क्या संयुक्त राष्ट्र 2022 में उपयुक्त है?
क्या संयुक्त राष्ट्र 2022 में उपयुक्त है?
Is UN fit for Purpose in 2022? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
लाखों शरणार्थियों के साथ, वह देश जो बमबारी और हजारों मौतों से तबाह हो रहा, संयुक्त राष्ट्र ने उस यूक्रेन-रूस युद्ध को रोकने के लिए क्या किया?
यूरोप के केंद्र में वर्तमान स्थिति को मद्दे -नज़र रखते हुए , संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर प्रासंगिक प्रश्न उठ रहे हैं। क्या संयुक्त राष्ट्र 21वीं सदी में अपने उद्देश्य के लिए योग्य है?
21वीं सदी के सभी 22 साल कई विनाशकारी युद्धों के साथ गुजरे हैं। शुरुआत अफगानिस्तान से हुई, फिर इराक, लीबिया, सीरिया और अब यूक्रेन-रूस युद्ध। इन युद्धों ने आधुनिक इतिहास को सबसे खराब तरीके से बदल दिया है।
घाव इतने गहरे हैं कि, अगर आज शांति कायम हुई तो, उन्हें ठीक होने में सदियां लग जाएंगी। लेकिन, फिर, दक्षिण चीन सागर, उत्तर कोरिया, भारत-चीन, सूडान और अन्य स्थानों पर युद्ध का खतरा बना हुआ है।
इज़राइल-फिलिस्तीन के बीच चल रहा विवाद, मध्य पूर्व में चल रहा एक सतत संघर्ष है और जिसका कोई समाधान नहीं।
संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ) की स्थापना 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध जैसी अप्रिय घटना के बाद, विश्व शांति और सुरक्षा के लिए एक स्थायी वैश्विक निकाय के रूप में की गई ।
हालांकि, समय के साथ, यह कई कारणों से अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है।
कई अन्य देशों की तरह, संयुक्त राष्ट्र संगठन, उन सभी देशों को बाँधे रखने में सक्षम नहीं है, जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है।
सीरिया के मामले में यह प्रभावहीनता एक प्रत्यक्ष प्रमाण थी जैसे कि, संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक विनाशकारी युद्ध को रोकने के लिए बहुत कम काम किया, जिसमें हजारों लोगों की जान गई और और अनेकों लोग प्रभावित हुए।
इसके कई कारण हैं, जिसमें राजनीतिक मतभेद, सदस्य देशों के बीच असहमति और हितों के टकराव शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हितों का टकराव
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार मुख्य निकाय है।
इसकी सदस्यता में 15 देश शामिल हैं, जिनमें से पांच वीटो पावर (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन) के साथ स्थायी सदस्य हैं, और जिनमें से 10 को महासभा दो साल के कार्यकाल के लिए चुनती है।
इसके अतिरिक्त, पांच गैर-स्थायी सदस्य भी महासभा के दो-तिहाई बहुमत के साथ नए देशों को शामिल करके परिषद का विस्तार कर सकते हैं।
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21वीं सदी के सभी 22 साल कई विनाशकारी युद्धों के साथ गुजरे हैं
इस बारे में बहुत बहस हुई है कि कुछ स्थायी सदस्यों के लिए, विशेष रूप से जिनके कई देशों और क्षेत्रों में आर्थिक हित है, सुरक्षा परिषद में अपनी स्थिति बनाए रखना उचित है या नहीं।
इन देशों पर अपने आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए परिषद में अपनी शक्ति का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है।
इस पक्षपात और शक्ति के असंतुलन ने इन दावों को बढ़ावा दिया कि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एक ऐसा निकाय है, जो सही अर्थों में सभी देशों का प्रतिनिधि नहीं है।
कुछ ने सुरक्षा परिषद की सदस्यता में सुधार के लिए पहला तर्क दिया है कि, या तो कुछ या सभी स्थायी सदस्यों को हटाया जाए ।
दूसरा तर्क यह कि क्षेत्रीय और विश्व हितों के बीच बेहतर संतुलन बनाने के लिए अधिक देशों को शामिल करने के लिए सीटों की संख्या का विस्तार किया जाए।
