कोरोना काल में मीडिया कूटनीतियाँ
भाग - 1
कोरोना काल में मीडिया कूटनीतियाँ
भाग - 1
Media Tactics During COVID - Part 1 का हिन्दी रूपांतर
~ सोनू बिष्ट
मीडिया हाउस (मीडिया एजेंसीज) शत्रु है, पत्रकार नहीं !
सामान्य परिस्थितयो में भी मीडिया दिमागी खेल खेलता है, बल्कि यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हर एक घटना के लिए वह विशेष युक्तियाँ इस्तेमाल करता है, जिससे वह मुख्य समाचार (Headlines) बनाता है. कोविड-19 एक विशेष घटना है जो प्रथम युद्ध के बाद, किसी भी अन्य खबर कि तुलना में, अधिक समय तक चली है.
इस 'आलेख' का 'लक्ष्य' कोविड महामारी के दौरान पूरी दुनिया में विशेष रूप से मीडिया के किरदार पर प्रकाश डालना है. यह आलेख नोम चॉम्स्की (Noam Chomsky) की 10 मीडिया कूटनीतियां सूची से उत्प्रेरित है.
ध्यान भटकाने की रणनीति क्यों ?
मीडिया, प्राइम टाइम पर गैर-जरुरी मुद्दों पर बहस करवा रहा था, जबकि कोविड मामले बढ़ रहे थे. अधिकांश प्रतिभागी पक्षपाती थे, केवल अपने पद के बचाव में लगे थे.
कुछ देशों ने अपनी सीमाओं को बंद करने और लॉकडाउन का विरोध किया, जबकि अन्य ने मुस्तैदी से इस पर प्रतिक्रिया दी. मीडिया ने व्यापक रूप से इन स्थितियों पर प्रकाश डाला, मगर उन्होंने दर्शको को यह नहीं बताया कि इन देशों में यह संक्रमण फैल कैसे रहा है.
उन्होंने संक्रमण के कारणों कि पर्याप्त जांच नहीं की, उदाहरण के तौर पर, यह अभी भी व्यापक रूप से उजागर नहीं किया गया है कि कैसे चीन के वुहान से वायरस ने इटली के लोम्बार्डी शहर के, छोटे जिले तक अपना रास्ता खोज लिया.
वायरस चाहे वुहान के लैब से लीक हुआ या वेट मार्केट से (बाजार जहां फल, सब्जियाँ और मांस एक साथ मिलते है). यह अब जांच का मुख्य केंद्र नहीं रहा.
अगर मीडिया शुरुवात में ही सही तथ्यों को दुनिया के सामने लाती तो अन्य देश उससे सबक लेते और जरूरी उपाय करते. संक्रमण को प्रभावी रूप से रोका जा सकता था.
इटली के मीडिया आउटलेट (समाचार पत्र,मैगज़ीन, रेडियो. टी.वी, इंटरनेट) संक्रमण के कारणों कि सूचना नहीं दे रहे थे, इसलिए यूरोप की सभी सरकार सिर्फ स्थिति का अनुमान लगा रही थी. उन्होंने स्थिति पर तब प्रतिक्रिया दी जब बहुत देर हो चुकी थी.
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मीडिया हाउस शत्रु है, पत्रकार नहीं !
किसी के लिए यह समझना आसान है कि चीन पर मीडिया प्रतिबद्ध है. इसलिए एक पत्रकार के लिए भूतल वास्तविकताओं (Ground realities) को सीधे तौर पर रिपोर्ट करना मुश्किल था.
तथापि, बड़ी संख्या में असत्यापित सोशल मीडिया फुटेज उपलब्ध थे, जो प्रज्ञात उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त थे. तो आखिर मीडिया को कैसे चीन में दूतावास से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुआ.
चीन को एक संदिग्ध (जटिल) मामले के रूप में देखे तो, इटली, उसकी तुलना में, मीडिया के अनुकूल और पारदर्शी देश है. इसलिए संक्रमण की जड़ तक पहुंचना बहुत आसान था किन्तु मीडिया ने ऐसा कुछ नहीं किया.
अंत में, जब महामारी ने काफी नुकसान कर दिया तब हमें इटली में संक्रमण फैलने के कारण का पता चला था, वह भी मुख्य धारा की मीडिया से नहीं, बल्कि खोजी पत्रकारों के जरिए. मीडिया ने तथ्यों पर प्रकाश डालने की कोई कोशिश नहीं की थी.
संक्रमण जहां फैला था वह कपड़े की अवैध फैक्ट्रिया थी, जो कथित तौर पर चीनी मजदूरों द्वारा चलाई जा रही थी. उनके पास उचित आवास और चिकित्सा सेवा न होने के कारण संक्रमण बड़ी तेजी से उनके जरिये पूरे जिले में फैल गया, फिर पूरे देश में और अंत में उसने पूरे यूरोपीय महाद्वीप को निगल लिया.
