वैक्सीन झिझक के कारण?
वैक्सीन झिझक के कारण?
Many Reasons of Vaccine Hesitancy का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
महामारी के इस समय में दुनिया विखंडित है और इसे एंटी-वैक्स (टीकाकरण का विरोध) और अन्य में विभाजित किया जा सकता है। आम तौर पर, एंटी-वैक्सएक्सर्स (टीकों के विरोधी) इस प्रचलित पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं कि टीके संक्रामक रोगों से लड़ने का एकमात्र सुरक्षित और प्रभावी साधन हैं।
यह मानने के कई कारण हैं कि टीके उन कारणों से प्रेरित होते हैं जो पारदर्शी नहीं होते हैं। जैसे कम्पनियों का लाभ, मानव प्रयोग, भू-राजनीतिक हित, धर्म-विरोधी आदि, न कि जनसंख्या के बारे में वास्तविक चिंताओं से।
मीडिया और एंटी-वैक्स के बारे में सामान्य समझ को एक परिभाषा में संयोजित किया गया है, जबकि मुख्य समस्या, एंटी-वैक्सर्स या वैक्सीन झिझक , इसके कई कारण हैं।
एंटी-वैक्स को मोटे तौर पर उन लोगों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जो हैं--
1- रुको और देखो (प्रतीक्षा करके पता लगाने वाले)
ये वे लोग हैं जो विज्ञान और टीकों की उपयोगिता में विश्वास करते हैं। वे चेचक, पोलियो, खसरा के टीके के परिणामों से सहमत हैं, लेकिन वे कोविड वैक्सीन के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं।
क्योंकि कोविड का टीका कम समय में विकसित किया गया है और आपातकालीन स्वीकृति के साथ प्रयोग में लाया गया है,इसलिए ये लोग आश्वस्त नहीं हैं।
इतिहास ने दिखाया है कि टीके के शोध, विकास, परीक्षण और स्वीकृत होने का सामान्य समय आमतौर पर 10 से 20 वर्ष होता है। कोविड वैक्सीन के मामले में इतने वर्षो की जगह उतने ही महीने लगे हैं।
सरकारें और फार्मा कंपनियां इसके तेजी से विकसित होने का कारण वैज्ञानिक समुदाय के बीच सूचना-संग्रह (Data) का साझाकरण और उनके सहयोग (सहभागिता) को बताती हैं।
किन्तु अनुसंधान में योगात्मक उत्पादकता के बारे में यह मुश्किल से ही जनसाधारण को आश्वस्त करने वाला है ।
उस स्थिति में, यदि सभी वैज्ञानिकों ने अपने संसाधनों को एकत्रित कर लिया होता, तो लगभग तीन दशक पहले एचआईवी (HIV) या मलेरिया के लिए एक टीका विकसित किया जा सकता था।
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कोविड वैक्सीन के लिए 'कोई दायित्व नही' (No- liability) खण्ड है, जिसने इस समूह में ज्यादा डर पैदा कर दिया है।
कोविड वैक्सीन के लिए 'कोई दायित्व नही' (No- liability) खण्ड है, जिसने इस समूह में ज्यादा डर पैदा कर दिया है।
इसलिए, इस पर नजर रखने वालों के लिए सबसे अच्छी स्थिति यही है कि वे वैक्सीन के परिणाम को देखने के लिए कुछ और साल इंतजार करें या 1918 के 'स्पेनिश फ्लू' की तरह इस महामारी को खुद खत्म होने दें।
समय के साथ पेश किए गए टीकों का असर भी कम हो गया है। इसलिए, सरकार बूस्टर शॉट्स के साथ कई खुराकों पर जोर दे रही है। इजराइल पहले से ही अपनी आबादी की सुरक्षा के लिए वैक्सीन की 'चौथी खुराक' की योजना को अमल में ला चुकी है।
अन्य विकसित देश "पूरी तरह से टीकाकरण" कहे जाने के लिए कम से कम दो खुराक पर जोर देते हैं। चिकित्सा समुदायों में भी चर्चा है कि पूरी आबादी को हर 3 से 6 महीने में एक शॉट की आवश्यकता हो सकती है।
खैर, यह निस्संदेह किसी भी समूह के लिए विश्वास-निर्माण की स्थिति नहीं है जो एक शॉट लेने के लिए तैयार हुए है।
2- संशयवादी
वैक्सीन के बारे में जो समूह सबसे अधिक प्रभावशाली और मुखर हैं, वे वह हैं जो वैक्सीन की अवधारणा को पूरी तरह से खारिज कर देते हैं। उन्हें सरकार और फार्मा कंपनियों के प्रयोजन (Motive) पर शक है।
