भारतीय दूरसंचार के विवाद : विकास, कर्ज़ और डिजिटल लत
भारतीय दूरसंचार के विवाद : विकास, कर्ज़ और डिजिटल लत
Indian Telecom Contradictions: Growth, Debt and Digital Addiction का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
10 सितंबर, 2024 को ऑस्ट्रेलिया से "द फाइनेंशियल टाइम्स" ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसने युवाओं पर सोशल मीडिया के हानिकारक प्रभावों पर चल रही बहस पर रोशनी डाली ।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार सोशल मीडिया उपयोग के लिए न्यूनतम आयु सीमा को लागू करने पर विचार कर रही है। जो कि संभव है 13 से 16 वर्ष के बीच के बच्चों के लिए हो । यह कदम स्क्रीन की लत और इसके नकारात्मक प्रभावों के कारण उठाया जा रहा है।
इसपर विरोध होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने इसे एक सार्वजनिक चिंता का विषय बताया और सुझाव दिया कि, यह चुनावी मुद्दा बन सकता है।
दक्षिण ऑस्ट्रेलिया पहले ही इस दिशा में कानूनी कदम उठा चुका है, हालांकि छोटे पैमाने पर, लेकिन 16 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए सोशल मीडिया प्रतिबंध लागू होने की संभावना अब बढ़ रही है।
यह मुद्दा भारत की स्थिति पर भी महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है, जहां सोशल मीडिया और ओटीटी (OTT) प्लेटफार्मों ने दूरसंचार (Telecommunication) क्षेत्र को तेज़ी से और पूरी तरह से बदल दिया है।
हालाँकि सोशल मीडिया की लत के बारे में चिंताएँ जायज हैं, लेकिन व्यापक सवाल यह है कि, क्या कोई गहरी या महत्वपूर्ण ताकत भारत में इन प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव को आगे बढ़ा रही है। यह बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक भी है,
जो, भारतीय, डाटा का उपभोग कैसे करते हैं और कैसे एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं, इसमें बुनियादी बदलाव आ रहा है।
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2016 और 2023 के बीच, डेटा की खपत में तेज़ी से वृद्धि हुई, जो प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 15-18 जीबी तक पहुँच गई
ओटीटी प्लेटफॉर्मों ने भारत में डेटा खपत की आदतों को पूरी तरह से बदलकर सामाजिक-आर्थिक ढांचे को नया आकार दिया है।
भारत में 117 करोड़ दूरसंचार ग्राहक है जिसमें से लगभग 50 करोड़ सक्रिय ओटीटी उपयोगकर्ता, और 60 करोड़ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं।
इंटरनेट को इस तेजी से अपनाए जाने ने भारतीयों के संवाद करने, काम करने और विषय - वस्तु का उपभोग करने के तरीके में क्रांति ला दी।
यह डिजिटल परिवर्तन पिछले पांच से सात सालों में हुआ है, जिसने अपनी रफ़्तार और पैमाने से कई लोगों को हैरान कर दिया है।
हालांकि बेशक यह परिवर्तनकारी रहा है, लेकिन इसने इस बारे में शंका भी पैदा की है कि भविष्य की पीढ़ियां तेजी से डिजिटल होते इस भारत में जीवन का प्रबंधन कैसे करेंगी।
जंगल की आग की तरह, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म भी तेजी से फैल रहे हैं
जिसने युवा पीढ़ी को ध्यान भंग और अकेलेपन की ओर भी धकेल दिया है। इसलिए, यह एक गंभीर मुद्दा है, जो नागरिक समाज और सरकार का इस ओर ध्यान देने की मांग करता है।
रिलायंस जियो (Jio) का दूरसंचार बाज़ार में धमाकेदार प्रवेश
2016 में, रिलायंस जियो ने सस्ते डेटा और मुफ़्त वॉयस कॉल की पेशकश करके भारतीय बाज़ार में हलचल मचा दी, जिससे लाखों भारतीय पहली बार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम हुए।
इसने नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम और डिज़्नी हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के लिए भारतीय बाज़ार में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। ज़ी 5 और एमएक्स प्लेयर जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी भी तेज़ी से प्रमुखता से उभरे।
2016 और 2023 के बीच, डेटा की खपत में तेज़ी से वृद्धि हुई, जो प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 15-18 जीबी तक पहुँच गई, जो दुनिया में सबसे अधिक दरों में से एक है।
इस डेटा का ज़्यादातर हिस्सा मोबाइल डिवाइस के ज़रिए इस्तेमाल किया जाता है, ख़ास तौर पर वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए, जिसमें डिज़्नी हॉटस्टार पर आईपीएल क्रिकेट मैच मुख्य कारण हैं।
