NOTA नोटा 2.0 की ताकत
NOTA नोटा 2.0 की ताकत
Power of NOTA 2.0 का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
पृष्ठभूमि
लोकतंत्र ने इस प्राथमिक पूर्वधारणा के साथ काम किया है कि सभी उम्मीदवार सबसे अच्छे विकल्प है. यह एक धारणा बनी हुई है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद, वे केवल उन लोगों के सर्वोत्तम हित में कार्य करेंगे जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं.
लेकिन खराब उम्मीदवार की जीत के परिणाम चुनावी प्रक्रिया के साथ घटकों (मतदाताओं) को भी असंतुष्ट करते है. मतदाताओं को लगता है कि उन्हें बुरे और बदतर में से किसी एक को चुनना है.
लोग, सामान्य तौर पर, संस्थाओं के समर्थक होते हैं, किन्तु संस्था के लोगों के नहीं। भारत में यही स्थिति है. लोग सभी रूपों और प्रकारों में परिपक्व लोकतंत्र चाहते है किन्तु चुनाव में भाग लेने वाले उम्मीदवारों से असंतुष्ट हैं.
नोटा की अनुपस्थिति में, मतदाताओं ने मतदान करने या अनिच्छा के साथ मतदान नहीं करने का विकल्प चुना। नोटा उपलब्ध नहीं होने पर असंतोष दिखाने के अन्य तरीके थे, जैसे 'खाली वोट' या 'वोट देने से बचना '.
इस अनिच्छा का कारण अरुचि, मुद्दों के बारे में गलत सूचना, उलझन या यहाँ तक कि हालात से हार कर, स्थिति से समझौता करना था.
नोटा ने बुरे उम्मीदवार को बदतर में से चुनने की उस सार्वभौमिक समस्या को हल कर दिया है.
नोटा - “उपरोक्त में से कोई नहीं” का संक्षिप्त रूप है – जो पिछले कुछ समय से दुनिया भर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सम्मिलित है. तो, नोटा की आवश्यकता कहाँ से उत्पन्न हुई, और यह लोकतंत्र के बारे में क्या दर्शाता है.
“
नोटा 2.0 मतदाताओं को उनकी “सक्रियता की उपयोगिता”, तुरंत प्रदान करेगा
नोटा, प्रस्ताव में शामिल सभी विकल्पों के खिलाफ एक वोट है . मैदान में उतरे उम्मीदवारों की स्थिति के बारे में यह स्पष्ट सन्देश देने का एक साधन है.
यह मतदाताओं को उनकी पसंद को परिभाषित करने में मदद करता है, और इस प्रक्रिया में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के प्रति मतदाता के व्यवहार को परिभाषित भी.
राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक विचारशील, सूचनात्मक संकेत के रूप में यह मतदाता के स्पष्ट इरादे के साथ असंतोष की भावना को भी व्यक्त करता है।
2013 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय पारित किया। उसने घोषित किया:
“लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए, यह आवश्यक है कि देश के समुचित शासन के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध पुरुषों को जनप्रतिनिधि के रूप में चुना जाना चाहिए।
यह उच्च मनोबल और नैतिक मूल्यों वाले पुस्र्षों के माध्यम से सर्वोत्तम रूप से प्राप्त किया जा सकता है, जो सकारात्मक वोट पर चुनाव जीतते हैं.
इस प्रकार एक जीवंत लोकतंत्र में, मतदाता को “ उपरोक्त में से कोई नहीं” [... ] चुनने का अवसर दिया जाना चाहिए। लोकतंत्र पूरी तरह से ‘चयन' के बारे में है. इस ‘ चयन’ को और बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया जा सकता है।
मतदाताओं को अनारक्षित रूप से अपनी बात कहने का मौका देकर और ऐसा चुनाव करने की उनकी क्षमता पर कम से कम प्रतिबंध लगाकर ।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में नोटा बटन प्रदान करने से, यह वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में कार्यकारी राजनीतिक भागीदारी को तेज करेगा और मतदाता वास्तव में सशक्त होंगे।”
पी.यू.सी.एल बनाम भारत संघ, 2013, (पृष्ठ 43 - 44)
भारतीय संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 79 (डी) के अनुसार, यह "चुनावी अधिकार" को मान्यता देता है जिसमें "चुनाव में मतदान ना करना" का अधिकार भी शामिल है.
भारत का नोटा कोई नया या अपनी तरह का पहला प्रयोग नहीं है. देखने वाली बात केवल यह है कि इस विकल्प की व्यापकता और उपयोगिता को मतदाता सबसे अच्छे उम्मीदवारों को चुनावी राजनीति में लाने के लिए लेते हैं.
