इच्छामृत्यु की ‘दुविधा’
इच्छामृत्यु की ‘दुविधा’
Dilemma of Assisted Dying का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
इच्छामृत्यु (euthanasia) के लिए आजकल आवाज उठने लगी है। नैतिक रूप से सही है या नहीं, यह गर्म बहस का विषय है। इच्छामृत्यु या आत्महत्या अधिकांश देशों में गैरकानूनी है, क्योंकि इसे समाज की भलाई के लिए हानिकारक माना जाता है; इसलिए उनके कानून इस पद्धति की अनुमति नहीं देते।
अभी भी कुछ देश हैं, जो सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाएं है और पहले से ही इच्छामृत्यु को कानूनी तौर पर वैध बना चूके हैं। किन्तु, विडंबना यह है कि जिन देशों के पास कमजोर लोगों को सहारा और सुविधा देने के लिए सबसे अधिक संसाधन हैं, वे ही इच्छामृत्यु (euthanasia) का पक्ष ले रहे हैं।
लोगों द्वारा इच्छामृत्यु चुनने का क्या कारण है?
लोग समझ जाते हैं कि जीवन के सफर का अंतिम मोड़ आ गया है, जहां से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं । ऐसी स्थिति जिसमें शरीर के महत्वपूर्ण अंग काम नहीं करते और दैनिक दिनचर्या करना जटिल हो जाता है, उस वक़्त लोग इच्छामृत्यु जैसे कठिन निर्णय को चुनने के लिए प्रेरित होते है।
यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब चिकित्सा विज्ञान ने दवाओं और सर्जरी के अपने सभी विकल्पों का उपभोग कर लिया है और हार मान ली है, यानी उन्होंने रोगी को लाइलाज या मरणांतक बीमार (terminally ill) से ग्रसित घोषित कर दिया है।
फिर भी, कुछ लोग अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं, इन बीमारियों के साथ भी, लेकिन उनका जीवन पूरी तरह से सूक्ष्म प्रबंधन और देखभाल करने वालों की सहायता पर निर्भर हो जाता है।
वे या तो पहियेदार कुर्सी के सहारे या बिस्तर से बंध जाते है और स्वयं के लिये कोई भी कार्य करने में असमर्थ होते है। अपने जीवन को दूसरों के उपकार के ऊपर निर्भर देख, रोगी की चेतना बोझिल होने लगती है और आत्म-नियंत्रण खोने की अत्यधिक संभावना हो जाती है।
एक अवधि के बाद, रोगी मानसिक शक्ति और जीने की प्रेरणा खो चुका होता है, क्योंकि जीवन में आगे देखने के लिए उसे कुछ भी प्रोत्साहित नहीं करता।
हालांकि, वे अभी भी महत्वपूर्ण इच्छामृत्यु करने का फैसला करने में सक्षम होते है।
नैतिक प्रश्न?
एक नैतिक सवाल जो यहां पर उठता है वह है दूसरे इंसान का मानव जीवन समाप्त करना।
इच्छामृत्यु के खिलाफ मुख्य तर्क इस धार्मिक विश्वास पर आधारित है कि जीवन ईश्वर का उपहार है। सर्वशक्तिमान द्वारा नियंत्रित जीवन और मृत्यु एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
अतः उसमे मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी हस्तक्षेप, जैसे जीवन चक्र की अवधि को बदलना, ईश्वर के विरुद्ध माना जाता है। इच्छामृत्यु, जीवन की प्राकृतिक प्रक्रिया को छोटा करती है और इसलिए, यह ईश्वर के खिलाफ है।
लेकिन वितर्क (counterargument) भी समान रूप से मान्य है। सहायक जन्म, आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) का उपयोग और अन्य प्रजनन उपचार जीवन के चक्र में समान रूप से सहायक हस्तक्षेप होते है।
इस मामले में भी इंसान, ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध जीवन चक्र बदलता है। हालाँकि तरीका कितना भी अप्राकृतिक क्यों न हो, सभी धर्मों में कृत्रिम गर्भाधान और प्रजनन उपचार की अनुमति है।
संश्लिष्ट विधियों (Synthetic methods) के उपयोग से हुए जन्म, जीवन चक्र को भी बदल रहे है, जैसे कि इच्छामृत्यु। इसलिए, धर्म इच्छामृत्यु के पक्षपाती के रूप में प्रतीत होता दिख रहा है।
कौन तय करता है कि यह जीवन का अंत है?