जबकि कुछ का मानना है कि सुधार अनावश्यक है । एक अंतरराष्ट्रीय 'शांति रक्षक' के रूप में संयुक्त राष्ट्र को बहुत अधिक शक्ति देने से , दूसरों को लगता है कि, हितों का टकराव अभी भी मौजूद है और इसकी सदस्यता में बदलाव के साथ इसे सार्थक रूप से कम किया जा सकता है।
एक संभावित कारण यह रहा कि कुछ सदस्य देशों ने अंतरराष्ट्रीय शांति पर अपने हितों को प्राथमिकता दी। उदाहरण के लिए, अमेरिका इराकी नागरिकों की रक्षा करने और रक्तपात को रोकने की तुलना में इस क्षेत्र में अपनी तेल आपूर्ति को सुरक्षित रखने के बारे में अधिक चिंतित था।
इसके अतिरिक्त, कुछ देश इराक या अन्य देशों से प्रतिशोध की आशंका के कारण युद्ध में हस्तक्षेप करने के लिए अनिच्छुक रहे होंगे।
इराक युद्ध को रोकने में संयुक्त राष्ट्र विफल क्यों हुआ इसका एक और कारण यह था कि, उसके पास उस जगह पर पर्याप्त प्रवर्तन तंत्र (enforcement mechanisms) नहीं थे।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सैन्य बल को अधिकृत करने के लिए जिम्मेदार है, लेकिन स्थायी सदस्य अक्सर इसके निर्णयों पर अपनी वीटो शक्तियों का उपयोग करते हैं, जैसे कि, अमेरिका ।
इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र के पास खुद की सैन्य शक्ति का अभाव है और उसे सैनिक उपलब्ध कराने के लिए सदस्य देशों पर निर्भर होना चाहिए। यह निर्भरता हो सकता है, कि अक्सर तैनाती में देरी या संसाधनों की कमी का कारण बने ।
अंततः, सदस्य देशों के बीच राजनीतिक मतभेदों , असहमति और हितों के टकराव के कारण संयुक्त राष्ट्र, इराक युद्ध को रोकने में असमर्थ रहा। हालांकि, यह अभी भी एक महत्वपूर्ण संगठन है जो भविष्य के संघर्षों को रोकने और हल करने में अपनी भूमिका निभा सकता है।
जैसा कि आप देख सकते हैं, इराक युद्ध को रोकने में संयुक्त राष्ट्र की विफलता में कई जटिल कारक शामिल हैं।
हालांकि कोई निश्चित उत्तर कभी नहीं हो सकता पर, कुछ संभावित समाधानों में प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना और सदस्य राज्यों के बीच अधिक सहयोग को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकते है।
यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के कई अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे मानवीय सहायता और शांति बनाये रखने के लिए अभियान।
संक्षेप में, यह एक महत्वपूर्ण संगठन है जिसे हम छोड़ने का खतरा नहीं उठा सकते।
विटो (Veto) शक्ति
संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों में से एक सदस्य राज्यों द्वारा प्रस्तावों पर वीटो लगाने का अधिकार है। यह "वीटो शक्ति" संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से एक अत्यधिक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
कई लोगों का तर्क है कि, यह लोकतांत्रिक निर्णय लेने को कमजोर करता है और एक अंतरराष्ट्रीय निर्णायक के रूप में इसकी औचित्यपूर्णता ( legitimacy ) को कमजोर करता है।
वीटो पावर एक शक्ति है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटैन और अमेरिका) के पांच स्थायी सदस्यों में से प्रत्येक के पास है।
यह इन स्थायी सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र के किसी भी "मूलभूत" प्रस्ताव को अवरुद्ध करने की अनुमति देता है ।
एक स्थायी सदस्य का वीटो एक प्रस्ताव के पारित होने के मार्ग को रोकता है और इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र के किसी भी निर्णय के अनुमोदन को अवरुद्ध करने की शक्ति को बरकरार रखता है।
