सेल्फी संस्कृति - समाज का प्रदूषण
सेल्फी संस्कृति - समाज का प्रदूषण
Selfie Culture – Society’s Pollution का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
"सेल्फी" (स्वफ़ोटो) आमतौर पर स्मार्टफोन या डिजिटल कैमरा के साथ स्वयं की खींची गई तस्वीर या वीडियो को संदर्भित करता है। सोशल मीडिया के इस नए युग में सेल्फी लेना एक लोकप्रिय गतिविधि बन गई है जो, उम्र, लिंग या पेशे तक ही सीमित नहीं है।
यहां पर अनेक प्रकार के कारण दिए जा रहे है कि, आखिर क्यों, लोग 'सेल्फी' लेते है।
पहला कारण यह है कि, प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ, स्मार्टफोन और अन्य डिजिटल कैमरों ने लोगों के लिए तस्वीर लेना और साझा करना आसान बना दिया है।
इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया मंचों के उदय ने एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया है जहां लोगों को अपने जीवन और अनुभवों को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
दूसरा कारण आत्म-अभिव्यक्ति और स्वयं की पहचान बनाने की बढ़ती हुई इच्छा है। उदाहरण के लिए, लोग मान्यता प्राप्त करने या दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी सेल्फी ले सकते हैं।
इसके अलावा, सोशल मीडिया पर 'पसन्द' (लाइक) और 'टिप्पणियों' (कमेंट) जैसी त्वरित प्रतिक्रिया किसी के आत्म-सम्मान को बढ़ाती है और उन्हें सत्यापन की भावना देती है।
'आत्म अभिव्यक्ति'
आत्म-अभिव्यक्ति व्यक्तिगत वृद्धि और विकास का एक स्वस्थ और बहुत जरूरी पहलू है। हालांकि, आत्म-अभिव्यक्ति के साधन के रूप में सेल्फी का उपयोग करना अस्वास्थ्यकर भी हो सकता है, यह प्रत्येक व्यक्ति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
यह उन्हें अपने व्यक्तित्व को व्यक्त करने, अपने अनुभवों को प्रस्तुत करने और समान विचारधारा वाले अन्य व्यक्तियों के साथ जुड़ने की अनुमति देता है।
यह व्यक्तियों को उनके रूप- रंग के विभिन्न पहलुओं, जैसे हेयर स्टाइल (केशसज्जा), मेकअप (श्रृंगार), या परिधानों के साथ खोज और प्रयोग करने में भी सक्षम कर सकता है।
दूसरी ओर, आत्म-अभिव्यक्ति के साधन के रूप में सेल्फी का अत्यधिक उपयोग एक लत और सब से बढ़िया फ़ोटो (सही शॉट) लेने का जुनून बन सकता है।
इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया पर 'लाइक' और 'कमेंट' के माध्यम से लगातार सत्यापन की इच्छा करना किसी के आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचा सकता है और चिंता और अवसाद को भी जन्म दे सकता है।
'स्वयं की पहचान'
सोशल मीडिया के उदय के साथ, लोगों को स्वयं का एक आदर्श ऑनलाइन संस्करण रूप प्रस्तुत करने का दबाव महसूस होता है। जो लोग इस आदर्श छवि पर खरे नहीं उतर सकते, उन्हें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया पर लगातार दूसरों से अपनी तुलना करना आत्म-सम्मान को नुकसान पहुँचा सकता है, क्योंकि, लगभग सभी उपयोगकर्ता स्वयं का एक आदर्श संस्करण प्रस्तुत करते हैं।
इसलिए, यह उन लोगों में अयोग्यता और कम आत्म-सम्मान की भावना पैदा कर सकता है जो, इस आदर्श छवि पर खरे नहीं उतर सकते।
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लोगों को स्वयं का एक आदर्श ऑनलाइन संस्करण रूप प्रस्तुत करने का दबाव महसूस होता है
कुछ लोग बढ़िया फ़ोटो (सही शॉट) लेने के लिए इतने जुनूनी हो जाते हैं कि, वे अपनी तस्वीरों को डिजिटल रूप से संपादित करने और सुधारने में बहुत अधिक समय व्यतीत करते हैं।
इस स्थिति का कारण उनके शरीर के प्रति उनका असंतोष है, जो कम आत्मसम्मान की भावना से उत्पन्न होता है।
