क्या केंद्रीय विस्टा 21 वी सदी के लिए उपयुक्त है?
क्या केंद्रीय विस्टा 21 वी सदी के लिए उपयुक्त है?
Will Central Vista fit 21st Century India? का हिन्दी रूपांतर
~ सोनू बिष्ट
इक्कीसवीं सदी के लिए उचित लगने वाले केंद्रीय विस्टा (central vista) के, आधुनिक वास्तुकला के विकाशन पर प्रश्न खड़े करना असंगत लगे, किन्तु इसकी बनावट (design)पर कुछ महत्वपूर्ण भविष्यवादी तर्कों की अनदेखी की गयी है ।
केंद्रीय विस्टा की बनावट में मुख्य कल्पना यह की गई है, की भारत के प्रशासन, शासन और लोकतान्त्रिक तरीके 19 वी और 20 वी सदी की तरह ही जारी रहेंगे और इस तरह समय स्थिर रहेगा ।
राजधानी की संकल्पना (concept) --
पुरातन समय से ही राष्ट्रीय राजधानी को शासन की शक्ति और आधिकारिक, प्रशासनिक गद्दी का केंद्र माना जाता रहा है.
आदि-कालीन शताब्दियों में विभिन्न सरकारी विभागों के, मंत्री और प्रशासकों को राजतन्त्र और राज्य प्रमुख से मौखिक निर्देश लेने होते थे, तत्पश्चात जैसे-जैसे प्रणालियाँ परिपक्व और प्रशासनिक तरीकों में सुधार होते गए, निर्देश अधिक तेजी से और लिखित आदेशों के रूप में लिए जाने लगे.
परिणामस्वरूप, राजतन्त्र का दरबार सहजतः ही अत्यावश्यक लोगों के साथ केंद्र सत्ता या साम्राज्य के पास स्थित हो गया, आदेशों के पालन करने के लिए, दरबारी, अधिकारी, साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में यात्राएं करते और आवश्यक समाचार और प्रतिक्रिया (feedback) लेकर वापिस राजधानी वापिस लौट आते.
प्रतिनिधियों और अधिकारियों का दुनिया के विभिन्न हिस्सों में यात्राएं करने का अभ्यास अभी भी जारी है.
जैसे की, 1215 A. D. मैग्ना कार्टा (Magna carta) दस्तावेज के, प्रभाव के बाद लोकतंत्र में सुधार हुए, संसद ने निश्चित अवधि की बैठक बुलाई, जिसमें लेन -देन, लोगों के व्यापार पर - बहस, चर्चा और देश के लिए कानून बनाना शामिल थे, जिसे 'सत्र' कहा गया.
सत्र की अवधि समाप्त होने पर, सभी प्रतिनिधि अपने-अपने निर्वाचन-क्षेत्रों के लिए रवाना हो गए, अगले सत्र के लिए वे वापिस राजधानी लौट आये और अस्थायी रूप से शहर में रहे.
वर्तमान समय में यात्रा करना पिछली शताब्दी की तुलना में अधिक सुविधापूर्ण है, और सफल ऑनलाइन वर्चुअल (Online virtual assembly) सभा करने के लिए कोई परखा हुआ उदाहरण नहीं था, इसलिए किसी ने भी तब से, समय -समय पर प्रतिनिधियों के बाहर जाने और सत्र के लिए वापिस राजधानी में, इकट्ठे होने पर प्रश्न खड़ा नहीं किया.
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1215 A. D. मैग्ना कार्टा (Magna carta) दस्तावेज के, प्रभाव के बाद लोकतंत्र में सुधार हुए
संसद भवन में संचार विधि अभी भी सम्मुख वाली है. अधिकारियों और न्यायपालिका द्वारा आदेशों का हस्तांतरण, कागज़ी दस्तावेजों के रूप में होने से सभी विभागों के लिए, राजधानी शहर में स्थित रहना और वही से नियमन (Govern) करना आसान बनाता है.
यह वर्णन प्रतिनिधियों की सभा और सरकारी कुर्सी के विषय में, राजधानी शहर के कार्य का सबसे सरल या एक तरफ़ा दृष्टिकोण है.
जैसा की राजनीति-समाजशास्त्र से जुड़े लगे चाहेंगे, की यह व्यवस्था का प्रारूप (Configuration), देश की सत्ता के खेल और संरचना को राजधानी शहर में केंद्रित करें । यह एक ऐसी प्रथा है जो लगभग दुनिया के सभी देशों में प्रचलित है ।
हालाँकि, यहां पर कुछ अपवाद भी है, जैसे की देश जर्मनी - जहां पर न्यायिक, प्रशासनिक और विधायी राजधानियाँ क्रमशः कार्ल्सरूहे (Karlsruhe), बोन (Bonn) और बर्लिन (Berlin) शहरों में है.
