चीन - वैश्विक अर्थव्यवस्था का नया अधिकेंद्र
चीन - वैश्विक अर्थव्यवस्था का नया अधिकेंद्र
China - The New Epicentre का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
हाल ही में चीन अपने कुछ पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक हो गया है। उदाहरण के लिए, अमेरिका की राजनीतिज्ञ 'नैन्सी पेलोसी' (Nancy Pelosi) के ताइवान देश के दौरे के बाद चीन उसके साथ काफ़ी आक्रामक हो गया है।
उनकी यात्रा के बाद और जवाबी कार्रवाई में, चीन ने ताइवान के पास एक सैन्य अभ्यास किया, जिससे, अन्य देशों के साथ उसकी व्यावसायिक गतिविधियाँ अवरुद्ध हो गईं।
भविष्य में, यदि चीन ताइवान पर सैन्य आक्रमण करता है तो, यह उनके व्यापार संबंधों और क्षेत्र में शांति को प्रभावित कर सकता है। ताइवान के चीन के साथ व्यापारिक संबंध हैं और वह चीन से 70.8 अरब डॉलर का सामान आयात करता है।
चीन ने कई क्षेत्रों में जबरदस्त प्रगति की है; परन्तु, ताइवान और हांगकांग पर उसके कड़े रुख के चलते कई देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंध खराब हो गए हैं। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ये सभी ताइवान मुद्दे पर चीन के खिलाफ इकठ्ठे हो रहे हैं।
“
ताइवान में चीन की आक्रामकता से तीसरे विश्व युद्ध की नौबत आ सकती है
अंग्रेजों से हांगकांग को लेते समय, चीन "एक देश, दो प्रणाली" के सिद्धांत के तहत हांगकांग पर शासन करने के लिए सहमत हुआ, जहां शहर "अगले 50 वर्षों के लिए उच्च स्तर की स्वायत्तता" का आनंद उठाएगा।
किंतु, बीजिंग ने हांगकांग की राजनीतिक व्यवस्था में बाधा डालने और असहमति पर नकेल कसने के लिए तेजी से चौंकाने वाले कदम उठाए हैं। चीनी सरकार के इस रुख से ब्रिटिश सरकार भी नाराज है।
ताइवान में चीन की आक्रामकता से तीसरे विश्व युद्ध की नौबत आ सकती है, जो दूसरे देशों के लोगों के लिए मुनासिब नहीं होगा। यह राष्ट्रों के बीच पारंपरिक युद्ध नहीं होगा; बल्कि, इसके बजाय, इसमें पूर्ण विकसित परमाणु युद्ध होने का जोखिम है।
कुछ लोग यह तर्क भी दे सकते हैं कि, भले ही रूस और यूक्रेन युद्ध में हैं, पर इसने तृतीय विश्व युद्ध को शुरू नहीं किया।
काफी हद तक इसका एक वैध कारण हो सकता है क्योंकि, अन्य नाटो देशों ने रूस के खिलाफ लड़ने के लिए अपने सैनिकों को यूक्रेन नहीं भेजा। यूक्रेन को सभी तरह की आपूर्ति रूसी सेना के खिलाफ उसकी रक्षा के लिए है।
लेकिन चीन-ताइवान संघर्ष की स्थिति में, अमेरिका और जापान अपने सैनिकों को ताइवान भेज सकते हैं, जबकि, ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के साथ "आर्मिटेज परिदृश्य" (इंग्लिश) के माध्यम से ताइवान को हथियारों से समर्थन दे सकता है।
(अमेरिका ऑस्ट्रेलिया से ताइवान का समर्थन करने के लिए कहेगा, क्योंकि, ताइवान-चीन विवाद में ऑस्ट्रेलिया सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता)
दूसरी ओर, इसके परिणामस्वरूप, चीन का समर्थन रूस और पड़ोसी उत्तर कोरिया जैसे महाशक्ति सहयोगी देश करेंगे, जो एक परमाणु युद्ध शुरू होने की संभावना को और अधिक बढ़ा सकता है।
चीन के राष्ट्रपति 'शी जिनपिंग' (Xi Jinping) 'एक चीन नीति' (one-China policy) के तहत ताइवान को एकजुट करने के इच्छुक हैं। किंतु, ताइवान के लोग स्वतंत्र रहना चाहते हैं क्योंकि, चीन में एक पार्टी तानाशाही संविधान है और ताइवान में सरकार का एक लोकतांत्रिक रूप है।
1895 से 1945 तक ताइवान एक जापानी उपनिवेश था, किंतु, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने इसे चीन गणराज्य की सरकार को सौंप दिया।
फिर भी, चीन के जापान के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं; उनके बीच कई द्वीपों को लेकर विवाद है जो, उनके रिश्ते को और खराब कर सकता है। इसके अलावा, जापान ने हाल ही में चीन से खतरा व्यक्त किया है।
साथ ही, चीन और रूस ने हाल ही में जापान सागर के पास एक सैन्य अभ्यास किया है। चीनी आक्रमण का यह खतरा जापान की शासन कला को बदल रहा और देश को टकराव के लिए तैयार कर रहा है।
चीन और अमेरिका
अमेरिका और चीन व्यापार संबंध इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 1979 में शुरू हुए। अमेरिका 737 अरब डॉलर का आयात और 179 अरब डॉलर का निर्यात कर चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दूसरी ओर, अमेरिका ताइवान का रणनीतिक साझेदार भी है।
हालांकि, अमेरिका का ताइवान के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है, किंतु, ताइवान संबंध अधिनियम (1979) (Taiwan Relation Act) के तहत उसकी भूमिका है।