मामला: नोटा 1.0 पहले से ही भारतीय चुनावों में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है
हमारी चर्चा में स्पष्टता के लिए, हम नोटा के वर्तमान संस्करण को नोटा 1.0 नाम दे रहे हैं। इस नोटा संस्करण के प्रभाव को बमुश्किल समझा जाता है, और लोकतंत्र का सबसे कम अध्ययन किया गया हिस्सा है।
चूंकि इसका दीर्घकालिक प्रभाव है, इसलिए अभी पूर्ण समीक्षा करना जटिल है। इस सूचना अंतराल और बाधा को ध्यान में रखते हुए, भारतीय मतदाताओं और लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं ने नोटा को प्रणाली में लाने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है।
2013 के बाद के चुनावों में, मध्य प्रदेश और राजस्थान में, नोटा ने लगभग 30 सीटों को प्रभावित किया है। वर्षों से, नोटा के विकल्प का उपयोग कई अधिक मतदाता करते हैं।
हालांकि यह किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में बहुमत हासिल नहीं कर पाया है, लेकिन इसने कई निर्वाचन क्षेत्रों की जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल किए हैं। इन आंकड़ों की व्याख्या विजेता के भाग्य को बदलने की नोटा की क्षमता में निहित है।
यहां भारत में से कुछ उदाहरण दिए गए हैं जहां नोटा ने परिणाम को प्रभावित किया है।
सार्वजनिक आक्रोश की अभिव्यक्ति में, 2जी घोटाले के आरोपी ए. राजा, अन्नाद्रमुक उम्मीदवार से हार गए, और नोटा तीसरे स्थान पर रहा। 2014 के आम चुनाव में 2जी घोटाला और भ्रष्टाचार असंतोष के चरम पर था।
2014 के चुनावों में, 60 लाख भारतीयों ने नोटा को वोट दिया, जो कुल मतदाताओं का 1.08% था।
2017:
गुजरात चुनावों में, 18 निर्वाचन क्षेत्रों, में नोटा ने भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरा सबसे बड़ा वोट शेयर हासिल किया। इसके अलावा, नोटा का कुल वोट शेयर केवल भाजपा, कांग्रेस और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए कम था।
2018:
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में, NOTA को कुछ राष्ट्रीय दलों जैसे CPI (M) और BSP की तुलना में अधिक वोट मिले।
2019 में, 1.04% ने नोटा को वोट दिया, हालांकि मात्रा (आयतन) में यह 2014 की संख्या से अधिक है। भारत के चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार और असम ने नोटा विकल्पों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की - क्रमशः 2% से ऊपर और सिक्किम में 0.65%।
मध्य प्रदेश में, नोटा ने 22 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत का अंतर पार किया और चार मौजूदा मंत्रियों को पछाड़ दिया। कुल मिलाकर, भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर के बीच का अंतर सिर्फ 0.1% था, जबकि NOTA का वोट शेयर 1.4% था।
नोटा 1.0 वोटों की व्याख्या के लिए याचिका 2021.
अब तक - सरल बहुमत प्रणाली (First -past -the -post system ) के कारण नोटा 1.0 वोट कभी जीत नहीं सका, और इसका विधायी सीटों के आवंटन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
जबकि नोटा महत्वपूर्ण है, एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में, लेकिन नोटा के जीतने पर चुनावी मूल्य निर्दिष्ट (Assign) करने का कोई नियम नहीं है। इसका मतलब है कि हमेशा एक उम्मीदवार को पद मिलेगा, भले ही नोटा के पास सबसे ज्यादा वोट शेयर क्यों ना हो।
नतीजतन, उम्मीदवारों की गुणवत्ता में अभी भी कमी है; बल्कि, स्थिति दयनीय है, जैसा कि एडीआर (ADR) अनुसंधान द्वारा दिखाया गया है।
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नोटा को सबसे अधिक वोट शेयर मिलने और अन्य उम्मीदवारों पर इसके परिणाम के बीच एक लुप्त कड़ी जारी है इसलिए भले ही नोटा के अधिकतम वोट क्यों ना हो, फिर भी नोटा विजयी नहीं था।
नोटा की व्याख्या में इस रिक्त स्थान को नोटा 2.0 द्वारा पूरा किया जाएगा यदि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका को अनुकूल रूप से सुना जाता है।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि नोटा 2.0 से हारने वाले उम्मीदवारों को सजा के तौर पर नयें सिरे से होने वाले चुनाव में लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
