ब्रिटेन का परमाणु नीति में आमूल परिवर्तन
ब्रिटेन का परमाणु नीति में आमूल परिवर्तन
BRITAIN'S Nuclear U-Turn का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
महामारी से लड़ने और उसके लिए अनुकूल टीका प्राप्त करने की हड़बड़ी में, एक महत्वपूर्ण समाचार ने अपनी दृश्यता खो दी है। हालांकि यह बहुत अधिक परिणामी है और इसके महामारी से भी अधिक गंभीर परिणाम हो सकते है।
वैश्विक सुरक्षा वातावरण महत्वपूर्ण परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है जो, निस्संदेह शीत युद्ध के युग की विशेषता नहीं है। उस समय भू-राजनीति का ध्रुवीकरण हुआ था, जो अब नहीं है। हम एक बहुध्रुवीय भू-राजनीतिक शक्ति संरचना में हैं और इसलिए खतरे भी बहुध्रुवीय हैं।
आतंकवाद के अलावा, परमाणु युद्ध का खतरा भी बढ़ गया है। कम से कम, दुनिया भर की सरकारें इसी अभिज्ञता (perception) के बारे मे घोषणा करती रही हैं।
परमाणु शस्त्रागार (arsenals) में रूस का विकास, नाटो (NATO) के लिए चिंता का विषय रहा है। इस 'दृष्टि बोध' खतरे ने ब्रिटेन की 'परमाणु हथियार नीति' में नाटकीय बदलाव किया है।
जब अपने सुरक्षा दृष्टिकोण में ब्रिटेन और अमेरिका घनिष्ठ रूप से कार्य करते हैं तो, केवल ब्रिटेन के दृष्टिकोण में बदलाव ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं।
इस सब के अलावा, ब्रिटेन के पास 180 बमों का परमाणु अस्त्र भंडार था, जिसे वह अब बढ़ाकर 260 करना चाहता है। तो, अचानक से यह वृद्धि क्यों?
ब्रिटेन सरकार के अनुसार, दो दशकों से अधिक समय तक चलने वाली 'स्व- निर्धारित सीमा' अब एक निवारक के रूप में परमाणु क्षमताओं को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
जबकि ब्रिटेन वैश्विक शांति के लिए परमाणु निरस्त्रीकरण और परमाणु हथियार में कमी करने में अपना विश्वास जारी रखता है, यह वृद्धि इसके विपरीत है।
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...ब्रिटेन अपने वेंगार्ड ट्राइडेंट कार्यक्रम (Vanguard Trident program) में भी बदलाव कर रहा है
मुख्य खतरा कौन है?
कहा जाता है कि, रूस के पास परमाणु शस्त्रागारों का ढेर है, जो ब्रिटेन की स्थिति को कमजोर बनाता है। सरकार के दस्तावेज़ के अनुसार, रूस के पास कई वितरण परमाणु हथियार हैं, जो जमीन, समुद्र और हवा के रास्ते एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाए जा सकते हैं।
दूसरी ओर ब्रिटेन के पास केवल, 'निरंतर समुद्री निवारक' (CASD) नामक नौसैनिक क्षमताएं हैं। हालाँकि, यह क्षमता का केवल एक हिस्सा है। ब्रिटेन नाटो (NATO) का हिस्सा है और इसलिए इसके भागीदारों के लिए कोई भी खतरा नाटो (NATO) की क्षमताओं को दुश्मन के खिलाफ खड़ा करता है।
फिर वही इसकी परमाणु हथियारों के संबंध में अमरीका के साथ एक अनूठी साझेदारी है। इसलिए यदि सीमित परमाणु हमले के खतरे की बात आती है तो, ब्रिटेन मुख्य रूप से ढका हुआ है।
ब्रिटेन अपनी परमाणु क्षमताओं का रणनीतिकरण करने के लिए अपनी विशिष्ट स्थिति का उपयोग करता है। यह अमेरिका के साथ अपने विशेष संबंधों और नाटो (NATO) की प्रतिबद्धता को चतुराई से जोड़ता है।
हर समय, यह विशिष्ट स्थिति अच्छी तरह से काम करती है। अतः, यह अपने 'भंडार की संख्या' में बदलाव नहीं कर रहा । यह केवल नौसैनिक परमाणु क्षमता के साथ जारी रहा था। अमेरिका और नाटो (NATO) की संयुक्त क्षमता एक उपयुक्त निवारक थी।
नई नीति में, यदि अभी भी 'निवारक' एकमात्र कारक है, जिसे ब्रिटेन को माना जाता है तो, भंडार में वृद्धि भी रूस के साथ पैमाने को संतुलित नहीं कर सकता । रूस के पास ब्रिटेन की तुलना में कहीं अधिक परमाणु अस्त्र भंडार और वितरण क्षमताएं बनी रहेंगी।
इसलिए यह निश्चित रूप से स्पष्ट नहीं है कि, ब्रिटेन के परमाणु नीति में 'आमूल परिवर्तन' (u- turn) का उद्देश्य क्या है।
क्या पुरानी निवारक रणनीति अभी भी मान्य है?