चिकित्सा पेशेवरों द्वारा यह घोषणा कि अब यहां पर कोई इलाज नहीं बचा, समर्पण करने का एक मजबूत मामला बनाता है। यह घोषणा करना पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान में संपूर्णता की धारणा में निहित है।
लेकिन ऐसे भी कई मामले हैं जहां रोगियों को अंतिम रूप से बीमार घोषित कर दिया गया था, लेकिन जब उन्होंने पारंपरिक दवाओं और उपचार का विकल्प चुना तो वे ठीक हो गए।
इसलिए इच्छामृत्यु का आधार त्रुटिपूर्ण है और इच्छामृत्यु को नियंत्रित करने की प्रक्रिया और विनियमन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा भी नहीं। वास्तव में, न्यायसंगत बहस में, अनुमति देने या अस्वीकार करने का निर्णय करना अत्यधिक महत्व का प्रश्न है।
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जीवन को समाप्त करने का निर्णय लेना - 'मानसिक अस्वस्थता' के बारे में भी है
आत्महत्या या इच्छामृत्यु, अत्यधिक पीड़ा और कष्ट में किसी के द्वारा लिया गया निर्णय है। खुशी के समय में कोई भी अपने जीवन को समाप्त नहीं करना चाहेगा।
इसलिए, यह तर्क दिया जा सकता है कि जीवन को समाप्त करने के बारे में निर्णय लेने की प्राथमिक शर्त, खुशी का अभाव भी है। इसलिए विकल्प के तौर पर लोगों को खुश करने के लिए बाहरी तरीकों को लागू किया जा सकता है।
विकलांगता और पीड़ा के साथ भी मानसिक सकारात्मक ऊर्जा को पाने की कोशिश की जा सकती है। हालांकि यह एक कठिन मांग है, किन्तु असंभव नहीं ।
इसमें पीड़ा प्रबंधन, सहायक जीवन और आध्यात्मिक समर्थन शामिल हो सकता है। चिकित्सा विज्ञान में ऐसे कई उपकरण उपलब्ध हैं जो रोगी के मानसिक स्वास्थ्य को ऊपर उठाने में सक्षम है, जो मृत्यु पाने की कोशिश में है।
जोखिम , इच्छामृत्यु, की अनुमति देने वाले कानून का गलत उपयोग करने में है।
इच्छामृत्यु, के प्रशासन में एक से अधिक प्रयोजन हो सकते हैं, जैसे पहला कारण, चिकित्सा प्रणाली पर बोझ को कम करने या अस्पताल में बिस्तर को ख़ाली करवाने के लिए ।
दूसरा कारण, चिकित्सा और सहायक जीवनयापन के कारण वित्तीय बोझ भी हो सकता है। उस समय की अवधि के दौरान, समाज में कौन सी प्रवत्तियाँ निर्मित होगी, यह अभी अज्ञात है। मरीजों को स्वतः ही इच्छामृत्यु का मामला भी माना जा सकता है।
अगर विकल्पों को ढूंढा जाए तो ,अनकहा सामाजिक दबाव भी इसका कारक हो सकता है - सिर्फ इसलिए कि यह प्रक्रिया उपलब्ध है।
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां समाज, चाहे कितना भी उदार क्यों न हो, अनकहा दबाव डालता ही है, उदाहरण के लिए, एक जीवन साथी का होना, परिवार, अपना घर, एक प्रकार का सुख, विशेष जीवन शैली आदि। ऐसे ही समय के साथ-साथ, इच्छामृत्यु भी इन अनकही कारकों की सूची में जुड़ सकता है।
भविष्य में जब यह विकल्प उपलब्ध होगा, और व्यापक रूप से उपयोग किया जाएगा, तो नए समाज के लिये यह सामान्य होगा की मरने के लिए उपयुक्त लोगों को एक समूह में वर्गीकृत किया जाये।
इस मानवीय स्थिति के व्यावसायीकरण के साथ संबंधित सेवाएं, वित्तीय मॉडल और सहायता समूह बाजार खुल जाएंगे। और एक बार यह सब शुरू हो गया तो, इस विकल्प को उलटना चुनौतीपूर्ण होगा।
अभी के लिए, अधिकांश तर्क यह मानकर दिए जा रहे हैं कि केवल कुछ ही प्रबंधनीय मामले मौजूद हो सकते हैं। साथ ही, तथ्य यह है कि जैसे-जैसे आवेदकों की संख्या बढ़ेगी, अक्षमता और गलतियाँ भी होंगी।
जब भी संख्या बड़ी होती है तो लापरवाही एक सामान्य लक्षण होता है। जैसे जनसंख्या के आकार के कारण, भारत और चीन जैसे देशों में परिदृश्य को देखते हुए, यह संभावना अधिक है।
इसलिए सांख्यिकीय रूप से, इच्छामृत्यु के अनुरोधों की संख्या किसी भी अन्य विकसित देश की तुलना में बहुत अधिक होगी।
विकासशील देशों में चिकित्सा प्रणाली वैसे भी संघर्ष कर रही है; इसलिए चिकित्सा नैतिकतावादियों को शीर्ष पर रखकर देखे तो - कानूनी निर्णय लेना, न्याय व्यवस्था की विफलता का एक निश्चित नुस्खा होगा।
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जोखिम ,इच्छामृत्यु, की अनुमति देने वाले कानून का गलत उपयोग करने में है
आत्महत्या की तरह, इच्छामृत्यु, भी रोगी से कम ,बल्कि समाज की विफलता और चिकित्सा विज्ञान से अधिक संबंधित है।
कोई भी समुदाय इतना उदार नहीं होना चाहिए कि उसमें लोगों को अपनी जान लेने के लिए खुला छोड़ दिया जाए । और ना ही समाज बौद्धिक रूप से इतना कमजोर हो कि जिसमें लोग अपने साथी की खुशी की परवाह न कर सकें।
वे परिवार के सदस्य जो इच्छामृत्यु, का समर्थन करते हैं, ऐसा वह निर्दयी होने के वजह से नहीं, बल्कि उस पीड़ित व्यक्ति के प्रति अपने प्रेम के कारण करते हैं।
वे अपने प्रियजन को उस असहनीय दर्द से गुजरते हुए देखना सहन नहीं कर सकते । इसलिए यह कठिन पारिवारिक निर्णय उन सभी को लेना होता है।
प्रेम और तर्क के बीच सबसे गहन आंतरिक प्रतिस्पर्धा में साहस और भावनात्मक तर्क की आवश्यकता होती है।
इच्छामृत्यु कभी भी आसान विषय नहीं रहा और यह उन लोगों द्वारा जीवित लोगों की अंतरात्मा को झकझोरना लगातार जारी रखता है, जो मरना चाहते हैं।
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