प्रश्न
क्या भारत की आर्थिक प्रगति गलत दिशा में है?
भाग - 1
प्रश्न
क्या भारत की आर्थिक प्रगति गलत दिशा में है?
भाग - 1
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall? - Part I का हिन्दी रूपांतर
~ सोनू बिष्ट
क्या इन 75 वर्षों में 'भारतीय', गलत 'आर्थिक प्रणाली' की रूपरेखा तैयार कर रहे थे? कब और कहाँ यह रचना गलत हो गई, इससे भी बदतर यह है कि, क्या भारतीय इस बात से अनजान है?
भारत कि असल आर्थिक मजबूती 'कोविड' जैसी महामारी के कारण बेनकाब हुई. जिस वक़्त से लॉकडाउन भारत में शुरू हुआ, उस वक़्त से संक्रमण फैलने के अलावा गरीबों का पेट भरने जैसी चिंता भी बढ़ रही थी.
अगर सरकार के आँकड़े देखे जाएं तो अचानक से भारी संख्या में आर्थिक व्यवस्था से संघर्षरत नागरिक नजर आते है. तो, कम साधनों की यह जल-प्रलय कहाँ से आई?
भारत तीन महीने तक सम्पूर्ण लॉकडाउन में रहा और उसके बाद आंशिक रूप से, जो की अभूतपूर्व था. देश की बहुत बड़ी आबादी को अपना बोझ संभालना मुश्किल हो गया था.
यहां तक कि मूलभूत तीन वक़्त का भोजन भी 'विशिष्ट भोजन वस्र' (Luxury ) बन गया. उनमें से कई दिहाड़ी मज़दूर', और छोटे बड़े उद्योगों के मज़दूर थे.
केंद्र सरकार ने 55 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मुहैया करवाया. इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, National Food Security Act, 2013 (NFSA) के तहत 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लगभग 28 लाख टन अनाज वितरित किया गया.
“
यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद (GDP ) के सम्बन्ध में भारत 5वी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर ऐसा क्या गलत हो रहा है कि अभी भी लाखों लोग गरीबी से संघर्षरत है.
हालांकि देश सामान्य परिस्थितियों में लौट चुका है, मगर देश की भलाई और समग्र निर्माण की दृष्टि से देखा जाए तो, स्थिति अभी भी विकट है. वास्तव में, यह गहरा संकट जारी रहेगा.
यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद (GDP ) के सम्बन्ध में भारत 5वी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर ऐसा क्या गलत हो रहा है कि अभी भी लाखों लोग गरीबी से संघर्षरत है.
'दक्ष ' अर्थशास्त्रियों कि एक बड़ी आबादी आय असमानता, असफल समाजवाद, भ्रष्टाचार, भटकी हुई राजनीति इत्यादि के विषय में विभिन्न सिद्धांतों का सुझाव देती है. हमारी जांच यहां पर अधिक आधारभूत है, इन सभी बहानों से, जानिए क्यों.
महत्वपूर्ण प्रश्न
भारत कुल वैश्विक कृषि उत्पादन में 7.39 प्रतिशत का योगदान करता है. भारत गेहूं, चावल, गन्ना,मूंगफली, सब्जियाँ, फल,कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और 'बासमती चावल' का शीर्ष निर्यातक है. यह दूध और दालों का भी सबसे बड़ा उत्पादक है.
तो, आखिर क्यों किसान एक 'अनिश्चित' व्यक्तिगत संचय (Personal savings ) के साथ जी रहे है?
इस तर्क का समर्थन करने के लिए हम अमेरिकी रक्षा उद्योग का उदाहरण दे रहे है,हालांकि वैश्विक शांति के लिए यह उत्तम उद्योग नहीं है. अमेरिका दुनिया में रक्षा सामानों का सबसे बड़ा उत्पादक है.
देश ने 2020 में $725 बिलियन डॉलर खर्च किए राष्ट्रीय सुरक्षा पर और यह राष्ट्र के संघीय खर्च(Federal Spending ) का 11 % है.
जहां अमेरिका में न्यूनतम मजदूरी प्रति घंटा $7.25 है, वहीं रक्षा क्षेत्र में प्रति घंटा मजदूरी $39.50 है. जो इससे पांच गुना अधिक है. औसत रक्षा उद्योग वेतन $77,000 प्रति वर्ष है, और प्रवेश स्तर श्रेणियों में शुरुवात $58,875 से होती है.
अमेरिका, दुनिया में रक्षा सामानों का सबसे बड़ा उत्पादक है. क्या कोई यह सोच सकता है कि उसके मालिक और कर्मचारी गरीब है और उसके कारण आत्महत्या कर रहे है? तो आखिर भारतीय कृषि -भूमि के मालिक क्यों मर रहे है?