यहां पर यह इस तर्क का उदाहरण है, की शक्ति केंद्र को एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में, सह-स्थित होने की आवश्यकता नहीं है, बिना इसके भी देश को प्रभावी ढंग और कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है.
राष्ट्रीय राजधानियों के संकल्पना और इतिहास के संदर्भ में इतना ही।
वर्तमान प्रणाली में अवरोध (Constraints) -
इक्कीसवीं सदी में इक्कीस साल हो गए है, और देश की परवाह किए बिना डिजिटल तकनीक, सब के जीवन को नियंत्रित कर रही है.
विकसित प्रौद्योगिकी (Technology) के साथ- साथ, Covid -19 ने दुनिया भर में व्यवसाय और प्रशासन के, काम करने के तरीकों में जबरदस्त रूप से बदलाव किये है. लेन-देन व्यवसाय के लिए, एक स्थान पर शारीरिक रूप से उपस्थित होने की प्रथा बदल गई है. यह एक भविष्यवाणी है, जो वास्तविकता में बदल गयी है.
उदाहरण के तौर पर, ब्रिटेन में ब्रिटिश संसद और चयन समितियां हमेशा की तरह काम कर रही है. प्रतिभागी अपने घरों या स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र के, कार्यालय से काम कर रहे है. वे लंदन की यात्रा नही कर रहे है .
कार्यचालन के इस बदलाव के बीच, ब्रिटेन ब्रेक्सिट (BREXIT) में परिवर्तन और संसद में कानून भी बना रहा है.
जब इसकी तुलना पूर्व-कोविड दिनों से की जायें तो कोई भी तर्क इस तथ्य को ना नकार सकता है, ना कार्यप्रणाली को चुनौती दे सकता है.
आगे भविष्य मेंडिजिटल कनेक्टिविटी केवल बेहतर ही होने वाली है. वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग और ऑडियो क्वालिटी HD होने वाली है, क्योंकि 5 G हमारे पास में ही है.
भविष्य ना केवल डिजिटल वीडियो कॉन्फरेंस, बल्कि इंटरनेट-ऑफ़-थिंग्स (Internet of things) में उच्च दक्षता का भी होगा, यह तकनीकी युग हर विभाग को, उस जगह स्थानांतरित होने में सक्षम करेगा, जहां वो अधिक रुचि से काम कर सकेगा.
उदाहरण के तौर पर, खनन और मत्सय मंत्रालय को आखिर दिल्ली में क्यों स्थित होना चाहिए? कृषि विभाग भी नई दिल्ली में स्थित है, जो की अनुपयुक्त है, इन सभी मंत्रालयों के कार्यालय और विभाग उन जगहों के करीब हो सकते है जहां किसान और कृषि गतिविधियों की अधिकतम जन सीमा है.
आदिवासी विकास मंत्रालय को भी राज्यों की जन जातीय जिलों से काम करने की जरूरत है.
इकतीसवीं सदी में, राष्ट्रीय राजधानी केंद्रीकृत होने से एक और बाधा सामने है, जैसे संसद का सत्र साल के कुछ ही दिनों तक सीमित है.
राज्यसभा के सांसद प्रताप सिंह बाजवा के, अनुसार 2014 और 2018 के बीच भारतीय संसद ने, जितने दिनों तक का कामकाज किया है वह घटकर केवल 64 दिन रह गया है.
अमेरिका और ब्रिटेन में संसद साल में120 दिनों से, अधिक समय तक बैठती है. जो की भारतीय संसद की औसत संख्या के लगभग 2 गुना अधिक है.
इसके अलावा, भारतीय संसद इन तीन क्रमबद्ध सत्रों में मिलती है ।
-- बजट सत्र: जनवरी / फरवरी से मई
-- मानसून सत्र: जुलाई से अगस्त / सितम्बर
-- शीतकालीन सत्र: नवंबर से दिसंबर
लोक तान्त्रिक व्यवसाय के लिए, सत्रों का यह समय -निर्धारण फिर से एक प्राचीन तरीका है.
