क्या पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान विफल हो गया?
क्या पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान विफल हो गया?
Did Western Medical Science Fail? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
जब से कोविड संकट शुरू हुआ, पश्चिमी चिकित्सा और वैज्ञानिक समुदाय ने एक निवारक उपाय के रूप में सामाजिक दूरी, हाथ धोने, फेस मास्क, सैनिटाइज़र और स्व-अलगाव (self-isolation) के बारे में बात की। रोगनिवारक कार्रवाई पर अभी भी उसके पास कम विकल्प हैं।
जैसे कि, हम प्रकोप के एक साल बाद सफलतापूर्वक खड़े है वही पश्चिमी चिकित्सा को अभी भी कोविड के निवारक और उपचारात्मक पक्ष के बारे में और अधिक जानने की आवश्यकता है। ज्ञान जितना भी अर्जित करले हमेशा कम ही रहता है।
अन्य देशों की सफलता से और उनकी पारंपरिक जीवन शैली, तरीकों और पारंपरिक दवाओं ने कैसे काम किया इससे सीखने के बजाय तथाकथित चिकित्सा समुदाय ने इसका विरोध किया है।
हम सभी ने डब्लूएचओ (WHO) को कहते सुना है कि, कोविड19 अन्य फ्लू की तरह नहीं है, बल्कि, यह सांस की अत्यधिक गंभीर बीमारी है। तो,आख़िर डॉक्टर मरीजों का इलाज किसी अन्य सांस की बीमारी की तरह ही क्यों नहीं कर रहे हैं?
दुनिया भर में, हमने देखा कि, 2020 की गर्मियों के दौरान कोविड मामलों में काफी कमी आई। मौसम बदलने और तापमान बढ़ने के साथ मामलों की संख्या फिर से बढ़ी है। जलवायु परिस्थितियों में बदलाव के साथ इसका कुछ तो संबंध है, क्योंकि, कोविड एक तरह का 'फ्लू' है।
'फ्लू' के मौसम में गर्म पानी में नींबू, अदरक और शहद मिलाकर पीने की प्रथा सभी सभ्यताओं में आम है। यह सदियों से चली आ रही प्रथा है। यहां तक कि, बड़ी फार्मा कंपनियां भी अपनी फ्लू की दवाओं को नींबू या अदरक के स्वाद के साथ ब्रांड करती हैं।
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एक पशु वायरस अपने प्रोटीन को फैटी एसिड ( Fatty acid) के साथ समेट लेता है
तथ्य अपने लिए बोलते हैं। भारतीय मीडिया लोगों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीकों के बारे में बता रहा है। वे जीवनशैली में बदलाव के साथ-साथ खाने के लिए खाद्य पदार्थ और व्यायाम करने की सलाह दे रहे हैं।
तीन में से एक विज्ञापन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कोविड को रोकने के बारे में है, जिसका देश में प्रतिष्ठित हस्तियों द्वारा समर्थन किया जा रहा है। कोई भी पश्चिमी मीडिया में इस तरह के किसी भी प्रयास को नहीं देख रहा है।
अगर सरकारें हाथ धोने, चेहरे पर मास्क लगाने और सामाजिक दूरी का सुझाव एक ही समय में दखलंदाजी न करते हुए दे सकती हैं तो, फिर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली आदतों और निवारक दवा के रूप में भोजन का सुझाव क्यों नहीं देतीं?
इस दृष्टिकोण का परिणाम संख्याओं में दिख रहा है। भारत, वियतनाम, घाना, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, हालांकि यहाँ पर संक्रमण दर अधिक है किंतु, मृत्यु दर 2% के करीब है, जबकि यूके (UK), यूएसए (USA) और अन्य देशों में यह लगभग 14% है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि, कोविड के कारण खोई गई एक अकेली जान भी बहुत अधिक है।
नियमित फ्लू के मौसम के दौरान, यूके और यूएसए की आबादी गर्म पानी पीने के लिए पाउच में ओटीसी (OTC) दवाएँ खरीदती है। भाप लेना एक अन्य तरीका है जिसको करने की डॉक्टर सभी को सलाह देते हैं। तो, निवारक उपाय के रूप में कोविड19 के लिए क्यों नहीं?
वायरस को लेकर हुए शोध से भी पता चलता है कि, एक पशु वायरस अपने प्रोटीन को फैटी एसिड ( Fatty acid) के साथ समेट लेता है।
यह सामान्य ज्ञान है कि, फैटी एसिड खुद को 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक बनाए नहीं रख सकता । यह वह तापमान है जिस पर लोग अपनी कॉफी और चाय सुरक्षित रूप से पीते हैं। तो, वैज्ञानिक समुदाय इस सरल रसायन शास्त्र को ध्यान में क्यों नहीं रख रहे हैं?
