अफ़ग़ानिस्तान वापसी
आपदा आमंत्रण
अफ़ग़ानिस्तान वापसी
आपदा आमंत्रण
Afghanistan Withdrawal - Inviting Catastrophe का हिन्दी रूपांतर
~ सोनू बिष्ट
पिछले सत्तर वर्षों से अमेरिकी विदेश नीति अपनी निकासी (वापसी) की रणनीति से संघर्ष करती रही है। उन देशों से जहां पर उसने सैन्य हस्तक्षेप (आक्रमण) किया। यथार्थ वादी तस्वीर गंभीर है, यदि हम समग्र दृष्टिकोण ले।
कोरियाई युद्ध (1950-53) से बाहर निकलने से लेकर, वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान युद्ध (2001-21) तक, अमेरिकी विदेश और सैन्य नीति गंभीर रूप से लड़खड़ा गईं है, उदाहरणतः (1993-95) में, अमेरिका के पीछे हटने से सोमालिया में भारी संकट, तब से जारी है।
पीछे छोड़े गये देश और क्षेत्र, दशकों से मानवतावादी अराजकता से जूझ रहे है - 21 वी सदी में इराक का मामला, पक्षपातपूर्ण हिंसा और विभाजित समुदाय।
अमेरिका की खराब रणनीतियों के कारण इराक में ISIS की उत्पत्ति हुई। ISIS की महत्वाकांक्षाएँ और क्रूरता दुनिया के सामने है। इराक की स्थिति को प्रमाणित करने के लिए पाठ और दृश्यों से भरा एक महासागर उपलब्ध है।
अफ़ग़ानिस्तान और इराक की स्थिति सामान्यता एक ही है, जिसके कारण वह अमेरिकी सेना के लक्ष्य पर है। 11 सितम्बर के ट्विन टावर (Twin Tower ) हमलों का बदला, क्षेत्र और दुनिया में शांति लाना यह अमेरिका सेना के लक्ष्य थे, जो पूरे नहीं हो सके और जिस वजह से अब दुनिया ज्यादा खतरनाक जगह बन चुकी है।
अमेरिका अब अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने को बेताब है, इसलिए वह उसके केंद्र में है।
20 साल से अधिक का समय हो चुका है, और अमेरिका एवं नाटो सहयोगी अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष कर रहे है।
यह विचार की वह इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता लायेंगे, शून्य हो चूका है, इसके उलट अफ़ग़ानिस्तान में हालात और खराब होते जा रहे है, देश में क्षेत्रीय और सांप्रदायिक आधार पर विभाजन, अंदरूनी कलह और हर दिन सड़क पर हिंसा देखी जाती है ।
आबादी का जीवन खतरे में है, और एक गृहयुद्ध दरवाजे पर है।
वियतनाम वाली स्थिति वापिस नजर आ रही है, जब निराशाजनक पेरिस शांति समझौते के बाद, अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम छोड़ दिया था।
उत्तर वियतनाम ने राष्ट्र को एकजुट करने के लिए, कई सैन्य आक्रमण करवाए, जिसमें उसने उन लोगों को पुनर्शिक्षा शिविरों में भेजा, जो अमेरिका का समर्थन करते थे।
अमेरिका समर्थक पार्टियों और व्यक्तियों को उच्च पदों से हटाया गया और प्रताड़ित किया, जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण वियतनाम के लोगों में प्रतिशोध की भावना जगी, और प्रतिकार की इस कार्यवाही में कई लोग हताहत हुए।
अमेरिका के इराक से बाहर निकलने के बाद, वह ISIS के निर्माण के लिए प्रजनन स्थल बन गया, पूरा क्षेत्र, उत्तर में तुर्की से, जिसमें इराक शामिल है और सीरिया का एक बड़ा हिस्सा, अभी भी ISIS के लगातार खतरे से प्रभावित है।
अफ़ग़ानिस्तान, वियतनाम और इराक में युद्ध के बाद हुए परिणामों को, अनुभव कर रहा है,कम से कम अभी के लिए परिस्थितियाँ वैसी ही बनती नजर आ रही है।
