2021 के 4 परिणामी निकास
2021 के 4 परिणामी निकास
4 Consequential Exits of 2021 का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
1.
‘डोनाल्ड ट्रंप’ के कार्यकाल की समाप्ति
डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) के अराजक ट्विटर फीड से लेकर उनकी विभाजक नीतियों तक, राष्ट्रपति के रूप में उनके चुनाव ने अमेरिकी राजनीति को खलबली में डाल दिया है।
'ट्रम्प' विवादास्पद थे और उनकी नेतृत्व शैली की व्यापक रूप से आलोचना की गई थी। मतभेद को उत्तेजक करके वह मंत्र मुग्ध लग रहे थे।
ट्रम्प अपने कार्यकाल के बाद भी कई अमेरिकियों के बीच एक लोकप्रिय व्यक्ति बने हुए हैं। लोग उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में देखते हैं जो, अपने मन की बात कहने से नहीं डरता था।
2015 में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से, उन्होंने चुनाव प्रचार और शासन करने के पारंपरिक नियमों को उलट दिया है। तब से आजतक, ट्रम्प ने, अमेरिकी लोगों को उनकी, नस्ल, धर्म और राजनीति के आधार पर विभाजित करके ध्रुवीकरण (लोगों को गुटों में बांटना) करना जारी रखा है।
आप्रवासन (immigration) और व्यापार पर उनकी नीतियों ने गरमागरम बहस छेड़ दी है। इसके अलावा, श्वेत प्रभुत्व पर उनकी बयानबाजी को कई लोगों ने नस्लवादी और खतरनाक बताकर निंदा की थी।
ट्रम्प की राजनीति के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक आप्रवासन के प्रति उनका दृष्टिकोण रहा है। पदभार ग्रहण करने के बाद से, ट्रम्प ने एक आक्रामक राष्ट्रवादी कार्यसूची (एजेंडा) का अनुसरण किया, जो आप्रवासन को सीमित करने और अमेरिकी श्रमिकों के हितों को आगे बढ़ाने की मांग कर रहा था।
जबकि कुछ ने उनकी नीतियों का स्वागत किया , तो वहीं अन्य ने फूट डालने वाली और बहिष्कार की राजनीति के खतरों से आगाह किया ।
ट्रम्प ने आप्रवासन पर कानूनी और गैरकानूनी दोनों तरह के प्रतिबंधों को कड़ा करने की मांग की थी। इसने विरोध और कानूनी चुनौतियों का नेतृत्व किया और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया।
परिणामस्वरूप, अप्रवासी अक्सर देश में जन्में नागरिकों की तुलना में कम मजदूरी में काम करने के इच्छुक हो गए जो, सभी के लिए मजदूरी वृद्धि को कम कर सकता है।
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ट्रम्प ने आप्रवासन पर कानूनी और गैरकानूनी दोनों तरह के प्रतिबंधों को कड़ा करने की मांग की थी
ट्रम्प के राष्ट्रपति पद के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक, रूस के साथ उनके संबंध थे। खुफिया रिपोर्टों से संकेत मिलने के बावजूद की रूस ने 2016 के चुनाव में हस्तक्षेप किया था, ट्रम्प ने बार-बार इस मुद्दे की अहमियत को कम किया और जोर देकर कहा कि, उनके अभियान और रूसी सरकार के बीच कोई मिलीभगत नहीं थी।
फिर भी, रूस पर उनके रुख ने अमेरिका के प्रति उनकी वफादारी के बारे में कई सवाल खड़े किए थे।
ट्रम्प शासन के तहत, देश, पेरिस जलवायु समझौते और ईरान परमाणु समझौते सहित कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों से पीछे हट गया था। ट्रम्प ने कई देशों से आयातित सामानों पर भी शुल्क थोपा था जिससे, चीन के साथ 'व्यापार युद्ध' हुआ।
इन संरक्षणवादी उपायों के वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए प्रभाव हैं और इन्होंने कई विश्व के नेताओं को अमेरिका को संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित किया है।
इसके अतिरिक्त, ट्रम्प की विदेश नीति ने अमेरिका के अपने सहयोगियों के साथ संबंधों को और अधिक बिगाड़ दिया था और देश को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कम सम्मानित बना दिया था।
यद्यपि कुछ लोग इन परिवर्तनों को सकारात्मक तौर पर देख सकते हैं किंतु, वे किसी कीमत पर आते हैं जिस पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए।
ट्रम्प के समर्थकों का तर्क है कि, वह अपने विदेशी और घरेलू दुश्मनों के खिलाफ अमेरिका के लिए खड़े थे।
उनका कहना है कि, वह अमेरिका को प्राथमिकता देने और सर्वश्रेष्ठ बनाने के अपने अभियान के वादों को पूरा कर रहे थे और उनकी नीतियां अमेरिका को मजबूत और समृद्ध बना रही हैं। उनका मानना है कि, ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बनाने वाले सफल राष्ट्रपति थे।
