प्रस्तुति कौशल सीखना समय की बरबादी क्यों है?
प्रस्तुति कौशल सीखना समय की बरबादी क्यों है?
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि, 'प्रस्तुति कौशल' बनावटी है यदि योजनाबद्ध और विकसित की गई हो । अधिग्रहण करने पर यह विपरीत फल देता है। दूसरी ओर, यदि अंतर्निहित भावनाएँ और ज्ञान वास्तविक हैं, तो वे अत्यधिक प्रभावी हैं।
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यदि अंतर्निहित भावनाएँ और ज्ञान वास्तविक हैं, तो वे अत्यधिक प्रभावी हैं
वास्तविक भावनाओं और ज्ञान का एक पैमाना 'वक्ता' (भाषण देनेवाला) के आत्मविश्वास में निहित होता है।
यदि वक्ता कांप रहा हो, पसीने से तर हो या प्यासा हो तो, यह समझ जाना चाहिए कि, आधारभूत संरचना पर्याप्त नहीं है।
यह दर्शकों का डर नहीं है जो प्रस्तुतकर्ताओं को बेचैन करता है, बल्कि यह ज्ञान का प्रदर्शन करने में असफल होने का डर है।
पिछले कुछ वर्षों में, तथाकथित 'पेशेवर', भावहीन कर्मचारियों में बदल गए हैं - उनका कामकाजी-जीवन एक नपे तुले संचार की मांग करता है जो भावनाओं और मनोभावों से रहित हो।
ज्यादातर मामलों में, पेशेवर स्वयं भी इस बात पर विश्वास नहीं करते हैं कि, वे क्या प्रस्तुत कर रहे हैं। वे सिर्फ अपनी नौकरी बचाने के लिए यह करते हैं। इसमें और अधिक जोड़ें तो ये कंपनियां है जो काम करते वक़्त भावनाओं को बीच मे लाने को अत्यधिक हतोत्साहित करती हैं।
इसका परिणाम 'सच्चे स्व' (True self) और 'आधिकारिक स्व' (Official self) के बीच मानसिक संघर्ष होता है, जो उनके मुक्त प्रवाह वाले भावों में रुकावट पैदा करता है।
कोई आश्चर्य नहीं कि, हमारे पेशेवर अभिव्यक्ति की शक्ति को खो रहे हैं, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि, यह कार्य के अन्य क्षेत्रों में भी झलक रहा है।
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पिछले कुछ वर्षों में, तथाकथित 'पेशेवर', भावहीन कर्मचारियों में बदल गए हैं
इन दिनों हम *'ब्लैक लाइव्स मैटर' (Black Lives Matter) के प्रदर्शनकारियों से बहुत कुछ सुनते हैं। वे निश्चित रूप से प्रशिक्षित वक्ता या विद्वान भाषाविद् नहीं हैं, किंतु, उनके शब्दों का गहरा अर्थ है।
वे अपने संदेश का प्रभावी ढंग से संवाद कर सकते हैं। उनमें से कुछ ने जिस तरह व्यापक जनता पर प्रभाव डाला है वह आश्चर्यजनक रूप से ऐतिहासिक है। वे धारणा को लक्षित नहीं कर रहे हैं।
इसके बजाय, यह उनकी उच्च संवेदनशीलता और समानता, स्वतंत्रता, एकता आदि जैसे मुद्दों के अनुभव हैं, जिसने जुनून पैदा किया है। परिणामस्वरूप, दुनिया भर में सरकारें नस्लीय भेदभाव और गुलामी के प्रतीकों को हटाने के खिलाफ कार्रवाई में जुट गई हैं।
मैंने 'विलुप्त होने का विद्रोह' (Xtinction Rebellion) के भाषणों के समय वक्ताओं को सुना है। कोई भी आसानी से यह पता लगा सकता है कि, अनेकों वक्ताओं में से अधिक प्रभावी कौन है, भले ही उनका भाषा, उच्चारण या हाव-भाव पर पकड़ अनुकरणीय नही था।
इसकी अत्यधिक संभावना है कि, वक्ता जलवायु परिवर्तन का शिकार या कारण के साथ मज़बूती से जुड़ा हुआ था।
हालांकि, सही जगह पर सही शब्द का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण है किन्तु, मुझे लगता है कि, यह स्वाभाविक रूप से आता है यदि अंतर्निहित मुद्दे को वास्तव में महसूस किया जाता है।
इसी तरह, ओपरा विनफ्रे (Oprah Winfrey) के उन अनौपचारिक बातचीत कार्यक्रमों (टॉक शोज़) और अन्य सोशल टॉक शोज़ में, कई आम लोगों ने दर्शकों को रूला दिया।
पूरे कार्यक्रम के दौरान, आप उनके दर्द और व्यथा को महसूस कर सकते हैं, भले ही आप उन्हें टीवी स्क्रीन पर देख रहे हों, जब उनके आंसू बेकाबू होकर लुढ़क जाते हैं, और शब्दों की धारा भावनाओं के साथ जीवंत हो जाती है।
वे वास्तविक दुनिया के लोग हैं जिनमें प्रस्तुति कौशल नहीं है, किंतु, निश्चित रूप से, वे अपने जीवन के मुद्दों का वर्णन कर रहे थे। उन्हें देखते हुए, दुनिया भर में लाखों लोग उन भावनाओं, संदेशों और कारणों के प्रति सहानुभूति जाहिर करते हैं।
