ब्रिटिश ऐतिहासिक सीमांकन कुप्रबंध और ब्रेक्जिट
ब्रिटिश ऐतिहासिक सीमांकन कुप्रबंध और ब्रेक्जिट
British Border Bungling and BREXIT का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के प्रति ब्रिटिश उन्माद (आवेग) अंतर्निहित लगता है, और यह इक्कीसवीं सदी में भी जारी है। 1600 के दशक से, 2020 में ब्रेक्जिट तक, ब्रिटिश सरकार ने दुनिया भर में कई अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को उलझा दिया है।
यहाँ पर हम आठ महत्वपूर्ण देशों की सीमाओं पर ब्रिटिश हस्तक्षेप की चर्चा करेंगे ।
भू-राजनीति में एक शक्तिशाली खिलाड़ी के रूप में, निरंतर ब्रिटिश सरकारों ने सीमाओं को पुनः आरेखित कर (redraw) जटिल राजनीतिक युद्धाभ्यास किये, यह मानते हुए कि वे चतुर जीत दर्ज कर रहे है।
परिणामतः इस दृष्टिकोण ने दुनिया भर में लाखों प्रजातीय जन समुदायों को जड़ से उखाड़ डाला और अधिकांश अभी भी स्थायित्व की अस्पष्टता से जूझ रहे हैं।
समय के साथ, इन सीमाओं के कारण कई लाख सैनिकों की सेनाएँ बनी और चालाक रक्षा निर्माताओं को मजबूत किया ।
इन निर्माताओं ने मोर्चाबंदी कर रहे देशों को अत्यधिक मूल्य के नवीन हथियारों की आपूर्ति की । सीमा के मुद्दों पर, नवोदित राष्ट्रवादी राजनेताओं ने, समय- समय पर आवाज उठाई और निस्संदेह, खूनी युद्धों को स्वरूप भी दिया ।
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सीमा के मुद्दों पर, नवोदित राष्ट्रवादी राजनेताओं ने, समय-समय पर आवाज उठाई और निस्संदेह, खूनी युद्धों को स्वरूप भी दिया
पहला सुविख्यात उलझा हुआ मामला वर्ष 1660 में स्कॉटलैंड के साथ घटित हुआ। स्कॉटलैंड, हालांकि उस वक़्त स्वतंत्र था, फिर भी इंग्लैंड के साथ संघ में शामिल हो गया। आज यह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं है।
स्कॉटलैंड की ब्रिटिश राजशाही के प्रति निष्ठा है और यह लोगों और व्यापार की मुक्त आवाजाही सुनिश्चित करता है। हालांकि, खुदरा स्कॉटिश बैंक स्कॉटिश पाउंड के बैंक नोट जारी करते हैं, लेकिन वे कानूनी निविदा (वैध मुद्रा) नहीं हैं।
चूंकि ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग स्कॉटिश आधार मुद्रा है, इसलिए इसे लंदन से बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जबकि स्कॉटलैंड राष्ट्रमंडल खेलों में एक देश के रूप में भाग लेता है, फिर भी इसकी संयुक्त राष्ट्र या ओलंपिक में कोई सीट नहीं है। ऐसा है यह उलझा हुआ मामला ।
1893 में, डूरंड रेखा ने बलूचिस्तान और पश्तूनिस्तान के बीच एक लकीर बनाई और इस तरह असंगत तरीके से बलूच और पश्तून समुदाय को विभाजित कर दिया 126 साल बाद, आज भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान क्षेत्रीय विवाद में उलझे हुए हैं।
तत्कालीन ब्रिटिश सिविल सेवक मोर्टिमर डूरंड द्वारा तर्कशून्य विभाजन से अस्पष्टता के बीज आजतक अंकुरित हो रहे हैं।
अफगानिस्तान की सरहदी लकीर ब्रिटिश उपनिवेशवादी पदाधिकारियों द्वारा खींची गई थी और इसे तत्कालीन अफगान नेता अमीर अब्दुल रहमान की सहमति से खींचा हुआ माना जा सकता है।
किंतु आज के अफगान उस सरहदी लकीर को "उपनिवेशवाद हस्तक्षेप" के रूप में लेते हुए विवाद करते हैं। इसका एकमात्र कारण यह है कि इसने पश्तून जनजातियों और उनके पैतृक घरों को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच विभाजित कर दिया है।
वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि अंग्रेजों और अमीर अब्दुल रहमान के बीच हुए इस सरहद हदबंदी समझौते की वैधता 100 साल ही थी, जो कि 1993 में ही समाप्त हो गई थी।
इस सीमा के पाकिस्तानी हिस्से में पश्तून क्षेत्रों के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत और पूर्व संघ प्रशासित कबायली क्षेत्र (FATA) के कुछ हिस्से शामिल हैं। 1947 में, अंग्रेजों ने इस सीमा को उनको सौंप दिया था; और इसलिए यह कानूनी रूप से पाकिस्तान को उसके गठन के समय विरासत में मिल गया था।
ऐसी ही, भारत, तिब्बत और चीन के बीच की सीमा एक विशिष्ट उलझा हुआ मामला है। कलम चाहे मानचित्र पर कितनी भी तीखी थी, फिर भी 1914 की मैकमोहन रेखा पाँच मील की मोटाई के साथ सात सौ मील की अस्पष्ट सीमा में अनुवादित हुई।
एक घटना ने दूसरी घटनाओं को उत्प्रेरित किया। चीन और भारत, दो सबसे अधिक सैन्यीकृत राष्ट्र, पहले ही एक पूर्ण पैमाने पर युद्ध लड़ चुके हैं, और झड़पें दोनों के बीच आज भी जारी हैं।
2017 के अंत तक, दोनों के बीच डोकलाम सीमा पर विवाद शुरू हो गया था, जिसने 2020 में गलवान घाटी जैसे खूनी संघर्ष का स्वरूप लिया।
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कलम चाहे मानचित्र पर कितनी भी तीखी थी, फिर भी 1914 की मैकमोहन रेखा पाँच मील की मोटाई के साथ सात सौ मील की अस्पष्ट सीमा में अनुवादित हुई
1931 में कर्जन लाइन द्वारा पोलैंड का विभाजन, नक्शे पर कलम का शातिर तरीके से इस्तेमाल करने के ब्रिटिश नुस्खे को बढ़ावा देता है। कर्जन रेखा का परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देखा गया था।
जिसमे हिटलर और सोवियत संघ ने कर्जन रेखा द्वारा सीमांकित पोलैंड के अपने हिस्से के लिए एक खूनी युद्ध लड़ा।
पंजाबियों, बंगालियों, पश्तूनों और बलूचों की तरह, पोलिश (पोलैंड के निवासी) और यहूदियों ने भी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को अपने समुदायों को निर्लज्जता (brazenly) से विभाजित हुए पाया।
आज पोलैंड, लिथुआनिया, यूक्रेन और बेलारूस जैसे चार देशों से यह निर्वासित कर दिए गए हैं।
बार-बार, इतिहास ने ब्रिटिश सरकारों द्वारा गलत तरीके से किए गए सीमांकन के कारण त्रासदियों को देखा है। 1917 की बालफोर घोषणा द्वारा इज़राइल का गठन और रैडक्लिफ लाइन द्वारा भारत का विभाजन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
भारत के विभाजन ने तो दुनिया का सबसे बड़ा अनियोजित सामूहिक प्रवास देखा। अठारह-सौ मील लंबी रेडक्लिफ रेखा छह सप्ताह के छोटे परिवर्तन काल में खींची और कार्यान्वित की गई थी।
8 करोड़ 80 लाख की विभाजित आबादी ने लाखों लोगों की दुखद मौत के साथ, गृहयुद्ध जैसी हिंसा को जन्म दिया।
इसी तरह, फ़िलिस्तीन, हिंसा के कभी न खत्म होने वाले भंवर में बंद है। नतीजतन, मध्य पूर्व में गाजा और भारतीय उप महाद्वीप में कश्मीर, दोनों ही चिरस्थायी संवेदनशील जगहे बनी हुई हैं।
ब्रिटिश शासन के तहत यमन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान की सीमाएं समझौते और संधियों के साथ परिवर्तन से गुजरी हैं। लेकिन संघर्ष समय-समय पर सामने आता रहा है।
बुरामी विवाद मध्य पूर्व के रेगिस्तान में एक और मामला है। साढ़े तीन साल के लंबे विवाद के कारण सऊदी अरब पीछे हट गया, और ओमान ने नईम, अल बू शमी, बुरामी और हमासा पर पुनः नियंत्रण हासिल किया।
