भारत का असली दुश्मन कौन ?
भारत का असली दुश्मन कौन ?
Real Enemy of India? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
हम उन आवश्यक और गुप्त ताकतों का पता लगाएंगे जो भारत और भारतीयों के जीवन को आकार दे रही हैं। आज, हम एक ज्वलंत प्रश्न का सामना कर रहे हैं।
जो है कि, भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है? क्या यह पाकिस्तान, चीन है, या फिर शायद कुछ और जो बिल्कुल ही अलग है?
हम इस प्रश्न को सुलझाने के लिए निम्नलिखित इन औद्योगिक इकाइयों के बीच कुछ समान खोजने को का प्रयास करेंगे।
इसलिए, सावधानीपूर्वक जांच करें कि, अमेरिका के एफडीए (FDA), सिंगापुर और भारत में एवरेस्ट और एमडीएच (Everest & MDH), भारत के पतंजलि (Patanjali) और स्विट्जरलैंड के नेस्ले ( Nestle) में क्या समानता है।
ये भिन्न प्रतीत होने वाली औद्योगिक इकाइयां एक समान सूत्र साझा करती हैं, और ये सभी भारतीय समाज पर अपने प्रभाव को रेखांकित करती हैं।
तो यह आखिर होता कैसे है? आइए हम उनमें से प्रत्येक की बारीकी से जाँच करें।
प्रसिद्ध आयुर्वेदिक दवा कंपनी पतंजलि, एक चौंका देने वाली पहुंच का दावा करती है जो पूरे भारत में लाखों घरों तक फैली हुई है।
“
नेस्ले, एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी, (Swiss multinational corporation) 1977 से शिशु आहार (Baby food) के इस विवाद में शामिल रहा है
एक हालिया सर्वेक्षण (Survey) के अनुसार, 70% से अधिक भारतीय घरों में कम से कम एक पतंजलि का उत्पाद मौजूद है।
पतंजलि ब्रांड को इतने बड़े पैमाने पर उपभोक्ताओं द्वारा स्वीकार किया जाना, *उपभोक्ता व्यवहार (consumer behaviour) और स्वास्थ्य विकल्पों को आकार देने में इसके प्रभाव को रेखांकित करता है। इस तरह पतंजलि एक क्रांति है।
हालाँकि, इतने बड़े पैमाने पर लोगों का इसपर भरोसा और खतरनाक ढंग से शानदार आंकड़ों के बीच, कोविड-19 महामारी के दौरान, पतंजलि को भ्रामक (गुमराह करने वाला) विज्ञापन प्रथाओं के लिए, आरोपों का सामना करना पड़ा।
रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि बड़े पैमाने पर भारतीयों ने पतंजलि के कोविड-19 उपचारों की प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की और उन्होंने उनके ‘भ्रामक विपणन’ (deceptive marketing) और जीवन को जोखिम में डालने से होने वाले संभावित नुकसान पर भी प्रकाश डाला।
इसके परिणामस्वरूप, कानून ने अपना काम किया और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद, इस भव्य पतंजलि ब्रांड के 14 उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पतंजलि के संस्थापक और मालिक से इसपर माफीनामा भी मांगा गया था।
तो इस तरह, यह प्रतिष्ठा की हानि होने से कम नहीं है।
प्रासंगिक निष्कर्ष यह निकलता है कि जब, पतंजलि यानी कि इसके संस्थापक और प्रबन्धक वर्ग, व्यवसाय के लिए यह जोखिम भरा विज्ञापन कर रहे थे, तो वे जानबूझकर ऐसा कर रहे थे।
वे जानते थे कि वे अपने लाखों अनुसरणकर्ताओं को नुकसान पहुँचाने और उनके जीवन को जोखिम में डालने जा रहे थे, जिन्हें उनकी व्यवस्था पर भरोसा था। तो आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके अलावा, ज्यादातर अनुसरणकर्ता भारतीय ही थे।