कई सरकारों को उन कहानियों के आधार पर कानूनों को बदलने के लिए राजी किया गया है। इसलिए, मेरी राय में, यह वह आग है जिसके भीतर 'प्रस्तुति' बनती या बिगड़ती है।
'मार्टिन लूथर किंग' (Martin Luther King) और कैसे उन्होंने "आई हैव ए ड्रीम" (“I Have a Dream”) अपने इस भाषण के अंश पर बात की।
अंत में, मैं महात्मा गांधी के बारे में कुछ साझा करूंगा। मेरे कई भारतीय दर्शक उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं और विडंबना यह है कि, इन दिनों उनका जीवन उसी देश में जाँच के घेरे में है जहाँ के वे निवासी थे।
यह दुनिया भर के अन्य देशों से बिल्कुल अलग है जहां वह आदरणीय है और उनकी जीवनी का अध्ययन किया जाता है। इसलिए संचारण और प्रस्तुति करने के अर्थ की खोज करते समय उनके बारे में और अधिक तथ्य लाना महत्वपूर्ण हो जाता है।
जैसा कि मुझे बताया गया है, वह उत्कृष्ट परिभाषा में एक खराब वक्ता थे। वह 'स' और 'श' को स्पष्ट रूप से नहीं बोल पाते थे। अनुकरण करने के लिए कोई विशेष 'शारीरिक हाव भाव' (बॉडी लैंग्वेज) नहीं था।
उस समय, प्रस्तुति का समर्थन करने के लिए 'ओवरहेड प्रोजेक्टर' (overhead projectors) या 'टोन प्रबंधित माइक्रोफ़ोन' (tone managed microphones) नहीं थे।
उन्होंने बैठकर जनता से बात की, चलते समय पत्रकारों को संबोधित किया और कई बार मौन रहकर राष्ट्र से संवाद किया।
कभी कभी उनकी बयानबाजी में सोचा समझा भाषण भी शामिल होता था जब वे कई दिनों तक उपवास कर रहे होते थे।
दिलचस्प बात यह है कि, उनके शब्दों में न केवल अर्थ की गहरी भावना थी, बल्कि, लोग उनके शब्दों के अर्थ और उनकी भावना दोनों में उनका अनुसरण करते थे।
आज तक, सभी कार्यक्षेत्रों के नेता और आम नागरिक गांधी का अनुकरण करते हैं।
एक उदाहरण के रूप में, 'हाउस ऑफ कॉमन्स' (house of commons) में पिछले ब्रिटिश स्पीकर, जॉन बेरको (John Bercow), ने 'वेस्टमिंस्टर का महल' (Palace of Westminster) में रानी के 90वें जन्मदिन की सभा के दौरान गांधी का तीन बार उल्लेख किया।
यह ध्यान देने योग्य है कि, यह वही गांधी हैं जो अंग्रेजों को भारत देश को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर करने वालों व्यक्तियों में से सबसे महत्वपूर्ण थे।
यही सच्ची बयानबाजी की ताकत है, जो विरोधी खेमे में भी प्रशंसकों की संख्या बना सकती है। जॉन बेरको को उनकी शासन कला के लिए भी श्रेय जाता है।
वे 'मुख्य कार्यकारी अधिकारी' (C(X)Os) जो बड़े सम्मेलन केंद्रों के मंच साझा करते हैं, कर्मचारियों और वैश्विक दर्शकों से बात करते हैं, शायद ही कभी समझ में आते है।
आज हम उनमें से कितनों को याद करते हैं? बस कुछ को ही क्योंकि, वे ही थे जिन्होंने उस समय सही भावना का संचार किया था। मुझे पूरा विश्वास है कि, जिन्हें हम याद करते हैं वे उत्कृष्ट प्रस्तुति कौशल की श्रेणी में नहीं आते।
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प्रस्तुति कौशल के नाम पर हम अपने कर्मचारियों को बनावटी व्यवहार सिखाते हैं
प्रस्तुति कौशल के नाम पर हम अपने कर्मचारियों को बनावटी व्यवहार सिखाते हैं। इसमें बातचीत के कई भाग शामिल हैं जो प्राकृतिक वातावरण में काम करनेवाले मानव दिमाग़ के विरुद्ध हैं।
इसके बजाय हमें विकासशील दुनिया के उन फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों से सीखना चाहिए जिनके पास प्रस्तुति कौशल का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है।
केवल कुछ छोटे वाक्यों के साथ, यहां तक कि, एक विदेशी भाषा में भी, वे अभी भी संवाद करते हैं और खरीदारों को राजी कर लेते हैं। हम सभी ने इसका अनुभव किया है।
इस रीति से, "प्रस्तुति कौशल" न तो प्रस्तुति है और न ही कौशल। यह प्रस्तुतकर्ता द्वारा स्वाभाविक रूप से संप्रेषित एक गहरी भावना है।
तो, संक्षेप में, अपना बहुमूल्य समय क्यों बर्बाद करें?
* ब्लैक लाइव्स मैटर ( बीएलएम ) एक विकेन्द्रीकृत राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन है जो काले लोगों द्वारा अनुभव किए गए नस्लवाद , भेदभाव और नस्लीय असमानता को उजागर करना चाहता है ।
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