यूक्रेन 'युद्ध' से सीख
यूक्रेन 'युद्ध' से सीख
Learning from Russia-Ukraine War का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
इस आधुनिक समय में , बराबर की क्षमता और शक्तिशाली के बीच, यह पहला जंगी टकराव है। तथापि, पहला इराक युद्ध, दूसरा इराक युद्ध, अफगानिस्तान, लीबिया, आदि, जैसे अधिकतर एकतरफा और असमान युद्ध नाटो या रूस द्वारा लड़े गए हैं।
इसलिए, वास्तविक विश्व व्यवस्था का संज्ञान लेने के लिए यह सबसे अच्छा मामला है।
दुनिया बहुध्रुवीय है
क्षेत्रवाद, पुरानी मित्रता, ऐतिहासिक घटनाएँ, सामान्य भाषा, उदारवाद आदि जैसी अनेक भावनाएँ और समीकरण चल रहे हैं, जो इस युद्ध में पुनः गठजोड़ का निर्धारण कर रहे हैं। ये रिश्ते या तो अव्यक्त (गुप्त) थे या अस्वीकृत।
कई देश जो पश्चिम के सहयोगी प्रतीत होते थे, अब तटस्थ खड़े हैं। चीन का रवैया भी स्पष्ट नही है।
संयुक्त राष्ट्र में तटस्थ रहने का मतलब है, नरमी से रूस का पक्ष लेना। भारत पश्चिम की इच्छा के विरुद्ध रूसी तेल और रक्षा उपकरण खरीदना जारी रखे हुए है और यूक्रेन को मानवीय आपूर्ति भी भेज रहा है।
सऊदी अरब भी तटस्थ खेल खेलता नजर आ रहा है, जबकि उसका पूरा तेल उद्योग 'सऊदी-अरामको' नामक पश्चिम-सऊदी संबंध पर चलता है।
अमेरिका और इस्राइली संबंध वैसे नहीं हैं, जैसे लग रहे थे । तुर्की और इज़राइल यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थता करवाने में गहन रूप से लगे हुए हैं। यह शांति के उस दृष्टिकोण का खंडन करता है, जिसे अमेरिका और यूरोपीय संघ आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
नाटो का एक सहयोगी, तुर्की भी रूसी रक्षा उपकरणों का खरीदार है। इसलिए, जमीन पर उसका गठबंधन सख्ती से वैसा नहीं है, जैसा कि नाटो अनुबंध (Agreement) के मूलपाठ से अपेक्षित होगा ।
शांतिकाल के दौरान स्थिर, सभी संरेखण और गठबंधन, संकट के इस समय में नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। इसलिए, सभी देश अपने निजी लाभ के लिए काम कर रहे हैं।
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नाटो का एक सहयोगी, तुर्की भी रूसी रक्षा उपकरणों का खरीदार है
रूस एक सैन्य महाशक्ति है । हालांकि, यह आर्थिक रूप से समृद्ध राष्ट्र नहीं है, तब भी, यह सभी महाद्वीपों में शक्ति का उपयोग कर सकता है, और मित्र राष्ट्रों का समर्थन भी कर सकता है।
अपने पड़ोसियों के साथ इसी तरह की स्थिति, जिसका रूस सामना कर रहा है, अब भविष्य की कार्रवाई के लिए अन्य कई देशों का मार्गदर्शन कर रहा है।
जैसे, ताइवान के साथ चीन का झगड़ा, जिसे एक द्विपक्षीय मुद्दा माना जाता है, बजाय इसके अक्सर पश्चिम के हस्तक्षेप और विरोध को आकर्षित करता है। यूक्रेन पर चीन की चुप्पी का मतलब, ताइवान के बारे में अब चीन कुछ और भी कर सकता है।
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ भारत का मसला, इसी तरह की स्थिति पर खड़ा है। कुछ समय पहले तक, पाकिस्तान नाटो गतिविधियों का आधार और सहयोगी था।