यू ट्यूब (YouTube), इंस्टाग्राम (Instagram), फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सऐप (WhatsApp) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने भी डेटा उपयोग के इस उछाल में योगदान दिया है, जिसमें शॉर्ट-फ़ॉर्म वीडियो (लघु प्रारूप वीडियो) और लाइव स्ट्रीमिंग लोकप्रिय हो रही है।
यह बदलाव दूरसंचार क्षेत्र में वॉयस से डेटा की ओर बदलाव को दर्शाता है। रिलायंस जियो अब प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह लगभग ₹175 कमाता है, जबकि भारती एयरटेल प्रति उपयोगकर्ता लगभग ₹200 कमाता है।
वैश्विक मानकों के हिसाब से यह बदलाव मामूली है, लेकिन भारत के दूरसंचार उद्योग के लिए यह महत्वपूर्ण है।
पैकेज का मुद्दा
दूरसंचार कंपनियों ने अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए ओटीटी और सोशल मीडिया की पहुँच के साथ डेटा को पैकेज के रूप में बेचना करना शुरू कर दिया है।
यह दृष्टिकोण उपयोगकर्ताओं पर अत्यधिक मात्रा में विषय वस्तु को थोपता है, जिससे दूरसंचार कंपनियाँ केवल डेटा दाता होने से विषय वस्तु खपत की मुख्य ऑपरेटर बन जाती हैं।
विषय वस्तु क्रांति केवल शहरी केंद्रों तक ही सीमित नहीं है; लगभग 50% ओटीटी विषय वस्तु अब क्षेत्रीय भाषाओं में है, जो स्थानीय संस्कृतियों को दिखाती है और उनसे गूँजती है।
सूचना के लोकतंत्रीकरण ने विषय वस्तु को शहरी केंद्रों से ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और गांवों में पहुँचने की अनुमति दी है।
हालांकि, कंपनियों के क्षेत्रीय और स्थानीय केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करने का ये दृष्टिकोण एक खंडित राष्ट्रीय पहचान की ओर भी ले जा सकता है अगर इस पर अंकुश नही लगाया तो।
इस तरह, बढ़ते विभाजन के लिए एक संगठित दूरसंचार नीति की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय मतभेदों को एक साथ जोड़े।
सोशल मीडिया ने सामाजिक मेलजोल को काफी हद तक बदल दिया है, खासकर भारतीय युवाओं के बीच।
इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म आत्म-अभिव्यक्ति और सक्रियता के लिए पहला स्थान बन गए हैं; लगभग 60 करोड़ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता, जिनमें मुख्य रूप से 18 से 34
वर्ष की आयु के लोग शामिल हैं; भारतीय युवा आलसी उपभोक्ता किंतु, सक्रिय विषय वस्तु निर्माता हैं, जो भारत की नई सामाजिक गतिशीलता को आकार दे रहे हैं।
बढ़ती चुनौतियाँ
सोशल मीडिया का उदय अपने साथ मानसिक स्वास्थ्य, निजता और डिजिटल लत के बारे में गंभीर चिंताएँ लेकर आया हैं।
इसका लंबे समय तक उपयोग चिंता, अवसाद और साइबरबुलिंग के बढ़ते मामलों से जुड़ा है।
55 करोड़ भारतीय उपयोगकर्ताओं के साथ व्हाट्सएप और 34 करोड़ के साथ फेसबुक जैसे प्लेटफ़ॉर्म गलत सूचना और डेटा शोषण के लिए महत्वपूर्ण एजेंट बन गए हैं।
जबकि भारत सरकार ने कुछ सुरक्षा उपाय लागू किए हैं, लेकिन ये काफ़ी नही हैं।
साथ ही, दूरसंचार कंपनियाँ सोशल मीडिया को ई-कॉमर्स और वित्तीय सेवाओं को साथ जोड़ रही हैं, जिससे नए कारोबार मॉडल बन रहे हैं।
जियोमार्ट (Jio Mart), जियो पेमेंट बैंक (Jio Payment Banks) और एयरटेल पेमेंट बैंक जैसे प्लेटफ़ॉर्म अब 100 करोड़ से अधिक ग्राहकों को सेवा प्रदान करते हैं, और इस तरह से डिजिटल लेनदेन की माँग लगातार बढ़ रही है।
दूरसंचार, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स का साथ मिलकर ये एक रूप लेना भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को गति दे रहा है और नए कारोबारी अवसर भी बना रहा है, लेकिन यह बाजार में शंका भी पैदा कर रहा है जिसके लिए भारत पूरी तरह से तैयार नहीं है।
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वोडाफोन पर कुल 2.3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है
दूरसंचार कंपनियों ने बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है, अकेले रेंज पाने के लिए लगभग ₹1.5 लाख करोड़ खर्च किए गए हैं। भारत में पहले से ही शहरी और ग्रामीण इलाकों में 650,000 से अधिक दूरसंचार टावर हैं।
हालांकि, वोडाफोन जैसी कंपनियों पर भारी कर्ज का बोझ है जैसे अकेले वोडाफोन पर कुल 2.3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है।
भले ही जियो जैसी कंपनियां मुनाफे में बनी हुई हैं, लेकिन आमदनी के स्रोत बुनियादी ढांचे में निवेश के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे है।
भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। जो कि, इस डिजिटल परिवर्तन यानी डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के केंद्र में है और आज की इस हाई-स्पीड इंटरनेट वाली दुनिया में जिसमें ओटीटी प्लेटफार्मों और सोशल मीडिया का बोलबाला है; उसके बीच बड़ी हुई है ।
