ध्यान भंग या व्याकुलता महामारी: हम अब ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर सकते
ध्यान भंग या व्याकुलता महामारी: हम अब ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर सकते
The Distraction Epidemic: Why We Can't Focus Anymore का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
निरंतर संयोजकता (कनेक्टिविटी) और सूचना अतिभार के प्रभुत्व वाले इस युग में मानव ध्यान अवधि लगातार बिगड़ रही है।
विशेष रूप से सोशल मीडिया के उदय को इस चिंताजनक प्रचलन में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में पहचाना गया है।
हालांकि, सोशल मीडिया को निश्चित रूप से एकमात्र कारण के रूप में नाम देना समय से पूर्व हो सकता है, इसके उपयोग और ध्यान देने की अवधि के कम होने के बीच एक निर्विवाद सह- संबंध है।
संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली में इस बदलाव के पीछे के प्रमुख कारकों में से एक सोशल मीडिया की व्यापक प्रकृति है। इन प्लेटफार्मों (मंचों) का आकर्षण और उत्तेजना कभी ना खत्म होनेवाला एक खिंचाव पैदा करता है, जो उपयोगकर्ताओं को जोड़े रखता है।
लत डालने वाली (व्यसनकारी) सामग्री और अधिसूचनाओं और नवीनीकरण की बौछार के साथ, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्ता के ध्यान पर पकड़ और उसे बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
परिणामस्वरूप, लोग लगातार अपने उपकरणों को देखते रहते हैं, उनमें कुछ दिलचस्प खोजने की उम्मीद करते है बिना उसकी प्रासंगिकता या महत्व की परवाह किए बिना।
निरंतर व्याकुलता की यह स्थिति जो काम वह उस समय कर रहे होते है उसमें ध्यान केंद्रित करने की उनकी क्षमता को बाधित करती है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लगातार रोमांचक, विविध, नई और भिन्न जानकारी के साथ उपयोगकर्ताओं पर सूचनाओं की बौछार करते रहते हैं। परिणामस्वरूप मानव मन उत्तेजनाओं के संपर्क में है जो पहले कभी नहीं था।
“
वयस्कों की ध्यान अवधि लगभग 8 सेकंड होने का अनुमान है, जो अब एक सुनहरी मछली की तुलना में भी कम है
इसके अलावा, जानकारी की इस अधिकता को संसाधित करने के लिए प्राथमिक कार्यों से ध्यान हटाने की आवश्यकता होती है, जिससे आगे चलकर ध्यान भंग होता है और ध्यान देने की अवधि कम हो जाती है।
सोशल मीडिया पर प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री को कम से कम मानसिक प्रयास की आवश्यकता होती है, जो अक्सर स्क्रीन के माध्यम से बिना सोचे-समझे स्क्रॉल करने तक सीमित होती है।
यहां तक कि, यह न्यूनतम जुड़ाव भी अनावश्यक हो जाता है क्योंकि छोटे, नई और अधिक लुभावनी सामग्री लगातार उपकरण के माध्यम से चलती रहती है। बौद्धिक उत्तेजना के बिना सहजता से जानकारी का उपभोग करने के लिए मन एक पात्र धारक बन जाता है।
एक ओर, मन आसानी से आनंददायक सामग्री का उपभोग करता है; वहीं दूसरी ओर मानसिक प्रयास वाला कोई भी कार्य निष्प्रभावी पड़ सकता है। पसंद को देखते हुए, मन, सहज बोध से कम से कम प्रतिरोध का रास्ता चुनता है।
सोशल मीडिया किसी भी संज्ञानात्मक प्रयास को टालने के लिए एक जाना माना उपकरण बन जाता है। जो कि, फ़ीड (feed) के माध्यम से स्क्रॉल करने की क्रिया से कही अधिक प्रयास की मांग करता है, चाहे कितनी ही मामूली असमानता हो।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California), सैन डिएगो (San Diego) द्वारा ध्यान अवधि में कमी पर किए गए शोध में पाया गया कि, सोशल मीडिया पर दिन में दो घंटे से अधिक समय व्यतीत करने वाले छात्रों की ध्यान अवधि रोजाना 30 मिनट से कम समय, व्यतीत करने वालों की तुलना में कम दिखती है।
