किराना - भारतीय परिवारों की जीवन रेखा
किराना - भारतीय परिवारों की जीवन रेखा
KIRANA - Indian Household Lifeline का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
किराना दुकान (संग्रहागार ) - एक भारतीय आर्थिक पहचान
सभी शहरों की अपनी एक आर्थिक पहचान होती है, जो उनके वहां प्रचलित स्थानीय उद्योगों जैसे निर्माण कार्य, चीनी मिट्टी का कार्य, काँच की फैक्ट्रियां, मसाला बाज़ार, द्राक्षाक्षेत्र (अंगूरबाग़ान), शैक्षिक केंद्रो, प्रौद्योगिकी केंद्रों आदि पर निर्भर करती है.
किसी भी भारतीय शहर और कस्बे में प्रचलित उद्योग से पृथक सभी भारतीय गलियाँ किराने की दुकान से चिह्नित हैं. वे एक मजबूत डोर की तरह हैं, जिसने अड़ोस –पड़ोस को एकसाथ जोड़े हुआ है.
वैदिक काल से ही किराना प्रणाली के प्रचलन से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भारतीय उपमहाद्वीप मसालों और अनाज का स्रोत रहा है.
इतिहास दर्ज होने के बाद से वनस्पति विज्ञान और पाक विज्ञान अत्यधिक परिष्कृत हैं. कोई भी अंदाजा लगा सकता है किराना प्रकार की प्रणाली उतनी ही प्राचीन है जितना की भारत का इतिहास। आश्चर्य की बात नहीं है कि यूरोपीय खोज और इतिहास भारत की खोज के साथ शुरू हुए हैं.
आधुनिक आर्थिक प्रणाली के रूप में किराना
किराना एक दुकान से ज्यादा है. क्योकि यह देश की जीवन रेखा को चलाता है, घरों को रसद बेचता है और सूक्ष्म आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है. इन सूक्ष्म आर्थिक गतिविधियों का सम्मिश्रण उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यवसाय का निर्माण करती हैं.
भले ही यह किराना दुकानें छोटी या अलग या अकेली लगे किन्तु यह गहरे बैठे बहु - स्तरीय विपणन का एक जन समूह है.
एक सुदूर गांव में भले ही रेलवे स्टेशन या बैंक की शाखा न हो लेकिन किराने की दुकान अवश्य होती है. इसकी राष्ट्र के लिए यही महत्ता है. सही मायनों में यह भारतीय आर्थिक प्रणाली की ‘नींव का ईंट’ है.
भारत की आर्थिक गतिविधियों का बैरोमीटर इन किराना दुकानों पर रहता है. किराना में कार्य की व्याख्या करने के लिए किसी को अर्थशास्त्री होने की आवश्यकता नहीं है.
बच्चों के लिए टॉफी की छोटी सी खरीददारी से लेकर प्रसाधन सामग्री (साबुन मंजन आदि ), डिब्बा बंद भोजन, मसाला और अनाज तक, घर की जरूरत की हर चीज़ यहां आराम से मिल जाती है.
अपने पड़ोस की हर पसंद और स्वाद का ख्याल करते हुए उनकी आवश्यकताओं को पूरा करती है. हालांकि व्यावसायिक तौर पर यह कम मुनाफ़े में गुजारा करता है और एक घर की रोजमर्रा की जरूरतों को स्थायी रूप से उपलब्ध करवाता है.
राज्य और देश के वित्त मंत्रालय के गलियारों में जो कुछ कहा और किया जाता है वह सीधे यहां प्रतिबिंबित होता है. बल्कि, किसी भी सामाजिक परिवर्तन और व्यवधान का प्रभाव भी इनपर पड़ता है.
करों से ईंधन अधिशुल्क तक, किसान अशांति से चक्का जाम तक, सप्ताह के अंत से त्योहारों की छुटियाँ तक यह सभी इनके लिए महत्वपूर्ण हैं.
अर्थशास्त्रियों के लिए विपरीत पिरामिड एक सच है. किराना अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी क्योंकि यह आर्थिक पिरामिड में सबसे नीचे है.
मांग और आपूर्ति की जानकारी
सही समय पर मांग को पूरा करने वाली आपूर्ति श्रृंखला 'किराना' को चलाने का मूलमंत्र है. एक विपरीत आँकड़ा है जो मांग -आपूर्ति के प्रबंधन में काम करता है.
