क्या टीका संशय तर्कसंगत है?
क्या टीका संशय तर्कसंगत है?
Is Vaccine Hesitancy Justified? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
कोविड टीके के प्रयोग में आने के बाद से ही इसके प्रति संशय बना हुआ है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सकारात्मक परिणामों ने अच्छे के लिए धारणा बदल दी है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि, यह सकारात्मक धारणा सभी टीकों के लिए है।
चिकित्सा विज्ञान समुदाय के लिए यह पूर्वधारणा एक गलती होगी। नए संक्रमण रोगों जैसे की, कोविड19, के प्रति संशय दृढ़ता से बना रहता है।
यह सिर्फ वैक्सीन के वजह से नहीं है कि, लोग जागरूक हैं बल्कि, यह दवा उद्योग के प्रति उनके संपूर्ण अविश्वास और टीकाकरण लागू करने वाली सरकारों के कारण है।
ब्रिटैन में, टीके के प्रति 3 में से 1 व्यक्ति को संदेह है और युवा वयस्कों और जातीय समूहों में यह अधिक है।
सामाजिक:
सभी को अगर जीवित रहना है तो, पूरे देश और व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया को स्वस्थ रहने की जरूरत है। लेकिन इतने समय से ऐसा कुछ भी होता दिखाई नही दिया है। सभी देशों में से, कुछ को छोड़कर, अच्छी स्वास्थ्य देखभाल सिर्फ कुछ ही लोगों का विशेषाधिकार रही है।
इस महामारी के साथ, स्वास्थ्य असमानताएं सबसे आगे निकलकर सामने आई हैं। अमेरिका यहाँ पर चर्चा के लिए एक उपयुक्त मामला है। जटिल बीमा और महंगी चिकित्सा व्यवस्था के कारण 'अश्वेत समुदाय' , स्वास्थ्य देखभाल से जूझ रहा था।
व्यवस्था के होने और ना होने के बीच की कड़ी के टूट जाने की स्थिति ही कहर बरपा रही है। दुनिया के दूसरे हिस्से में, सामान्य समय के दौरान स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं कम थीं।
अचानक से महामारी के दौरान सरकारें और स्वास्थ्य सेवाएं सुख भरी नींद से नहीं जाग सकतीं और टीकाकरण कार्यक्रम लागू करना शुरू नहीं कर सकतीं। स्वास्थ्य देखभाल नीति और लोगों के बीच विश्वास का संबंध मौजूद नहीं है।
इसलिए, टीकाकरण के लिए शीघ्र प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।
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ब्रिटैन में, कोविड 19 से मरने वाले स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों में से 63% 'बेम' समूह से थे
यहां पर एक नस्लवादी तत्व भी था। डब्लू. एच. ओ (W.H.O) ने इस खबर की पुष्टि की है। "टीकों के विकसित होने पर इनका अफ्रीकियों पर परीक्षण किया जाना हैं"।
यह नाइजीरिया में हुई एक बैठक में एक वरिष्ठ प्रतिभागी द्वारा किया गया दावा था, जो सबसे अधिक संभावित परीक्षण केंद्र में से था।
पिछले टीकों में, सुअर के जिलेटिन जैसे पशु उत्पाद मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ गए थे।
कोविड वैक्सीन के लिए, हालांकि सुअर के जिलेटिन का उपयोग नहीं किया गया था, किन्तु, इस तथ्य को सूचित करने में सरकारें विफल रहीं। गलत सूचना के कारण हुई गड़बड़ी से बहुत देर हो चुकी थी, यह स्पष्ट हो गया था।