जब 'डोनाल्ड ट्रम्प' राष्ट्रपति चुने गए, तो कई लोग पर्यावरण पर उनकी नीतियों के परिणामों के बारे में चिंतित थे। आखिरकार, ट्रम्प ने पहले जलवायु परिवर्तन को एक "छल" कहा था और पर्यावरण नियमों को वापस लेने का वादा किया था।
अपने कार्यालय के पहले वर्ष में, ट्रम्प ने ऐसे कदम उठाए जो जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जैसे कि, पेरिस समझौते से अलग होना।
फिर भी, उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रमों के लिए वित्तपोषण में बहुत ज्यादा कटौती करदी और कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय नियमों को भी वापस ले लिया।
कोरोनावायरस महामारी के दौरान 'डोनाल्ड ट्रम्प' की लापरवाही के परिणामों को अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है। दस लाख से अधिक अमेरिकी वायरस की चपेट में आकर मर गए, और लाखों लोग संक्रमित हो गए ।
अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई और लाखों अमेरिकियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा । इसने देश को बुरी तरह विभाजित कर दिया।
इस विभाजन ने 'ट्रम्प' के समर्थकों और विरोधियों को दोषारोपण ( खुले आम दोष लगाना) और अपशब्द कहने के दुष्चक्र में उलझा कर रख दिया था। 'ट्रम्प' ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से लेकर चीनी सरकार तक सभी को महामारी के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
इसमें कोई शक नहीं कि, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी इतिहास के सबसे अधिक फूट डालने वाले राष्ट्रपतियों में से एक थे। पर आप उनसे सहमत हों या नहीं, किन्तु, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि, उनके राष्ट्रपति पद का दुनिया भर में अमेरिका के ‘कद’ पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
2.
ब्रेकजिट (BREXIT) - ब्रिटैन का यूरोपीय संघ (European Union) से बाहर निकलना
ब्रिटैन ने 2016 में यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मतदान किया था, तबसे 'ब्रेकजिट' के परिणामों पर अत्यधिक बहस हुई है।
कुछ लोगों का तर्क है कि, यूरोपीय संघ छोड़ना ब्रिटैन के लिए अनर्थकारी होगा, जबकि, अन्य का मानना है कि, यह व्यापार और विकास के नए अवसर पैदा करेगा। हालाँकि, सच्चाई यह थी कि, ब्रेकजिट के परिणामों की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण था।
अर्थव्यवस्था
हालांकि, कुछ संभावित परिणाम ब्रिटैन की अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ छोड़ने से यूरोपीय सामानों पर उच्च शुल्क लग सकता है। यह मुद्रास्फीति और उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतों का कारण बन सकता है।
ब्रेकजिट (BREXIT) ब्रिटेन की कंपनियों के लिए यूरोप के साथ व्यापार करना भी मुश्किल बना सकता है। परिणामस्वरूप, यह नौकरी की हानि और आर्थिक विकास में गिरावट का कारण बन सकता है।
सबसे तात्कालिक प्रभाव मुद्रा बाजारों में पाउंड स्टर्लिंग (Pound Sterling) के मूल्य का दशकों में अपने निम्नतम स्तर पर गिरने के साथ महसूस किया गया था। इससे मुद्रास्फीति (महँगाई) का दबाव बढ़ गया है, क्योंकि, आयातित सामान अधिक महंगा हो गया है।
पाउंड (Pound) के मूल्य में गिरावट और मुद्रास्फीति के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ था। परिणामस्वरूप, व्यवसायों को नुकसान हुआ और निवेश गिर गया ।
ब्रिटैन ने यूरोपीय संघ के निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अपना अधिकार भी खो दिया है। नतीजतन, देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर कम प्रभावशाली हो गया।
ब्रेक्सिट वोट ने, ब्रिटैन के भीतर विभाजन को अधिक गहरा करने के साथ ही कई लोगों में इसे छोड़ने के लिए मतदान करने वालों के प्रति क्रोध और नाराजगी की भावना भी जगाई।
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ब्रेकजिट (BREXIT) ब्रिटेन की कंपनियों के लिए यूरोप के साथ व्यापार करना भी मुश्किल बना सकता है
बहुत से लोगों की नौकरी चली गई है, पैसे के मूल्य में कमी आई है और आर्थिक स्थिति संतुलित नहीं है; पिछले दो वर्षों में प्रति व्यक्ति आय में 2% की कमी आई है, जो किसी भी राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है।