उनके अनुसार, यह आने वाले दशकों में बड़ी कंपनियों के लिए दीर्घकालीन लाभ है जो टीकाकरण कार्यक्रम चला रही है। ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित कई षड्यंत्र सिद्धांत हैं जो इस समूह को आश्वस्त करते हैं।
उन्होंने टीकों के लॉन्च को बढ़ावा देने में डॉ.एंथोनी फौसी और बिल गेट्स की भूमिका पर सवाल उठाया है। फार्मा कंपनियों की भारी कमाई और अनुमानित आय इस समूह के तर्कों को और अधिक वजन देती है।
उदाहरण के लिए, 'मॉडर्ना' कंपनी को एक वर्ष में 20 गुना की छलांग के साथ 1900 करोड़ लाभ के रूप में प्राप्त होने का अनुमान है। इसी तरह, फार्मा कंपनियों को सरकार से महंगे अनुबंध प्राप्त करने या अत्यधिक मूल्य निर्धारण शर्तों को निर्धारित करने के बारे में कई कहानियां हैं।
ये इस समूह के टीके के विरुद्ध विश्वास को अधिक मजबूत करते हैं।
3- अविश्वाशी
ऐसा कोई नहीं हैं। सभी मानते हैं कि कोविड वास्तविक है, लेकिन कई लोगों को इसकी उत्पत्ति और स्रोत पर संदेह है। इसलिए, उनका मानना है कि कोविड मनगढ़ंत है, और यह या तो चीनी सरकार का काम है या फिर 'फ्लू' जैसी बीमारी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
जलवायु परिवर्तन संशयवादियों या विज्ञान विरोधी (अवैज्ञानिक दृष्टिकोण) समूहों के नेतृत्व में मुख्य रूप से अमेरिका में लोग, इस गलत सूचना के शिकार हुए । ये विशेषज्ञों और प्रभावशाली व्यक्तियों के समूह ज्यादातर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं; ऐसे में उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है।
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इस 'सूचना संग्राम' (Information warfare) के परिणाम ने कई लोगों को महामारी के समय उसके प्रति अविश्वाशी बना दिया
इस 'सूचना संग्राम' (Information warfare) के परिणाम ने कई लोगों को महामारी के समय उसके प्रति अविश्वाशी बना दिया । दुर्भाग्यवश , टीके के प्रति भी वही संशय की भावना बरकरार है, जो कि पिछली वैक्सीन आपदाओं और चिकित्सा विज्ञान की दुर्घटनाओं के इतिहास के साथ उलझा हुआ है।
अमेरिका में कई ऐसे हैं जो अब गणतंत्र समर्थक होने की राजनीतिक रेखाओं से अलग हो गए हैं। अध्ययनों से पता चला है कि रूढ़िवादी और गणतंत्र समर्थक व्यक्ति कोविड को नकारते और एन्टी वैक्स हैं क्योंकि उनके संक्रमित होने की संभावना कम है।
इसका वैज्ञानिक कारण उनकी जीवनशैली और उनके रहने की जगह है। अधिकतर, ये स्थान छितरे और फैले हुए हैं, जो सहज ही सामाजिक तौर पर दूरी प्रदान करते हैं। यह उनके इस विश्वास में वृद्धि करता है कि टीकों की आवश्यकता नहीं है और यह उनकी नागरिक स्वतंत्रता का हनन है।
कई उदाहरणों में, 'सूचना संग्राम' ने अमेरिका में सरकार के घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान को "हथियार धारण करने के अधिकार" के खिलाफ साजिश से जोड़ा । ऐसा कहा जाता है कि टीकाकरण अभियान लोगों से हथियार इकट्ठा करने की दिशा में एक कदम आगे है।
कोविड अविश्वासी कैसे , प्रत्येक देश में मौतों की संख्या को ज्ञात करने के लिए क्रियाओं की शृंखला बनाते है , यह एक दिलचस्प अध्ययन होगा।
4- ऐतिहासिक रूप से पिछड़े
1020 और 30 के दशक में, सीडीसी (रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र) के तहत 'टस्केगी विश्वविद्यालय' ने 'सिफलिस' रोग से पीड़ित अश्वेत पुरुषों का अध्ययन किया। अध्ययन में लगभग 100 पुरुषों की मौत के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग हेतु 'दवाओं के प्रशासन' की आवश्यकता थी।
तो क्यों अब एफ्रो-अमेरिकी समुदाय वैक्सीन की प्रभावशीलता पर सरकार के दावों और उनके स्वास्थ्य विभाग पर विश्वास करेगा ?