प्रत्येक किराना दुकान में एक अनोखा उपभोग ढांचा होता है, और आपूर्तिकर्ता किराना मालिकों के साथ परामर्श करते हैं, जो अपने विशाल अनुभव के कारण लोगों की वस्तुओं के प्रति प्रवृत्ति को जानते है.
यह बहुमूल्य है, और एक उत्तम मांग प्रबंधन सॉफ्टवेयर भी इस 'अव्यक्त ज्ञान' (Tacit knowledge) की भावी सूचक परिशुद्धता (Predictive Accuracy) तक नहीं पहुँच सकता.
“
भारत की आर्थिक गतिविधियों का बैरोमीटर इन किराना दुकानों पर रहता है
व्यवसाय के मामले में मालिक सबसे चतुर होते हैं. हालाँकि किराना के बारे में पर्याप्त शैक्षिक अन्वेषण (Research) नहीं किया गया है, लेकिन यह सर्वोत्तम व्यवसाय अभ्यासों के स्रोत है. वे लोग जो प्रबंधन की पढ़ाई करना चाहते है, उन्हें प्रशिक्षण के तहत किराना की दुकान पर समय बिताना चाहिए.
सामाजिक विज्ञान
अगर किराना दुकानें मजबूत होंगी तो भारत भी मजबूत होगा. हर भारतीय के लिए किराना एक अनिवार्य (अभिन्न) अंग है. वे ना केवल आपूर्ति प्रदान करते हैं, बल्कि वे सामाजिक संपर्क का केंद्र भी हैं.
आमतौर पर यह पारिवारिक व्यवसाय होते है, जिसमें उनके कर्मचारी लम्बे समय तक या अक्सर जीवन भर कार्य करते है. तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा की कई पाठकों ने बूढ़े 'सेठ' की जगह उनके बच्चों को दुकान का भार ग्रहण करते देखा होगा.
यहां पर जो महत्वपूर्ण बात है समझने की वह है समुदाय की निरंतरता. ये किराना मालिक समाज के साथ विकसित हुए है. साथ ही, यह पड़ोस के सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साक्षी रहे है.
जिसके परिणामस्वरूप, इन किराना दुकानों के पटलों (counters) के पीछे एक सामाजिक विज्ञान की समझ का खजाना बैठा है.
यह मनोहर दुकानें नहीं हैं, इसके बजाय यह एक उन्नत गोदाम से ज्यादा और कुछ नहीं.
समय के साथ यह कुछ आगे आये है, और खुद में कुछ हद तक तकनीकी बदलाव लाये है जैसे, बिजली, डिस्प्ले कैबिनेट (प्रदर्शित अलमारी), रेफ्रिजरेटर (प्रशीतक ), खाने के सामान के अलावा, सिम कार्ड, भुगतान डिजिटलीकरण (अंकीकरण) और बैंकिंग इंटरफ़ेस (अधिकोषण अंतराफलक) की सुविधा रखकर.
अगर हम इन कीमती साइटों (sites) को बड़े बहु -खुदरा स्टोरों (multi retail stores) में जाने देते है तो यह समुदाय को गैर – संवादात्मक और केवल रोबोट जैसे खरीददारी प्रदर्शित करने में विघटित कर देगा.
उत्पादों
किराना की दुकान किसी भी बड़ी दुकान (Superstore) की तुलना में प्रति वर्ग मीटर अधिक वस्तुओं का ढेर रखती है. यह अपने ग्राहकों को विभिन्न नमूनों और सेवाओं द्वारा खरीददारी करवाने के कारण है.
परिणामस्वरूप, उत्पादों की उपलब्धता की सीमा व्यापक है, हालाँकि कम वस्तु सूची के साथ, क्योंकि यह विशेष रूप से पड़ोस की आवश्यकताएं पूरा करता है.
उत्पाद के 'स्थान नियोजन' (Placement) का लचीलापन एक और फायदा है जो की विशाल है और इसकी खूबी के रूप को नहीं माना जाता. किराना दुकान में जगह पाने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों के अलावा, स्थानीय उत्पाद विक्रेता भी आसानी से जगह पा सकते है.