इसी तरह, पारा को एक सामग्री (संघटक) के रूप में इस्तेमाल करने वाले टीके के इतिहास के आधार पर लोगों में कोविड टीके को लेकर आशंका थी। इन शंकाओं को दूर करने के लिए आज भी कोई आक्रामक अभियान नहीं चल रहा है।
कई स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता और डॉक्टर स्वयं भी वैक्सीन को लेकर तब तक संशयशील (Hesitant) रहते थे ,जब तक कि विभिन्न सरकारों द्वारा उसे अनिवार्य नहीं कर दिया जाता था।
उनमें टीके को लेकर झिझक थी, यह एक गहन जांच का विषय है, किन्तु निस्संदेह प्रतिरक्षण प्रणाली में विश्वास का एक साहसिक संकेतक नहीं है।
ब्रिटैन में, कोविड 19 से मरने वाले स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों में से 63% 'बेम' समूह से थे। (बेम काले, एशियाई, मुस्लिम और जातीय समुदायों के लिए एक छोटा शब्द है) अतः इसके तुरंत बाद, वैक्सीन संदेश को इस कमजोर समूह पर केंद्रित किया जाना चाहिए था।
किन्तु, इसके विपरीत, कोविड -19 टीका लेने वालों में से 90.6% श्वेत हैं, जबकि अन्य इसके प्रति संशयशील हैं।
संभार-तंत्र संबंधी (Logistical) कमी:
भारत में टीकों की अत्यधिक कमी है। जबकि कोविड मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, बड़ी आबादी का टीकाकरण किया जाना है और देश में आवश्यक आपूर्ति समाप्त हो गई है।
यदि यह पर्याप्त होता तो, भारत सभी वैश्विक ब्रांडों के लिए टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक था। निर्मित स्टॉक का एक हिस्सा निर्यात किया जा रहा था, जिसे अब रोक दिया गया है। इसलिये, अन्य देश भी अब इसकी कमी से पीड़ित हैं।
इससे पहले, यूरोपीय संघ और ब्रिटैन कोविड टीकों में हिस्से को लेकर विवाद में लगे हुए थे। एक महामारी के प्रकोप के दौरान, विकसित दुनिया के नेताओं के बीच महत्वहीन विषयों को लेकर विवाद, केवल टीकाकरण कार्यक्रम की विश्वसनीयता को कम कर रहा था।
अमेरिका में, जॉनसन एंड जॉनसन के एक निर्माता ने अपनी खुराखों को 'एस्ट्रा ज़ेनेका' (कोविड-19 टीके) के साथ मिला दिया, इस कारण आपूर्ति रोकनी पड़ी।
टीकों का भ्रष्ट इतिहास:
कर्मठ कार्यकर्ता अलग-अलग समय पर टीके, को लेकर चिंता जताते रहे हैं। इतने सालों से उनकी आवाज उठाने से फर्क तो पड़ा है।
इस सबके बावजूद कंपनियों ने खुले तौर पर अपनी कमी को तो स्वीकार नहीं किया है, किन्तु अपने टीके बनाने के तरीकों और उनमें इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री में जबरदस्त रूप से बदलाव किए है।
ब्रिटेन में, डॉ. 'गॉर्डन स्टीवर्ट' ने तंत्रिका संबंधी विकारों (neurological disorders) और डी.टी.पी. (D.T. P) टीके के बीच संबंध दर्शाने के लिए कई रिपोर्टें प्रकाशित कीं ।
टीकों में पारा (Mercury) के उपयोग को लेकर चिंता जताई गई थी, जो स्वलीनता (ऑटिज्म) का कथित स्रोत था।
हालांकि 2001 में, की गई सुरक्षा समीक्षाओं ने इस 'कारण संबंध' (Causal relationship) को खारिज कर दिया किन्तु इसके बाद पारा (थियोमर्सल) के उपयोग को बंद कर दिया गया था।
जनता का यह संदेह करना शायद गलत न हो कि, इस तरह के एक गैर-शोधित घटक का उपयोग कोविड वैक्सीन में भी किया जा रहा है। उन्हें यह भी संदेह है कि, उनके