अटलांटिक के आर-पार, अमेरिकी सीमाएं खुली थी और प्रतीक्षा कर रही थी डब्ल्यू. एच. ओ (W. H. O) द्वारा इस संक्रमण को महामारी घोषित किए जाने का. मीडिया यह नहीं दिखा रहा था कि कैसे चीन के वुहान शहर में सख्त लॉकडाउन है और वहां की स्थिति कैसी है.
क्यों न असत्यापित फुटेज दिखाकर चीन की स्थिति दुनिया भर को दिखाई जाती और आने वाले खतरे के प्रति, उन्हें सचेत और तैयार किया जाता. तब शायद स्थिति कुछ और होती.
किन्तु यह सब तब तक नहीं किया गया जब तक कि संक्रमण कि संख्या ने हर देश में आतंक नहीं फैला दिया. यह सब होने के बाद मीडिया और सरकार ने कार्यवाही की.
महीने गुजर जाने के बाद दस्तावेज दिखाकर ये बताना की, यह स्थिति कैसे सामने आई, केवल एक शैक्षिक अभ्यास ( Academic exercise) भर होगा. वर्तमान संकट को हल करने के लिए महत्वहीन है.
वर्तमान में, सभी सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने पर विचार कर रही है. अमेरिका में मास्क पहनना अनिवार्य नहीं है. किन्तु यह सलाह एक झलक की तरह गायब हो जाती है.
यूनाइटेड किंगडम में भी कोई प्रतिबन्ध नहीं है. लोग क़ानूनी रूप से मास्क पहनने के लिए बाध्य नहीं है और 19 जुलाई को यहां स्वतंत्रता दिवस जैसा भी मनाया जा चूका है.
हालाँकि, भारत अनाधिकारिक तौर पर व्यापार के लिए खुला है, और यहां बाजार और प्रयत्न स्थलों पर भारी भीड़ है. चीन से संक्रमण की कोई खबर नहीं है, जैसे 2020 में भी संक्रमण बस कुछ समय के लिए था और चिंता की कोई बात नहीं लग रही थी ।
तो आखिर मीडिया की क्या भूमिका है ?
मीडिया की भूमिका यहां पर यह है कि, वह वैज्ञानिकों और चिकित्सा सम्बन्धी पत्रिकाओं के निर्णायक जांच परिणामों पर तेजी से प्रकाश डालें. मीडिया को वैज्ञानिक निष्कर्ष और सरकारों कि क्रियाशीलता पर भी पूछताछ (सवाल) करते रहना चाहिए.
सैद्धान्तिक रूप से, मीडिया को समस्या के मूल कारण का पता करके, जनता को उसके बारे मे गहनता से सूचित करना चाहिए.
किन्तु इसके बजाय यह मुख्यतः नरम मुद्दों पर रिपोर्टिंग कर रहे है. जैसे - लॉकडाऊन के दौरान लोगों ने कैसे अपना समय आनंदपूर्वक बिताया. यहां तक कि मुख्य खबरों में यह बताया जा रहा था कि जनता ने लॉकडाऊन के बाद कैसे अपना समय समुद्र तटों, नाईट क्लबों और शॉपिंग मॉल में बिताया.
दुनिया भर में हरेक, देश की मीडिया ने उचित जानकारी जैसे दैनिक मामलों की कुल संख्या, दैनिक मृत्यु पहली और दूसरी खुराक की संख्याएं इत्यादि के बारे में लोगों को सूचित किया.
किन्तु किसी भी मीडिया ने वैक्सीन के 'हानिकर' (Adverse) प्रभावों के बारे में लोगों को सूचना नहीं दी. यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी है और साधारण जनता को इसे सरल भाषा में जानने का अधिकार है.
कई देश तो इन हानिकर प्रभावों को दर्ज तक नहीं कर रहे और आम जनता को भी इसके बारे में मालूम तक नहीं है.
इस तरह के मीडिया कवरेज का प्रभाव न तो सरकारों को 'अविवेकी' (Rash) निर्णय लेने, और न ही जनता को गलत चुनाव करने से रोकेगा. स्पष्टता (खुलापन) और पारदर्शिता यहां पर हताहत हुई, लाखो कीमती जिंदगियां गवांने के बाद ।
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स्पष्टता (खुलापन) और पारदर्शिता यहां पर हताहत हुई, लाखो कीमती जिंदगियां गवांने के बाद
मीडिया दुनिया भर में विद्यमान वैक्सीन के प्रति लोगों की दुविधा की रिपोर्टिंग कर रहा है। मगर बहुत कम लोग ही वैक्सीन दुविधा के कारणों की तलाश कर रहे है और पत्रकार के रूप में इस स्थिति पर काबू करने के प्रयासों को आवरण दे रहे है.