अगर यह बिकता है, तो यह दोनों की जीत है. दूसरी तरफ, यदि स्थानीय कुटीर उद्योग का कोई उत्पाद अपने आप को उन शृंखलाओं में रखना चाहता है, तो यह प्रक्रिया खुद को पछाड़ने वाली होगी, प्रक्रियाओं की जड़ता के कारण.
एक तरह से, किराना की दुकानें सूक्ष्म उद्यमिता के लिए एक जगह प्रदान करती हैं. जो कोई भी कंपनियों की कड़ियाँ (corporate chains) नहीं कर सकती हैं.
दोनों की तुलना की जाए तो, किराना दुकानें अपनी वस्तुसूची में किसी भी अन्य खुदरा दुकान * (Chain outlet)* की अपेक्षा अधिक प्रभावी ढंग से वस्तुओं को संग्रहित करती हैं. इसका मतलब है कि किराना दुकानें कम जगह पर संचालित होती हैं और इस तरह मूल्यवान अचल सम्पत्ति को घरों के लिए छोड़ देती हैं.
* चेन स्टोर (chain outlet) - खुदरा दुकान हैं जो एक ब्रांड और केंद्रीय प्रबंधन साझा करते है और आमतौर पर व्यापारिक तरीकों और प्रथाओं के मानकीकृत होते हैं।
एक और अनिवार्य तुलना जो की लोगों की पसंद है वह है इसके संजाल (नेटवर्क ) की पहुँच. भारत में करीबन 5 लाख गांव है और अभी भी 80 % जनसंख्या गाँवों और छोटे कस्बों में रहती है.
अगर सिर्फ गाँवों की संख्या पर विचार करें, तो कोई भी बड़ी दुकान उन विक्री केंद्रों (किराना ) की बराबरी नहीं कर सकता.
इसलिए, राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किराना दुकानों के संजाल को कमजोर करने वाला कोई भी नीतिगत कदम भारतीयों के जीवन में अराजकता और व्यवधान ही लाएगा. अपेक्षित व्यवधान दीर्घकालिक होगा और जनसंख्या की जीवन शैली को बदल देगा.
सुपरमार्केट (स्व - सेवा दुकान ) के रणनीतिकार अपनी सीमाएं जानते हैं कि वे देश की हर सड़क तक नहीं पहुंच सकते. इसलिए, वे आमतौर पर शहर के सुदूर इलाके में बड़े आकार के सुपरस्टोर (बड़ी दुकानें) बनाते हैं.
इसका नुकसान यह है की पूरा अड़ोस -पड़ोस एक जगह या एक बिंदु की ओर जाते है और कुछ तो लम्बी दूरी तय करते हैं. यह प्रतिरूप (model) प्रदूषण, ग्राहकों के समय प्रबंधन और प्रति लेन- देन लागत के लिए सही नहीं है.
एक्सपर्टएक्स (Expertx) अपने दूसरे लेख में सुपरमार्केट की कमियों पर चर्चा करेगा.
किराना की दुकानें कई घरों के पास स्थित हैं, महज इसलिए घरों में सामान रखने की प्रवृत्ति बहुत कम होती है.
छोटे आकार के शीतक यंत्र (Refrigerator) खराब होने वाली वस्तुओं के लिए काफी है. इसके विपरीत जिन देशों में सुपरमार्केट (स्व -सेवा दुकानें ) ने इन किराना शैली प्रणालियों को अपने कब्जे में ले लिया है, वहां शीतक यंत्रो का आकार और ज्यादा बड़ा हो गया है और लम्बे समय तक चलने वाले सामानों में वृद्धि हुई है.
आज यूएचटी (UHT) अल्ट्रा हाई टेम्परेचर (Ultra high temperature ) संसाधित दूध (Processed Milk ) तीन महीने तक चल सकता है और आबादी स्वास्थ्य की तुलना में सुविधा के लिए इसका अधिक सेवन करती हैं.
कोई भी अंदाजा लगा सकता है की यह लम्बे समय तक चलने वाले भोजन को संग्रहित करने और ताज़ा न खाने की आदत राष्ट्र की सामान्य सेहत के लिए कितनी परिणामी हो सकती है.