इसलिए उनका भविष्य एआई (AI), डिजिटल मार्केटिंग और सामग्री निर्माण जैसे क्षेत्रों में ही है।
हालांकि, भारत डिजिटल साक्षरता में काफी पीछे है, विशेष रूप से साइबर सुरक्षा, *डाटा एनालिटिक्स और वित्तीय प्रौद्योगिकियों में। इसलिए, इस फर्क पर ध्यान न देने से, भारत के युवाओं के डिजिटल निर्भरता (Digital dependency) के चक्र में फंसने का जोखिम है।
कर्ज के बोझ से दबी दूरसंचार कंपनियां इस डिजिटल क्रांति को आगे बढ़ा रही हैं, लेकिन इसका भविष्य संदिग्ध बना हुआ है।
बिना सही नीति निर्देशन और निरीक्षण के, भारत के *डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देने वाला यह उद्योग ही इसके लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।
तो इस सबसे निष्कर्ष ये निकलता है कि,
भारतीय दूरसंचार क्षेत्र, जो कभी डिजिटल सशक्तिकरण को प्रेरित करता था, अब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
इसलिए भारत के युवाओं को जो इस डिजिटल युग के केंद्र में है, आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने चाहिए, वरना यह क्षेत्र अनजाने में भारत के भविष्य की समृद्धि के लिए खतरा बन सकता है।
*डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन (परिवर्तन) क्या है
डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन मानव और व्यावसायिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी दक्षता में सुधार लाने, अनुकूलन करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करने की प्रक्रिया है।
इस प्रकार डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में कंपनी की सभी व्यावसायिक प्रक्रियाओं में गहरा बदलाव और मेनेजमेंट के पुराने तरीकों को आधुनिक विकल्पों से पूरी तरह से बदलना शामिल है।
उदाहरण के लिए यह AI सिस्टम का उपयोग, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और रोबोटिक्स को लागु करना हो सकता है। इसके अलावा डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में मशीन लर्निंग, वर्चुअल और अल्टरनेटिव रियलिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग, प्रोसेस एनालिटिक्स और कई अन्य टेक्नोलॉजी शामिल हो सकती हैं।
डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन से जुड़ी दो अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं भी मौजूद हैं, जिन्हें कई लोग गलती से इसका पर्यायवाची मान लेते हैं। ये कुछ इस प्रकार हैं:
डिजिटाइजेशन। यह एनालॉग डेटा को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है, उदाहरण के लिए, डाक्यूमेंट्स को स्कैन करना और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्टोर करना।
डिजिटलीकरण। इसमें केवल कुछ व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है, उदाहरण के लिए CRM-सिस्टम इंस्टॉल करना - यह एक विशेष प्रोग्राम है, जिसका इस्तेमाल ग्राहकों के साथ बातचीत को स्वचालित और नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
दूसरे शब्दों में डिजिटाइजेशन और डिजिटलीकरण की प्रक्रियाओं की तुलना में, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन न केवल व्यावसायिक प्रक्रियाओं और कार्य मॉडल में, बल्कि आधुनिक डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करके संपूर्ण संगठनात्मक संस्कृति, आंतरिक संचार और संरचनात्मक प्रणाली में भी एक ज्यादा जटिल बदलाव है।
इस प्रकार, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन किसी एक प्रक्रिया या परियोजना से आगे बढ़कर संपूर्ण संगठन को प्रभावित करता है।
आज, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन पूरी ऑर्गनिज़शन में परिचालन दक्षता को हासिल करने और नवाचार लाने का एक मूल तत्व और सबसे महत्तवपूर्ण शर्त है। यह कंपनी के तेज़ी से विकास करने, उसकी गतिविधियों की दक्षता बढ़ाने और उभरती समस्याओं को तेज़ी से हल करने में मदद करता है।
*डाटा एनालिटिक्स दो शब्दों से मिल के बना है – डाटा का अर्थ है आंकड़े और एनालिटिक्स का अर्थ है विश्लेषण।
डाटा एनालिटिक्स का क्या अर्थ हुआ – आंकड़ों का विश्लेषण ।
जब हम किसी समस्या के समाधान के लिए डाटा को कलेक्ट करते है और उस डाटा के विश्लेषण से महत्वपूर्ण जानकारी को डाटा में से खोज के निकालते है जिससे की उस जानकारी का प्रयोग समस्या को सुलझाने में किया जा सके तो उसे डाटा एनालिटिक्स कहते है।
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