चीनी साम्यवाद
100 साल की यात्रा
चीनी साम्यवाद
100 साल की यात्रा
Chinese Communism - A 100 Year Journey का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
1 जुलाई को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अपना शताब्दी महोत्सव बनाती है।
ऐसा प्रतीत होता है की पार्टी चीनी समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार करने में सफल रही , चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एकमात्र राजनीतिक निकाय है, जो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को नियंत्रित या संचालित करती
है ।
इसे विश्व स्तर पर सबसे प्रमुख और लम्बे समय तक शासन करने वाले राजनीतिक दल के रूप में श्रेय दिया जाता है, जिसमें 900 लाख सदस्य है ।
अपनी शुरुआत में ही CCP चीन में चमत्कारिक ढंग से कामयाब रही । यद्यपि साम्यवादी विचारधारा इसकी संस्थापक रही किन्तु फिर भी यह अकाल, भुखमरी , कम आर्थिक प्रदर्शन का कारण बनी, जिससे इसकी इन 100 वर्षों की यात्रा में लाखों लोगों की मौत हुई ।
फिर भी, दिलचस्प बात यह रही की, उसी CCP के नेतृत्व में चीनी सरकार ने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला और इस तरह पिछले 50 वर्षों में कुछ अच्छा भी किया ।
यह अवलोकन एक उपयुक्त प्रश्न उठाता है, कि क्या साम्यवाद चीन जैसे देशों में, सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, बावजूद इसके कि किसी समय में भारी आबादी पीड़ित रही हो ।
रूस जैसे अन्य देश हैं, जिन्होंने 1990 में सोवियत संघ के टूटने तक, अपने नेताओं के अधीन अकाल, गरीबी, सेंसर- व्यवस्था और अभाव के सबसे बुरे दौर को देखा था ।
चीनी और रूसी साम्यवाद
यह समझना आवश्यक है कि चीन में साम्यवाद की उत्पत्ति मई 1919 के एक छात्र के विरोध से हुई थी । वे बीजिंग के 13 कालेजों के साम्राज्यवाद- विरोधी छात्र थे, जिन्होंने वर्साय की संधि के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया था ।
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चीन की एक ही रचना थी, कन्फ्यूशीवाद के सिद्धांत, जिससे उसने जनसाधारण मत प्रणाली द्वारा अपनी विविधता को बांधे रखा
फलस्वरूप, संधि के अनुच्छेद 156 के तहत, शेडोंग प्रांत में जर्मन रियायतें जापान को हस्तांतरित कर दी गई । यह चीनियों के लिए अस्वीकार्य था, क्योंकि शेडोंग प्रांत सांस्कृतिक महत्व का है । महान विद्वान कन्फ़्यूशियस का जन्म भी वहीं हुआ था ।
इसी तरह, रूस में, साम्यवाद ने व्लादिमीर लेनिन द्वारा अपनी पार्टी बोल्शेविकों के साथ सर्वहारा वर्ग के भीतर एक रास्ता अपनाया । उन्होंने एक विचारधारा के रूप में साम्यवाद का सरंक्षण किया, और रूस की अक्टूबर क्रांति के दौरान सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
दो साम्यवाद के बीच भिन्नता
1921 में चीन में गठित CCP, साम्यवाद के बोल्शेविक मॉडल से प्रेरित थी । CCP नेताओं ने जोसेफ स्टालिन से प्रेरणा ली और उन्हें एक दूरदर्शी, राजनीतिक प्रतिभावान, अपने लोगों के संरक्षक और एक परोपकारी नेता के रूप में चित्रित किया ।
हालांकि CCP और बोल्शेविकों के बीच काफी बड़े अंतर हैं । सबसे प्रसिद्ध, इतिहासकार बताते हैं कि अक्टूबर क्रांति की संरचना जटिल थी ।
सोवियत संघ में ट्रांस केशिया, यूक्रेनी और बेलारूसी गणराज्य शामिल थे, उनकी जातियों, भाषाओं, संस्कृति और इतिहास के साथ ।