संसद के सदस्य अस्थायी रूप से, अपने पुरे रसद के साथ, सत्र की अवधि के लिए राष्ट्रीय राजधानी में, स्थान्तरित हो जाते है, उनके साथ उनका स्टाफ भी वहां आता है, तो इस समय के दौरान, उनके घटक अपने प्रतिनिधियों के बिना होते है, स्पष्टतः उनका प्रतिनिधि एक साथ दो स्थानों पर नहीं हो सकता.
यही वह समस्या है जिसे 21 वी सदी हल करने जा रही है.
इसके विपरीत संसदीय व्यवसाय कार्य क्षमता की कल्पना करे, तो अगर सदस्य वर्ष के 220 दिन सत्र में भाग ले, इसके अतिरिक्त वह घटक (Constituents) जिनके प्रतिनिधि स्थानीय रूप से साल भर उपलब्ध रहते है.
समाधान : विभाजित लोकतंत्र तंत्र
आइये, 21 वी सदी में भारतीय राजधानी की दूरदर्शिता पर विचार करें.
प्रतिनिधि अपने घटक कार्यालयों से (इसे संसद शाखा कहेंगे) से काम करेंगे, पुरे साल प्रत्येक कार्य दिवस पर संसद लेन -देन व्यवसाय कर सकती है, (जिसे कहेंगे सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक) और फिर दूसरे भाग में स्थानीय कार्यों में सहभागिता दे सकते है.
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भविष्य ना केवल डिजिटल वीडियो कॉन्फरेंस, बल्कि इंटरनेट-ऑफ़-थिंग्स (Internet of things) में उच्च दक्षता का भी होगा
ऑनलाइन संसद और चयन समिति, यात्रा और संसद भवनों में रहने के खर्च की शानदार बचत के साथ, साल भर कार्य कर सकते है. कुछ नहीं बदलेगा सिवाय इसके, की सही मायने में वे, लोकतान्त्रिक तरीके से अपने निर्वाचन क्षेत्रों से भाग लेंगे.
वे ऑनलाइन वोट कर सकते है, विरोध दर्ज कर सकते है, अन्य सदस्य की बात पर हस्तक्षेप करके उसे सुझाव दे सकते है और ऑनलाइन भाषण दे सकते है.
भारत के पास लोकसभा के 543 शाखाएं और राज्यसभा के 245 शाखाएं हो सकती है. भविष्य में सांसद अपने भाषणों का समर्थन करने के लिए तीव्रता से अपने दस्तावेजों, वीडियोज को स्क्रीन शेयर पर साझा कर सकते है, बजाय इसके की अपने तर्कों का विस्तीर्ण (Voluminous) विवरण पढ़े.
उग्र बहस के दौरान माइक्रोफोन का जीवन लम्बा होगा, यह इसका एक उज्जवल पक्ष है. यदि इस स्थानीय संसद शाखा के मॉडल, की प्रतिकृति राज्य विधानमंडल में भी बना दी जाये, तो राज्य महत्वपूर्ण समय और धन संसाधनों को भी सरंक्षित कर सकेंगे.
वर्तमान समय में, मौसम के आधार पर जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की राजधानी भिन्न शहरों में चली जाती है. जैसे श्रीनगर ग्रीष्मकालीन राजधानी और जम्मू शीतकालीन राजधानी के रूप में कार्य करते है.
जबकि महाराष्ट्र की ग्रीष्कालीन राजधानी मुंबई और शीतकालीन राजधानी नागपुर है, इस तरह इन राज्यों का पूरा तंत्र हर 6 महीने में एक शहर से दूसरे शहर स्थानांतरित हो जाता है. अब स्थानीय शाखा के साथ उन्हें बिलकुल भी स्थानांतरित नहीं होना पड़ेगा.
यह इतना सरल होगा की भारत के राष्ट्रपति, प्रत्येक कार्य दिवस पर संयुक्त बैठक को सम्बोधित कर सकते है कोई अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था, हजारों सदस्यों, उनके कर्मचारियों का यात्रा प्रबंधन और रसद का भार नहीं होगा बल्कि यह न्यूनतम हो जायेगा.
इस विभाजित लोकतंत्र मॉडल के कारण वह सभी प्रयासो के भार से मुक्त होगा. जो भारत को मजबूत बनाएगा.
अधिकतम गतिविधि स्थानों जैसे खनन, कृषि, मत्स्य पालन, रक्षा उत्पादन और नागरिक उड्डयन आदि, मंत्रालयों का एक भौतिक विभाजित विभाग भी हो सकता है.
