मल्टीटास्किंग के बारे में चौंकाने वाला सच
कैसे यह हमारे मस्तिष्क को गुप्त रूप से नुकसान पहुँचा रहा है
कैसे यह हमारे मस्तिष्क को गुप्त रूप से नुकसान पहुँचा रहा है
The Shocking Truth About Multitasking: How It's Secretly Harming Our Brain का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
आज की तेज रफ्तार दुनिया में मल्टीटास्किंग (Multitasking) एक आदर्श बन गया है। हर जगह लोग कार्यकुशलता और उत्पादकता की खोज में एक साथ कई काम कर रहे हैं।
चाहे काम से संबंधित सौंपा हुआ कार्य हों, व्यक्तिगत दायित्व हों, या यहां तक कि, मनोरंजक गतिविधियां ही क्यों न हों, व्यक्ति लगातार अपना ध्यान एक कार्य से दूसरे कार्य पर केंद्रित करते हैं।
हालाँकि, यह व्यापक और अधिक उपेक्षा रखने वाला मल्टीटास्किंग तथ्य हमारी ध्यान अवधि और पूरे समाज पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
कार्यों के बीच परिवर्तन करने का काम मानव मन पर भारी बोझ डालता है। बंटा हुआ ध्यान एक आदत बन गया, जिसके परिणामस्वरूप कार्य से जुड़ाव और उसे पूरा करने की गुणवत्ता में कमी आई।
इसके अलावा, मल्टीटास्किंग नकारात्मक रूप से हमारी जानकारी को बनाए रखने और याद रखने की क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे समग्र उत्पादकता में गिरावट आती है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) के शोधकर्ताओं ने कम ध्यान अवधि और गलती करने की बढ़ती संभावना के बीच एक सह- संबंध की खोज की है, जिसे अक्सर "मानवीय त्रुटि" (human error) कहा जाता है।
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कार्यों के बीच परिवर्तन करने का काम मानव मन पर भारी बोझ डालता है
कार्यों के बीच निरंतर परिवर्तन हमारे संज्ञानात्मक संसाधनों को बहुत अधिक प्रभावित करता है, जिससे एक विस्तारित अवधि के लिए एक ही कार्य पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है।
विकर्षण अधिक मात्रा में विद्यमान है क्योंकि, हमारा मन विभिन्न जिम्मेदारियों के बीच झूलता रहता है, जो निरंतर उलझन की स्थिति पैदा करता है।
हम अपने आप को लगातार प्रत्येक कार्य के शुरुआती बिंदु की खोज करते हुए पाते हैं और हमारे विचार अगले कार्य पर जाने की सोच से पूरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं।
किसी विशेष कार्य में लगे होने पर भी, हमारी स्मृति का एक भाग अन्य लंबित कार्यों में व्यस्त रहता है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California) द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि, कार्यों के बीच बदलाव करने के बाद ध्यान केंद्रित करने में औसतन 23 मिनट लगते हैं।
इसका मतलब यह है कि, व्यक्ति कभी भी अपना पूरा ध्यान किसी एक गतिविधि पर नहीं लगा सकते हैं, जिससे उत्पादन क्षमता गंभीर रूप से बाधित होती है।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (American Psychological Association) के अनुसार, ध्यान देने की अवधि और उत्पादन क्षमता में लगभग 40% की कमी आती है, तब भी जब कार्य में बदलाव का अनुमान लगाया जा सकता है।
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मल्टीटास्किंग, अपने वर्तमान स्वरूप में, स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी के कारण, एक तेजी से प्रचलित होता मुद्दा बन गया है
सोशल मीडिया की अप्रत्याशित प्रकृति और निरंतर बदलाव शैली को ध्यान में रखते हुए, हमारे मानसिक कल्याण पर इसका असर प्रलयंकर से कम नहीं है। अतः अनजाने में हम खुद को ही नुकसान पहुँचा रहे हैं।