निम्नलिखित एक नमूने के तौर पर दिया गया संदेश है जिसे विकासशील देश अक्सर अपने सामाजिक मीडिया (सोशल मीडिया) पर देखते हैं।
“आप जो गर्म पानी पीते हैं वह आपके गले के लिए अच्छा होता है। लेकिन यह कोरोना वायरस आपकी नाक के परानासल साइनस (Paranasal sinus) के पीछे 3 से 4 दिनों तक छिपा रहता है। हम जो गर्म पानी पीते हैं, वह वहां नहीं पहुंचता।
4 से 5 दिनों के बाद परानासल साइनस के पीछे छिपा हुआ यह वायरस आपके फेफड़ों में पहुंच जाता है।
तब आपको सांस लेने में तकलीफ होती है।
इसलिए भाप लेना बहुत जरूरी है,
जो आपके परानासल साइनस के पिछले हिस्से तक पहुंचता है।
आपको इस वायरस को भाप की मदद से नाक में ही मारना है।
50 डिग्री सेल्सियस पर यह वायरस निष्क्रिय यानी लकवाग्रस्त हो जाता है।
60 डिग्री सेल्सियस पर यह वायरस इतना कमजोर हो जाता है कि, कोई भी इंसानी प्रतिरोधक क्षमता इससे लड़ सकती है।
70 डिग्री सेल्सियस पर यह वायरस पूरी तरह मर जाता है।
भाप यही काम करता है।
घर में रहने वाले को दिन में एक बार भाप जरूर लेनी चाहिए।
अगर आप बाजार में किराने का सामान, सब्जी आदि खरीदने जाते हैं।
तो इसे दिन में दो बार लें।
कोई भी व्यक्ति जो कुछ लोगों से मिलता है या ऑफिस जाता है उसे दिन में 3 बार भाप लेनी चाहिए।
यदि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि, यह निवारक चिकित्सा रूपरेखा लाभकारी होगी या नही, तो इसका भी कोई प्रमाण नहीं कि, इससे नुकसान होगा।
इसके विपरीत, बीबीसी (BBC) मान्यताओं को तोड़ देने वाली कहानियां चला रहा था जिसमें, वह गर्म पानी के उपयोग की निंदा करने और "प्रतिरक्षा" को कोविड के खिलाफ लड़ाई से अलग कर रहा था।
यह पश्चिमी चिकित्सा, वैज्ञानिक समुदाय की ओर से उन विचारों को अस्वीकार करने के लिए बचकाना सा लगता है जो सदियों से प्रचलित और स्पष्ट हैं।
हाथ धोने और फेस मास्क के साथ-साथ सूरज की रोशनी और विटामिन डी (Vitamin D) एक और जीवन जीने का ढंग है जिसका सुझाव सरकारें दे सकती थीं। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि, कोविड के अधिकांश मामलों में 'विटामिन डी' की कमी थी।
अब जब विश्व स्तर पर 'वैक्सीन युद्ध' चल रहा है, तो वैरिएंट के साथ उनकी प्रभावकारिता के लिए चुनौतियाँ हैं। आबादी भ्रमित है, और सरकारें उनमें से प्रत्येक के लिए उनकी दिशा के साथ अस्पष्ट है।
यह किसी शहर की हर गली और इलाके के लिए एक नया वाहन बनाने जैसा है। अधिक उचित रूप से, यदि सरकारें इच्छुक हैं, तो उन्हें वायरस के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक तंत्र बनाने का प्रयास करना चाहिए।
वैसे आधुनिक वैज्ञानिक शब्दावली में इसे 'इम्युनिटी' (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कहते हैं।
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कोविड के अधिकांश मामलों में ' विटामिन डी' की कमी थी।
“जबकि विश्व स्तर पर कई लोगों ने मौसमी बुखार तनावों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण किया है किंतु, कोविड-19 एक नया वायरस है जिसके लिए किसी के पास भी प्रतिरोधक क्षमता नहीं है।
इसका मतलब है कि, अधिक लोग संक्रमण के प्रति संवेदनशील हैं, और कुछ गंभीर बीमारी से पीड़ित होंगे।”
महानिदेशक, डब्ल्यूएचओ (WHO), 3 मार्च 2020
डब्ल्यूएचओ (WHO) इतना गलत कैसे हो सकता है?