मेरा मानना है की 75 % मंत्रालयों को राष्ट्रीय राजधानी में होने की आवश्यकता नहीं है. उसी प्रकार राज्यसभा और लोकसभा की शाखा की तरह देश भर में संबधित मंत्रालयों की शाखा हो सकती है और संवैधानिक आवश्यकता के रूप में मंत्रालयों की बहुत ही हल्की, ऊपरी भौतिक उपस्थिति हो सकती है.
इसके लाभ बहुत अधिक है और हर छोटे नवीनीकरण से, जो डिजिटल कनेक्टिविटी तकनीक के साथ आएगी, इसकी उछाल और सीमा बढ़ेगी.
कुछ सरकारें समय से आगे चल रही है और उन्होंने कोविड (COVID) से मिली सीख को गंभीरता से लिया है.
यूके (U. K) में, समुदाय और आवास मंत्रालय ने करीब 550 सिविल सेवकों को व्हाइटहॉल (केंद्र सरकार कार्यालय) (Whitehall) –, लंदन से, वोल्वरहैम्पटन (Wolverhampton) ले जाया गया है.
सरकार की योजना है की, वह 2030 तक लगभग 22,000 सिविल सेवकों को लंदन से बाहर ले जाएगी.
जोखिम :
नए सेंट्रल विस्टा का पुनर्विकास, विविध तरीकों से खतरनाक मिसाल भी बन सकता है.
जैसे, पहला, सभी राज्य एक नए राज्य विधानमंडल भवन की योजना बनाकर उसका मूल्यांकन शुरू कर सकते है, तो कल्पना कीजिये 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों को, अपने नए भवन और एक राजधानी मिल रही है और इस तरह, कर दाताओं के कर की कीमत पर भारत जितना कंक्रीट का जंगल बनाएगा वह उतना ही अनैतिक होगा.
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75 % मंत्रालयों को राष्ट्रीय राजधानी में होने की आवश्यकता नहीं है.
दूसरा, सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना में, बहुत अधिक संभावना है की, यह अन्य राज्य सरकारों के लिए संक्रामक बन जाए.
तीसरा, इस परियोजना में सुरक्षा जोखिम का खतरा भी है, क्योंकि इसमें सब कुछ दांव पर लगा होगा, 2008 मुंबई हमलों जैसा, विस्टा (Vista) पर एक हमला पुरे देश की किस्मत बदल देगा, जो राष्ट्रीय स्थिरता को खतरे में डालेगा.
इस खतरे को कम करने के लिए निरन्तर सुरक्षा सेवाएं थका देने वाली होंगी. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की विडंबना यही है की राजधानी नई दिल्ली हमेशा, एक गढ़ की तरह रहेगा ऐसा लगता है की 'सत्र के दिन ' सुरक्षा सेवाओं के लिए एक 'कुस्वपन' की तरह होंगे.
क्या हो अगर दुनिया पहले से अधिक कोविड 19 वाले हालातों से गुजरे, सामाजिक दूरी (Social distancing) को व्यवहार में लाते हुए, आम जनता और VIP s की सुरक्षा के बीच यह विशालकाय भवन, शहर के बीचों-बीच उदासीन और ख़ाली खड़े रहेंगे.
आज ऐसे अनेको दृष्टांत (Instances) है, जो यह सिद्ध करते है की ऑनलाइन लोकतंत्र भी, उतने ही प्रभावी ढंग से कार्य करता है जैसे एक सजी हुई संसद. 2020 में विश्व शिखर सम्मेलन जैसे G २० और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, दिखा दिया की महत्वपूर्ण और अहम, नेताओं के बीच हुई ऑनलाइन बैठकें सफल रही.
सरकारी परिसरों के पुनर्विकास पर लगभग 20,000 करोड़ खर्च करने के बजाय, उसी धन से संसदीय प्रणाली का निर्माण किया जा सकता है जो सीधे मुद्दे के स्थान से जुड़कर वाद -विवाद और लेन-देन के मानकों को बढ़ाएगा और प्रतिनिधि को लम्बे समय तक उपलब्ध कराएगा.
यह 21 वीं सदी है और सभी मानव लेन-देन (Transactions) कार्य डिजिटल रूप से सक्षम है, तो संसद और उसके पदाधिकारी 100 % डिजिटल सक्षम क्यों नहीं हो सकते ?
वितरित लोकतंत्र एक प्रमाणित तंत्र, एक वास्तविकता है, और यदि अपनाया जाता है, तो यह हमारे गौरवपूर्ण राजपथ (दिल्ली) को, अधिक सुरक्षित, हरा-भरा करेगा और ऊर्जस्वी भारतीय लोकतंत्र का पुनर्विकास करेगा.
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