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद से, परमाणु हथियार रखने वाले सभी देशों ने उन्हें, एक 'निवारक' के रूप में इस्तेमाल किया है। यह शस्त्रागार में रखा एक महंगा हथियार बन गया है, जिसका इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना चाहिए।
कई और देश और उनके तानाशाह इस रणनीति का इस्तेमाल करना चाहते हैं। यह 'उत्तर कोरिया' (North korea) के लिए अच्छा काम कर रहा है, भले ही उसकी आर्थिक ताकत उसकी क्षमताओं के विपरीत है।
पश्चिम द्वारा शासन परिवर्तन की इच्छा अभी भी एक 'दूर की कौड़ी' है। 'किम जोंग-उन' से भिन्न, गद्दाफी (लीबिया का तानाशाही शासक) और मुबारक(मिस्र का राष्ट्रपति) ने परमाणु हथियारों का पीछा न करने की रणनीतिक गलती की, अतः अपनी मृत्यु को प्राप्त हुए।
दशकों पहले, पाकिस्तान और भारत ने परमाणु प्रतिरोधक, विकसित कर लिए थे। फिर भी, वे परमाणु हमले के लिए एक दूसरे के आमने - सामने रहते हैं। दोनों ओर की जनता पर परमाणु युद्ध का लगातार खतरा मंडरा रहा है।
भारत के अपने 'भंडार में वृद्धि' करने की संभावना है, जैसे कि, चीन से खतरा बढ़ रहा है, विशेष रूप से, 2020 की गर्मियों में सीमा पर झड़प के बाद।
ईरान लगातार अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं का पीछा कर रहा है ताकि, इजरायल से खतरों को विफल किया जा सके और मध्य-पूर्व के परिणामों को प्रभावित किया जा सके।
इन सभी के पास एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में परमाणु निवारक है ।
हम यह नहीं समझ पा रहें हैं कि, जितने अधिक राष्ट्रों के पास परमाणु हथियार होंगे, दुनिया भी उतनी ही खतरनाक होती जाएगी । एक भी ट्रिगर यदि नियंत्रण से बाहर हुआ तो, विभिन्न क्षेत्रों में परमाणु युद्ध का एक चक्र शुरू कर सकता है।
क्या परमाणु कूटनीति में विश्वास विफल हो रहा है?