इसी तरह, एवरेस्ट (Everest) और एमडीएच (MDH) जैसे घरेलू मसालों के ब्रांड भारतीय बाजार में प्रमुख स्थान रखते हैं।
कंपनी की वार्षिक रिपोर्टों के अनुसार, ये दोनों ही ब्रांड भारत में मसाला बाजार के 80% से अधिक हिस्से पर सम्मिलित रूप से नियंत्रण रखते हैं।
इसके अलावा, हाल ही में खाद्य नियामकों द्वारा किये गए इनके उत्पादों के परीक्षण के नतीजों में *कार्सिनोजेनिक पदार्थों के उच्च स्तर के होने के दावे से, उनकी प्रतिष्ठा को हानि हुई है, जिससे महत्वपूर्ण, गंभीरता का स्तर बढ़ गया है।
तो इससे यह अनुमान लगाया गया है कि, इसमें फिर से, 80% भारतीय परिवार ही नियमित रूप से इन मसालों का उपभोग करते हैं, और इसलिए, इन उत्पादों में जो कुछ भी पाया जाता है उसका बड़े पैमाने पर प्रभाव होता है।
दूसरा पहलू , ये है की यह दोनों ब्रांड भारतीय हैं, जो भारतीयों द्वारा स्थापित किए गए हैं और मुख्य रूप से भारतीयों द्वारा ही उपयोग किए जाते हैं।
तो फिर, हमें हाल ही में, हिलाकर रख देने वाले, नेस्ले बेबी फूड घोटाले (Nestle baby food scandal) को भी नहीं भूलना चाहिए।
नेस्ले, एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी, (Swiss multinational corporation) 1977 से शिशु आहार (Baby food) के इस विवाद में शामिल रहा है, जहां उन्हें पहली बार अविकसित देशों में *शिशु फार्मूला (infant formulas) के आक्रामक विपणन के लिए गंभीर प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा।
तब से लेकर आजतक इस कंपनी का शिशु आहार विवादों का एक इतिहास रहा है। उस वक़्त नेस्ले के खिलाफ बहिष्कार शुरू किया गया था, और लोगों की चिंताओं के साथ इसका फैलाव विश्व स्तर पर हुआ क्योंकि, कंपनी की अनैतिक प्रथाओं की गूंज सीमाओं के पार तक थी।
वे दुनिया भर में आक्रामक रूप से, स्तन के दूध की जगह लेने की कोशिश कर रहे थे, खासकर कि उन अविकसित देशों में जहां इसको लेकर लोगों में जागरूकता कम थी।
यहां भारत में, जो इसको लेकर पता चला है वह यह है कि, नेस्ले कंपनी के शिशु आहार में 7.1 ग्राम अतिरिक्त चीनी होती है, जो कि, प्रति सौ ग्राम भोजन में लगभग दो चीनी क्यूब या दो चम्मच होती है।
फिर वही दूसरी तरफ, यह आश्चर्य की बात है कि यूरोप में बेचे जाने पर उन्हीं समान उत्पादों में कोई अतिरिक्त चीनी नहीं होती है।
अतिरिक्त चीनी के साथ समस्या यह है कि बच्चों को यह भोजन पसंद आता है, और वे इस भोजन को वरीयता देते हैं, और इस वजह से समय बीतने के साथ उनमें मोटापा और मधुमेह विकसित होने की बहुत अधिक संभावना होती है।
तो, एक तरह से नेस्ले का खाना देश के बच्चों को नुकसान पहुंचाता है। जब यह घोटाला भारत में उजागर हुआ तब हमें यह पता था कि, यह एक स्विस कंपनी है, लेकिन बाद में यह स्विस नेस्ले की सहायक कंपनी बन गयी थी जिसका प्रबंधन और अध्यक्षता दोनों ही भारतीय थे।
इसके अलावा, समय के साथ, उन्होंने भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Indian public health) के ऊपर लाभ को वरीयता दी है। जब दूसरी तरफ, नेस्ले बेबी फ़ूड में उच्च स्तर की अतिरिक्त चीनी होती है, जो कि संभव है, मधुमेह को उत्पन्न करेगी ।
इसके विपरीत, अमेरिका का एफडीए (FDA), वैश्विक खाद्य और फार्मास्युटिकल दवा विनियमन (Global food and pharmaceutical drug regulation) पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