यह कश्मीर में पाकिस्तान की भूमिका को न्यायसंगत और अनकहा समर्थन प्रदान करने के लिए काफी अच्छा था। अब, यूक्रेन युद्ध, भारत को एक दूसरा दृष्टिकोण दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के तटस्थ होने का मतलब, कश्मीर के भविष्य में भी झलकेगा।
'नाटो' अमेरिकी सैन्य नीतियों का चेहरा है
यद्यपि नाटो 'सजातीय सिद्धान्त' पर आधारित राष्ट्रों का एक गठबंधन प्रतीत होता है, पर नाटो के भीतर भी गहरे विभाजन हैं। यह एक संयुक्त राष्ट्र मोर्चा नहीं है ,क्योंकि , इसके प्रमुख भागीदारों की रूस के खिलाफ अपनी नीतियों में काफ़ी बड़ा अंतर है।
'अमेरिकी' राष्ट्रपति 'पुतिन' को "युद्ध अपराधी" और "कसाई" बुला रहे हैं, लेकिन गठबंधन के अन्य सदस्य कूटनीतिक रूप से, रूस को शांतिपूर्ण समाधान के लिए समझा बुझाकर राजी करने की कोशिशें जारी रखे हुए हैं।
गठबंधन के कई महत्वपूर्ण देश रूस के साथ व्यापार करना जारी रखे हुए हैं। अमेरिका और ब्रिटैन अपने यूरोपीय संघ और नाटो भागीदारों की तुलना में अलग-अलग दिशा में दिख रहे हैं।
नाटो और यूरोपीय संघ को दो अलग-अलग संस्थाएं माना जाता था। किन्तु जैसे-जैसे यूक्रेन में युद्ध आगे बढ़ रहा है, नाटो और यूरोपीय संघ को अलग करने वाली रेखा धुंधली होती जा रही है।
यह 'विलय' एक खतरनाक स्थिति है और क्षेत्र की शांति को प्रभावित कर सकता है। 'यूरोपीय संघ' को यूरोप के देशों के लिए, एक सामाजिक-आर्थिक संघ माना जाता है।
इसका एकमात्र उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों को आसान बनाना और अपने सदस्य देशों के बीच 'मानव अधिकारों' और 'जीवन की गुणवत्ता' को बनाए रखते हुए व्यापार की बाधाओं को दूर करना था।
रूस पर प्रतिबंधों का विरोध करने और स्थिति को शांत करने के बजाय, 'यूरोपीय संघ' अपने विस्तार के लिए नाटो के इरादों को आसान बना रहा है।
यह स्थिति को और अधिक जटिल बना रहा है। यूरोपीय संघ में ऑस्ट्रिया, साइप्रस, फिनलैंड, आयरलैंड, माल्टा और स्वीडन जैसे छह देश नाटो के सदस्य नहीं हैं। इनमें से फिनलैंड की रूस के साथ सीधी सीमा है।
इसलिए, रूस के साथ उनकी स्थिति अब तनावपूर्ण हो रही है और यह अनावश्यक रूप से संघर्ष में घसीटा जा सकता है।
अमेरिका और नाटो गठबंधनों के पास अपने बराबरी वाले देशों से निपटने की कोई रणनीति नहीं है। अब तक, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने कमजोर देशों को अपनी ताकत दिखाई है।
लेकिन इस मामले में वे यूक्रेन की ज्यादा मदद नहीं कर पाए हैं। पश्चिम की 'सॉफ्ट पावर' अपने 'प्रतिबंधों' और 'बंदिशों ' से रूस को डराकर उसके "सैन्य अभियान" को रोक नही पाया है और यूक्रेन एक 'युद्धक्षेत्र' बना हुआ है।
नतीजतन, यूक्रेनियन बुरी तरह 'पीड़ित और विस्थापित हो रहे हैं ', 'मारे जा रहे है' और शरणार्थी के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
'युद्ध उद्योग' में लगे व्यवसायों को छोड़कर कोई भी युद्ध नहीं चाहता
आमतौर पर, 'युद्ध' दुनिया के देखने के लिए उपलब्ध नवीनतम रक्षा तकनीकों का भी प्रदर्शन करते हैं। उदाहरण के लिए, पहले इराक युद्ध के दौरान, दुनिया ने एक 'एंटी-स्कड' मिसाइल प्रणाली देखी, जो भविष्य में इजरायल के लिए 'आयरन डोम' (डिफेंस सिस्टम) बन गई।
