भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 3 जानलेवा बीमारियां
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 3 जानलेवा बीमारियां
3 Killer Diseases in Indian Banking System का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
भारतीय बैंकिंग प्रणाली धीमी, नौकरशाही और रूढ़िवादी होने से आधुनिक और उद्यमिता की ओर रूपांतरित हुई है। इसके इतिहास में कभी भी इसकी ईमानदारी और भरोसे पर सवाल नहीं उठाया गया।
तथ्य यह है कि, भारतीय बैंक 'भरोसे' के प्रतीक रहे हैं। जब भी पैसे और कीमती सामान को सुरक्षित रखने की तलाश की गई, वह स्थान बैंकों का ही रहा है। लंबे समय से ऐसा ही होता आ रहा है। बैंक की अखंडता भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा रही है।
भारतीय बैंकों की कहानी को सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से देखा जाना चाहिए। ढाई शताब्दियों तक औपनिवेशिक शासन को झेलने वाला, दरिद्रता, ब्रिटिश कर प्रणाली की मनमानी से बचने के लिए संघर्ष करना, बरसात के दिनों के लिए बचत करना सभी भारतीयों की अंतर्निहित मूल्य व्यवस्था रही है।
हर बच्चे को अपना जेबख़र्च बचाने के लिए एक घरेलू गुल्लक दिया गया। 100% भारतीय गृहिणियों के पास एक गुप्त गुल्लक है। कोई आश्चर्य नहीं कि, इस तरह भारत बचत और किफायत का देश बन गया।
चाहे वह घरेलू गुल्लक हो या राष्ट्रीय बैंक, बैंक व्यवसाय (Banking) भारतीय संस्कृति और परंपरा का मूल है। डिजिटलीकरण और मोबाइल बैंकिंग से पहले, बैंक भवन आर्थिक गतिविधियों का केंद्र था। वेतन दिवस पर, सभी रास्ते बैंक अकाउंटेंट तक ही जाते है।
आज, वही अखंड और सुरक्षित जमा खाता संस्थान गंभीर खतरे में हैं। यह एकबारगी धोखाधड़ी के कारण नहीं है, बल्कि यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि, हम भारतीयों का अपने बैंकों पर से भरोसा उठने लगा है। नागरिकों के रूप में संशयवाद का तेजी से विकास होता है।
मैंने तीन जानलेवा बीमारियों की पहचान की है, जिनसे भारतीय बैंक पीड़ित हैं।
बढ़ते एनपीए (NPAs) (गैर निष्पादित परिसंपत्तियां) - एनपीए की मात्रा बहुत अधिक है, जो सभी को पता है। 2019 में यह लगभग 8 लाख करोड़ रुपये (लगभग 100 बिलियन डॉलर) थी।
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बैंक व्यवसाय (Banking) भारतीय संस्कृति और परंपरा का मूल है
स्रोत: वित्तीय जवाबदेही केंद्र
क्या उन गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) का लेखांकन उपचार अधिक खतरनाक है? सरकार और बैंक विभिन्न उपायों के बावजूद इन एनपीए (NPAs) को वास्तव में ठीक करने में असमर्थ हैं।
इसलिए, खातों में उनका अलग तरह से उपचार किया जाता है ऐसा कुछ, जिससे कहीं और रखे गए एनपीए को बैंकों की बैलेंस शीट(तुलन पत्र) के साथ पुनः ठीक करने का प्रयास किया जाता है।
भारतीय बैंक संघ (IBA) ने लगभग 75,000 करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) से युक्त 'बैड बैंक' बनाने के लिए वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
"बैड बैंक" (Bad bank), एक आर्थिक अवधारणा है, जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नये बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है।"
कथित मिलीभगत और सहचर पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म)
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि, राजनीतिक व्यवस्था में प्रभावशाली व्यक्ति की अनुमति के बिना धोखाधड़ी असंभव है। भारत में राजनीति को व्यापक निधिकरण (फंडिंग) की जरूरत होती है और इससे घोटालों के मामलों में बढ़ोतरी होती हैं।
यह भारत में व्यापार करने की लागत है। यहां, धोखाधड़ी में वे एनपीए भी हैं जो, राजनीतिक समर्थन के कारण वसूली योग्य नही रहे हैं। सुर्खियों में रहे, एनपीए के उच्च मूल्य के मामलों और धोखाधड़ी के खिलाफ न्यूनतम वसूली या कुछ मामूली कानूनी कार्यवाही ही हुई है।
जनता के लिए एक उदाहरण रखा गया है कि, उच्च पद वाले और शक्तिशाली जल्दी और आसानी से इन मामलों में राहत पा जाते हैं। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने खुद को इन मामलों में दोषी पाया है।
भरोसा खत्म हो गया है-
गैर निष्पादित संपत्ति जमा करने वाले भारतीय बैंकों से निपटने के उपायों में से एक 2017 में,एफआरडीआई (FRDI) (वित्तीय समाधान और जमा बीमा विधेयक) बिल का प्रस्ताव करना था।
यह 'जमा बीमा' (deposit insurance) के लिए 'अमेरिका' के बिल की ही कॉपी-पेस्ट है। हालांकि तब तक मकसद सही प्रतीत होता है, जब तक "शैतान विवरण में नही आता''।
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"बैड बैंक" (Bad bank), एक आर्थिक अवधारणा है
जबकि अमेरिका में 'जमा बीमा' भारत के लिए 250,000 डॉलर है और यह 1,00,000 रुपये के रूप में प्रस्तावित है। ($2000 से कम ) FRDI ने दो नुकसान किए हैं - एक; इसने खुदरा और घरेलू जमाकर्ताओं को अपनी जीवन भर की बचत और सामाजिक सुरक्षा के बारे में परेशान कर दिया है; दूसरा, इसने भविष्य में किसी संकट को लेकर सभी को असुरक्षित बना दिया है।
FRDI को एक आने वाली बैंकिंग गिरावट का अग्रदूत माना जाता है।
इन तीनों रोगों के परिणाम गंभीर दिखते हैं। निवेशक, भारतीय और विदेशी, जो कभी भारतीय बैंकिंग प्रणाली पर अत्यधिक आश्वस्त रहते और भरोसा करते थे, क्योंकि इसने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट को सफलतापूर्वक कम किया था।
वही अब उससे मंदी रुख दिखाने और असुरक्षित होने लगे हैं। देश के सामान्य आर्थिक वातावरण पर काले बादल छा गए है, भले ही सकल घरेलू उत्पाद में 7% की वृद्धि के दावे हैं।
एसएमई (SME) (लघु और मध्यम उद्यम) उधारकर्ताओं को व्यावसायिक ऋण प्राप्त करने में अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है जो, उद्यमशीलता की भावना को नम करके हानिकारक प्रभाव डाल रहे हैं।
2020 तक हाल ही में दिवालिया हुए बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सूची:
लक्ष्मी विलास बैंक (Laxmi Vilas Bank)
आईएल एंड एफएस ( IL&FS)
डीएचएफएल (DHFL)
यस बैंक (Yes Bank)
पीएमसी (PMC)
इन जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए आशा की एकमात्र किरण, मजबूत पारदर्शिता के बड़े धमाकों की मात्रा, सुधार, सख्त कानून लागू करना और न्याय ही है। वरना, भारत एक और ग्रीस (Greece) बनने की निश्चित राह पर है।
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