विभिन्न देशों, समुदायों, जातियों और धर्मों में टीकाकरण न करवाने के अलग-अलग कारण है । वे ज्ञान से लेकर मान्यताओं, साजिश से लेकर विवाद तक है.
दुविधा के कारणों की रिपोर्टिंग और इस मुद्दे पर एक खुली बहस करवा के मदद करने के बजाय, इन्होंने धमकाने की कार्य नीति को इस्तेमाल किया ।
दुविधा पर एक 'पारिभाषिक शब्द' लागू कर दिया गया और दुविधा में पड़े लोगों को 'संयोजित' कर इस तरह दिखाया कि वह समाज के अपराधी दिखने लगे.
मीडिया कि भूमिका पर आखिर लोग सवाल क्यों खड़े नहीं कर रहे है?
पूर्व दिनों में, जब सूचना के कुछ ही पारम्परिक स्रोत थे,तब पत्रकारों पर भरोसा अत्यधिक था. विभिन्न मीडिया चैनेलों जैसे प्रिंट, रेडियो और टेलीविज़न को सूचना के 'धर्म ग्रन्थ' की तरह माना जाता था.
मासूम जनता को इस बात पर कभी भरोसा नहीं हो पाया, की इन विश्वासपात्र मीडिया प्रतिष्ठानों (Media Outlets) द्वारा इस तरह के दिमागी खेल खेले जायेंगे.
वह मधुर सम्बन्ध, जिन्होंने मीडिया हाउसों, सरकार और हिस्सेदारों के हितों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न की,काफी हद तक अज्ञात है.
अरबों खर्च करके जिन मीडिया हाउसों (Media agencies) को बनाया गया और जन सूचना (Public Information) पर उनके जो प्रभाव पड़े, यह सब खेल बहुत देर से प्रकाश में आये.
यहां तक की आज भी, महामारी के समय के दौरान ब्रांडेड मीडिया हाउसों को ही पूर्ण सत्य बताने वाला समझा जाता है,जबकि ऐसा नहीं है.
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अभी भी, जनता मीडिया के इस कूटनीति के खेल को पकड़ नहीं पा रही, यह एक बुरी खबर है
समय के साथ, वह सिर्फ जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकार ही थे, जिन्होंने तथ्य दिए और परदे के पीछे की सच्चाई दिखाई, तब जनता को इन * राष्ट्रीय मीडिया की विसंगतियों और उद्देश्यों के बारे में एहसास हुआ. दुर्भाग्यवश, तथ्यों को खोदकर बाहर निकालना और लोगों के सामने प्रस्तुत करने का यह उपयुक्त पद अभी भी खाली है.
*(जिनके पास बड़ी संख्या में श्रोतागण है)
इस उद्योग में कुछ ही लोग है जो विश्वसनीय पत्रकारिता के लक्ष्य का अनुसरण कर रहे है.
हाल ही में क्या बदला है?
अभी इस वक़्त, कई सोशल मीडिया माध्यमों ने जनता को जमीनी हकीकत से अवगत करवाया है, जिनमें से अधिकांश सच है, पर असत्यापित है. कई वीडियो फुटेज (फिल्म के हिस्से) सीधे उस स्थान से और अव्यवसायी लोगों की तरफ से आये है, जो उनको प्रामाणिक बनाते है.
सोशल मीडिया धीरे-धीरे पारम्परिक मीडिया की तुलना में अधिक विश्वसनीय हो चूका है, क्योंकि इसमें दी गयी जानकारी को गलत तरीके से तोड़ना-मरोड़ना नहीं किया जाता, इच्छुक जनता के लिए.
आजकल के समय में, हमारे जानकारी के स्रोत धुंधले हो गए है, जो कि एक अच्छी खबर है. क्योंकि हमें यह तक याद नहीं रहता कि हमने जो जानकारी का टुकड़ा प्राप्त किया वो कौन सा सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म या मुख्य धारा की मीडिया लेकर आई.
आमतौर पर, ज्ञान के लिए जनता की इच्छा मुख्य धारा और सोशल मीडिया के इस मिश्रण से पूरी हो जाती है. इसलिए, जनता अब ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उसे पता की उन्हें क्या जानना चाहिए,क्या नहीं.
अभी भी, जनता मीडिया के इस कूटनीति के खेल को पकड़ नहीं पा रही, यह एक बुरी खबर है.
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