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अमेरिका के इराक से बाहर निकलने के बाद, वह ISIS के निर्माण के लिए प्रजनन स्थल बन गया
तालिबान ही वह संगठन है, जो क्षेत्र में शांति और स्थिरता का निर्णय कर सकती है, आखिरकार तालिबान ही चल रही सरकार थी, जिसे 2001 में सैन्य रूप से गिरा दिया गया था।
इस सब के बीच पूरे समय, अमेरिका स्थानीय अफ़ग़ानों की मदद से उसी तालिबान से लड़ता रहा, जबकि अफ़ग़ानी सेना और पुलिस के पुनर्निर्माण के सभी प्रयास अमेरिका द्वारा ही किए गए थे, जो कोई भी परिणाम दिखाने में, विफल रहे।
सितम्बर 2021 के बाद,जब अमेरिका अपने आप पीछे हट जायेगा, तब अगर अफ़ग़ानी संस्थान तालिबान के दबाव से बच नहीं पाये, तब परिणामस्वरूप, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के समर्थक पदाधिकारियों के लिए, यह प्रलयंकरकारी होगा।
अमेरिकी सरकार इस स्थिति को समझती है, की बड़ी अफ़ग़ानी आबादी को देशद्रोही माना जाता है, इसलिए उसने विशेष अप्रवासी वीजा (visa) के रूप में अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी सहायता परियोजना (IRAP ) के तहत, वीजा प्रक्रिया शुरु कर दी है।
लगभग 18,000 अफ़ग़ानी दुभाषिए है, जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है। यही सुरक्षा का पैमाना इतना विशाल है, कि उनका वीजा कार्यक्रम दिक्कत का सामना कर रहा है, कम से कम अभी तो यही प्रतीत हो रहा है।
अफ़ग़ानी परिवारों के 10,000 से अधिक आवेदन अभी भी लंबित है। क्योंकि एक परिवार के चार सदस्यों को अनुमान में रखते हुए, वीजा प्रक्रिया की संख्या अद्भुत 70,000 आँकड़े पर पहुँचती है।
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लगभग 18,000 अफ़ग़ानी दुभाषिए है, जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है।
पुनर्वास की प्रक्रिया, जिसमें अफ़ग़ानों को देश से बाहर पुनर्स्थापित करना शामिल है, 11 सितम्बर, 2021 से पहले समाप्त हो जानी चाहिए, क्योंकि यह वह समय होगा, जब अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी, सम्पूर्णतया अभियान वापिस ले लेंगे।
यह एक विशाल मानवीय कार्य है, जिसे अमेरिका और नाटो सहयोगियों को अवश्य पूरा कर लेना चाहिए। इस अभ्यास के बाद भी, बची हुई आबादी जो कभी अमेरिकी सेना समर्थक थी, जोखिम में होगी और उनका भाग्य अनिश्चित होगा।
फिलहाल, अभी के लिए तालिबान पर भरोसा करना ही, वार्ताकारों के लिए एकमात्र विकल्प है।
अफ़ग़ानिस्तान को घोर मानवीय संकट का सामना करना पड़ेगा, उसके अलावा उसे पड़ोसी क्षेत्रीय खिलाड़ियों की भागीदारी से गृहयुद्ध का खतरा भी है।
अफ़ग़ानिस्तान में कम से कम 14 घरेलू समूह और जन जातियाँ, हुकूमत पर नजर गड़ाए हुए है, और अधिकाधिक अंश पर कब्ज़ा करने को तैयार है।
निम्नलिखित वह समूह और जन जातियाँ है, हालाँकि यह एक विस्तृत सूची नहीं है :
अफ़ग़ानिस्तान तालिबान - वे पिछली सरकार थे, जिन्हें अमेरिकी और नाटो (NATO ) के सैन्य हस्तक्षेप से 2001 में गिरा दिया गया था ।
अल-क़ायदा -11 सितम्बर के अमेरिका में हमले के लिए जिम्मेदार।
IMU - उज़्बेकिस्तान का इस्लामी आंदोलन
हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी
HI-गुलबुद्दीन-हिज़्ब-ए-इस्लामी गुलबुद्दीन
HI-खालिस - हिज़्ब-ए इस्लामी
हक्कानी नेटवर्क
लश्कर-ए-तैयबा
लश्कर-ए-इस्लाम
अब्दुल्ला आजम शहीद ब्रिगेड
JeM - जैश-ए-मोहम्मद
ETIM - पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट
TTP - तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान
IEW - वज़ीरिस्तान का इस्लामी अमीरात
सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान
TNSM - तहरीक-ए-नफ़ाज़-ए-शरीयत-ए-मोहम्मदिक
IJU - इस्लामिक जिहाद यूनियन
लश्कर-ए-झांगवी
हरकत-उल-मुजाहिदीन
मुल्ला दादुल्ला फ्रंट
अल-क़ाएदा और तालिबान समेत, कुछ को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है, जो नाटो (NATO ) मुक्त अफ़ग़ानिस्तान में संगठित और जीवंत होने की जगह रखेंगे।
इन सभी को अनियंत्रित छोड़ देने से, हम पायेंगे की वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा गंभीर खतरे में होगी ।
पाकिस्तान, ईरान और भारत, अफ़ग़ानिस्तान के खतरे से तत्काल प्रभावित है,चीन भी इस संकट से बहुत दूर नहीं रहेगा। क्योंकि पहले ही चीनी उइगर (Uighur) मुसलमानों के बचाव में इस्लामिक देशों में समर्थन बढ़ रहा है।
इन देशों का अफ़ग़ानिस्तान से जटिल मिश्रण का राजनीतिक,सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास रहा है।
इसके अलावा,भारत और पाकिस्तान के बीच परस्पर विरोधी हित है। प्रत्येक देश युद्ध के बाद, अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति में अपने पैर जमाने की कोशिश और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की खोज कर रहे है।
अमेरिका और सहयोगी देश, अफ़ग़ानिस्तान को लावारिस नहीं छोड़ सकते। यह शंका है की पश्चिमी देशों के खिलाफ, अफ़ग़ानिस्तान एक प्रजनन स्थल बन जायेगा।
नवीनतम अफ़ग़ानी पीढ़ियों ने केवल युद्ध ही देखा है, इसलिए उन्हें पश्चिम के खिलाफ भड़काकर बदला लेने और सेना में भर्ती करवाना आसान काम होगा ।
पूरी आबादी को भी बड़ी आसानी से पश्चिम के खिलाफ मोड़ा जा सकता है, क्योंकि एक बड़े पैमाने पर अमेरिका एवं नाटो (NATO ) सैन्य अत्याचारों के खिलाफ सबूत उपलब्ध है।
इसके विपरीत, अमेरिका को अपनी निकासी की रणनीति को तुरंत बंद कर देना चाहिए। इसके बजाय उसे अगले 20 वर्षों तक, गैर लड़ाकू भूमिका में अपनी उपस्थिति वहाँ बनाये रखनी चाहिए।
इस बार केवल देश में स्थायी नेतृत्व और मजबूत लोकतंत्र लाने के लिए। उसकी भागीदारी केवल शांति स्थापित करने और राष्ट्र निर्माण में होनी चाहिए, न की उपनिवेश स्थापित करने में।
चूंकि वर्तमान स्थिति उसके कारण उत्पन्न हुई, इसलिए उसे ही इसे ठीक करना होगा । उपस्थिति और भागीदारी को स्थिर रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उसके हित में रहेगा ।
वापसी का प्रभाव तुरंत भले ही न दिखे, किन्तु बाइडन (Biden) अपने शासन काल में निश्चित रूप से, यह महसूस करेंगे। यदि वह अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलते है तो, बहुत बड़ी भूल करेंगे।
चित्र: https://hi|wikipedia|org/wiki/अफ़ग़ानिस्तान
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