आर्थिक जनसांख्यिकी विज्ञान (Demography ) में बदलाव
किराना प्रणाली लगभग सभी छोटे उद्यमियों के बारे में है, और जो लाखों में हैं. कई लोग इस धंधे को पीढ़ियों से चला रहे हैं.
एक नवागंतुक को सिर्फ 50,000 रुपये लगते हैं किराना दुकान को शुरू करने के लिए जो समय के साथ बढ़ती है. यह 2 से 5 व्यक्तियों के साथ रिश्तेदारों और निकट संबंधियों को भी रोजगार देती है. तो इस खुदरा क्षेत्र में प्रवेश की बाधा अस्तित्वहीन है.
सुपरमार्केट की इन श्रृंखलाओं के साथ 'स्वामित्व अधिकार' कभी विद्यमान नहीं रहेगा. एक कर्मचारी के रूप में बड़े पैमाने में भुगतान स्थल (Checkouts), शेल्फ में सामग्री रखने वाले (shelf loaders) , माल परिवाहक (good movers) और पर्यवेक्षकों (Supervisors) पर रोजगार टिका रहेगा.
यह लाखों लोगों के लिए जीविका (Career) का शिखर होगा. समग्र दृष्टि से देखे तो, किसी भी अन्य उद्योग क्षेत्र की तुलना में इस क्षेत्र में जीविका के लिए आर्थिक पिरामिड सपाट है.
सुपरमार्केट की श्रृंखला के साथ, युवा पीढ़ी आसानी से कर्मचारी बन जाएगी बजाय एक व्यवसाय के स्वामित्व का चुनौतीपूर्ण मार्ग अपनाने के. इसलिए, एक व्यवसाय को चलाने के 'सपने' समय के साथ समाप्त हो जाएंगे. कम ही इस जोखिम भरे मार्ग को अपनाएंगे.
“
पारस्परिक प्रभाव (Interaction) और खरीदारी की आदत ही बाज़ार को गतिशील बनाती है
दुनिया भर में इन सुपरमार्केट्स (बड़े बाज़ारों ) का स्वामित्व रखने वाली बड़ी कम्पनियाँ सबसे अमीर है, जबकि उनके कर्मचारी , बेहद गरीब. अमरीका में वालमार्ट (Walmart) ''सुपरमार्केट की प्रतीक'', में कर्मचारियों का वेतन इतना कम है कि वे कई अन्य नौकरियां भी करते हैं और फिर भी अंततः सरकार द्वारा दिये गए मुआवजे पर निर्भर रहते है.
बाज़ार की सम्पति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाती है और वस्तु की विशालता (Enormity) खतरनाक होती है. वे राष्ट्र की नीतियों को दृढ़ता से प्रभावित कर सकते है और समाज में सामाजिक परिवर्तन का निर्धारण कर सकते है.
इसके विपरीत किराना दुकानें, पढ़ाई छोड़ने वालों (अशिक्षित / कम शिक्षित) को एक छोटा व्यवसाय शुरू करने और अन्य लोगों को भी रोजगार देने का अवसर प्रदान करती है.
आर्थिक इतिहास
कोने की दुकानों (सुविधा की दुकान) का ब्रिटिश इतिहास (किराना के समकक्ष ) इसे सीखने के लिए भरा हुआ है. जैसा की इतिहास गवाह रहा है, वे मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रीका और अविभाजित भारत के प्रवासियों द्वारा संचालित ब्रिटिश समाज का मुख्य आधार रहे हैं.
ब्रिटेन में प्रवासी संकट क्या हो सकता था, अगर कोने की दुकानों (किराना ) प्रणाली की गतिशीलता ने लाखों लोगों को पर्याप्त अवसर नहीं दिया होता. वे कभी सरकार पर बोझ नहीं थे.
50 से अधिक वर्षों में, उन सभी ने आर्थिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है और 'समृद्धि' परिभाषित हुई. लेकिन, निश्चित रूप से, यह पुरे परिवार द्वारा किये गए कड़े परिश्रम और त्याग से प्रेरित था.
इस प्रणाली की शक्ति ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को आगे की ओर धकेला , अड़ोस -पड़ोस को स्थिर किया, समुदायों को बाँधा और लाखों परिवारों के लिए आवश्यक आपूर्ति को मजबूत किया.