रिपोर्ट के अनुसार, एफडीए, दुनिया भर में, भोजन और दवाओं पर कुल उपभोक्ता खर्च के लगभग 20% की निगरानी करता है।
हालाँकि, समय के साथ,एफडीए की निष्पक्षता के बारे में गंभीर चिंताएँ उठाई गई हैं।
एक स्पष्ट उदाहरण, जो एफडीए के कामकाज के लिए आवश्यक है, वह यह है कि एफडीए का 70% वित्तपोषण *उपयोगकर्ता शुल्क से आता है, जिसका भुगतान उद्योग द्वारा किया जाता है।
इसके अलावा, यह हितों के टकराव के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। यह एफडीए की नियामक स्वतंत्रता (regulatory independence) पर भी सवाल उठाता है।
जबकि एफडीए फार्मास्युटिकल दवाओं, खाद्य पदार्थों, पशु चिकित्सा उत्पादों, सर्जिकल (शल्य चिकित्सा) उत्पादों, लेजर और सौंदर्य प्रसाधनों को नियंत्रित करता है, यह बड़ी आसानी से बर्तनों पर लगने वाली परत (कोटिंग) को नियंत्रित करने में शामिल नहीं होता है, ऐसा क्यों, आखिरकार पके हुए भोजन की सुरक्षा भी तो उतनी ही महत्वपूर्ण है।
एफडीए (FDA), नॉन-स्टिक बर्तनों पर टेफ्लॉन (Teflon) कोटिंग का निरीक्षण नहीं करता है। यह एक खतरनाक चीज़ है जो दुनिया भर में अनेकों जिंदगियों के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
टेफ्लॉन में C8 नामक एक चिरस्थायी रसायन होता है, जो नसों (Nerves) और लीवर (यकृत) को हानिकारक रूप से प्रभावित करता है और इसे कार्सिनोजेनिक यानि कैंसरकारी पदार्थ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि लगभग सभी लोगों में, भले ही वह किसी भी उम्र के हों, उनके रक्त में C8 का कोई न कोई रूप होता है। इसीलिए, इसे हमेशा रहने वाला रसायन कहा जाता है क्योंकि, यह शरीर को नहीं छोड़ता है।
जबकि टेफ्लॉन को पानी प्रतिरोधी और गर्मी प्रतिरोधी कहा जाता है, और एफडीए, बर्तनों की जाँच नहीं करता है, लेकिन इसका अध्ययन नहीं किया गया है कि टेफ्लॉन का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है और नॉनस्टिक बर्तनों के लगातार इस्तेमाल के बाद यह रक्तप्रवाह में कैसे फैलता है।
“
पतंजलि ब्रांड के 14 उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया
हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि एफडीए टेफ्लॉन की जाँच क्यों नहीं कर रहा है। क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि ड्यूपॉन्ट (DuPont) यानी अमेरिकी कंपनी ने टेफ्लॉन बनाया है, जिसका दुनिया भर में टेफ्लॉन से वार्षिक मुनाफा लगभग 2900 करोड़ डॉलर है? यह करीब 2.5 लाख करोड़ भारतीय रुपये है l
जबकि हम प्रामाणिकता की मोहर के रूप में एफडीए पर भरोसा करते हैं, हाल ही में, अमेरिका में डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर *ओपिओइड (opioid) की लत के गंभीर मुद्दे सामने आए हैं।
यहां यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि एफडीए, स्वयं उत्पादों की कोई जाँच नहीं करता है। इसके बजाय, वे केवल उस परीक्षण के अनुमोदक (approvers) हैं जो निर्माता कर रहे हैं।
इसलिए, एफडीए के संचालन के तरीके में गंभीर खामियां हैं। ऐसी मूलभूत भ्रांतियाँ हैं जिनके आधार पर एफडीए कार्य करता है। फिर भी, एफडीए की मोहर को उत्पाद अनुमोदन (product approval), भरोसे और प्रामाणिकता का स्रोत माना जाता है।