इस अधिनियम के तहत, अमेरिका के पास ताइवान को "एक रक्षात्मक विशेषता वाले हथियार प्रदान करने और ताइवान के लोगों की सुरक्षा या सामाजिक या आर्थिक प्रणाली को खतरे में डालने वाले किसी भी बल के सहारे का विरोध करने की नीति है।"
उस समझौते के स्थान पर यदि, चीन ताइवान पर हमला करता है तो, अमेरिका चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है, जिससे, चीन बड़ी वित्तीय कठिनाइयों में पड़ सकता है।
हालांकि, यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है, किंतु, झटका महत्वपूर्ण होगा क्योंकि, इन दोनों देशों के आयात-निर्यात के बीच एक बड़ा असंतुलन है।
दूसरी ओर, हालांकि, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ेगा, पर यह चीनी अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा क्योंकि, चीन को 558 अरब डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
परिणामस्वरूप, अगर अमेरिका को चीन से सामान नहीं मिलता है तो, अमेरिकी जीवन की मूलभूत वस्तुएँ जैसे कार, घरेलू उपकरण, वस्त्र, समारोह, औद्योगिक सामान और औषधालय (फार्मास्यूटिकल्स) भी बाधित हो जाएंगे। उस स्थिति में, अमेरिका को भी नुकसान होगा।
“
भारत का चीन के साथ 79.16 अरब डॉलर का व्यापार है
चीनी आर्थिक सुधार
चीन ने 18 दिसंबर 1978 को आर्थिक सुधार की शुरुआत की। 'देंग शियाओपिंग' (Deng Xiaoping) को चीनी आर्थिक सुधार का जनक माना जाता है। सुधार के बाद, चीन ने 80 करोड़ लोगों को गरीबी से ऊपर उठाया है।
इसने आज तक अपनी प्रगति जारी रखी है और अब यह दुनिया की औद्योगिक महाशक्ति है। यह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है।
एक पिछड़े समाज से एक औद्योगिक महाशक्ति तक तेजी से चीन की प्रगति में 35 साल लग गए। हालाँकि चीन का औद्योगीकरण जापान के सुधार के बहुत बाद शुरू हुआ, किन्तु चीन ने इसका स्थान ले लिया है।
आर्थिक रूप से, यह न केवल जापान से तेजी से आगे निकल गया है, बल्कि, इसने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है।
यह उल्लेख करना उचित होगा कि, यदि चीनी अर्थव्यवस्था समान भाव से आगे बढ़ती है तो, यह शीघ्र ही अमेरिका को भी मात दे सकती है। एक पूर्वानुमान में कहा गया है कि, चीन 2028 तक नॉमिनल जीडीपी (Nominal GDP) में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
चीन के 5 शीर्ष व्यापारिक साझेदार अमेरिका, हांगकांग, जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम हैं। इसलिए, चीन को 2028 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए इन देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की जरूरत है।
चीन और भारत
भारत का चीन के साथ 79.16 अरब डॉलर का व्यापार है। ये दोनों देश अपनी जनसंख्या और बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण एक दूसरे के लिए सबसे बड़े बाजार हैं। हालाँकि, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गतिरोध के कारण इन दोनों देशों के संबंधों में खटास आ रही है।
दोनों देशों की सेनाएं हाल ही तक सीमा पर आमने-सामने थीं। हालांकि, 16वें दौर की सैन्य - स्तर की वार्ता के बाद दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को पीछे खींचने का फैसला किया।
यह एक अच्छा संकेत है कि, दोनों देशों ने बातचीत के जरिए विवादों को सुलझा लिया है। किन्तु, कुछ और भी क्षेत्र हैं जहां दोनों सेनाएं अब भी आमने-सामने हैं।
भारत सरकार के अनुसार, चीन ने अवैध रूप से लगभग 38,000 वर्ग कि.मी भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अभूतपूर्व गति से विवादित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास कर रहा है।
यह दोनों देशों के बीच मुख्य विवाद है, क्योंकि, भारत चाहता है कि, चीन विवादित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास न करे।
अगर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा में अपनी गतिविधियां बंद कर देता है और भारत के साथ संबंध सुधार लेता है तो, यह उसके व्यापार के लिए अच्छा होगा क्योंकि, भारत चीनी सामानों का महत्वपूर्ण आयातकर्ता है।
भारतीय कंपनियों में लगभग 4,000 चीनी निदेशक हैं, इसलिए चीन का दांव महत्वपूर्ण है। हालाँकि, अधिक व्यापक तर्क जो बाहर निकलकर आता है वह है चीन की मंशा के बारे में।
क्या चीन को लेह-लद्दाख के क्षेत्र की परवाह करनी चाहिए या भारत के साथ व्यापार जोखिम की,जो उसके कुल व्यापार का सिर्फ 5% है?
