यूक्रेन युद्ध में - महात्मा गांधी क्या करते?
यूक्रेन युद्ध में - महात्मा गांधी क्या करते?
Ukraine - What Would Gandhi Do? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
यूक्रेन में युद्ध को लेकर महात्मा गांधीजी क्या करते या क्या कदम उठाते ? उनके जीवन और उस समय के आधार पर, यह विश्लेषण करना दिलचस्प होगा कि, उन्होंने यूक्रेन में नए युग के युद्ध का जवाब कैसे दिया होता।
द्वितीय विश्व युद्ध रोकना
महात्मा गांधी शांति और अहिंसा के दूत थे। उनका मानना था कि, युद्ध कभी भी समाधान नहीं हो सकता और सभी संघर्षों को बातचीत और समझ के माध्यम से हल किया जा सकता है।
इसलिए जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा तो, महात्मा गांधी को गहरा दुःख हुआ। उन्होंने एडॉल्फ हिटलर (Adolf Hitler) को पत्र लिखकर उनसे युद्ध समाप्त करने और शांति का मार्ग अपनाने का आग्रह किया।
द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने के लिए महात्मा गांधी द्वारा किए गए कुछ विशिष्ट प्रयास और कुछ विशिष्ट कार्य यहां दिए गए हैं:
उन्होंने युद्धरत राष्ट्रों के नेताओं को पत्र लिखे। उदाहरण के लिए, 1939 और 1940 में, महात्मा गांधी ने हिटलर को पत्र लिखकर उनसे युद्ध समाप्त करने और शांति के रास्ते का अनुकरण करने का आग्रह किया।
पत्र में, महात्मा गांधी ने हिटलर को "प्रिय मित्र" के रूप में संबोधित किया और कहा कि, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि, युद्ध एक लक्ष्य प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका था। युद्ध भयानक है और लाखों लोगों के लिए मृत्यु और विनाश लाता है। यह मानवता को बर्बरतापूर्ण अवस्था में कम कर रहा है।
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… 1939 और 1940 में, महात्मा
गांधी ने हिटलर को पत्र लिखा, युद्ध को समाप्त करने और शांति के रास्ते का अनुकरण करने का आग्रह किया
महात्मा गांधी इसके बाद हिटलर से नैतिकता की भावना की अपील करते हैं। वह लिखते है कि, वह विश्वास नहीं कर सकते कि, हिटलर बिना विवेक वाला व्यक्ति है और लाखों लोगों की पीड़ा से विचलित नहीं होता है।
महात्मा गांधी ने हिटलर से अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने और शांति का मार्ग चुनने का आग्रह किया।
पत्र के अंत में महात्मा गांधी ने अपनी आशा व्यक्त की, कि हिटलर उनकी बातें सुनेंगे।
वह लिखते है, "क्या आप उस व्यक्ति की अपील सुनेंगे जिसने जानबूझकर युद्ध और हिंसा के तरीके से किनारा कर लिया और उसमें उसे सफलता भी मिली है?"
हिटलर ने कभी उनके खतों का जवाब नहीं दिया। छह वर्षों तक युद्ध जारी रहा और लाखों लोग मारे गए।
हालाँकि, महात्मा गांधीजी का पत्र, शांति और अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली वसीयतनामा बना हुआ है।
27 सितंबर, 1940 को उनकी मुलाकात लार्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) से हुई। उन्होंने वायसराय को समझाया कि, वह युद्ध का विरोध करना चाहते है। वह अपने लोगों से भी ऐसा ही करने के लिए कहना चाहता थे क्योंकि, यह युद्ध भारत के हितों की रक्षा के लिए नहीं लड़ा जा रहा था।
महात्मा गांधी चाहते थे कि, लोगों को यह ज्ञात हो कि, अंग्रेजों को भारत को हल्के में नहीं लेना चाहिए। स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के सिद्धांत, जिसके लिए ब्रिटेन, नाजी, जर्मनी और फासीवाद से लड़ रहा था, भारतीयों पर समान रूप से लागू होने चाहिए।
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महात्मा गांधी चाहते थे ,लोगों को यह ज्ञात हो कि,अंग्रेजों को भारत को हल्के में नहीं लेना चाहिए
अतः, महात्मा गांधी जी ने द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश करने के ब्रिटिश सरकार के फैसले के खिलाफ भारत में विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध को व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन (Individual Satyagraha Movement) कहा गया।