बाद में बोल्शेविकों के लिए एक राजनीतिक विचारधारा के आधार पर एक बड़े अनियंत्रणीय भौगोलिक क्षेत्र को बांधना कड़वाहट भरा हो गया ।
हालांकि यह बाद में एक साथ बना रहा, यह नाटो सहयोगियों के आगामी शीत युद्ध के दबाव को बनाये रखने के लिए था ।
जैसे ही शीत युद्ध में ढील दी गई, पूरा सोवियत संघ 15 स्वतंत्र गणराज्यों में विघटित हो गया ।
CCP के पास किसानों, माओ और अन्य कई और सह - संस्थापक थे, जबकि बोल्शेविकों के पास व्लादिमीर लेनिन जैसा एकीकृत नेता ही था । यह एक और बड़ा अंतर है ।
समग्र रूप से, सोवियत संघ एक विशाल भूभाग था, जिसमें गणराज्यों की विविधता थी । अतः साम्यवाद जैसी एक ही राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा के साथ, सभी को संचालित करना कठिन था ।
दूसरी ओर, चीन की एक ही रचना थी, कन्फ्यूशीवाद के सिद्धांत, जिससे उसने जनसाधारण मत प्रणाली द्वारा अपनी विविधता को बांधे रखा। यह एक विचारधारा है, जिससे सभी जातियां चीन को अखंड रखते हुए सम्बद्ध हो सकती है ।
ड्यूक विश्वविद्यालय में चीनी सांस्कृतिक अध्यन्न के प्रोफेसर, लियू कांग ने जोर देकर कहा है कि "वर्तमान चीनी कम्युनिस्ट सरकार, मार्क्सवाद ओर साम्यवाद जैसी विचारधारा के उत्पाद की तुलना में राष्ट्रवाद का एक उत्पाद है ।
"निस्संदेह, विविधता में एकता को बनाये रखते हुए एक बड़ी आबादी सम्बद्ध हो सकती है ।
साम्यवाद के रूसी और चीनी विचारों के पारस्परिक प्रभाव
यद्यपि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, रूस में साम्यवाद से प्रेरित थी, दोनों देशों के राजनीतिक और आर्थिक कार्यों में एक अलग स्वरूप (ढांचा) देखा जाता है ।
माओ जेडोंग, चीन के एक लोकप्रिय नेता और CCP के संस्थापक सदस्य, शहर और औद्योगिक श्रमिक क्रांति के खिलाफ थे, क्योंकि बहुसंख्यक आबादी किसान वर्ग (निम्न सामाजिक हैसियत वाले कम आय वाले किसान) की थी, इस प्रकार माओ ने विद्रोह को फिर से शुरू किया, जिसे 1925 - 1927 में किसान विद्रोह के रूप जाना गया।
जबकि रूस में, जोसेफ स्टालिन की मृत्यु के बाद, 1950 की शुरुआत में, निकिता ख्रुश्चेव ने बागडोर संभाली । उन्होंने स्टालिन की नीतियों में सुधार करना जारी रखा, जिसका रूसी लोगों के जीवन स्तर पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा ।
असल में, रूसियों ने नए शासन के उदय के साथ आशा की एक किरण देखी थी। ख्रुश्चेव के शासनकाल के दौरान, लोगों ने पूंजीवाद के साथ साम्यवाद के सह - अस्तित्व को पूर्वानुमानित (Anticipate) कर लिया था ।
उस समय भी, इस प्रतिमान (Model) को समृद्ध समाज के लिए उपायों में से एक माना जाता था । फिर भी यह बहुत दूर नहीं गया । हालाँकि, माओ के नेतृत्व में, चीन ख्रुश्चेव द्वारा उठाये इस कदम से असहमत था।
1953 से 1964 तक, सोवियत संघ ने सेंसरशिप में कमी देखी, जिसने उसे कम दमनकारी समाज बना दिया । क्या वह काफी था? दुनिया को 1990 के दशक में संघ के टूटने पर इसका जवाब मिला ।
सोवियत संघ में, राष्ट्रवाद की धारणा की जांच करते हुए, रोनाल्ड ग्रिगोर सनी, राष्ट्र को परिभाषित करते है:
"लोगों का एक समूह जो खुद के लिए कल्पना करता है कि वह एक राजनीतिक समुदाय और बाकी मानव जाति से अलग, यह विश्वास करता है कि वह विशिष्ट लक्षण, शायद वास्तविक मूल्यों, ऐतिहासिक अनुभव, भाषा, या कई अन्य तत्वों को साझा करते और इसकी परिभाषित संस्कृति के आधार पर, स्वाधीनता (आत्म -निर्धारण) (self determination) के अधिकारी है । "