आत्ममुग्ध समाज
सेल्फी संस्कृति के उदय ने एक आत्ममुग्ध समाज बनाने की अपनी क्षमता के बारे में अचानक से चिंता पैदा की है। सेल्फी के बार-बार उपयोग और इसके आसपास रहने की संस्कृति व्यक्तियों में आत्ममुग्ध लक्षणों के विकास में योगदान कर सकती है।
आत्ममुग्धता एक व्यक्तित्व विशेषता है, जिसके लक्षण, अत्यधिक आत्म-प्रेम, आत्म-महत्व की आडम्बरपूर्ण भावना और तवज्जो एवं तारीफ़ की आवश्यकता है।
इसके परिणामस्वरूप दूसरों के प्रति सहानुभूति की अत्यधिक कमी होती है। यद्यपि आत्ममुग्धता भिन्न स्तरों में मौजूद हो सकती है किन्तु, यह एक व्यक्तिपरक विकृति विकार भी बन सकती है जब यह सामाजिक, व्यक्तिगत या व्यावसायिक संबंधों में कार्य करने की क्षमता को ख़राब करती है।
सेल्फी संस्कृति कई तरह से आत्ममुग्धता के विकास में योगदान दे सकती है।
लगातार सेल्फी लेना और उसे साझा करना लोगों का रूप-रंग पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे लोगों की शारीरिक विशेषताओं के साथ अति व्यस्तता हो सकती है।
इसके अलावा, रूप-रंग के साथ यह अति व्यस्तता बाहरी सत्यापन और दूसरों से तवज्जो और प्रशंसा की तलाश पर जोर दे सकती है।
सोशल मीडिया संस्कृति और 'पसंद' (लाइक) और 'टिप्पणी' (कमेंट) की तत्काल संतुष्टि एक ऐसा वातावरण बना सकती है जहां लोग अपनी ऑनलाइन उपस्थिति के माध्यम से सत्यापन और दूसरों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
यह एक व्यक्ति का स्वाभिमान की सच्ची भावना विकसित करने से ध्यान हटाता है।
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सेल्फी संस्कृति समाज में छद्म-हस्ती वाली संस्कृति के विकास में योगदान दे सकती है
इसके अलावा, सोशल मीडिया व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा कर सकता है क्योंकि, वे स्वयं की सबसे आकर्षक और ध्यान आकर्षित करने वाली छवियों को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।
यह दूसरों के प्रति संवेदना की कमी पैदा करता है, इसलिये कि, लोग ध्यान आकर्षण के लिए अपनी जरूरतों को दूसरों की जरूरतों के ऊपर प्राथमिकता दे सकते हैं।
स्वयं की ऑनलाइन उपस्थिति और छवि को दूसरों के साथ वास्तविक संबंधों से आगे किया जाता है।
हालाँकि, यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि, सेल्फी संस्कृति कुछ व्यक्तियों में आत्ममुग्ध लक्षणों के विकास में योगदान दे सकती है, यह इसका एकमात्र कारण नहीं है।
आत्ममुग्धता एक जटिल व्यक्तित्व विशेषता है जिसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिनमें, पर्यावरणीय कारक और बचपन के अनुभव शामिल हैं। इसके अलावा, यह भी जरूरी नही कि, वे सभी व्यक्ति जो सेल्फी संस्कृति में संलग्न हैं, आत्ममुग्ध विशेषताओं को विकसित करेंगे।
छद्म हस्ती (Pseudo-celebrityhood)
सेल्फी संस्कृति समाज में छद्म-हस्ती वाली संस्कृति के विकास में योगदान दे सकती है। सोशल मीडिया मंचों (प्लेटफार्मों) के उदय के साथ, लोग एक तरह की छवि बना सकते हैं और अपनी उपस्थिति और जीवन शैली के आधार पर अपने लिए 'प्रंशसक' तैयार कर सकते हैं।
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सोशल मीडिया व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा कर सकता है
डिजिटल रूप से क्यूरेट (पेशेवर या विशेषज्ञ ज्ञान का उपयोग करके चयनित, संगठित और प्रस्तुत किया गया) की गई छवियों और वीडियो द्वारा एक विशेष जीवन शैली को प्रदर्शित करना और लगातार सेल्फी लेना और साझा करना एक छद्म-हस्ती संस्कृति के विकास के परिणामस्वरूप है।