इतने वर्षों से, यह समझा गया था कि, परमाणु निवारक कार्य करता है और इससे कूटनीति प्रबल होती है। कूटनीति के लिए परमाणु निवारक सहायक रहा था। हालांकि, मध्य पूर्व, विशेष रूप से सीरिया में मौजूदा स्थिति के साथ, कूटनीति विफल रही है।
भले ही सीरिया में परमाणु हथियारों की आवश्यकता नहीं है, किन्तु महाशक्तियों के रुख के कारण स्थितियां कहीं और ही जा सकती है यहां तक कि, परमाणु युद्ध तक बढ़ सकती हैं।
रूस अभी भी यूक्रेन में दृढ़ता के साथ संलग्न है। यह क्षेत्र नाटो और रूस के बीच शत्रुता का मैदान बना हुआ है। क्योंकि 'कीव' (Kyiv) में नई सरकार नाटो समर्थक है,अतः रूसी इसको लेकर नाखुश है।
कूटनीति दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता को धीमा करने में विफल रही है। ताइवान विवाद का क्षेत्र बना हुआ है और हांगकांग में अप्रतिबंधित लोकतंत्र का आह्वान करता है, जो इस क्षेत्र में तीव्रता से गुस्से को बढ़ा रहा है। ब्रिटैन की अपने पिछले उपनिवेशों में 'तूती बोलती' थी।
यह राजनयिक और अप्रवासन उपकरणों का उपयोग करके अपनी आबादी का समर्थन करता था। हालाँकि, जिस तरह, हांगकांग के कार्यकर्ता ब्रिटेन में राजनीतिक शरण लेने की कोशिश जारी रखे हुए है , चीन के साथ कूटनीति अपने परिणाम नहीं दिखा सकती है।
रूस और चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षा उनके परमाणु भंडार पर टिकी हुई है। तो, शायद, ब्रिटेन ने भी बढ़े हुए परमाणु गुप्त भंडार का विकल्प खोल दिया है।
इसके साथ ही, ब्रिटेन अपने वेंगार्ड ट्राइडेंट कार्यक्रम (Vanguard Trident program) में भी बदलाव कर रहा है। इसके अलावा, यह ड्रेडनॉट-श्रेणी पनडुब्बी (Dreadnought class Submarine) कार्यक्रम को भी अपग्रेड कर रहा है।
इसे 2030 के दशक में सेवाओं में शामिल होने वाली नवीनतम अत्याधुनिक तकनीक और परमाणु वितरण प्रणाली माना जाता है। 'वेंगार्ड श्रेणी की पनडुब्बियां' 1994 से सेवा में है और अब तक एक सफल निवारक रही हैं।
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खुला आसमान संधि (Open Skies Treaty) अनिश्चितता और संशय की स्थिति पर है
तो आखिर, परमाणु निरस्त्रीकरण का भविष्य क्या है?
इसका सवाल का जवाब किसी को नहीं पता। लेकिन, जब सरकारें 'एनपीटी' (परमाणु अप्रसार संधि) की हस्ताक्षरकर्ता बनी हुई हैं, तब ब्रिटेन ने एक खराब उदाहरण पेश किया है।
यह अन्य देशों के नैतिक आत्म-संयम की अवहेलना करने के द्वार खोलेगा। जल्द ही, परमाणु हथियारों की दौड़ को खुला घोषित कर दिया जाएगा।
खुला आसमान संधि (Open Skies Treaty) अनिश्चितता और संशय की स्थिति पर है। अमेरिका 2020 के नवंबर में संधि से हट गया है, जिसने हस्ताक्षर करने वाले देशों के सदस्यों के बीच गैर-हथियारबंद हवाई निगरानी की अनुमति दी थी।
जवाबी कार्रवाई में, रूस भी कुछ महीने बाद जनवरी 2021 में संधि से हट गया। शत्रुता बढ़ रही है और इसलिए इस संधि के प्रति अविश्वास है। वर्तमान में, संधि में 34 देश हैं, किन्तु इसकाभविष्य अंधकारमय दिखता है।
उपयुक्त रूप से पंक्तिबद्ध किए गए सदस्य देशों पर अमेरिका या रूस के साथ जानकारी साझा करने का आरोप लगाया जाएगा। यह गुप्तद्वार की निगरानी की शुरुआत होगी। ऐसा बहुत कुछ शीत युद्ध के दौर में हुआ था।
भले ही 'ब्रिटेन' दुनिया में परमाणु प्रतियोगिता शुरू करने के लिए जिम्मेदार नहीं होगा, किन्तु निस्संदेह इसने इस बहुध्रुवीय दुनिया में एक परमाणु घटना होने के बढ़ते डर और अनिश्चितता में, ईंधन का काम किया है। क्या उनका खुफिया समुदाय उससे अधिक जानता है जो, आम जनता को पहले से विदित है?
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