जैसे ही सोवियत संघ टूट गया, रोनाल्ड जैसे कई इतिहासकार दावा करते हैं कि सोवियत नेता सोवियत संघ को राष्ट्रवाद के विचार से बांधकर नहीं रख सकते थे, जो की विविधता के लिए उपयुक्त नहीं था ।
एक यात्रा - CCP की विफलता और सफलता
ऐसा लगता है कि CCP 20 वीं और 21 वीं सदी में कई चुनौतियों का सामना करते हुए एक विशाल आबादी पर सफलतापूर्वक शासन कर रही है। चीनी जनता पर नई नीतियों के साथ प्रयोग करते हुए चीन बहुत बुरे दौर से भी गुजरा है ।
उसे मानव त्रासदी की और अग्रसर किया गया था । फोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार, 1958 - 1962 के बीच, इतिहास का सबसे बड़ा समाजवादी प्रयोग हुआ, माओ की पहल, जिसके कारण 450 लाख लोगों की भूख से मृत्यु हो गयी थी ।
यह प्रयोग "ग्रेट लीप फॉरवर्ड"(Great Leap Forward) कहा जाता है ।
माओ के अधीन, आर्थिक गतिविधियों पर राज्य का पूर्ण अधिकार था । इसके बाद ही देंग शियाओपिंग के प्रभावशाली नेतृत्व में चीन ने एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को अपनाया ।
परिणामस्वरूप, निजी स्वामित्व प्रस्तावित हुआ था, जिसने धीरे -धीरे अर्थव्यवस्था में राज्यों के हस्तक्षेप को कम कर दिया ।
हालाँकि, CCP अभी भी देश की आर्थिक नीति में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और राज्य का हस्तक्षेप देश के आर्थिक चक्र में भी। फलस्वरूप, इन दशकों के दौरान लाखों चीनी गरीबी से बाहर निकलकर समृद्धि की ओर बढ़े ।
विश्व बैंक के आकड़ों के अनुसार, 1981 में, गरीब लोगों की आबादी निराशाजनक 88.3 % थी, जबकि 2015 में यह संशोधित होकर 0.7 % हो गई ।
अगर इसे संख्या में अनुवादित किया जाये तो यह 8780 लाख चीनी आबादी बनाता है, जो 1981 से आर्थिक रूप से उन्नत है । आज चीन उत्पादन और निर्यात में अग्रणी है, यहां तक कि अमेरिका ओर जर्मनी से भी आगे है ।
चीनी साम्यवाद में नया मोड़
देंग शियाओपिंग, एक प्रमुख नेता, ने कई रूढ़िवादी कम्युनिस्ट नीतियों को निरस्त कर दिया, पूंजीवाद और वैश्वीकरण के तत्वों को सम्मिलित किया । उन्हें चीन के आर्थिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है ।
इनकी राजनीतिक यात्रा शिखर से तब आरम्भ हुई जब 1926 - 27 में इन्होंने सोवियत संघ में कम्युनिस्ट क्रांति में भाग लिया । चीन लौटने के बाद, वह दक्षिण - पश्चिमी जियांग्शी सोवियत में एक राजनीतिक और सैन्य आयोजक बन गए ।
यह एक स्वतंत्र कम्युनिस्ट विदेशी अंत: क्षेत्र (Enclave) है, जिसकी स्थापना 1931 में माओ जेडोंग ने की थी ।
देंग 1954 में CCP के महासचिव बने, और बाद में 1955 में राजनीतिक कार्यकारी समिति (विभाग) के सदस्य बने । 1950 के दशक के मध्य से, वह कम्युनिस्ट सरकार में प्रमुख नीति निर्माता थे ।
किन्तु माओ के साथ एक राजनीतिक टकराव की कीमत उनके पद को चुकानी पड़ी । परिणामस्वरूप उन्हें बीज़िंग छोड़ना पड़ा । लियू शाओकी के साथ साथ
देंग का माओ के साथ असहमति का स्पष्ट कारण उनकी समतावादी नीतियां थी । हालांकि, देंग अर्थव्यवस्था को खोलने के पक्ष में अधिक थे ।
बाद में, देंग शियाओपिंग सत्ता में लौट आए, और आर्थिक विकास प्रतिरूप (Model) में सुधार किया ।