व्यक्तियों को उनके ऑनलाइन अनुसरण और महसूस किए गए प्रभाव के कारण प्रसिद्ध हस्ती समझा जाता है। यह वास्तविक उपलब्धियों या प्रतिभा के बजाय किसी व्यक्ति को प्राप्त होने वाले 'अनुसरणकर्ता' और 'पसंद' की संख्या के आधार पर मान्यता और आत्म-मूल्य की भावना पैदा कर सकता है।
प्रभाव विपणन (influencer marketing) की संस्कृति, जिसमें 'ब्रांड' (Brand) अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बड़े सोशल मीडिया अनुसरण वर्ग वाले व्यक्तियों को भुगतान करते हैं जो, एक छद्म-हस्ती संस्कृति के विकसित होने में योगदान देता हैं।
लोग कमाई करने के लिए पारंपरिक करियर पथ या व्यक्तिगत विकास के बजाय ऑनलाइन प्रसिद्धि और प्रभाव की तलाश करते हैं।
छद्म-हस्ती संस्कृति के विकास का समाज पर नकारात्मक परिणाम हो सकता है। यह एक सतही और भौतिकतावादी मानसिकता को बढ़ावा दे सकता है, जिसमें, लोग वास्तविक संबंधों और व्यक्तिगत संतुष्टि के ऊपर अपनी उपस्थिति और ऑनलाइन अनुसरण को प्राथमिकता देते हैं।
यह एक अवास्तविक और अप्राप्य जीवन स्तर भी बना सकता है, जिससे अपर्याप्तता और अयोग्यता की भावना पैदा हो सकती है।
कभी-कभी, सेल्फी लेना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि, लोग जोखिम से भरे स्थानों या स्थितियों में एक अनूठी और ध्यान आकर्षित करने वाली फ़ोटो लेने की कोशिश करते हैं।
उदाहरण के लिए, वाहन चलाते समय, किसी ऊंची इमारत के ऊपर या किसी जंगली जानवर के पास सेल्फी लेने के प्रयासों के हानिकारक और घातक परिणाम हुए हैं।
प्रभाव
सेल्फी संस्कृति का समाज पर प्रभाव लाभकारी और नुक़सानदेह दोनों ही प्रकार का हो सकता है। एक ओर, सेल्फी संस्कृति आत्म-अभिव्यक्ति, आत्मविश्वास और व्यक्तित्व को बढ़ावा दे सकती है।
तो, दूसरी ओर, यह दूसरों के साथ जुड़ने और किसी के जीवन के अनुभवों को प्रलेखित करने के साधन के रूप में भी काम कर सकता है।
सेल्फी संस्कृति समाज को नुकसान भी पहुंचा सकती है क्योंकि, यह आत्ममुग्धता, भौतिकवाद और सतहीपन को बढ़ावा दे सकती है।
यह तुलना और प्रतिस्पर्धा की संस्कृति में भी योगदान दे सकती है, जो उन लोगों के बीच अपर्याप्तता और कम आत्म-सम्मान की भावना पैदा कर सकती है जो सोशल मीडिया पर दूसरों के समान कथित सफलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, सेल्फी संस्कृति गलत सूचना और नकारात्मक शरीर की छवि के प्रसार में भी योगदान कर सकता है।
फ़िल्टर और संपादन उपकरण अवास्तविक सौंदर्य मानकों को बना सकते हैं, और व्यक्ति सोशल मीडिया पर सत्यापन और स्वीकृति प्राप्त करने के लिए इन मानकों के अनुरूप होने का दबाव महसूस कर सकते हैं।
यह तुलना, आत्म-संदेह और हानिकारक रूढ़िवादिता और सौंदर्य मानकों को बनाए रखने का एक चक्र शुरू करता है।
इसके अलावा, सेल्फी संस्कृति का मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अध्ययनों से पता चला है कि, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग, विशेष रूप से सेल्फी को साझा करना, चिंता, अवसाद और कम आत्मसम्मान की भावनाओं में योगदान कर सकता है।
यह आंशिक रूप से एक बेजोड़ छवि को ऑनलाइन प्रस्तुत करने के निरंतर दबाव और दूसरों के अनुभवों से 'छूटने के डर' (FOMO) के कारण है।
सेल्फी संस्कृति किसी व्यक्ति और समाज के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक कल्याण को नकारात्मक रूप से बाधित करती ही रहेगी।
इसे एक तरह का प्रदूषण कहा जा सकता है जो, सोशल मीडिया में विद्यमान है और हम सभी को इसके साथ जीना होगा और इससे निपटना भी होगा।
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