हमारी संसद की गुणवत्ता
हमारी संसद की गुणवत्ता
Measuring Quality of Our Sansad का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
संसद, सांसदों द्वारा अनुपालन किए जाने वाली प्रक्रियाओं पर चलती है। सभी निर्णय देश की संपूर्ण जनसंख्या के लिए परिणामी होते हैं। इनमें से कुछ पड़ोसी देशों और प्रवासी भारतीयों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
अतः, संसदीय प्रक्रियाओं और उसमें भाग लेने वाले सांसदों को लोकतंत्र की सच्ची भावना के साथ प्रदर्शन करना चाहिए।
संविधान के उच्च लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन घटकों को पूर्ण रूप से उपयुक्त होना चाहिए।
संसद की गुणवत्ता को मापने के कई तरीके हैं, जिसमें इसकी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता, पारदर्शिता, जवाबदेही का स्तर, सार्वजनिक जुड़ाव,भागीदारी का स्तर और संस्था में विश्वास और आत्मविश्वास का संपूर्ण स्तर शामिल है।
समय-समय पर, संसद के प्रदर्शन का पूरी तरह से मूल्यांकन किए जाने की आवश्यकता है ताकि, निर्णय निर्धारण को पटरी पर रखा जा सके।
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संसद की गुणवत्ता को मापने के कई तरीके हैं
संसद की गुणवत्ता को मापने के मापदंडों में से एक निर्णय लेने में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना है। यह किया जा सकता है पेश किए गए बिलों की संख्या , उनको पारित होने में लगने वाले समय और कानून की सफलता दर को देखकर ।
एक संसद जो कानूनी प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से संचालित करने में सक्षम है, उसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जा सकता है। भारतीय संसद ने 1950 जिस वक़्त भारत का संविधान लागू हुआ था तब से अबतक संविधान में 105 संशोधन किए हैं।
2018 के लिए भारतीय संसद का बजट सत्र 29 जनवरी को शुरू हुआ और 6 अप्रैल को समाप्त हुआ।
मानसून सत्र 18 जुलाई को शुरू हुआ और 10 अगस्त को समाप्त हुआ, जबकि, शीतकालीन सत्र 11 दिसंबर को शुरू हुआ और 8 जनवरी, 2019 को समाप्त हुआ।
वर्ष 2018 में, भारतीय संसद ने तीनों सत्रों को मिलाकर कुल 69 दिन (~ 18%) काम किया। इसी तरह, वर्ष 2017 में, भारतीय संसद ने कुल मिलाकर 76 दिन (~ 20%) काम किया।
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1952-1972 तक इसने हर साल औसतन 120 (~33%) दिन काम किया। ब्रिटिश संसद प्रत्येक वर्ष औसतन 150 (~41%) दिनों के लिए बैठक करती है और अमेरिकी कांग्रेस प्रत्येक वर्ष 100 (~27%) दिनों से ऊपर बैठती है। जर्मन हर साल औसतन 105 (~29%) दिन।
संसद की गुणवत्ता को मापने का एक अन्य तरीका इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही के स्तर को देखना है। यह जानकारी की उपलब्धता और पहुंच, निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी के स्तर और निर्वाचित अधिकारियों की जवाबदेही और चूक के स्तर की जांच करके किया जा सकता है।
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संसद की गुणवत्ता को मापने का एक अन्य तरीका इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही के स्तर को देखना है
अगस्त 2021 तक, भारत सरकार ने वर्ष 2000 के बाद से कुल 207 अध्यादेश पारित किए हैं और 1950 के बाद से कुल मिलाकर 705 अध्यादेशों को अस्थायी व्यवस्थाओं को रोकने के लिए माना जाता है।
इसे विशुद्ध रूप से जनता के प्रति जवाबदेह नहीं माना जा सकता है, किंतु, यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समर्थन करने का एक उपकरण है। एक संसद जो खुली, पारदर्शी और जवाबदेह है, उसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जा सकता है।
भारतीय संविधान भारत के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार उस समय देता है जब संसद का सत्र ना चल रहा हो।
अध्यादेशों का उपयोग भारत में बहस का विषय रहा है, इसके आलोचकों का तर्क है कि, यह एक अलोकतांत्रिक अभ्यास है जो, संसद की भूमिका को कमजोर करता है।