हालांकि, आज वे उतनी संख्या में नहीं है, लेकिन घरेलू रसद के लिए सबसे भरोसेमंद स्रोत है, भले ही अगले ही मोड़ पर बहु - राष्ट्रीय सुपरमार्केट जैसी बड़ी कंपनियां मौजूद हैं.
आस पड़ोस के व्यक्तित्व के आधार पर बिक्री की यह शक्ति, अपने खुलने के समय और उत्पाद श्रृंखला के बेजोड़ लचीलेपन के साथ, स्थानीय जरूरतों का प्रबंधन करते हुए , उन्हें फलने -फूलने देती है.
किराना के साथ समस्या
श्रम शोषण के मुद्दे.
किराना की दुकानों में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी या तो मालिक के जान पहचान वाले होते है या रिश्तेदार. ऐसा इसलिए क्योंकि वफादारी ओर भरोसे के मामले में यह सबसे अच्छा निर्णय रहता है.
इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि कर्मचारियों को कम वेतन दिया जाता है ओर काम करने की स्थिति खराब होती है. आधुनिक मानव संसाधन मानकों सम्बन्धी गणना के हिसाब से यह बहुत कम अंक पाएंगे.
लम्बे समय तक काम करने के घंटे, काम पर रखना और निकलना, भारी सामान उठवाना ,अवैतनिक छुट्टिया, प्रतिबंधित छुट्टियां, कुछ बीमारी की छुट्टी इत्यादि. यह किराना के कुछ प्राचीन कार्य सम्बन्धी मानक है.
लेकिन इस रोजगार प्रतिरूप (Model) का अच्छा पहलू इसका लचीलापन है. इसमें क्षमताओं को साबित करने के लिए न किसी औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता है और ना ही लम्बी मानव संसाधन (HR ) प्रक्रिया की.
एक व्यक्ति को अगर इस काम में कुछ दिखाने की जरूरत है तो वह है वफादारी, विश्वास और काम के प्रति तत्परता. कुल मिलाकर, उपलब्ध अवसर रोजगार की समस्या को काफी हद तक हल करने में मदद करते हैं.
बाद में, यही कर्मचारी अक्सर किसी और जगह पर अनपेक्षित लाभ के लिए अपनी किराना दुकान शुरू करते है, गाँवों और कस्बों की गहराई तक, अपने संजाल (Network) को फैलाते हुए.
अस्तित्व और भविष्य
छोटे व्यवसायों को समाप्त करने के लिए बड़ी कंपनियां मूल्य युद्ध (Price war) जैसे सामूहिक विनाश के हथियार का इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ऐसा किया है और भारत में भी ऐसा ही करने का इरादा रखती हैं. अमरीका और ब्रिटेन का आर्थिक इतिहास इसका प्रमाण है.
आकार की प्रकृति से, इन किराना दुकानों में पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं * (Economies of scale ) * गायब है. यदि मूल्य युद्ध होता है, तो ये किराना मालिक की जेब खर्च की कीमत पर होता है.
इसके बजाय, वे बड़े समूह (बड़ी कंपनियां ) प्रतिस्पर्धा को मात देने के लिए वस्तुओं पर गहरी छूट दे सकते है. * इ-कॉमर्स (इ -व्यवसाय ) क्षेत्र में इसी तरह की एक पंक्ति पहले से ही बढ़ रही है.
सरकार को इसमें दखल देना पड़ा, किन्तु इन बड़ी कंपनियों में संदेह और अविश्वास की भावना अभी भी व्यापक रूप से विद्यमान है.
* Economies of Scale - एकॉनॉमीज़ ऑफ स्केल- लागत लाभ हैं ,जो निर्मातयो को तब प्राप्त होते है जब उत्पादन दक्ष और बहुलसंख्या होता है।
* इ- कॉमर्स - इंटरनेट पर वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री है. यह इलेक्ट्रॉनिक रूप से व्यापार करने की क्रिया है.
घरेलू बाज़ार भारतीय समाज को उसकी नींव के सबसे गहरे बिंदु से विघटित कर देगा. मानव संवाद की क्रिया हमेशा के लिए बदल जाएगी.