आजीवन रोगों के कारण के रूप में उसकी पहचान करने में कही देर न हो जाए।
इससे पहले वर्ष में, भारत में, स्वदेशी वैक्सीन को चरण 3 के परीक्षण की स्वीकृति के बिना जारी किया गया था। अपरीक्षित टीकों की खबर ने लोगों में अत्यधिक नाराज़गी उत्पन्न की और भारतीय प्रधान मंत्री को उस विशेष टीके की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उस वक़्त, उसकी पहली खुराक कैमरे के सामने लेनी पड़ी।
जबकि ब्रिटेन और यूरोप 'एस्ट्रा जेनेका' टीकों को मंजूरी देने में आगे थे, अमेरिका का खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) अभी भी समीक्षा कर रहा था। इसने बताया कि, टीके के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया गया डाटा गलत था।
कंपनी द्वारा टीके के जो प्रभाव घोषित किये गए वे शुरू में एफडीए द्वारा विवादित थे, जिन्हें बाद में ठीक किया गया। इन घटनाओं ने टीके को तैयार किये जाने की प्रक्रिया में अविश्वास पैदा किया और निस्संदेह दवा कंपनियों के 'व्यावसायिक इरादों ' पर भी संदेह उत्पन्न किया ।
मार्च 2021 में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने 65 से अधिक वर्ष के लोगों के लिए 'एस्ट्रा ज़ेनेका' वैक्सीन की प्रभावकारिता के बारे में संदेह जताया। उन्होंने इसे "लगभग अप्रभावी" बुलाया।
निर्माता की ओर से इस आलोचना का खंडन हुआ और राष्ट्रपति अपने बयान से पीछे हट गए किन्तु तब तक नुकसान हो चुका था।
शुरुआत में डेनमार्क, नॉर्वे, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों ने 'एस्ट्रा ज़ेनेका' टीके का उपयोग करके उसपर रोक लगा दी, क्योंकि वहाँ खून के थक्के जमने जैसी और मौत की घटनाएं हुईं।
हालांकि घटनाएँ, आँकड़ो की दृष्टि से न्यूनतम संख्या में थी, किन्तु उनको चुनौती दी गई। आगे के परीक्षण अभी चल रहे हैं।
एस्ट्रा ज़ेनेका टीके के लिए योग्यता आयु को 'रक्त के थक्के' जमने की घटनाओं के
सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर बदल दिया गया था ना कि, चिकित्सा अनुसंधान के आधार पर।
केवल 50 से ऊपर की आयु के लोगों के लिए टीकाकरण की मंजूरी दी गई थी।
'जॉनसन एंड जॉनसन' और एस्ट्रा ज़ेनेका के टीके के उपयोग के बाद रक्त के थक्के जमने की घटनाएँ अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और यूरोप में इन टीकों पर रोक लगने का कारण बनी।
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मार्च 2021 में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने 65 से अधिक वर्ष के लोगों के लिए 'एस्ट्रा ज़ेनेका' वैक्सीन की प्रभावकारिता के बारे में संदेह जताया
कोविड टीके और चिकित्सा विज्ञान
टीके के प्रति अफवाहें व्याप्त थीं कि, टीका प्राप्तकर्ताओं के आर. एन. ए (R. N .A) और डी.एन.ए (D. N. A)को बदल देगा।
किन्तु वैज्ञानिक समुदाय इन अफवाहों को चुनौती देता है।
इस संदेह की उत्पत्ति इस तथ्य से होती है कि, कुछ ब्रांडों ने उच्च प्रभावकारिता के लिए 'जीन-एडिटिंग' की एक नई विधि का उपयोग किया है - नई प्रक्रिया में एमआरएनए (m RNA) वैक्सीन के निर्माण के लिए जीन एडिटिंग और 'जीनोम अनुक्रमण' (genome sequencing ) का उपयोग किया गया है।