अबू धाबी के अमीरात ने अल ऐन पर अपना नियंत्रण मजबूत किया लेकिन परिणामस्वरूप, इसने सऊदी अरब-संयुक्त अरब अमीरात सीमा विवाद शुरू कर दिया जो आज भी अनसुलझा है।
सीमाओं के साथ अंग्रेजों के विकृत उन्माद के कुछ और उदाहरण हैं। जैसे फ़ॉकलैंड द्वीप समूह, जहां अर्जेंटीना, ब्रिटेन के साथ विवाद करता रहता है और जिब्राल्टर, एक 'ब्रिटिश विदेशी प्रदेश', स्पेन के साथ विवाद में है।
जब यूरोप 2008 के वित्तीय संकट के झटके से मुश्किल से उबर ही रहा था, तब अचानक, ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने 2013 में ब्रेकज़िट जैसा विफल प्रयास शुरू कर दिया।
जनमत संग्रह का आह्वान करने के जो भी कारण रहे हो ,किन्तु उनके फलस्वरूप, अपनी तरह के एक लोकतांत्रिक अभ्यास में, यूरोप, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड में विभिन्न सीमाओं को साथ - साथ फिर से खींचा, टुकडों में काटा और बनाया जा रहा है।
लक्ष्य क्या होगा, इस पर निर्भर करते हुए, यूरोप और ब्रिटेन में टैरिफ, लोगों की आवाजाही, अंतर्राष्ट्रीय पुलिसिंग, कराधान, मानवाधिकार, मुद्रा आदि के लिए विभिन्न सीमा होगी।
पिछले तीन वर्षों से, ब्रेकज़िट की जटिलताओं पर मंडरा रही अनिश्चितता, लंबी बहस और चर्चाओं के साथ, एक बड़ी आबादी मानसिक रूप से थक गई है। वह पहले से, कम उत्पादकता वाली स्थिति में रह रही है।
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सावधान रहें, आयरलैंड और उनकी सीमाएँ, ब्रेकज़िट के लिए भविष्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण और निर्णायक होंगी
उत्तरी आयरलैंड, जो यूरोपीय संघ के रूप में आयरलैंड गणराज्य के साथ शांतिपूर्वक खड़ा है, जल्द ही सीमाओं का युद्धक्षेत्र होगा। ब्रेकज़िट, द्वीप को उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणराज्य के बीच एक कठिन सीमा के साथ विभाजित करेगा।
अनुमानतः, यह आयरिश आबादी के लिए असुविधाजनक और 1998 के गुड फ्राइडे समझौते के विरुद्ध होगा। इस कारण से, यह प्रस्तावित है कि यूरोपीय संघ के साथ नई सीमा को उत्तरी आयरलैंड से आयरिश सागर के मध्य तक जाना पड़ सकता है।
इसका मतलब यह होगा कि ब्रेकज़िट के बाद भी, ब्रिटेन का हिस्सा होने के बावजूद, उत्तरी आयरलैंड की आयरलैंड गणराज्य के साथ कोई सीमा नहीं होगी। संक्षेप में कहे तो, ये दो आयरलैंड राष्ट्र एक होंगे।
कोई आश्चर्य नहीं, कि भविष्य में, इस ब्रिटिश समाधान (ब्रेकज़िट) का मतलब होगा आधिकारिक तौर पर उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य के साथ एक राष्ट्र के रूप में विलय करना, अथवा एक सदी पहले की अपनी स्थिति को बहाल करना।
और फिर से, यह ब्रिटिश सरकार ही थी जो विभाजन की ओर ले गयी है। सावधान रहें, आयरलैंड और उनकी सीमाएँ, ब्रेकज़िट के लिए भविष्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण और निर्णायक होंगी।
निस्संदेह, ब्रेकज़िट ने ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय संघ के देशों को निर्विवाद नकारात्मक परिणामों में धकेल दिया है। उनमें से एक है वैश्विक आर्थिक मंदी सुनिश्चित करना ।
सीमाओं को रेखांकित करने के पहले के उदाहरणों के विपरीत, इस बार, यह ब्रिटिश गृह सीमा ही है जो विभाजन की कलम के नीचे है।
केवल इतिहास ही यह तय करेगा कि क्या ब्रेकज़िट भी एक और ब्रिटिश सीमांकन कुप्रबंध नीति थी।
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