आज, जिन देशों ने सफलतापूर्वक कोविड महामारी को खत्म कर दिया, वे वही हैं जिनकी आबादी ने 'रोग प्रतिरोधक क्षमता' ( इम्युनिटी ) बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। चीन, भारत, वियतनाम, घाना अन्य सही लक्ष्य पर अपना ध्यान पुनर्निर्देशित करने के जीवंत उदाहरण हैं।
चिकित्सा विज्ञान के चिकित्सकों द्वारा सामान्य ज्ञान को न सुनने का एक और उदाहरण अस्पतालों में देखा जाता है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि, जब तापमान बहुत अधिक या गर्म हो जाता है तो फ्लू का मौसम मौजूद नहीं रहता।
इसलिए, यह कोविड रोगियों का इलाज करने वाले रोगीकक्ष ( वार्डों) में कृत्रिम ग्रीष्मकाल बनाने के लिए आदर्श हो सकता था।
अस्पताल के रोगीकक्ष के औसत कमरे का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस या उससे कम रखा जाता है। यह सतहों पर और शरीर के अंदर कोविड विषाणु (वायरस) के प्रजनन के लिए सबसे अनुकूलतम तापमान है।
यहां दिखाए गए आंकड़ों का संदर्भ लें; सर्दियों के दौरान संक्रमण और मृत्यु के शिखर होते हैं।
यूएसए (USA) - डेली डेथ्स (Daily Deaths)
स्रोत: वाशिंगटन पोस्ट (Washington Post)
अतः, उपरोक्त आंकड़ों से आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि, अगर अस्पताल में भर्ती मरीज ग्रीष्म ऋतु जैसे गर्म वातावरण में रहे होते; तो वे स्वाभाविक रूप से वायरस से लड़े होते।
आंकड़ों का एक और संकलन है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
मृत्यु दर: प्रति दस लाख जनसंख्या पर मृत्यु (Deaths per Million Population)
स्रोत: Worldometers.info ( 13 फरवरी 2021 तक )
यूएसए: लगभग 1,400
यूके: लगभग 1,700
फ्रांस: लगभग 1,200
इटली: लगभग 1,500
कनाडा: लगभग 550
भारत: लगभग 100
बोत्सवाना: लगभग 80
बांग्लादेश: लगभग 50
दक्षिण कोरिया: लगभग 30
नाइजीरिया: 10 से नीचे
घाना: लगभग 15
वियतनाम: 1 से नीचे
स्रोत: Worldometers.info
कुछ तो है जो ये देश सही कर रहे हैं। इन आंकड़ों के नतीजों का असर टीकाकरण कार्यक्रम पर पड़ेगा। यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप में प्रवासी और जातीय समुदाय टीका लगाने से कतराते हैं।
वे अपनी पारंपरिक जीवन शैली और आहार संबंधी आदतों में अधिक विश्वास रखते हैं। इसका प्रभाव यूके (UK) में टीकाकरण के आह्वान के लिए अपर्याप्त प्रतिक्रिया में देखा जाता है, भले ही बेम* (BAME) में मृत्यु दर अधिक है।
एक सदी पहले, 1918 में स्पेनिश फ्लू (Spanish flu) देखा गया था। उस समय चिकित्सा विज्ञान की प्रगति को कम करने में दो साल लग गए। सौ साल बाद भी, कोविड से लड़ने के लिए दो साल होने जा रहे हैं। उन दस दशकों में हमने क्या सीखा?
खुद से पूछने के लिए बड़ा सवाल यह है कि, हमने एक ही चीज़ को करने में जिसने की काम नही किया और अलग-अलग परिणामों की उम्मीद करते हुए लाखों जीवन क्यों बर्बाद कर दिए।
पश्चिमी वैज्ञानिक चिकित्सा समुदाय को पहिए को फिर से शुरू करने की आवश्यकता नहीं है उसे इसे रोकना होगा। वे पारंपरिक दवाओं में निरीक्षण कर सकते हैं और आधुनिक समय की बीमारियों के समाधान खोजने के लिए तालमेल बिठा सकते हैं।
इससे हम और लोगों की जान बचाएंगे और यह अत्यधिक संतोषजनक होगा।
कोविड वैश्विक है। पारंपरिक चिकित्सा और पश्चिमी चिकित्सा के सहयोगात्मक शिक्षा से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती थी, उनमें से कईयों की।
*-अश्वेत, ऐशयाई और अल्पसंख्यक जातीय, एक यूके (UK) जनसांख्यिकीय
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