इसके विपरीत, भारतीय खाद्य सुरक्षा नियामकों ने इस विकसित हो रहे खाद्य सुरक्षा परिदृश्य की उचित निगरानी बनाए रखने के लिए संघर्ष किया है, जो नेस्ले, पतंजलि, एवरेस्ट और एमडीएच घोटालों में साफ़ दिखाई देता है।
एक दृष्टिकोण से देखें तो, हमारे यहां स्थितियों का बहुत ही घातक मिश्रण है। यह भारतीय ब्रांड के लिए भारतीयों को ही धोखा देने वाले भारतीयों का और एक विदेशी ब्रांड के लिए भारतीयों के साथ छल करने वाले भारतीयों का एक समूह है।
वे भारतीय नियामकों के बजाय विदेशी ब्रांड पर विश्वास करते हैं, भले ही विदेशी नियामक में हितों का खतरनाक टकराव हो। यहां पर बात सिर्फ इतनी है कि आम तौर पर भारतीयों को इसके बारे में पता ही नहीं होता l
तब भी, सवाल यह है कि एवरेस्ट, एमडीएच, नेस्ले और पतंजलि जैसे ब्रांडों के मामले में गैर-जिम्मेदाराना चूक के बाद भी भारतीयों को भारतीय नियामकों पर विश्वास क्यों करना चाहिए?
यहां पर प्रश्न ये खड़ा होता है कि, इस घातक समूह से कुल मिलाकर कितने लोग प्रभावित होते हैं। तो इसका उत्तर प्रभावित भारतीयों की संख्या में ही निहित है- जो कि एक अरब से कम नहीं है।
ये सभी कंपनियां और संगठन जिनके बारे में हमने बात की, इनमें हुए हाल के घोटाले, इस बात का प्रतिबिंब हैं कि भारत किस तरह से प्रतिक्रिया देता है, कैसे भारतीय, भारत के भीतर और भारत के बाहर से चीजों और विचारों को स्वीकार करते हैं, उपयोग करते हैं, स्वागत करते हैं, उन्हें भ्रष्ट करते हैं और अस्वीकार करते हैं।
अब, हमारे शुरूआती प्रश्न पर विचार करें कि भारत का असली दुश्मन कौन है?
तो इन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि, देश का असली दुश्मन होने का खतरा पाकिस्तान या चीन के बाहरी खतरे में नहीं बल्कि प्रणालीगत विफलता और गलत जगह पर भरोसा करने में है, चाहे वह घरेलू ब्रांड द्वारा उपभोक्ता
वफादारी का शोषण हो, अंतरराष्ट्रीय प्राधिकारियों की नियामक चूक या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अनैतिक प्रथाएं हो, जो भारत को कूड़ेदान और प्रायोगिक जमीन समझकर यहां वस्तुओं को बहुत सस्ते दाम पर बेच देती है।
हाल ही में सामने आई इन सोचने पर विवश करने वाली वास्तविकताओं पर विचार करते हुए, भारत के भविष्य को आकार देने में प्रत्येक भारतीय जो भूमिका निभा रहा है उसपर विचार करना महत्वपूर्ण हो गया है।
*उपभोक्ता व्यवहार
उपभोक्ता व्यवहार इस बात का अध्ययन है कि व्यक्तिगत ग्राहक, समूह या संगठन अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए विचारों, वस्तुओं और सेवाओं का चयन, खरीद, उपयोग और निपटान कैसे करते हैं। यह बाज़ार में उपभोक्ताओं की गतिविधियों और उन गतिविधियों के पीछे छिपे उद्देश्यों को संदर्भित करता है।
विपणक यह उम्मीद करते हैं कि यह समझकर कि उपभोक्ता विशेष वस्तुओं और सेवाओं को क्यों खरीदते हैं, वे यह निर्धारित करने में सक्षम होंगे कि बाजार में किन उत्पादों की आवश्यकता है, कौन से अप्रचलित हैं, और उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं को सर्वोत्तम तरीके से कैसे प्रस्तुत किया जाए।
*वे पदार्थ, विकिरण या रेडियोन्यूक्लाइड जो सीधे कैंसर के निर्माण में शामिल होते हैं, उन्हें कैंसरकारी पदार्थ या कार्सिनोजेन्स कहा जाता है।