'मर्क' सीईओ(CEO), के साथ एक साक्षात्कार के दौरान 'विकास चक्र' को छोटा करने के लिए दवा उद्योग में व्यापक संदेह सामने आया।
उनके अनुसार, कोविड वैक्सीन की तुलना में इबोला और कण्ठमाला के टीके (Mumps vaccine) के लिए अनुसंधान और विकास चक्र का समय चार से पांच गुना अधिक लंबा था।
इस कथन की व्याख्या के रूप में, यह संदेह करना उचित है कि, एक छोटे चक्र का मतलब 'परीक्षण चक्र' में जल्दबाज़ी करना होगा, जिसके परिणाम सुरक्षा और प्रभावकारिता के मुद्दे होंगे ।
यहाँ कुछ टीके उनके विकास चक्र के साथ सूचीबद्ध हैं:
इबोला - 4 साल
डिप्थीरिया - (लगभग 10 वर्ष) - 1921 में विकसित हुआ, किन्तु व्यापक रूप से1930 के दशक में उपयोग किया गया।
टेटनस टॉक्साइड - (लगभग 14 वर्ष) - 1924 में विकसित किया गया, इसका एक अवशोषित संस्करण 1938 में विकसित किया गया, जिसका व्यापक रूप से 1940 के दशक में विश्व युद्ध के दौरान उपयोग किया गया था। इसकी प्रभावकारिता 100% है।
पर्टुसिस (काली खांसी) - (लगभग 10 वर्ष) - 1930 के दशक में विकसित हुआ, किन्तु व्यापक रूप से 1940 के दशक में उपयोग किया गया। टीके को विकसित करने में 6 साल का समय लगा।
'प्री-वैक्सीन युग' से 1976 तक, लगभग 30 वर्षों में, मामले 2,00,000 से घटकर 1,000 प्रति वर्ष हो गए हैं।
1980 के दशक के बाद से, मामले 2012 में 50,000 की महामारी के स्तर तक बढ़ गए और 2019 में घटकर 15,662 हो गए हैं। सी.डी.सी(C.D.C) की रिपोर्ट के अनुसार अनेंको मौतें हुई थीं। संपूर्ण कोशिका टीका 70 - 85% तक प्रभावी है।
रेबीज़ (लगभग 23 वर्ष) टीका - पहली बार 1885 में प्रयोग में लाया गया और बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए 1908 में इसका उन्नत संस्करण आया।
हेपेटाइटिस बी (लगभग 17 वर्ष) टीका - 1969 में विकसित किया गया, 1981 में स्वीकृत, और 1986 में इसका पुनः संयोजक (recombinant) संस्करण आया।
एच. आई.वी (H. I .V) (1984 से कोई टीका नहीं) - अभी भी विकास और परीक्षण के अंतर्गत है।
कोविड (12 महीने से कम) – लाखों खुराकें आपातकालीन स्वीकृति के तहत लगातार छोटे और बड़े दुष्प्रभावों के साथ उपयोग की गई।
प्रभावकारिता रिकॉर्ड सभी टीकों के लिए एकदम सही नहीं रहा है,यद्यपि रेबीज के लिए यह लगभग 100% रहा है,किन्तु दूसरे टीकों में, यह कम रहा है।
अधिकांश लोग जोखिम उठाने से बचते हैं,जब उन्हें एक अनिश्चित भविष्य दिखता है ।
परीक्षणों को लेकर रिपोर्ट में, महिलाओं और जातीय समूहों को अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया था। इसलिए, टीके के निर्माताओं द्वारा घोषित आधिकारिक प्रभावकारिता में तथ्यों का अभाव है।
अश्वेतों (लगभग 10% प्रतिभागियों) और हिस्पैनिक्स (लगभग 20% प्रतिभागियों) लोगों तथा वृद्ध आयु समूहों (लगभग 25%) और मोटापे, मधुमेह, हृदय और श्वसन संबंधी रोग जैसी स्थितियों वाले लोगों को परीक्षणों में शामिल किया गया था।
इसी तरह, अमेरिका के एक अध्ययन में, एक बार में, कोविड-19 टीके के प्रतिभागी 15% हिस्पैनिक/लातीनी, 13% अश्वेत/अफ्रीकी अमेरिकी, 6% एशियाई और 1% मूल अमेरिकी थे।