भारत की 50% से ज्यादा जनसंख्या कृषि और इससे सम्बद्ध गतिविधियों से अपनी आय प्राप्त करती है. किन्तु कृषि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 17% हिस्सा निर्मित करती है.
यह तब है, जब भारत ऊपर उल्लेखित कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक है. उन 50 % में से अधिकांश की आर्थिक परिस्थिति भी ठीक नहीं है. हर साल लगभग 10,000 किसान आत्महत्या करते है. किसानों के खुदकुशी करने का मुख्य कारण अपरिहार्य (Overwhelming) कृषि ऋण का भार है.
2012 में एक औसत भारतीय कृषक परिवार की कमाई 77,124 रुपए प्रति वर्ष थी, जो कि प्रति माह के हिसाब से 6,427 रुपए होती है. यह बढ़कर अब करीबन 10,000 रुपए हो गई है,तब भी यह कम है और निरंतर जीविका के लिए पर्याप्त नहीं है.
यह किसी से छिपा हुआ नहीं, कि शहरों की अधिकांश आबादी एक गरीब किसान परिवार के सदस्यों में से एक है. यह समझना आसान है कि गाँवों में कृषि पर्याप्त आय उत्पन्न नहीं कर पा रही.
शहरों में उत्पादन, निर्माण श्रमिक या अन्य किसी छोटे – मोटे कामों से होने वाली आमदनी से तुलना करें, तो भी यह कम है. कृषि और शहरी आय के बीच का अंतर इतना विशाल है कि वह गरीबी से समृद्धि की ओर छलांग लगाने जैसा है.
अगर भारत 130 करोड़ लोगों की एक प्रणाली थी, जो धन सृजित करने के लिए आर्थिक गतिविधि कर रही थी, तो कृषि इसकी उप प्रणाली के रूप में विफल हो रही है. इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव बड़े पैमाने पर गरीबी में देखा जा सकता है, किन्तु देश का नेतृत्व इससे इंकार कर रहा है.
भारत के लगभग 8 करोड़ लोग अत्यधिक निर्धनता (Poverty) में जी रहे है. आकड़ों कि दृष्टि से यह 6 % है, तब भी यह संख्या अधिक है, यह यूनाइटेड किंगडम की जनसँख्या से अधिक है.
कोरोना महामारी के कारण एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे चली गई जो की करीबन 11 करोड़ अनुमानित की गई है. इसके अतिरिक्त 40 करोड़ भारतीय गरीबी के विभिन्न वर्गों में जी रहे है.
हाल ही में कई अर्थशास्त्रियो ने भारत की कृषि के ऊपर निर्भरता कम करने और कृषि अर्थव्यवस्था को समेटने के सुझाव दिए है. सी आई ए (CIA ) फ़ैक्ट बुक के अनुसार, 2017 में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) घटको का संयोजन इस प्रकार था :
कृषि (15.4 %)
उद्योग (23%) और
सेवाएं (61.5 %).
यह एक बेतुका समाधान है गरीबी की समस्या के लिए, जैसे कि यह कृषि कि वजह से है. शायद, निर्माण और अन्य कार्य आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभप्रद है, किन्तु कृषि को सुदृढ़ करना भी एक अधिक अनुकूल समाधान हो सकता है.
दोषपूर्ण अर्थशास्त्र
कृषि को एक छोटी अर्थव्यवस्था में सरकाने के कूटनीतिक तर्क हमेशा से दोषपूर्ण रहे है. यह तब सही होता जब कृषि सेक्टर बदलने योग्य होता और भारत इसके बिना गुजारा कर सकता.
कुछ देशों ने यह रास्ता अपनाया, मगर किन्हीं भी मानकों से वह सफलता की गाथा नहीं है. जैसे यू.के. (UK) ने अपने आर्थिक परिदृश्य को उत्पादन से वित्तीय क्षेत्र में बदल दिया था, किन्तु वह 2008 के वित्तीय संकट के बाद से संघर्ष कर रहा है.
अर्थशास्त्री समुदाय में यदि कोई यह सोच रहा है कि स्विट्ज़रलैंड जैसा कायापलट भारत में किया जाए, तो वे सफल नहीं हो सकते. स्विट्ज़रलैंड ने भले ही अपनी अर्थव्यवस्था को कपड़ा और उत्पादन उद्योग से, वित्तीय और उच्च प्रौद्योगिकी में स्थानांतरित किया किन्तु भारत के मुकाबले वह अति सूक्ष्म (Minuscule) था.
अभी भी, जब स्विस आबादी का 2.87 % हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है, तो सरकार की सब्सिडी 70 % है. यह यूरोपियन संघ (EU) के अधिदेश (Mandated) से जो कि 35 % है, उससे बहुत अधिक है.