कैंसर बीमारियों का एक समूह है जो असामान्य कोशिका वृद्धि का कारण बनता है और मानव शरीर के अन्य भागों में फैलने की क्षमता रखता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
कैंसरकारी पदार्थ आम तौर पर कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं क्योंकि वे शरीर की चयापचय कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं। वे कोशिका के डीएनए घटक को भी नुकसान पहुँचाते हैं जो शरीर में कई जैविक प्रक्रियाओं से सीधे जुड़ा होता है। इससे ट्यूमर होता है।
शिशु फार्मूला एक पोषण उत्पाद है। इसे प्रसंस्कृत गाय के दूध या सोयाबीन उत्पादों से बनाया जाता है। विशेष प्रसंस्करण गाय के दूध के फार्मूले को अधिक सुपाच्य बनाता है और नियमित गाय के दूध की तुलना में एलर्जी की प्रतिक्रिया होने की संभावना कम होती है।
शिशु फार्मूले में विटामिन और खनिज मिलाए जाते हैं। 4 से 6 महीने की उम्र से पहले बच्चे की सभी पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए फार्मूले का इस्तेमाल किया जा सकता है।
व्यावसायिक फ़ॉर्मूले को यथासंभव स्तन के दूध के समान बनाया जाता है। शिशु फ़ॉर्मूले की सुरक्षा और पोषक तत्व सामग्री को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा विनियमित किया जाता है।
फ़ॉर्मूला में लगभग आधी कैलोरी वनस्पति तेलों या वनस्पति और पशु वसा के मिश्रण से आती है। एक बच्चे के शरीर को नई कोशिकाओं को बनाने और विकसित करने और बच्चे की उच्च ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वसा की आवश्यकता होती है।
अधिकांश गाय के दूध के फार्मूले में कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत दूध की शर्करा (लैक्टोज) होती है , ठीक वैसे ही जैसे स्तन के दूध में होती है।
*FDA कुछ उत्पादों, जैसे कि दवाएँ और चिकित्सा उपकरण, और कुछ अन्य संस्थाओं, जैसे कि कुछ मान्यता और प्रमाणन निकायों का उत्पादन करने वाली कंपनियों से शुल्क एकत्र करता है। इन शुल्कों को "उपयोगकर्ता शुल्क" कहा जाता है।
ओपिओइड दवाओं का एक समूह है जिसे डॉक्टर दर्द के इलाज के लिए लिख सकते हैं। ओपिओइड मस्तिष्क और शरीर के बीच दर्द के संकेतों को बाधित करके दर्द की भावनाओं को कम करते हैं।
ओपिओइड आपके मस्तिष्क में ओपिओइड रिसेप्टर्स के साथ बातचीत करके काम करते हैं। इसके कई प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें दर्द महसूस करने के तरीके में बदलाव शामिल है। आपके डॉक्टर द्वारा निर्धारित कुछ ओपिओइड-आधारित दवाएँ निम्नलिखित हैं:
Other Articles
Did Western Medical Science Fail?
How to Harness the Power in these Dim Times?
Is India’s Economic Ladder on a Wrong Wall?
Taking on China – Indian Challenges
British Border Bungling and BREXIT
When Health Care System Failed – others Thrived.
3 Killer Diseases in Indian Banking System
Work from Home - Forced Reality
Why Learning Presentation Skills is a Waste of Time?
Is Social Justice Theoretical?
Will Central Vista fit 21st Century India?
Why Must Audit Services be Nationalized?
To Comment: connect@expertx.org
Support Us - It's advertisement free journalism, unbiased, providing high quality researched contents.