ब्रिटैन यूरोप में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक था, किन्तु ब्रेकजिट (Brexit) के बाद, यह उल्लेखनीय ढंग से नीचे आ गया ।
ब्रेकजिट ने ब्रिटैन में विदेशी व्यापार और निवेश को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया । ब्रिटैन हमेशा व्यापार करने के लिए एक बहुत ही स्थिर और सुरक्षित स्थान था।
फिर भी, ब्रेकजिट के बाद, व्यवसायों के बीच बहुत अनिश्चितता थी जिससे, विदेशी निवेश में कमी आई।
उत्तरी आयरलैंड
इसके साथ, उत्तरी आयरलैंड में नाजुक शांति प्रक्रिया पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी चिंताएं हैं। आयरलैंड के साथ एक कठिन सीमा और राष्ट्रवादियों और संघवादियों के बीच तनाव बढ़ने की भी संभावना थी। इसका मतलब हिंसा और अस्थिरता की वापसी भी हो सकती है।
हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि,ब्रेकजिट (Brexit) के परिणाम मुख्य रूप से नकारात्मक हैं।
ईयू (EU) छोड़ने के ब्रिटेन के फैसले ने व्यापार समझौतों और सीमा पार सहयोग के भविष्य के बारे में भी अनिश्चितता पैदा कर दी है।
केवल समय ही बताएगा कि, ब्रेकजिट (Brexit) के वास्तविक परिणाम क्या होंगे। हालांकि, यूरोपीय संघ छोड़ने के फैसले का ब्रिटैन पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि, 'ब्रेकजिट' के प्रभाव बहुत अधिक हैं और उन्हें कई वर्षों तक महसूस किए जाने की संभावना है।
3.
अफ़ग़ानिस्तान से नाटो (NATO) की वापसी
अफ़ग़ानिस्तान की जनसंख्या लगभग 3 करोड़ 20 लाख थी और काबुल शहर उसकी राजधानी । अफ़ग़ानिस्तान की सीमा ईरान, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान से लगती है।
तो, ये सभी देश 'नाटो' (NATO) के बाहर निकलने से प्रभावित हुए हैं और होंगे।
अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध के परिणाम उसमें शामिल हरेक के लिए अलग थे। जैसे, तालिबान ने देश के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण खो दिया। नाटो (NATO) के लिए युद्ध में 2,000 से अधिक सैनिकों की मौत हुई उससे और कई ज्यादा घायल हुए थे।
इसका एक परिणाम नाटो के सदस्यों के बीच अंदुरुनी कलह के रूप में भी हुआ जो इस बात को लेकर था कि, अफ़ग़ानिस्तान मिशन को कैसे बेहतर तरीके से आगे बढ़ाया जाए।
अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के लिए इस युद्ध का परिणाम, विस्थापन, मृत्यु और बर्बादी था। 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' (Amnesty International) के अनुसार, लड़ाई के कारण 20 लाख से अधिक अफगान अपने घरों से भागने को मजबूर हुए और संयुक्त राष्ट्र(United Nations) के अनुसार, अकेले 2018 में, 10,000 से अधिक नागरिक मारे गए या फिर घायल हुए।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के गंभीर परिणाम होंगे। तालिबान एक क्रूर दमनकारी शासन है और वे जल्दी से अफगानी लोगों पर शरिया कानून के अपने कठोर संस्करण को फिर से लागू करेंगे।
महिलाओं को 'बुर्का' पहनने के लिए मजबूर किया जाएगा, लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा और सार्वजनिक फांसी देना आम हो सकता है।
हिंसा और अस्थिरता भी इस क्षेत्र में फैल जाएगी, क्योंकि, तालिबान फिर से ‘अल-कायदा’ (Al-Qaeda) जैसे आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित आश्रय-स्थल प्रदान कर सकता है।
यह वापसी पिछले एक दशक में अफ़ग़ानिस्तान में किए गए हर तरह के विकास को उलट कर रख सकता है। तालिबान शासन के तहत अफगान लोगों को बहुत नुकसान हो सकता है और यह क्षेत्र गहरे संकट में पड़ सकता है।
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'एमनेस्टी इंटरनेशनल' (Amnesty International) के अनुसार, लड़ाई के कारण 20 लाख से अधिक अफगान अपने घरों से भागने को मजबूर हुए
अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध के परिणाम क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों प्रकार के रहे हैं। पहले युद्ध और अब नाटो (NATO) के इससे बाहर निकलने ने इस क्षेत्र को अस्थिर कर दिया जिससे, शांति को बनाए रखना मुश्किल हो गया था ।
इसने 'अल-कायदा' (Al-Qaeda) जैसे आतंकवादी समूहों को सापेक्ष दंडमुक्ति के साथ काम करने की भी अनुमति दी।
4.
