या निशान किसी के दर्दनाक अतीत का प्रतीक हो सकता है।
*अधिनायकवाद शब्द का अर्थ आम तौर पर एक नियंत्रित, संचालनात्मक रूप से दमनकारी, सरकार है, जिसके पास अपने लोगों और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कीमत पर केंद्रित शक्ति है।
अधिक विशेष रूप से, अधिनायकवाद उन देशों की सरकारों को संदर्भित करता है जिनके पास शक्तिशाली नेता या चुनिंदा अभिजात वर्ग होते हैं जो नागरिक और सरकारी संस्थानों (और उनके कार्यों) के व्यवस्थित हेरफेर के माध्यम से सत्ता को नियंत्रित करते हैं।
दूसरे शब्दों में, अधिनायकवाद नेताओं और अभिजात वर्ग का एक शासक समूह है जो लोगों से सत्ता हासिल करने, बनाए रखने और अलग करने के लिए सरकार या सरकार के संचालन का उपयोग और हेरफेर करता है।
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