उनके अनुयायियों ने ब्रिटिश सरकार को किसी भी प्रकार से सहयोग करने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया, किन्तु, उन्होंने विरोध करना जारी रखा।
महात्मा गांधी ने कई भाषण दिए और कई लेख लिखें जिनमें, उन्होंने युद्ध के खिलाफ साहस के साथ अपनी बात रखी। उन्होंने युद्ध में हो रही हिंसा और विनाश की निंदा की और लोगों से 'शांति' के लिए काम करने का आग्रह किया।
शांति और अहिंसा का उनका संदेश दुनिया की भलाई के लिए एक शक्तिशाली प्रभाव के रूप में था। इसने दुनिया भर के लोगों को शांति के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया और युद्ध की भयावहता को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने में मदद की।
द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने के महात्मा गांधी के प्रयास अंततः असफल रहे। छह साल तक युद्ध चलता रहा और लाखों लोग मारे गए।
हालाँकि, उनके कार्यों ने युद्ध की भयावहता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और अन्य लोगों को शांति के लिए काम करने के लिए प्रेरित करने में मदद की। उनकी विरासत आज दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करती है और दिखाती है कि, शांति हमेशा संभव है।
चुनौतियों के बावजूद महात्मा गांधी ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। इसके विपरीत, उन्होंने युद्ध के खिलाफ साहस के साथ बोलना और शांति के लिए काम करना जारी रखा।
यूक्रेन में युद्ध
यदि महात्मा गांधीजी आज जीवित होते, तो वे यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए अपने नैतिक अधिकार और अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता का उपयोग करते।
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यदि महात्मा गांधी आज जीवित होते, तो उन्होंने अवश्य यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए अपने नैतिक अधिकार और प्रतिबद्धता का इस्तेमाल किया होता
उन्होंने रूस और यूक्रेन के नेताओं के साथ पत्राचार किया होता, उनसे युद्ध को समाप्त करने और शांति का मार्ग अपनाने का आग्रह किया होता। इसके अलावा, उन्होंने दुनिया भर में विरोध और प्रदर्शनों का आयोजन किया होता, जिसमें लोगों से शांति और अहिंसा के लिए खड़े होने का आह्वान किया जाता।
2002 में, इराक में अमेरिका और ब्रिटेन के आक्रमण से ठीक पहले के समय के दौरान वहाँ पर कई शहरों में युद्ध-विरोधी, विरोध प्रदर्शन हुए। यह इस बात का प्रतिबिंब था कि, लोगों ने समाधान के रूप में युद्ध पर अपनी किस प्रकार की प्रतिक्रिया दी है।
दुनिया ने युद्ध के खिलाफ वैसा आक्रोश अब के वक़्त में नहीं देखा। यूक्रेन से रोज़ाना हमारे घरों में मौत और विनाश के दृश्य आने के बावजूद, युद्ध का विरोध कही नदारद है।
लगता है, मानो दुनिया के सभी नेताओं ने समाधान के रूप में "शांति" के रास्ते को छोड़ दिया हो। इसलिए कोई भी युद्ध समाप्त करने की बात नहीं कर रहा है।
इसके बजाय, विश्व के नेता शरणार्थियों के रहने की व्यवस्था करने , ऊर्जा संकट का विकल्प खोजने, दो युद्धरत देशों - यूक्रेन और रूस को हथियारों की आपूर्ति करने के तरीके खोज रहे हैं, जैसे कि, यह एक * 'नया सामान्य' (New normal) है।
यह स्थिति आज मानवता के लिए खतरनाक है कि, युद्ध का विरोध करने वाला कोई प्रत्यक्ष नेता उसके पास नहीं है।
मौका मिलने पर, गाँधीजी रूस और यूक्रेन की यात्रा करते, दोनों देशों के नेताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से बैठक करके उन्हें युद्ध समाप्त करने के लिए राज़ी करने की कोशिश करते।
युद्ध को रोकने के उनके प्रयासों को संभवतः दोनों पक्षों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ता। हालाँकि, जैसा कि, उन्होंने भारत में किया, उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी। इसके बजाय, वह विपरीत परिस्थितियों में भी शांति और अहिंसा के लिए साहस के साथ बोलते रहे।
महात्मा गांधी द्वारा हिटलर को लिखे गए पत्र के आधार पर, यहाँ एक पत्र है जो शायद उन्होंने यूक्रेन में युद्ध को रोकने के लिए पुतिन और ज़ेलेंस्की को लिखा होता:
प्रिय मित्रों,
मैं आज आपको शांति और अहिंसा के एक दूत के रूप में लिख रहा हूं। मेरा मानना है कि, युद्ध कभी भी समाधान नहीं हो सकता है और सभी मतभिन्नताओं को बातचीत और समझ के माध्यम से हल किया जा सकता है।
मैं यूक्रेन में हो रही हिंसा और तबाही से बहुत दुःखी हूं। मुझे पता है कि, आप दोनों के दिलों में अपने लोगों का हित है, किन्तु, मेरा मानना है कि, आपका मार्ग अधिक मृत्यु और पीड़ा की ओर ले जा रहा है।
मैं आपसे युद्ध बंद करने और बातचीत की मेज़ पर आने का आग्रह करता हूँ। इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए अभी भी आप दोनों के पास समय है।
मुझे पता है कि, यह आप दोनों के लिए मुश्किल समय है। आप पर अपनी-अपनी सरकारों और लोगों का बहुत अधिक दबाव है। किन्तु, मेरा मानना है कि, आपके पास सही निर्णय लेने का साहस और बुद्धिमत्ता है।
मैं आपसे शांति का मार्ग चुनने की विनती करता हूं। युद्ध को समाप्त करने के रास्ते का चुनाव करें और अपने लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें।
मुझे आप पर भरोसा है। मैं जानता हूँ कि आप यह कर सकते है।
सदैव,
आपका सच्चा दोस्त,
विशेष रूप से, महात्मा गांधी ने संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए नाटो (NATO) और संयुक्त राष्ट्र से रूस और यूक्रेन के साथ बातचीत में शामिल होने का आग्रह किया होता।
इसके अलावा, उन्होंने नाटो से यूक्रेन में सैन्य हस्तक्षेप से बचने के लिए कहा होता, जो केवल मौत और विनाश की ओर ले जाएगा। इसके अलावा, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र ( UN) से यूक्रेन के उन लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने का आग्रह किया होता जो युद्ध से प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने अधिक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने के लिए काम किया होता।
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गांधीजी ने अधिक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का निर्माण करने के लिए काम किया होता
द्वितीय विश्व युद्ध और यूक्रेन युद्ध के बीच समानताएं हैं, और इसी वजह से संभावना है कि, यह जल्द ही समाप्त नहीं हो सकता।
पहले से ही यूक्रेन युद्ध अपने दूसरे वर्ष में है, और युद्धरत दलों में से कोई भी शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं है। इसके विपरीत, दोनों ही पक्ष खुद को नए और बेहतर हथियारों के साथ युद्ध के लिए तैयार कर रहे हैं।
यह युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध (World war ll ) की तरह आकर्षण का केंद्र क्यों है और कई सरकारों और उनके लोगों के बीच इतना लोकप्रिय क्यों है इसके कई कारण है।
पहला कारण : तब फासीवाद और नाजीवाद का उदय और अब पुतिन का रूस।
द्वितीय विश्व युद्ध से ठीक पहले के वर्षों में, जर्मनी, इटली और जापान में फासीवादी और नाजी शासन सत्ता में आए। इन शासनों की विशेषता थी आक्रामक राष्ट्रवाद, सैन्यवाद और अल्पसंख्यकों से घृणा।
परिणामस्वरूप, उन्होंने दुनिया भर में लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए एक वास्तविक खतरा उत्पन्न कर दिया था। इसी तरह पुतिन के रूस और चीन के उभार को भी वैश्विक शांति और आर्थिक संतुलन को खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
दूसरा कारण : तब पोलैंड पर आक्रमण और अब क्रीमिया का विलय।
सितंबर 1939 में, जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया। आक्रामकता की इस कार्यवाही ने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की थी।
पोलैंड पर आक्रमण की कार्यवाही की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से व्यापक निंदा हुई। इसलिए, बहुत से लोगों ने नाजी आक्रामकता के खिलाफ खड़े होने और स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए लड़ने की जरूरत महसूस की।
इसी तरह, पश्चिम, रूस द्वारा क्रीमिया पर आक्रमण को आक्रामक सैन्यवाद के रूप में देखता है। हालाँकि, रूस क्रीमिया को अपने खोए हुए क्षेत्र के रूप में पुनः प्राप्त करने का दावा करता है।