जैसे वोटों की अधिकतम संख्या एक विजेता उम्मीदवार बनाती है - उसी तरह, नोटा 2.0 के शीर्ष वोट शेयर को सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को ख़ारिज और बदल देना चाहिए। इसलिए नए सिरे से चुनाव कराने की जरूरत है।
यह तर्क भी दिया जाता है कि कुछ समय के लिए निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता है - जो कि इससे तो बेहतर ही है की कोई बहुत खराब उम्मीदवार उसका प्रतिनिधित्व करें ।
याचिका का उद्देश्य नागरिकों को सबसे खराब उम्मीदवारों में से सर्वश्रेष्ठ के बजाय सर्वश्रेष्ठ में से सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार चुनने का अधिकार देना है।
इसलिए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका (public interest litigation - PIL ) पर जवाब देने के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
इस याचिका में मांग की गई है की यदि नोटा 2.0 सभी उम्मीदवारों से अधिक हो जाये (पार कर जाये) तो उस निर्वाचन क्षेत्र में फिर से चुनाव करवाए जाए ।
यह भारतीय लोकतंत्र को परिपक्व करने की एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है। जबकि एक स्वस्थ लोकतंत्र में मतदान प्रतिशत, विविध विचारधारा वाले उम्मीदवारों की संख्या जैसे कई मानदंड होते हैं, - इसी तरह, अस्वीकार करने का अधिकार और वापस बुलाने का अधिकार जैसे तरीके भी महत्वपूर्ण हैं।
नोटा 2.0 के संभावित सकारात्मक प्रभाव
वर्तमान नोटा 1.0 मतदाता की अनिच्छा के बारे में एक अस्पष्ट संदेश देता है। नोटा 2.0 मतदाताओं को उनकी “सक्रियता की उपयोगिता”, तुरंत प्रदान करेगा।
मतदाताओं को उनकी गतिविधि का प्रत्यक्ष परिणाम मिलेगा और वे नोटा को वोट देने के लायक महसूस करेंगे। नए चुनावों के लिए नोटा के आह्वान की व्याख्या के साथ, मतदाता अपनी पसंद की वैधता (मान्यता ) भी देखेंगे।
उम्मीदवारों की गुणवत्ता , गुणकारी लोकतंत्र और नागरिकों के कल्याण को सुदृढ़ बनाएगी। नतीजतन, चुनाव को रद्द करने के लिए नोटा 2.0 की व्याख्या राजनीतिक दलों को योग्य उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए मजबूर करेगी।
हम अक्सर सुनते हैं कि एक व्यक्ति संसद में सबसे उपयुक्त है, लेकिन जीतने की क्षमता एक सवाल है। हम यह भी सुनते हैं कि अच्छे उम्मीदवार चुनावी राजनीति में आने को तैयार नहीं , क्योंकि इसमें बेईमान लोगों की भीड़ है।
नोटा 2.0 से चुनाव की ये सभी कमियां धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगी।
वर्तमान में, सारी पार्टियां, अंदरूनी (इंट्रा) - पार्टी चुनाव नहीं संचालित करती हैं। उम्मीदवारों को जीतने की क्षमता (लोगों को पैसे देकर) और राजनीतिक पैंतरेबाजी के आधार पर, उन्हें नामांकित किया जाता है ।
नोटा 2.0 अंदरूनी पार्टी चुनाव और चुनाव अभियान की गुणवत्ता में भी सुधार करेगा।
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यह मतदाता के स्पष्ट इरादे के साथ असंतोष की भावना को भी व्यक्त करता है
भारत में इसकी आवश्यकता है, जहां नोटा 2.0 में चुनाव को द्विदलीय और गैर-ध्रुवीय बनाने की क्षमता है। उम्मीदवारों को उनकी पार्टी के लिए समर्थन मांगने के बजाय समाज को लाभ प्रदान करने के एजेंट (agent) के रूप में देखा जाएगा।
वे पार्टी द्वारा थोपे गए उम्मीदवार होने के बजाय लोगों का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर देंगे। भारत में, कई उम्मीदवार जीतते हैं क्योंकि वे एक विशेष पार्टी से संबंधित होते हैं जिसमें एक लोकलुभावन नेता होता है।
इसलिए निर्वाचन क्षेत्र के लिए उनकी प्रासंगिकता का उनकी जीत में कोई मतलब नहीं है।
नोटा 2.0 चुनाव में उस समीकरण को मतदाता बनाम पार्टी के बजाय मतदाता बनाम उम्मीदवार में बदल देगा।
नोटा 2.0 भारत में लोकतंत्र की दिशा क्यों बदलेगा?