'नाटो' भारत जैसे देशों में भी बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम (बीएमडी) के तहत इसकी मार्केटिंग कर रहा है।
इसी तरह, दुनिया ने 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान 'टॉमहॉक' क्रूज मिसाइलों की 'मछली की आँख' पर निशाना लगाने जैसी सटीकता को भी देखा। अतः समान रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध से भी यही उम्मीद की जाती है।
किन्तु, अब तक, यह एक उच्च तकनीक वाला युद्ध बनकर नहीं निकला है, सिवाय उन बीस "बेराकटार TB2" तुर्की ड्रोन के, जो यूक्रेनी सेना द्वारा प्रयोग किये गए। बजाय इसके, यह टैंकों और बंदूकों के साथ सम्पूर्णतः 20वीं सदी का प्राचीन युद्ध बन गया है।
अतः, 'युद्ध उद्योग' को किसी भी रक्षा प्रौद्योगिकी के महँगे और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को प्रमाणित कर उनका प्रदर्शन करना चुनौतीपूर्ण लग रहा है, जिसे अन्य देशों में विपणन किया जा सके।
ऐसा लगता है, कि इस 'युद्ध व्यवसाय' में लगे कई लोगों के लिए एक अवसर खो गया है।
इस युद्ध में 'ड्रोन' नया चेहरा है। यूक्रेनी सेना के लिए, तुर्की के ड्रोन रूस की हमलावर सेना के खिलाफ अपनी प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
यूक्रेन में युद्ध ने यह निर्धारित किया है, कि ड्रोन तकनीक पहले से ही विशेष रक्षा उपकरणों का एक भाग है। जल्द ही तुर्की कंपनी की यह पसंदीदा वस्तु, दुनिया भर में कई अन्य को सस्ते ड्रोन की आपूर्ति कर उन्नति करेगी।
विरोधाभासी ढंग से, एक निजी कंपनी द्वारा यूक्रेन को आपूर्ति किए गए ड्रोन तुर्की के हैं और तुर्की ने रूस से आधुनिक और दुर्लभ S-400 मिसाइलें खरीदी है। तो असल में, तुर्की युद्धरत पक्षों के दोनों ओर से व्यापार कर रहा है।
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यद्यपि नाटो 'सजातीय सिद्धान्त' पर आधारित राष्ट्रों का एक गठबंधन प्रतीत होता है, पर नाटो के भीतर भी गहरे विभाजन हैं
रूस, यूरोप और अमेरिका जैसी महाशक्तियों की जब इस कठिन परिस्थिति में होने की बात आती है, तो वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था और आपस में जुड़ी हुई दुनिया बुरी तरह प्रभावित हुई है।
प्रतिबंधों और बंदिशों के साथ, युद्धरत पक्षों के दोनों पक्षों को भोजन और घरेलू आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला में गंभीर अवरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, आपूर्ति और तेल और गैस में अवरोध के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ी हैं।
विडंबना यह है कि युद्ध के लंबे समय तक चलने वाले परिणामों ,मौत, विनाश और तबाही के साथ - साथ यूक्रेनी शरणार्थियों को इन लाभ प्राप्त और फलते फूलते व्यवसायों को देखने के लिए जीना पड़ेगा।
आज की दुनिया में 'तेल' और 'गैस' सबसे संकटपूर्ण संसाधन बने हुए हैं
यद्यपि अक्षय ऊर्जा (renewable energy) का एक अच्छा हिस्सा 'आपूर्ति' में योगदान देता है, अतः यह भविष्य की भूराजनीति में एक मूलभूत संसाधन और निर्णायक कारक बना रहेगा।