वीटो का इस्तेमाल पहली बार 1946 में सोवियत संघ द्वारा ईरान के खिलाफ उसकी आक्रामकता की निंदा करने के प्रस्ताव को अपनाने से रोकने के लिए किया गया था। तब से, सभी पांच स्थायी सदस्यों द्वारा इसका अनगिनत बार उपयोग किया गया।
2020 तक, चीन ने किसी भी अन्य देश की तुलना में 126 बार सबसे अधिक अपनी वीटो शक्ति का उपयोग किया है। अमेरिका ने अपने वीटो पावर का 108 बार इस्तेमाल किया है, रूस ने 82 बार , फ्रांस ने 25 बार और यूनाइटेड किंगडम ने 8 बार इसका इस्तेमाल किया है।
संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पारित करने के लिए, सभी पांच स्थायी सदस्यों को सहमत होना चाहिए; यदि कोई प्रस्ताव को वीटो करता है, तो उसे पारित नहीं किया जा सकता।
कई अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक वैज्ञानिकों का तर्क है कि, संयुक्त राष्ट्र में वीटो पावर की मौजूदा व्यवस्था लोकतांत्रिक निर्णय लेने को विकृत करती है।
उनका दावा है कि इसकी बहुत अधिक संभावना है कि, बहुपक्षीय संस्थानों के भीतर महत्वपूर्ण प्रभाव रखने वाले राज्य वैश्विक कल्याण सेवा में कार्य करने के बजाय ,अपने संकीर्ण राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए अपने पदों का उपयोग करेंगे।
इसके अलावा, उनका तर्क है कि, वीटो शक्ति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को असमान रूप से लाभान्वित करती है ,जो लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नहीं हैं और उन्हें घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों को जवाब नहीं देना है।
वीटो शक्ति प्रणाली के समर्थकों का तर्क है कि, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
उनका दावा है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए किसी भी निर्णय को प्रभावी होने के लिए आम सहमति पर आधारित होना चाहिए और वीटो शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि, कोई भी राज्य अपनी एकतरफा इच्छा को शेष दुनिया पर नहीं थोप सकता।
इसके अलावा, उनका कहना है कि, वर्तमान प्रणाली संयुक्त राष्ट्र के अधिकार पर एक आवश्यक जांच प्रदान करती है, जो इसे ऐसी कार्रवाई करने से रोकती है, जो संभावित रूप से वैश्विक संघर्ष का कारण बन सकती है।
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"वीटो शक्ति" संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से एक अत्यधिक विवादास्पद मुद्दा रहा है
वीटो शक्ति की भूमिका पर बहस जारी रहने की संभावना है क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र दुनिया की कुछ सबसे अत्यावश्यक चुनौतियों का समाधान करना चाहता है।
अंत में, यदि कोई रिपोर्ट कार्ड है, तो संयुक्त राष्ट्र अपनी शक्ति की कमी के कारण युद्ध, जलवायु परिवर्तन, गरीबी और बीमारी जैसे वैश्विक मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने में असमर्थ रहा है।
यह विफलता इसलिए है क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र आवश्यक संसाधन और सहायता प्रदान करने के लिए पूरी तरह से सदस्य देशों पर निर्भर है,और जिससे वह इन मुद्दों पर आगे बढ़कर विकास कार्य कर सके।
परिणामस्वरूप, संयुक्त राष्ट्र अपने वर्तमान स्वरूप में अपने उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है।
अपनी प्रासंगिकता और स्थापना उद्देश्य को पुनः प्राप्त करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र को इन मुद्दों के समाधान के लिए कदम उठाने चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि, वह अभी भी वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक प्रभावी निकाय है।
तभी वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास और समर्थन हासिल कर पाएगा।
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