यह पार्टियों को उम्मीदवारों की बेहतर गुणवत्ता पेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
नोटा जीत और ताजा चुनाव प्रत्यक्ष परिणाम प्रदर्शित करता है - इसलिए अधिकांश मतदाता जो असंतुष्ट हैं और मुद्दों के प्रति उदासीनता रखते हैं, वे अब भाग लेंगे और वास्तविक मतदान में वृद्धि करेंगे।
मतदाताओं की उन मुद्दों में गहरी भागीदारी होगी जो उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। यदि वे प्रस्तावित विकल्पों को पसंद नहीं करते हैं, तो वे नए सिरे से चुनाव का आह्वान कर सकते हैं।
कुल मिलाकर मतदाता खुद को सशक्त महसूस करेंगे और पार्टियों को अपने घटकों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होना होगा।
भारत नई चीजों को बहुत तेजी से अपनाता है - अगर इसे आधुनिक और तेजी से परिणाम देने वाला माना जाए।
भारत में औसतन 60% मतदान होता है। उच्च दृश्यता वाले चुनावों में - लगभग 70% - 80% मतदान हुआ था। भारतीय चुनावों में भागीदारी दर अधिक होती है।
नोटा 2.0 के साथ, इस बात की अधिक संभावना है कि मतदाताओं की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
नोटा 2.0 से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों जैसे कम मतदान वाले क्षेत्रों को सक्रिय करने की क्षमता है। वे अब मतदान कर सकते हैं और मैदान में उतरे उम्मीदवारों को अस्वीकार कर सकते हैं।
बदले में, उम्मीदवारों को खारिज करने और बदलने से लोकतंत्र में उनकी भागीदारी शुरू हो सकती है और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
देश के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी भी तरह की भागीदारी किसी संकट के समाधान के लिए महत्वपूर्ण है।
दुनिया भर से उदाहरण:
दुनिया भर में लोगों ने अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए पद्धतियों का इस्तेमाल किया है, प्रतिस्पर्धा (Fray) में उम्मीदवारों की सूची के साथ।
यूके (UK) में, जहां नोटा प्रकार की प्रणाली मौजूद नहीं है, ऐसे उदाहरण हैं जहां व्यक्तियों ने मतपत्र में "उपरोक्त में से कोई नहीं" शामिल करने के लिए अपना नाम बदल दिया है।
उन्होंने अपना नाम बदल कर "उपरोक्त में से कोई नहीं" रख लिया । ऐसा इसलिए किया ताकि मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सकें।
एक तरह से, देखा जाए तो यदि कोई नागरिक अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए इस चरम सीमा तक कदम उठा रहा है, तो यह दुनिया भर में अपनाई जाने वाली लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विफलता ही है।
नोटा के लिए लोकतंत्र द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ नाम और तरीके यहां दिए गए हैं।
इंडोनेशिया - (कोटक को सॉन्ग, खाली डिब्बा)
फ्रांस - वोट ब्लैंक (Vote Blanc ), जहां (नोटा) का इस्तेमाल वरिष्ठ , बेहतर शिक्षित, सक्रिय समुदाय के सदस्यों और राजनीतिक रूप से व्यस्त मतदाताओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया है।
रूस के साथ भी (Против всех, "सभी के खिलाफ") और यूक्रेन (Проти всіх, "सभी के खिलाफ")।
स्पेन और अन्य लैटिन अमेरिकी देश - वोट ब्लैंको (Vote Blanco )
बुल्गारिया ने 'उपरोक्त विकल्पों में से कोई नहीं' पेश किया। राष्ट्रपति चुनावों में, इसे पहले दौर में 5.59% और रन-ऑफ(तत्काल अपवाह मतदान) में 4.47% वोट मिले।
नोटा "विरोध मतदान" है और ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और नॉर्वे में किसी न किसी रूप में उपलब्ध है।
हालांकि कनाडा में नोटा का कोई विकल्प नहीं है, फिर भी व्यक्ति मतदान केंद्र पर जा सकते हैं और खुद को "मतदान को अस्वीकार करने" के रूप में पंजीकृत करवा सकते हैं।
सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त करने के लिए अर्जेंटीना और पोलैंड में अलग-अलग तरीके उपलब्ध हैं।
यूएसए के नेवादा राज्य में ,1976 से NOTA है और 30 वर्षों के समय में NOTA प्रतिशत बढ़कर 10% हो गया है।
भविष्य:
आमतौर पर, उच्च मतदान प्रतिशत का मतलब है कि लोग पहले से ही अपने वोट को लेकर भावुक हैं, और इसलिए एक संभावना है कि नोटा उनकी पसंद नहीं हो सकता है।
नेवादा (Nevada, USA) चुनावों में यह अवलोकन किया गया है लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सकता है। नोटा प्रणाली अभी भी भारत में एक परिकल्पना है। इसे मिला अधिकतम वोट शेयर 2% से भी कम है। लेकिन अभी तो शुरुआती दिन हैं।
इसलिए, मतदाता के हित और मतदान पर नोटा 2.0 के वास्तविक प्रभाव को केवल समय ही बताएगा।
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