अगर किसी देश को आत्मनिर्भर होना है, तो उसे तेल और गैस उत्पादक देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए; इसके बजाय, उसे जितनी जल्दी हो सके अक्षय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे को प्राप्त करने के लिए, आवश्यक प्रयत्न करने चाहिए।
जहां यूक्रेन युद्ध के कारण मानवीय संकट बना हुआ है, वहीं कुछ देश अरबों का मुनाफा कमा रहे हैं। तेल और गैस के आघात के कारण 'सऊदी अरब' और 'नॉर्वे ' जैसे देश अपना उत्पादन बढ़ा रहे हैं, जबकि कच्चे तेल की कीमतें अपने चरम पर हैं।
'नॉर्वे' देश इसकी मांग को पूरा करने के लिए 'चालीस' नए कुओं की खुदाई करेगा, जो इस दशक तक जारी रहने की उम्मीद है। यह उनके मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए एक अनुकूल स्थिति है; और उनका राजस्व भी जल्द ही 'सौ लाख करोड़' डॉलर को छू सकता है।
आज तेल और गैस का आघात दुनिया भर के सभी संकटों की याद दिलाने वाला है। इसलिए इस समस्या को कम किया जाना चाहिए। अतः अक्षय ऊर्जा ही वह उत्तर है, जो वैश्विक शांति में स्थिरता लाएगा और इस बहुध्रुवीय दुनिया में शक्ति संरचना को पुनः परिभाषित करेगा।
पश्चिम के हाथ में जरूरत से ज्यादा 'सॉफ्ट पावर' है
लक्षित प्रतिबंधों से पता चला है कि विरोधी पक्ष के अरबों डॉलर के कारोबार को बाधित करने में केवल कुछ दिन लग सकते हैं।
'स्विफ्ट' SWIFT (सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन) बैंकिंग सिस्टम, जो पश्चिम में है, उसका उपयोग अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा प्रभावपूर्ण ढंग से और तुरंत किया जा चुका है।
साथ ही, जरूरत पड़ने पर शत्रु देश के सोने के भंडार को भी प्रतिबंधित किया जा सकता है। यूरोपीय प्रणाली से रूसी बैंकिंग प्रणाली को काट कर बाहर निकालने का काम पहले से ही प्रगति पर है और यह दबाव 90 लाख करोड़ यूरो पर खड़ा है।
विरोधियों और प्रतिद्वंद्वी को सामरिक संपत्ति कभी न दें
यूरोप ने बहुत बड़ी भूल की, क्योंकि वे रूसी गैस का आयात कर रहे थे । पोलैंड और जर्मनी जैसे देश अब अपंग होने के कगार पर खड़े हैं। शेष यूरोप, जर्मन और पॉलिश निर्माण पर भी अप्रत्यक्ष परिणाम का ख़तरा गंभीर है।
लेकिन यह स्थिति एक दिन में यहां तक नहीं पहुंची। अपने मित्रवत पड़ोसी देशों जैसे नॉर्वे, जर्मनी, पोलैंड और अन्य से गैस की आपूर्ति प्राप्त करने के बजाय यूरोप ने रूस को चुना ।
यही हाल रूसी गेहूं और कोयले का भी है। इसी तरह, यूक्रेन ने रूस के साथ शांति के बदले अपनी परमाणु क्षमताएं उसे सौंप दीं। आज यह सबसे महत्वपूर्ण अक्षमता के रूप में बाहर निकल कर आ रही है।
आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और स्वार्थ राष्ट्रीय सुरक्षा की कुंजी हैं। यूरोप पतन के कगार पर है।
सीख यह है की, उद्योग और व्यापार दोस्ती का निर्माण नहीं करते; वे केवल वस्तु और धन का आदान-प्रदान मात्र हैं।
यदि यूरोप यह अपेक्षा करता है ,कि व्यापारिक भागीदारी एक विरोधी को दोस्त बना देगी, तो अभी के लिए, वे खुद को गलत साबित कर रहे हैं।
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