पहले चीन के किसानों पर सरकार का पूरा नियंत्रण था । देंग ने उन्हें कुछ हद तक इससे मुक्त किया, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन, राजनीतिक और सामाजिक जीवन में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल हुई ।
उन्होंने नीतियों में सुधार किया, पश्चिमी देशों के साथ व्यापार के द्वार खोलने के लिए, और कुशल प्रशिक्षित तकनीकज्ञ (Technicians), प्रबंधको को प्रस्तुत किया ।
विस्फोटक आबादी को नियंत्रित करने की ऐतिहासिक, 'एक बच्चा नीति', उनके ही दिमाग की उपज थी । शेन्ज़ेन को दुनिया के नवाचार केंद्र के रूप में विकसित करने की दूरदर्शिता (Vision) भी उन्ही की थी ।
देंग एक संपन्न और यात्रायें करते रहने वाले परिवार से थे, उनकी शिक्षा फ्रांस में हुई थी, जिसने शायद उनके मिश्र साम्यवाद और पूंजीवाद के दृष्टिकोण को प्रभावित किया था ।
चीनी आर्थिक शक्ति की नींव के रूप में राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम
राज्य ने 1970 के दशक में, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (SOE) सुधार को समाजवाद के अन्य स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया । आधुनिक चीन के उत्थान के लिए अनुशासन के साथ एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को कारणों में से एक माना जाता है ।
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सोवियत संघ 15 स्वतंत्र गणराज्यों में विघटित हो गया
1980 के दशक में, सुधार ने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (SOE) को सरकार के नियंत्रण से अलग कर दिया । बाद में उन्होंने CCP के बाहर प्रबंधन स्तर के अधिकारियों की भर्ती की ।
परिवर्तनकाल के दौरान, CCP ने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (SOE) के कामकाज और प्रबंधन में पार्टी की भूमिका को परिभाषित करने के लिए प्रावधानों को अपनाना जारी रखा ।
अंत में, 13 वीं राष्ट्रीय कांग्रेस ने राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (SOE) के कामकाज से पार्टी को अलग करने की घोषणा की । पार्टी से राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (SOE) के शीर्ष अधिकारियों को बचाने के लिए प्रावधानों को 1988 के औद्योगिक उद्यमों के कानून में संशोधित किया गया था ।
परिणामस्वरूप, चीन ने एक औद्योगिक केंद्र होने का अपना मार्ग खोज लिया, और अंततः एक सफल पूंजीवादी दृष्टिकोण रखा ।
निष्कर्ष
पीढ़ियों से, CCP के प्रभावशाली नेता, चीनी आबादी पर अपनी विचारधाराओं के साथ प्रयोग करते रहे हैं ।
कुछ के भयावह परिणाम हुए, जैसे ग्रेट लीप फॉरवर्ड, जबकि अन्य नेता, चीन को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने में सफल रहे । अंततः, दोनों पक्षों ने पूंजीवाद को निरंतर अक्षुण्ण रखा ।
चूंकि देंग शियाओपिंग के युग ने एक बुनियादी साम्यवादी ढांचे के लिए एक मुक्त बाजार की शुरुआत की, ना तो चीन को शुद्ध कम्युनिस्ट के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, और ना ही शुद्ध पूंजीवादी अर्थव्यवस्था । यह एक मिश्रण है ।
रणनीतियां राष्ट्र के लिए उपयोगी रही, क्योंकि चीन एक औद्योगिक केंद्र, विनिर्माण पूंजी, नवाचार केंद्र बन गया है, और बेरोज़गारी पर अंकुश लगाना जारी रखता है । परिणामस्वरूप लाखों ने सम्पन्नता देखी ।
अंत में यह कह सकते है, कि चीन एक दशक से भी अधिक समय से सबसे बड़ा निर्यातक देश है ।
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