इसके अलावा, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय (University of Pittsburgh) ने अपने निरीक्षण में पाया है कि, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग करने वाले उपयोगकर्ता ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार (एडीएचडी) (ADHD) के समान लक्षणों का अनुभव करते हैं।
वयस्कों की ध्यान अवधि लगभग 8 सेकंड होने का अनुमान है, जो अब एक सुनहरी मछली की तुलना में भी कम है, जो लगभग 9 सेकंड है। दो दशक पहले, ध्यान की अवधियाँ लगभग 12 सेकंड थी, जो पिछले 15 से 20 वर्षों में मानव क्षमता में 25% की गिरावट को दर्शाता है।
ये संख्या मानवता के भविष्य के लिए गंभीर तौर पर चिंता का विषय हैं।
दिलचस्प बात यह है कि, इस अवधि में इंटरनेट सामग्री की खपत में भी तेजी से वृद्धि देखी गई। यह इस बात पर विश्वास करने के लिए एक ठोस तर्काधार प्रदान करता है कि, डिजिटल सामग्री की उपलब्धता और खपत ने वास्तव में मानव मस्तिष्क को प्रभावित किया है।
सोशल मीडिया के प्रभाव से पहले, डिजिटल उपकरणों पर एसएमएस (SMS) और ईमेल (EMAIL) के रूप में ध्यान भंग के तरीके मौजूद थे, हालांकि, सिर्फ कुछ हद तक। उनकी सूचनाएं बाधा और कभी-कभी लत के रूप में भी काम करती हैं।
हालांकि, सस्ती संचार प्रौद्योगिकी के आगमन ने मानव मन के कुछ हिस्सों को तेजी से फैलते हुए मिटा दिया है, जो इसे सभी गलत कारणों की ओर ही आकर्षित करता है।
खपत संचालन से प्रेरित इस व्याकुलता ने व्यक्तियों के लिए कई उत्पादों के साथ नए उत्पादों के आगे जो हर कुछ वर्षों में सामने आते हैं झुकना आसान बना दिया है।
असीमित एसएमएस (SMS) से लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटॉक तक, सभी आयु वर्ग के लोग इस प्रवृत्ति के शिकार हो गए हैं।
यहां तक कि, नन्हे बच्चे भी सोशल मीडिया की लत के निर्दोष शिकार बन गए हैं क्योंकि, उनके माता-पिता उन्हें डिजिटल सामग्री के साथ शांत करते हैं, अनजाने में कम उम्र से ही इसपर उनकी निर्भरता को बढ़ावा देते हैं।
वृद्ध लोगों के लिए, सोशल मीडिया अकेलेपन से बचने का काम करता है और अन्यथा उक्ता देने वाली वृद्धावस्था में उत्साह प्रदान करता है।
कई कारक है, जो मानव ध्यान अवधि को कम करने में योगदान करते हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से मोबाइल उपकरणों की व्यापक उपलब्धता ने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसके अलावा, इंटरनेट (Internet), ने इन तकनीकी चमत्कारों के माध्यम से सुलभ जानकारी की प्रचुरता के साथ, निस्संदेह, कम ध्यान अवधि में योगदान दिया है।
जबकि, ध्यान अवधि में गिरावट के अन्य रोग - विषयक (Clinical) और चिकित्सीय कारण हो सकते हैं, जैसे उम्र बढ़ने के प्रभाव किन्तु, वे आज हमारी चिंताओं के दायरे से बाहर हैं।
कम ध्यान देने की अवधि ने एक अन्य मुद्दे को भी जन्म दिया है: 'मल्टीटास्किंग' (एक समय में एक से अधिक गतिविधियाँ करना)।
लोग सोशल मीडिया के साथ जुड़ते हैं और साथ ही साथ अन्य कार्यों, जैसे जो उनके लिए महत्व रखते हैं, उनमें भी भाग लेते हैं, चाहे वह काम से संबंधित हो, घर के उबाऊ काम काज हों या देखभाल करने वाली जिम्मेदारियां हों।
उदाहरण के लिए, छुट्टी मनाने निकले मुसाफिरों को अपने उपकरणों से चिपके हुए देखना आजकल आम बात हो गयी है, जो उन लुभावने दृश्यों से बेखबर होते हैं जो उनके पास से गुजर कर निकल जाते है।