तीसरा कारण : तब पर्ल हार्बर और अब डोनबास।
7 दिसंबर, 1941 को जापान ने पर्ल हार्बर में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर एक अकस्मात हमला किया और युद्ध की शुरुवात कर दी। इस हमले ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में लाकर खड़ा कर दिया था।
पर्ल हार्बर पर बमबारी होना, युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इससे पता चला कि, धुरी शक्तियाँ (Axis powers) अमेरिका पर हमला करने के लिए तैयार थीं और युद्ध की कोशिशों के समर्थन में अमेरिकी लोगों को एक साथ लाना चाहती थीं।
इसी तरह, यूक्रेन पर रूस का आक्रमण और डोनबास, खेरसॉन और ज़ापोरिज़्ज़िया पर कब्जा यूक्रेन की संप्रभुता पर हमला माना जाता है, हालांकि, अशांति और नागरिक मुसीबतें लंबे समय से बनी हुई थी।
इसके अलावा, संदेह के बादल चारों ओर फैले हुए हैं कि, रूस केवल यूक्रेन के विलय तक पर नहीं रुकेगा। बाद में, यह मैसेडोनिया और अन्य पूर्व यूएसएसआर (USSR) राज्यों में प्रवेश कर सकता है।
एक बेहतर दुनिया का वादा, तब और अब।
बहुत से लोगों का मानना था कि, द्वितीय विश्व युद्ध एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाएगा। उन्हें उम्मीद थी कि, युद्ध फासीवाद और नाज़ीवाद को समाप्त कर देगा और एक अधिक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का निर्माण करेगा।
इस आशा की पूर्ति, 1941 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट (Franklin D. Roosevelt) और प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) द्वारा हस्ताक्षरित 'अटलांटिक चार्टर' (Atlantic Charter) द्वारा की गयी थी।
अटलांटिक चार्टर ने युद्ध के बाद की दुनिया के लिए सिद्धांतों को रेखांकित किया गया, जिसमें भाषण की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार शामिल थे।
कई लोगों का मानना है कि, पुतिन की महत्वाकांक्षाओं को समाप्त करने से दुनिया और अधिक शांतिपूर्ण हो जाएगी। साथ ही, उन्हें लगता है कि, यह ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाओं की जाँच करके शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था को फिर से स्थापित करेगा।
ये कुछ कारण हैं कि, क्यों, द्वितीय विश्व युद्ध कई देशों के लोगों के बीच लोकप्रिय था। यह युद्ध महान बलिदान और कठिनाई का समय था, जो बेहतर भविष्य की प्रेरणा देता था।
युद्ध ने अंततः फासीवाद और नाज़ीवाद की हार का नेतृत्व किया और एक अधिक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने में मदद की।
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द्वितीय विश्व युद्ध कई देशों के लोगों के बीच लोकप्रिय क्यों था इसके कई कारण हैं
भले ही, उस वक़्त महात्मा गांधी जी विश्व युद्ध को नहीं रोक सके किन्तु, फिर भी शांति और बातचीत का यह रास्ता सबसे मानवीय विकल्प था। आखिरकार, इस दर्शन ने कई संघर्षों में सुलह की दिशा दिखाई है, जैसा कि, इतिहास ने भी दिखाया है।
महात्मा गांधी का शांति और अहिंसा का संदेश, दुनिया में अच्छाई के लिए प्रेरित करने वाला और प्रभावशाली है। यदि हम यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं और अधिक शांतिपूर्ण भविष्य बनाना चाहते हैं, तो हमें उनके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए।
जल्द से जल्द या बाद में, यूक्रेन और रूस भी इस दिशा में चलेंगे। आशा है कि, द्वितीय विश्व युद्ध की तरह यहां पर भी बहुत देर नहीं हुई है।
*एक नया सामान्य - एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक अर्थव्यवस्था, समाज आदि एक संकट के बाद स्थिर हो जाता है, जब यह उस स्थिति से भिन्न होता है जो संकट की शुरुआत से पहले थी।
यह शब्द प्रथम विश्व युद्ध , 11 सितंबर के हमलों , 2007-2008 के वित्तीय संकट , 2008-2012 की वैश्विक मंदी के बाद , COVID-19 महामारी और अन्य घटनाओं के संबंध में नियोजित किया गया है।
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