स्विट्ज़रलैंड, भारत कि तुलना में अधिक अखंड और समजातीय समाज है. 130 करोड़ कि जनसँख्या के पारम्परिक भारतीय किसान को बदलना अतिविशाल कार्य होगा.
“
नवीनीकरण और आधुनिक समाज के नाम पर पश्चिमी औद्योगीकृत आर्थिक प्रतिरूप (Industrialized Model) का अनुकरण करना नुकसानदेह है.
नवीनीकरण और आधुनिक समाज के नाम पर पश्चिमी औद्योगीकृत आर्थिक प्रतिरूप (Industrialized Model) का अनुकरण करना नुकसानदेह है. इसके विपरीत, परंपरागत कृषि में प्रचलित सहजज्ञान (Instincts) को समर्थ बनाना ज्यादा आसान होगा एक समाधान के रूप में.
आखिरकार, भारतीय किसानों के पास कोई डिग्री नहीं थी दुनिया में सबसे बड़े उत्पादक बनने के लिए.
जैसे प्रायौगिक प्रणाली सिद्धांत है, उसी तरह कृषि का अर्थशास्त्र कहाँ है?
अगर भारत एक व्यवस्था के रूप में प्राथमिक प्रणाली है, तो कृषि उसकी उप - प्रणाली है । जैसा कि ऊपर उल्लेखित कृषि के आर्थिक आंकड़े यह साबित करते है, कि वह एक उप -प्रणाली के रूप में विफल नहीं हुई है.
बल्कि कृषि की विफलता, उसपर प्रयोग किये गए आर्थिक सिद्धांतों की है. कृषि और अर्थशास्त्र, दोनों बेमेल है और भविष्य में, भारतीय आर्थिक व्यवस्था को अपनी उप -प्रणालियों के साथ खुद को फिर से संरेखित (realign) करने कि आवश्यकता है.
यहां पर संरेखण का एक उदाहरण है, सऊदी अरब. जहां हरेक आर्थिक गतिविधि तेल के इर्द-गिर्द ही घूमती है. पेट्रोलियम सेक्टर मोटे तौर पर बजट राजस्व का लगभग 87 %, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 42 % और निर्यात आय का 90 % हिस्सा है.
इसका तेल भंडार और उत्पादन प्रमुख रूप से, राज्य के स्वामित्व वाली बड़ी व्यापारिक कंपनी 'सऊदी अरामको' द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
“
जो अहमियत 'तेल' की सऊदी अरब के लिए है, वही भारत के लिए, 'कृषि' की.
सऊदी की सभी योजनाओं में तेल सबसे ऊपर रहता है, चाहे वह परिवहन, नौकरी, अप्रवासन, निर्माण, वित्तीय प्रणाली हो या भू-राजनीति. यह सभी तेल के लिए एक उप-प्रणाली के रूप में कार्य करते है.
वर्तमान में कुछ विभिन्नता के प्रयोग के प्रयास किये जा रहे है, किन्तु तेल केंद्र में ही रहेगा. जो अहमियत 'तेल' की सऊदी अरब के लिए है, वही भारत के लिए, 'कृषि' की.
तो इसी तरह, कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र होने की आवश्यकता है. अतः अन्य क्षेत्रों को कृषि से अपनी संभावनाएं उत्पन्न करने की ज़रूरत है. सभी को देर-सवेर यह समझ में आ ही जाना चाहिए .
आधुनिकतावादी दृष्टिकोण रखने वाले कई लोग अर्थव्यवस्था के विकास के लिए, विरोधी और अव्यवहारिक लगने वाले इस सुझाव के खिलाफ तर्क देंगे । यद्पि ऐसा नहीं है.
मगर कुछ ठोस कारण है जिनसे भारत अभी भी, कृषि को अपने केंद्र में रखकर एक विशाल अर्थव्यवस्था बन सकता है.
~ अनुपूरक अन्वेषण, अक्षिता गुप्ता
हवाला
https://statisticstimes.com/economy/country/india-gdp-sectorwise.php
https://www.pgpf.org/budget-basics/budget-explainer-national-defense
https://www.downtoearth.org.in/blog/governance/mass-poverty-is-back-in-india-76348
https://statisticstimes.com/economy/country/india-gdp-sectorwise.php
To Comment: connect@expertx.org
Please indicate if your comments should appear in the next issue
Other Articles from February 2021
Did Western Medical Science Fail?
How to Harness the Power in these Dim Times?
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall?
Taking on China – Indian Challenges
British Border Bungling and BREXIT
When Health Care System Failed – others Thrived.
3 Killer Diseases in Indian Banking System
Work from Home - Forced Reality
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time?
Is Social Justice Theoretical?
Will Central Vista fit 21st Century India?
Why Must Audit Services be Nationalized?
Support Us - It's advertisement free journalism, unbiased, providing high quality researched contents.