मल्टीटास्किंग, अपने वर्तमान स्वरूप में, स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी, डिजिटल उपकरणों के आगमन और हम पर प्रतिदिन सूचनाओं की बाढ़ के कारण, एक तेजी से प्रचलित होता मुद्दा बन गया है।
यह एक निरंतर चलती हुई मानसिक लड़ाई बन गई है, इसलिये कि, हमारे प्राथमिक कार्य, सोशल मीडिया, इंटरनेट गतिविधियों और अधिसूचनाओं जैसे अन्य विकर्षणों के साथ ध्यान को आकर्षित करने की होड़ कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, बहुत से लोग काम का बोझ कम करने की उम्मीद में अपने अन्य कार्यों को करते वक़्त संगीत सुनते हैं। हालाँकि, संगीत के बोल और उसकी गति हमारे किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने और उसमें ध्यान लगाने की क्षमता में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, तेज गति वाला संगीत सुनने वाले विद्यार्थियों को दर्शनशास्त्र जैसे गहन चिंतन वाले विषयों में संलग्न होना चुनौतीपूर्ण लगता है।
इसी तरह, एक कार्यालय के कार्यकर्ता से एक महत्वपूर्ण ईमेल ( Email) के कार्य के प्रति प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जिस वक्त वह जोशपूर्ण संगीत सुन रहा हो।
इस तरह की असंगतियाँ हमारे दिमागों को ऐसे संघर्षों के बीच छोड़ देती है जो, हमारे प्रदर्शनों को बाधित और अनुकूलित करते हैं।
गाड़ी चलाते वक़्त मोबाइल से संदेश भेजना, गाड़ियों में यंत्रों ( गैजेट्स) को संभालना या उन्हें चलाते वक्त फोन पर बात करना जैसे अनेक उदाहरण अनगिनत दुखद दुर्घटनाओं और मौतों का कारण बने हैं।
ये उदाहरण केवल मल्टीटास्किंग के सुस्पष्ट परिणामों की सतह को खरोंचते हैं या ऊपरी तौर पर दिखते है। हमारे समाज की प्रभावशीलता और बुद्धिमत्ता पर इसके अप्रत्यक्ष नुकसान असीमित हैं।
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मल्टीटास्किंग एक वैश्विक संकट में बदल गया है
इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि, अपने पिछले रूप में यानि कि, 18 वीं शताब्दी के दौरान वाली मल्टीटास्किंग, जो आज हम अनुभव करते है उससे काफ़ी अलग थी, जबकि अतीत में भी व्यक्तियों ने विभिन्न जिम्मेदारियों को एक
साथ संभाला था, कार्य में बदलाव बहुत कम समय पर शीघ्रता से नही होता था ।
इससे उन्हें प्रत्येक कार्य में जो वो अपने हाथों में लेते थे उसपर बढ़िया तरीके से ध्यान केंद्रित करने का समय मिलता था।
उदाहरण के लिए, 18वीं शताब्दी में किसान खेती के उपकरण और पशुओं की देखभाल करते हुए फसल बोते और काटते थे। इसके अलावा, वे अपने खेतों के लिए संभावित खतरों के प्रति सतर्क रहते थे।
इसी तरह, उस युग की महिलाएं अपने बच्चों की सुरक्षा पर पैनी नजर रखते हुए घर की देखभाल, खाना पकाने, साफ-सफाई और घरेलू कामों का प्रबंधन करती थीं।
लोहार, बढ़ई, चित्रकार और बुनकर जैसे कारीगरों ने भी यात्रा, वित्त और अनुबंध जैसी विभिन्न व्यवसाय संबंधी गतिविधियों को संभालते हुए कई कार्यो को एकसाथ किया।
अपने प्राथमिक कार्यों के बीच, उनके लिए ग्राहकों के साथ जुड़ना फिर अपने काम मे दोबारा से उत्साह में आना और अपने उपकरणों और व्यवसायों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सामान्य नहीं होता था।
काम के दौरान वे अपने सहयोगियों, दोस्तों और पड़ोसियों से भी बातचीत किया करते थे।
तो आखिर, अपने वर्तमान स्वरूप में मल्टीटास्किंग, आधुनिक युग के लिए इतना खतरनाक प्रस्ताव क्यों बन गया है?
'अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन' (American Psychological Association) ने एक अध्ययन किया जिसमें यह खुलासा हुआ कि, मल्टीटास्किंग अपने वर्तमान स्वरूप में, स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी, डिजिटल उपकरणों के आगमन और प्रतिदिन सूचनाओं की भरमार के साथ और हम पर उसकी बौछार के कारण एक तेजी से प्रचलित मुद्दा बन गया है।
अध्ययन ने त्रुटियों में वृद्धि और उत्पादकता में कमी का भी प्रदर्शन किया। जब समग्र रूप से संगठनों और समाज के लिए इसका अनुमान लगाया जाए, तो मल्टीटास्किंग के परिणामों की तुलना एक महामारी से की जा सकती है।
एक कुशल उपकरण के रूप में प्रचारित होने के बावजूद, मल्टीटास्किंग एक मिथक है और एक प्रतिकूल आदत से ज्यादा कुछ नहीं है।
मल्टीटास्क करने का प्रयास करते समय, व्यक्ति अनजाने में कई गतिविधियों पर आंशिक ध्यान देने के बजाय अपने मुख्य सोचने के समय का त्याग करते हैं। जैसे-जैसे ध्यान कम होता है, चिंता, मांसपेशियों में तनाव और अनिद्रा के लक्षण व्यापक हो जाते हैं।
हालांकि, इस 21वीं सदी में, हमारी जिंदगियों में, प्रौद्योगिकी की अनिवार्य भूमिका के कारण हमारा मल्टीटास्किंग से बचना मुश्किल है, विशेष रूप से स्मार्टफोन और बुद्धिमान उपकरणों के कारण।
स्मार्टफोन (Smartphone) नियत रूप में हमारे साथी बन गए हैं, जीवन के हर पहलू में ये आसानी से शामिल हो रहे हैं। वे हमारे समय प्रबंधन, संचार, काम से संबंधित कार्यों, व्यक्तिगत वित्त, बैंकिंग, मनोरंजन, सूचना उपभोग और यात्रा प्रबंधन सहित अनगिनत अन्य कार्यों की देखरेख करते हैं।
हम अपने जीवन को विचार की गति पर आगे ले जा रहे हैं, और हमारे दिमागों को इस रफ़्तार से मुक़ाबला करने के लिए अवश्य इसमें ढलना चाहिए। परिणामस्वरूप, स्मार्टफोन से खुद को अलग करना लगभग असंभव है, क्योंकि, ये हमारे अस्तित्व का विस्तार बन गए हैं।
उदाहरण के लिए, स्मार्टवॉच (smartwatch) पर विचार करें, जिसे व्यक्ति शरीर के महत्वपूर्ण मापदंडों की निगरानी के लिए लगातार पहनते हैं। नहाने, सोने या तैरने के दौरान भी यह हमारी कलाइयों से जुड़ा रहता है।
जैसा कि, हम आज जानते हैं, मल्टीटास्किंग एक वैश्विक संकट में बदल गया है। इसके दूरगामी प्रभाव हमारी संज्ञानात्मक क्षमताओं को विकृत करते हैं, उत्पादकता को कम करते हैं और मानव विवेक की गुणवत्ता को नष्ट करते हैं।
इस व्यापक मल्टीटास्किंग संस्कृति के परिणामस्वरूप, हम गहरे विचारकों की संख्या में गिरावट देख रहे हैं। प्रसिद्ध "गोरिल्ला प्रयोग" (Gorilla experiment) के प्रतिभागियों की तरह, मानव समाज "अटेंशन ब्लाइंडनेस" (attention blindness) से ग्रस्त है।
पूरे समाज में व्याप्त कम बुद्धि लब्धि गणना ( IQ scores) के साथ मिलकर, अपने मौजूदा स्वरूप में मल्टीटास्किंग एक गंभीर खतरा है जो, हमारे सामूहिक ध्यान की मांग करता है। मानव उत्पादन और बुद्धिमत्ता की घटती गुणवत्ता के इस संकट से निपटने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है।
इसके अलावा, डिजिटल वेलबीईंग प्रथाओं
(Digital well-being) को विकसित करना महत्वपूर्ण है जो, व्यक्तियों को प्रौद्योगिकी के उपयोग और बाधाहीन चिंतन के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है।
स्वस्थ सीमाएँ स्थापित करके, हम गहरी सोच के लिए जगह बना सकते हैं और अपनी घटती ध्यान अवधि पर नियंत्रण पा सकते हैं।
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