प्यूर्टो रिको - अमेरिका का एक वंचित क्षेत्र रहा है। यह अमेरिकी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा होने के दौरान भी गरीबी और स्वास्थ्य देखभाल की कमी से ग्रस्त है।
अचानक, अगर अमेरिकी सरकार वैक्सीन के प्रचार और प्रशासन के लिए आगे आती है, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि लोग क्यों इनके इरादों से ऊब चुके हुए नहीं होंगे।
पहले, टीकों में सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था। यह यहूदियों और मुसलमानों के लिए एक गतिरोध था। ठीक उसी तर्क के साथ, कोविड 19 के टीके भी इन संगठनों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ खड़े हैं।
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संक्षेप में कहें, दुर्भाग्य, दुर्घटनाओं और दुर्बलताओं के कई मामले सामने आए हैं
1950 के दशक में, पोलियो के टीके ने दुष्प्रभाव के रूप में लकवा के लगभग 200 मामलें अपने पीछे छोड़ दिए थे , और ऐसा ही 'एच1एन1' ( H1N1) वैक्सीन ने नार्कोलेप्सी से पीड़ित रोगियों के साथ किया था।
संक्षेप में कहें, दुर्भाग्य, दुर्घटनाओं और दुर्बलताओं के कई मामले सामने आए हैं। इसने कई लोगों को जीवन बदल देने वाली अक्षमताओं या मौतों से प्रभावित किया है। दुनिया भर में आबादी के एक बड़े हिस्से को साजिशों और एजेंसियों के गुप्त इरादों के बारे में समझाने के लिए बहुत हद तक काफी है।
जब से टीके आए हैं, तब से ही उनको लेकर संदेह भी व्याप्त है। दोनों का ही 200 साल का इतिहास है।
सभी देशों में जनसंख्या का एक बड़ा भाग हमेशा पीछे छूटा रहता है। असमानता सर्वव्यापी है, और यह 'टीका झिझक' में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुख्य रूप से अश्वेत और जातीय अल्पसंख्यक समुदाय सामाजिक गतिशीलता में पिछड़ रहे हैं।
सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण वे वैक्स-विरोधी हैं। यदि वे टीके के दुष्प्रभावों के कारण बीमार पड़ते हैं, तो उनका स्वास्थ्य बीमा बीमारी के इलाज के खर्चे से उन्हें बचा नहीं पाता, और वे अपनी नौकरी की सुरक्षा खो देते हैं।
उत्पीड़न, नस्लवाद, और सामाजिक विभाजन के इतिहास के साथ इसे शीर्ष पर रखें; तो इस समूह को टीके के लिए आश्वस्त करना समाज के किसी भी मुख्यधारा के वर्ग को समझाने की तरह एक दुष्कर (Uphill) कार्य है।
सरकारों और फार्मा कंपनियों पर भरोसा अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। जितना अधिक ये संस्थाएं टीकों के लिए जोर देती हैं, उतना ही अधिक समूह इनके इरादों पर संदेहग्रस्त रहते है।
इस सब के बीच, सरकारें वैक्सीन के बारे में केवल अच्छी खबरें ही दे रही हैं, जबकि गंभीर चिंताएं और प्रतिकूल घटनाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं। लोंगों में इसके प्रति विश्वास निर्माण के लिए एक संतुलित और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग आवश्यक है, सभी सरकारें इस मोर्चे पर विफल हो रही हैं।
5- अस्पष्ट
एक ही संक्रमण से पीड़ित विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा मिले-जुले संदेशों की भरमार है। जहां कुछ सरकारें अपने नागरिकों पर भारी प्रतिबंध लगाती हैं, वहीं अन्य सभी प्रतिबंधों को हटा देती हैं।