पश्चिमी विकसित अर्थव्यवस्थाएं अपनी व्यक्तिगत ग्राहक देखभाल सेवाओं (Customer care services) को चलाने के लिए भारत से संपर्क कर रही हैं और हम भारतीय अपने समाज से उस ताकत को मिटाने का प्रयास कर रहे हैं.
मुझे पूरा यकीन है कि बहुत से पाठकों को अपने स्थानीय किराना के मालिक और उनके कर्मचारियों के नाम याद है . लेकिन दुर्भाग्य से, इन बड़ी दुकानों (Superstores) के साथ ऐसा नहीं है जो एकाएक इतनी जल्दी देश भर में उभर चुके है.
किराना के आधुनिकीकरण की कोशिश में सुपरबाज़ार और उनकी श्रृंखला को प्रोत्साहित किया जाता है. शहरों में, खरीदारी के अनुभव के नाम पर स्वसेवी (self-servicing) बड़ी दुकानें ग्राहकों के सामने पेश की जाती हैं.
इसके बजाय, आधुनिक खरीदारी एक स्वयं - सेवा है, नामपर्ची (Label) पर निर्भर, डिब्बाबंदी उत्पाद को अपने बारे में खुद ही बोलना होता है. संदेह की स्थिति में, दुकान के कर्मचारियों के पास खरीदारी में मदद करने के लिए कोई विवरण या प्रेरक बाते नहीं होती.
आमतौर पर किराना के मामले में ऐसा नहीं होता है. ग्राहक स्पष्टीकरण ले सकता है, सलाह ले सकता है और कई मामलों में समीक्षा भी प्राप्त कर सकता है. यह पारस्परिक प्रभाव (Interaction) और खरीदारी की आदत ही बाज़ार को गतिशील बनाती है .
किराना के शेल्फ पर सुपरस्टोर्स की तुलना में अधिक वस्तु की किस्में अपना स्थान पाती हैं.
उदाहरण के लिए यू.के (UK) और यू.एस (US) में सबसे बड़े सुपरमार्केट में, कच्चे चावल की केवल 3 किस्में हो सकती हैं और वह भी संकुलित (Packed), ग्राहक उसे स्पर्श,महसूस या सूंघ नहीं सकते जो की चावल की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए जरुरी होता है.
जबकि भारत में एक किराना में अधिक किस्में होंगी और ग्राहक उनकी गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए उन्हें सूंघ और महसूस कर सकते हैं.
अक्सर दुकान के मालिक या कर्मचारी चावल की उम्र, उपलब्धता और व्यक्तिगत अनुभव जैसी अतिरिक्त जानकारी के साथ सहायता करते हैं. अतः, किराना दुकान पर खरीददारी का निर्णय विशेषज्ञता और मैत्रीपूर्ण व्यवहार पर आधारित है.
किराना में सुपरमार्केट की कुछ उपलब्ध पैकेटों की तुलना में सबसे महत्वपूर्ण लचीलापन है खरीददारी को रूचि के अनुसार आकार में बनाना. गरीबी से लड़ने और जलवायु परिवर्तन में खाद्य अपशिष्ट (Food Waste) (खाने की बर्बादी) गंभीर चिंता का विषय है, और सुपरमार्केट इस मुद्दे में गंभीर दोषी हैं.
घरेलु खुदरा क्षेत्र में सुपरमार्केट की श्रृंखलाओं को बढ़ावा देकर, हम भारतीय, 'भारत' के सांस्कृतिक ताने - बाने को अमानुषिक (Dehumanise) बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जो कि एक वास्तविक ताकत है जिस पर इस राष्ट्र का अस्तित्व टिका हुआ है.
EXPERTX does NOT take responsibility of the contents in the external link.
To Comment: connect@expertx.org
Please indicate if your comments should appear in the next issue
Other Articles from February 2021
Did Western Medical Science Fail?
How to Harness the Power in these Dim Times?
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall?
Taking on China – Indian Challenges
British Border Bungling and BREXIT
When Health Care System Failed – others Thrived.
3 Killer Diseases in Indian Banking System
Work from Home - Forced Reality
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time?
Is Social Justice Theoretical?
Will Central Vista fit 21st Century India?
Why Must Audit Services be Nationalized?
Support Us - It's advertisement free journalism, unbiased, providing high quality researched contents.