अन्य पड़ोसी देशों के साथ चीन के संबंध
भारत और ताइवान के अलावा, चीन का अन्य पड़ोसी देशों जैसे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, ब्रुनेई, नेपाल, भूटान, लाओस, मंगोलिया और म्यांमार के साथ सीमा विवाद है।
इन देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंध हैं और अगर उनके साथ संबंध और बिगड़ते हैं तो, यह चीन को बड़ी मुश्किल में डाल सकता है।
“
भारतीय कंपनियों में लगभग 4,000 चीनी निदेशक हैं
इन पड़ोसियों के साथ, चीन का कुल आयात और निर्यात लगभग 288 अरब अमेरिकी डॉलर है। अकेले ही वियतनाम का चीन के साथ 182 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार है।
व्यापार असंतुलन के कारण चीन का विनिर्माण क्षेत्र प्रभावित हो सकता है और जिसके कारण वहाँ व्यापक बेरोजगारी की संभावना भी हो सकती है।
चीन के लिए यह उपयुक्त नहीं होगा यदि उसके पड़ोसी देशों ने उससे व्यापार संबंध तोड़ दिए या फिर अगर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने उसपर प्रतिबंध लगा दिए तो।
चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (The Belt and Road Initiative) (BRI), जिसे पहले वन बेल्ट वन रोड (one Belt One Road) (OBOR) के रूप में जाना जाता था, चीनी सरकार द्वारा 2013 में अपनाया गया एक वैश्विक बुनियादी ढांचा है।
इस परियोजना पर 36 वर्षों (2013 से 2049) में अनुमानित 4-8 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च होंगे।
206 बी.सी.ई (सामान्य युग से पहले) से (BCE) - 220 सीई (आम युग) (CE) तक चीन के हान राजवंश (Han dynasty) के पश्चिम की ओर विस्तार के दौरान 'मूल रेशम मार्ग' उत्पन्न हुआ।
उस समय, सड़क कई देशों से होकर गुजरती थी, उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान।
“
वियतनाम का चीन के साथ 182 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार है
आधुनिक चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव', जिसे कभी-कभी 'न्यू सिल्क रोड' के रूप में संदर्भित किया जाता है, उसका मुख्य उद्देश्य अपनी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को बढ़ाना है।
चीन के लिए एक उच्च-प्रौद्योगिकी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए यह सही परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है। इस पहल के तहत चीन ने कई देशों में निवेश किया है।
वर्तमान में, 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' सभी महाद्वीपों में फैला हुआ है।
यह उप-सहारा अफ्रीका में तैंतालीस देशों, यूरोप और मध्य एशिया में पैंतीस देशों, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में पच्चीस देशों से होकर गुजरती है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में बीस देशों, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में अठारह देशों से होकर गुजरती है।
दक्षिण पूर्व एशिया में यह छह देशों, जैसे अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका से होकर गुजरती है।
कई देशों के पास भूमि मार्ग हैं, जबकि अन्य के पास समर्पित आगामी बंदरगाहों के माध्यम से समुद्री मार्ग हैं।
इन राष्ट्रों ने चीन के साथ एक 'समझौता ज्ञापन' (Memorandum of Understanding) (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं और चीन पूरे अफ्रीका और अन्य जगहों पर सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणों के लिए सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
हालांकि, चीन का कुछ पूर्वी एशियाई देशों के साथ सीमा विवाद है, उदाहरण के लिए, वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस। इन सभी के साथ पहल जारी है।
निष्कर्ष
चीन अब एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली देश है। इसकी अर्थव्यवस्था तेज रफ़्तार से बढ़ रही है, और इसका इरादा भी उस विकास दर को बनाए रखने का है।
इस प्रगति को तभी संभाले रखा जा सकता है जब यह उन सभी देशों के साथ मधुर और सामंजस्यपूर्ण संबंध रखे जिनके साथ इसके व्यापारिक संबंध हैं। यदि चीन आगे बढ़ता है तो, यह अन्य विकासशील देशों को भी बढ़ने में मदद करेगा।
यदि चीन अपनी आर्थिक वृद्धि को बनाए रखना चाहता है तो, उसे अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU) और उसके पड़ोसी देशों के साथ अपनी शत्रुता को रोकना चाहिए और किसी भी विवाद को शांति से सुलझाना भी चाहिए।
Other Articles
Did Western Medical Science Fail?
How to Harness the Power in these Dim Times?
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall?
Taking on China – Indian Challenges
British Border Bungling and BREXIT
When Health Care System Failed – others Thrived.
3 Killer Diseases in Indian Banking System
Work from Home - Forced Reality
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time?
Is Social Justice Theoretical?
Will Central Vista fit 21st Century India?
Why Must Audit Services be Nationalized?
To Comment: connect@expertx.org
Support Us - It's advertisement free journalism, unbiased, providing high quality researched contents.