एक तरफ जहां सरकारें कोविड 19 ओमिक्रॉन वेरिएंट (रूप) को हल्के लक्षण वाला घोषित कर रही हैं, फिर भी वैक्सीन की तीसरी खुराक (बूस्टर शॉट) पर जोर दे रही हैं।
वही दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन कभी कभी ओमिक्रॉन वैरिएंट की उच्च संचरणशीलता (Transmissibility) दर और इसके हल्के प्रभाव के बारे में बात करता है; और फिर कभी , वही डब्लूएचओ, उसी वैरिएंट के खिलाफ चेतावनी जारी करता है।
प्रारंभ में, 2020 में जब पहली लहर के साथ महामारी अपने चरम पर थी, लोगों को वैक्सीन की विकासशील खबर से आशा दी गई थी। 2022 में, दुनिया अभी भी वैक्सीन पर अपनी उम्मीद को बाँधे हुए है। यह सब टीके की एक खुराक के साथ शुरू हुआ, और दुनिया सामान्य होने की स्थिति में लौट सकती थी ।
किन्तु इसके बाद, दूसरी खुराक को अधिक सुरक्षित और प्रभावकारी होने के कारण पेश किया गया। इसी तरह 2022 के अंत तक सभी सरकारें तीसरी और चौथी खुराक पर जोर देंगी। कई लोगों के लिए, जिन्होंने उत्साहपूर्वक पहली खुराक के चक्र में भाग लिया था , यह एक कभी न खत्म होने वाली अंतहीन गाथा सी लगती है।
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जिन्होंने उत्साहपूर्वक पहली खुराक के चक्र में भाग लिया था, यह एक कभी न खत्म होने वाली अंतहीन गाथा सी लगती है
अब भी, वैज्ञानिक समुदाय टीके की निरंतर प्रभावकारी होने का विश्वासपूर्वक दावा नहीं कर रहा है। हालांकि, सांख्यिकीय रूप से, दुनिया के पास इस बात के सबूत हैं कि लोग ओमिक्रॉन वैरिएंट के कारण बीमार हो रहे हैं।
लाख , प्रत्येक दिन की संख्या है, और बीमारों में टीकाकरण करवाये हुए और टीकाकरण न करवाये हुए दोनों प्रकार के लोग शामिल हैं।
संख्या संशयवादियों और चिकित्सा समुदाय के बीच एक बहस को सामने लाती है। कि ,क्या टीकाकरण के कारण कम लोग अस्पताल में भर्ती हुए या यह स्वयं वैरिएंट की हल्की प्रकृति के कारण हुआ ?
वैक्सीन के प्रति भ्रम जारी है, और सभी सरकारें, अपने गोलार्ध और महाद्वीप पर ध्यान दिये बिना , अपनी 100% आबादी को टीके लगवाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
दुनिया भर में, एंटी-वैक्सएक्सर्स (टीकों के विरोधी) की आबादी 25 - 30% है। इसलिए वे महत्वपूर्ण संख्या हैं और एक महामारी के पक्ष में झुंड प्रतिरक्षा के संतुलन को बढ़ा सकते हैं।
यदि सरकारें और स्वास्थ्य एजेंसियां वैक्सीन की झिझक को अपने पाले में मोड़ती हैं, तो उन्हें प्रत्येक समूह को अलग-अलग संबोधित करना होगा। आत्मविश्वास और भरोसे पर विजय प्राप्त करना एक विशाल कार्य होगा।
इतिहास, जातिवाद, चिकित्सा दुर्घटनाएं ,आपदाएं, संशय और उलझन का आपस में गठजोड़ है। इन सभी को एक साथ मिलाने से मामला और बिगड़ जाएगा और संबंधित समूहों को यह असहनशील स्थिति में पहुँचा देगा।
जैसे की कहा जाता हैं - कोई भी तब तक सुरक्षित नहीं , जब तक कि सभी सुरक्षित न हों; सुरक्षा के लिए लड़ाई जारी है, और सुरक्षित टीकों की इसमें एक अहम भूमिका होगी।
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