हालांकि, इसके समर्थकों का तर्क है कि, यह सरकार के लिए एक आवश्यक उपकरण हैं, अत्यंत महत्वपूर्ण स्थितियों का जवाब देने और उन मुद्दों को हल करने के लिए जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
किसी संसद की गुणवत्ता को मापने का तीसरा तरीका है उसके सार्वजनिक जुड़ाव और भागीदारी के स्तर को जाँचना ।
इसे वोट करने के लिए पंजीकृत नागरिकों की संख्या, चुनावों के लिए मतदान प्रतिशत, सार्वजनिक परामर्श लेने की क्रिया और नागरिक जुड़ाव के अन्य रूपों में भागीदारी के स्तर को देखकर भी किया जा सकता है।
एक संसद जो अपने नागरिकों को प्रभावी ढंग से अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने और शामिल करने में सक्षम है, उसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जा सकता है।
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एक संसद जो अपने नागरिकों को प्रभावी ढंग से अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने और शामिल करने में सक्षम है, उसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जा सकता है
2019 के भारतीय आम चुनावों में मतदान प्रतिशत कुल मिलाकर 67.11% था । यह चुनाव 11 अप्रैल, 2019 से शुरू हुए और सात चरणों में हुए थे। इसी तरह से, 2014 के आम चुनावों में मतदान प्रतिशत 66.4% था।
2019 और 2014 के चुनावों में क्रमशः 90 करोड़ और 81.4 करोड़ योग्य मतदाताओं के मतदान करने की उम्मीद थी, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक अभ्यास बन गया।
भारत के चुनाव आयोग ने इन चुनावों में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत दर्ज किया जिसमें, कई राज्यों ने इतिहास में अपना उच्चतम मतदान प्रतिशत दर्ज किया। उच्च मतदान प्रतिशत जनता की भागीदारी और कार्यात्मक लोकतंत्र का एक मापदण्ड है।
अंत में, संसद में विश्वास और भरोसे के समग्र स्तर का उपयोग इसकी गुणवत्ता को मापने के लिए भी किया जा सकता है। यह जनमत सर्वेक्षणों और अनुसंधान के अन्य रूपों के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है और संस्था के बारे में जनता की धारणा में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
जनता द्वारा विश्वसनीय और सम्मानित संसद को संभवतः उच्च गुणवत्ता वाला माना जाएगा।
2021 तक, 205 भारतीय सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है। इसमें लोकसभा (निचला सदन) के 146 सदस्य (~26%) और राज्यसभा (उच्च सदन) के 59 सदस्य (~24%) शामिल हैं।
इनमें से 131 सांसदों ने हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि, आपराधिक मामलों की घोषणा आवश्यक रूप से दोष या सजा का संकेत नहीं देती है, और कुछ मामले अभी भी जांच या परीक्षण के अधीन हो सकते हैं।
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2021 तक, 205 भारतीय सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है
भारत में राजनीति के अपराधीकरण का मुद्दा चिंता का विषय बना हुआ है और इसे कानूनी और चुनावी सुधारों के माध्यम से ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है।
कुल मिलाकर लोगों को संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था पर भरोसा है किंतु, अपने सांसदों के प्रति वे संशयी है। साथ ही, शायद ही कभी लोग अधिनियम की विषय-वस्तु को पढ़ते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं तो, मुमकिन है कि, संसद के बारे में उनकी अलग राय हो सकती है।
इन कारकों की जांच करके, संसद की ताक़त और कमजोरियों की बेहतर समझ हासिल करना और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करना संभव है।
हमारी संसद की गुणवत्ता पर कड़ी नजर रखना महत्वपूर्ण है, क्योंकि, 140 करोड़ भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता, हमारी संसद पर ही निर्भर करती है।
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