सक्रिय राजनीति से ‘एंजेला मर्केल’ (ANGELA MERKEL) का संन्यास
एंजेला मर्केल एक जर्मन राजनीतिज्ञ थीं जो, जर्मनी की 'कुलाधिपति' (Chancellor) थीं। वह क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) (Christian Democratic Union) की नेता भी थीं।
मर्केल को यूरोपीय संघ की 'वास्तविक नेता' के रूप में वर्णित किया गया था और उन्हें "दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला" कहा गया था।
2005 में, मर्केल 2002 से विपक्ष के नेता के रूप में सेवा करने के बाद जर्मनी की 'कुलाधिपति' चुनी गईं। इस रूप में, मर्केल ने आर्थिक सुधार, विकास, यूरोपीय एकीकरण और विदेशी संबंधों में सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने आतंकवाद का मुकाबला करने और यूरोपीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
उनके नेतृत्व में, जर्मनी आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए यूरोप के अग्रणी देशों में से एक बन गया । यूरोप में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देते हुए जर्मन हितों की रक्षा के लिए मर्केल को उनके नेतृत्व कौशल और निष्ठा के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया ।
आलोचना
हालाँकि, यूरो (EURO) संकट से निपटने और जर्मनी में शरणार्थियों को अनुमति देने के उनके फैसले के लिए भी उनकी आलोचना की गई थी। इन आलोचनाओं के बावजूद, मर्केल, जर्मनों के बीच लोकप्रिय रहीं और उन्हें व्यापक रूप से एक प्रभावी नेता के रूप में देखा गया।
हालांकि, कुछ लोगों ने शरणार्थी संकटकाल के चरम पर, उससे निपटने के मर्केल के निर्णय की आलोचना की है।
शरणार्थी संकट के चरम के दौरान जर्मनी में शरणार्थियों का स्वागत करने के एंजेला मर्केल के फैसले के लिए उनकी अक्सर सराहना की जाती थी। हालांकि, यह निस्संदेह प्रशंसनीय था कि, उन्होंने जरूरतमंदों के लिए सहानुभूति दिखाई, किंतु, उनके कार्यों के गंभीर परिणाम भी हुए।
शरणार्थियों की बाढ़ ने जर्मनी के संसाधनों पर दबाव डाला और कई नवागंतुकों द्वारा हिंसा और अपराध में उनके संलग्न होने की खबरें भी थीं।
इसके अलावा, शरणार्थियों के स्वागत के निर्णय ने यूरोपीय संघ (EU) के भीतर तनाव पैदा कर दिया क्योंकि, अन्य देशों ने महसूस किया कि, वे संकट का खामियाजा भुगत रहे हैं।
परिणामस्वरूप, जर्मनी की सीमाओं को खोलने का मर्केल का निर्णय एक साहसिक कदम तो था, किन्तु विवादास्पद निर्णय भी था।
ग्रीक (Greek) ऋण संकट
उन्होंने ग्रीक ऋण संकट से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि, 'मर्केल' की नीतियां यूरोप को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
उदाहरण के लिए, ग्रीस में मितोपभोग उपायों पर उनके आग्रह ने व्यापक सामाजिक अशांति पैदा की थी। 'यूरोबॉन्ड' (Eurobonds) को अनुमति देने से इनकार करने के उनके निर्णय के कारण यूरोपीय संघ के भीतर विभाजन हुआ था।
रूस
'एंजेला मर्केल' को अक्सर दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक के रूप में सराहा जाता था। उनके कार्यकाल के दौरान, जर्मनी एक आर्थिक महाशक्ति और यूरोपीय संघ में एक अग्रणी आवाज बन गया था।
हालाँकि, रूस के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों के कारण उनकी आलोचना हुई थी कि, क्योंकि, वह व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) की आक्रामकता का सामना करने के लिए पर्याप्त प्रयत्न नहीं कर रही थी।
नॉर्डस्ट्रीम 2 (Nord Stream) गैस पाइपलाइन को पूरा करने की अनुमति देने का उनका निर्णय इस बात का सबूत है कि, वह मास्को के साथ समझौता करने को तैयार थी।
दूसरों का तर्क है कि, जर्मनी की ऊर्जा सुरक्षा के लिए नॉर्डस्ट्रीम 2 आवश्यक था और मर्केल ने रूस से निपटने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया था।
साक्ष्य इंगित करते है कि, उन्होंने मास्को को उसकी सैन्य कार्यवाहियों जैसे कि, क्रीमिया पर कब्जे और सीरियाई युद्ध मे सहभागिता के लिए जवाबदेह रखते हुए, उसके साथ सफलतापूर्वक अच्छे संबंध बनाए रखे।
क्या वह असाधारण (आश्चर्यजनक) संतुलन नहीं बना रही थी?
फिर भी, वह आज यूरोप में सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक है। तो आखिर यूरोप, भविष्य के आर्थिक संकटों या पुतिन जैसे तानाशाहों की आक्रामकता के प्रति कैसे पेश आएगा ?
यह इससे अलग होगा कि, 'एंजेला मर्केल' ने इसे कैसे संभाला।
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