परीक्षण समूहों के प्रकार की विभिन्नताएँ सीमित थीं। जनसंख्या में विभिन्न जातीय समूह, नस्लें, सहरुग्णता (comorbidity), मामूली स्वास्थ्य स्थितियां, एलर्जी, आयु समूह, गर्भवती महिलाएं, प्रसव उम्र, बच्चे, युवा वयस्क और अन्य शामिल हैं।
निर्माताओं या सरकारों द्वारा परीक्षण की विभिन्नता को भी साझा नहीं किया गया, जिससे कि, टीका सुरक्षा को लेकर लोग आश्वस्त हो पाते ।
गर्भवती महिलाओं पर टीकों का परीक्षण नहीं किया गया। टीकाकरण की जिम्मेदारी उन डॉक्टरों पर डाल दी गई , जो खुद ही अनजान थे, सभी संभावनाओं में, वे अनभिज्ञ की तरह चुनाव करेंगे।
यह जिम्मेदारी निर्माताओं से हटकर चिकित्सा पेशेवरों की ऊपर डाल दी गई, जो उनकी नौकरी को जोखिम में डाल सकती है ।
ब्रिटैन में पीला कार्ड योजना, जो ए.डी.आर. (A. D. R) (प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं) मामलों को दर्शाती है,उसमें लोगों के देखने के लिए मामलें हर दिन बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट किए गए लक्षण मामूली से लेकर मृत्यु तक के हैं।
पीले कार्ड पर ये नंबर किसी भी तरह से लोगों के आत्मविश्वास को नहीं बढ़ा रहे हैं। जिन लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है, वे या तो इन पीले कार्ड के प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से अनजान हैं या उन्होंने प्रतिकूल प्रभाव की कम संभावना का मूल्यांकन करने का फैसला किया है।
यहां पर प्रसव उम्र की महिलाओं के संबंध में परिवर्तित दिशानिर्देश थे, जिसने भ्रम को और बढ़ा दिया।
तार्किक तर्क की विफलता:
वैक्सीन निर्माताओं की ओर से बीमारी से सुरक्षा के लिए कोई रक्षात्मक आश्वासन नहीं दिया गया है। मास्क और सामाजिक दूरी बनाए रखी जानी चाहिए क्योंकि, संक्रमण का खतरा बना हुआ है, अतः यह तार्किक तर्क को हरा देता है ।
ऐसी वैक्सीन क्यों लें, जिसके दीर्घकालिक दुष्प्रभाव मुश्किल से ज्ञात होते हैं, जबकि संक्रमण का खतरा बना रहता है?
लोगों को कोविड से बचाव पाने के विकल्प मिल गए हैं। वियतनाम, घाना जैसे देश और अन्य अफ्रीकी देश बिना टीके के कोविड से निपट रहे हैं। उनकी मृत्यु दर भी यूरोपीय देशों की तुलना में बहुत कम है।
रोगियों को सुझाए गए प्रतिकूल प्रतिक्रिया समय का दावा कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक किया गया है। इसके साथ ही, टीके का इतिहास इंगित करता है कि, टीकों और अन्य दवाओं ने कुछ दिनों से आगे की अवधि के बाद उपचार का निषेध होना दिखाया है।
यहां पर एक 'सूचना अंतराल' प्रतीत होता है, क्योंकि विकास स्वयं एक वर्ष से छोटा था। इसलिए कुछ महीनों या वर्षों के बाद उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभाव अज्ञात रहते हैं।
संचार - विफलता:
सोशल मीडिया पर अनाधिकारिक और अनौपचारिक सूचनाओं का सागर तैर रहा था। कुछ तिमाहियों तक, बीमारी की वास्तविकता के बारे में ही अविश्वास बना रहा।
कुछ का मानना है कि, कोविड 5G मोबाइल दूरसंचार टावरों से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगों के कारण है, जबकि अन्य का दावा है कि, कोविड किसी भी अन्य 'फ्लू' (FLU) की तरह है जो, अपने आप दूर हो जाएगा।