इसी तरह, अस्पतालों में अपने प्रियजनों का बेसब्री से इंतजार कर रहे रिश्तेदार अक्सर सोशल मीडिया सामग्री का उपभोग करने में सांत्वना पाते हैं। ये उदाहरण इस बात का प्रमाण देते हैं कि, कैसे डिजिटल दुनिया का आकर्षण वास्तविक दुनिया की भावनाओं पर हावी हो सकता है।
समान रूप से, लोग गाड़ी चलाते वक्त और संदेश भेजते वक़्त भी मल्टीटास्किंग में लगातार लगे हुए हैं। हर जगह सोशल मीडिया अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखने का दावा करता है।
कम ध्यान अवधि के परिणाम गंभीर हैं। इससे काम के माहौल में, मानव त्रुटि और खराब निर्णय लेने की संभावना अधिक होती है, हालांकि, कोई निश्चित *'कारणता' अभी तक स्थापित नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त, बार-बार विचलित होने से उत्पादकता में कमी आती है।
“
समाज "ध्यान थकान" (Attentional Fatigue) नामक व्यापक स्थिति से जूझ रहा है
इसके अलावा, व्यक्ति दूसरों के साथ जुड़ने के लिए कम इच्छुक हैं, सामाजिक दायरे को घटा रहे हैं और *विस्तारित पारिवारिक नेटवर्क के भीतर संबंध कम कर रहे हैं।
जबकि अन्य कारक, जैसे कि, एकल परिवारों का उदय, भी इस स्थिति में योगदान करते हैं, 'कम ध्यान अवधि' निस्संदेह, एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता कारक है।
अंत में, कह सकते है कि, समाज "ध्यान थकान" (Attentional Fatigue) नामक व्यापक स्थिति से जूझ रहा है। यह मूक महामारी दुनिया भर के व्यक्तियों को प्रभावित करते हुए, उम्र और राष्ट्रीयता को पार कर जाती है।
दुर्भाग्य से, इस विकट परिस्थिति का समाधान पाने की कोशिश करना मुश्किल है, क्योंकि, समस्या के लिए जिम्मेदार कारक और प्रौद्योगिकियां व्यक्तिगत उत्तरजीविता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
एक समय था जब मनुष्य, सुनहरी मछली के कथित तौर पर कम ध्यान अवधि के तथ्य को लेकर एक दूसरे का मज़ाक उड़ाकर चिढ़ाया करते थे। अब, ऐसा प्रतीत होता है कि, बाजी यहां पर पलट गई है।
यदि आपने इस वाक्य को पढ़ा है, तो आप उन कुछ लोगों में से हैं जिन्हें, अपने ध्यान देने की अवधि के बारे में कम चिंता करने की आवश्यकता है।
अफसोस की बात है कि, कई पाठक इस बिंदु तक नहीं पहुंच पाएंगे की हमने इस तथ्य के आगे घुटने टेकने के बारे में सूचित करने का प्रयास किया है।
* जब कोई प्रक्रिया या प्रावस्था किसी दूसरी प्रक्रिया या प्रावस्था को उत्पन्न करती है तो इसे कारणता (causality या causation) कहते हैं।
* एक विस्तारित परिवार एक ऐसा परिवार है, जो माता-पिता और उनके बच्चों के एकल परिवार से आगे बढ़कर चाची, चाचा, दादा-दादी, चचेरे भाई या अन्य रिश्तेदारों को शामिल करता है, जो सभी पास या एक ही घर में रहते हैं।
Other Articles
Did Western Medical Science Fail?
How to Harness the Power in these Dim Times?
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall?
Taking on China – Indian Challenges
British Border Bungling and BREXIT
When Health Care System Failed – others Thrived.
3 Killer Diseases in Indian Banking System
Work from Home - Forced Reality
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time?
Is Social Justice Theoretical?
Will Central Vista fit 21st Century India?
Why Must Audit Services be Nationalized?
To Comment: connect@expertx.org
Support Us - It's advertisement free journalism, unbiased, providing high quality researched contents.