इतनी मौतों के बावजूद ब्राजील के राष्ट्रपति अभी भी कोरोनावायरस की गंभीरता से इनकार करते हैं।
यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर कई अन्य देशों में मामलों की संख्या कम है और टीकाकरण कार्यक्रम मौजूद नहीं है। अतः, 'षड्यंत्र सिद्धांतकार' (Conspiracy theorist) के लिए, 'टीकाकरण' विकसित देशों के लिए एक व्यावसायिक प्रस्ताव(सुझाव) है।
टीके की प्रामाणिकता
सरकार द्वारा टीकाकरण कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए 'आँकड़ा' सबसे प्रभावी हथियार है। ऐसा कहा जाता है कि, टीके का कोई विकल्प नहीं है और इसके लाभ दुष्प्रभावों के जोखिम से अधिक हैं।
इसके अलावा, प्रतिकूल प्रभाव, नियंत्रणीय, अस्थायी हैं और आमतौर पर कुछ दिनों में कम हो जाएंगे। आँकड़े उन लोगों के पक्ष में हैं, जिनका पहले ही टीकाकरण हो चुका है।
साथ ही, यह भी दावा किया जाता है कि यदि भविष्य में कोई संक्रमण होता है तो, टीके से प्राप्त प्रतिरक्षा (Immunity) लोगों को अस्पताल में भर्ती होने या मृत्यु से बचाएगी।
पाठ्यक्रम में सुधार:
दवा निर्माण कंपनियों को उपभोक्ताओं के साथ विश्वास संबंध बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। यह एक परीक्षण का समय है और यह दर्शाता है कि, जनसंख्या क्या समझती है।
यह नीति निर्माताओं के लिए भी आत्मनिरीक्षण का विषय है। जब लोगों की जान दांव पर लगी हो, तब भी वो क्या चीज़ है जो, लोगों में टीके के प्रति झिझक पैदा करती है? यह एक प्रश्न लाखों-जिंदगियों के बराबर महत्व का है।
तुरंत, सरकारों को चिकित्सा मुद्दों के बारे में स्पष्ट रूप से संवाद करना शुरू करना चाहिए, यह संदेश स्थानीय नर्सों, पारिवारिक डॉक्टरों आदि जैसे विश्वसनीय स्रोतों द्वारा भेजे जाने की आवश्यकता है।
कोई भी अविश्वास पात्र 'हितों के टकराव' के साथ टीकाकरण के तर्क का खंडन करेगा। यदि एक 'टीका' ही कोविड संकट का एकमात्र समाधान है तो, वैज्ञानिक समुदाय को झूठी बातों और गलत सूचनाओं से उत्पन्न संशय को दूर करने के लिए संवाद करने की आवश्यकता है।
एक सभी स्थितियों के लिए उपयुक्त 'संचार पैकेज' फायदेमंद नहीं है, क्योंकि, समाज के विभिन्न समूहों और वर्गों में अलग-अलग सूचना अंतराल हैं। तथ्य यह है कि, टीका-झिझक संख्या में बड़ी है, अतः इसको लेकर जनसंख्या को सूचित करना ही काम करेगा।
कोविड -19 ने स्वास्थ्य असमानताओं को कठोरता से उजागर किया है। टीके से हिचकिचाने वाले उपसमूहों के साथ जुड़ना महत्वपूर्ण है और ज्ञान के स्तर को बढ़ाने, दिखने वाले खतरों को कम करने और सूचित निर्णय-निर्धारण में सक्षम बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
वैश्वीकरण ने हम सभी को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है।
सभी के जीवन के लिए हरेक देश को अपनी 'स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली' को तुरंत सुधारना चाहिए; कोई भी देश इसमें पीछे नहीं रहना चाहिए ।
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