लोग कम किताबें क्यों पढ़ रहे हैं?
लोग कम किताबें क्यों पढ़ रहे हैं?
Why People Reading Fewer Books: Consequences का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
हाल के वर्षों में, किताबें पढ़ने वालों की संख्या में भारी कमी आई है। यद्यपि, इस प्रवृत्ति के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, किन्तु, जो दो सबसे महत्वपूर्ण हैं, वह हैं, सामाजिक माध्यम (सोशल मीडिया) और ऑडियो पुस्तकें।
सामाजिक माध्यम के साथ, लोग लघु रूपों में अपनी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जो, उपभोग के लिए आसान है।
इसके विपरीत, किसी पुस्तक को पढ़ने के लिए समय और धैर्य की आवश्यकता होती है और बहुत से लोगों के पास यह 'ध्यान अवधि' नहीं होती।
अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि, 'मानव ध्यान अवधि' घटकर मात्र 8 सेकंड रह गई है। इसका मतलब यह है कि, अधिकांश पाठक इस वाक्य को नहीं नकार पाएंगे।
यदि वे ऐसा करते हैं, तो तत्काल संतुष्टि की खोज में अधीरता ने उनका ध्यान केंद्रित कर लिया होगा।
ध्यान केंद्रित ना कर पाने की यह अक्षमता एक मौन महामारी है जो, पहले ही मानव समाज में प्रवेश चुकी है।
सूचना अधिभार के इस युग में, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, लोग अधिक निपुणता से जानकारी का उपभोग करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं।
परिणामस्वरूप, पारंपरिक पुस्तक पढ़ने की कला की लोकप्रियता में गिरावट आई है। स्क्रॉलिंग के कुछ सेकंड और पुस्तक पढ़ने के घंटों के बीच उत्सुकता प्रदान करना
एक ऐसा संघर्ष लगता है जिसका अंत निश्चित रूप से असफलता के रूप में होता है।
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अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि, ' मानव ध्यान अवधि' घटकर मात्र 8 सेकंड रह गई है
हर साल, दुनिया भर में प्रकाशित पुस्तकों की संख्या लगभग 22 लाख है, जिनमें से भारत केवल 1.5 लाख शीर्षक प्रकाशित करता है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह बहुत कम है।
इसकी तुलना 'व्हाट्सएप' ( Whatsapp ) यूजर्स से करें तो, भारत में इनकी संख्या 48.7 करोड़ (487 मिलियन) है।
भारत में इतने सारे व्हाट्सएप उपयोगकर्ता अन्य चलचित्र (वीडियो) और ऑडियो के साथ में रोजाना कई खबरें पढ़ते हैं। कुछ खबरें लंबी भी हो सकती हैं।
यदि किसी को इस तथ्य की व्याख्या करनी हो तो, वहाँ पर मामला बनता है पढ़ने के जरिए सूचना उपभोग का किन्तु, किसी और माध्यम से जो कि, किताब नही है।
भारत मे 23 करोड़ इंस्टाग्राम उपयोगकर्ता हैं, यह एक और सामाजिक माध्यम है जिसने, पुस्तक पढ़ने से मिलने वाले आकर्षण और धीरज को दूर कर दिया है।
इसी तरह, हाल के वर्षों में ऑडियो पुस्तकों की लोकप्रियता भी बढ़ी है, क्योंकि, वे अन्य गतिविधियों को करते समय लोगों को किताबें सुनने की अनुमति देते हैं।
भागदौड़ से भरी जिंदगी में, बैठकर पूरी किताब पढ़ने के लिए समय निकालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बहुकार्यन (मल्टी-टास्किंग) और प्राथमिकताओं के दोहरेपन ने ऑडियो और अन्य चलचित्र (वीडियो) अंकीय (डिजिटल) सामग्रियों को जन्म दिया है।
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दुनिया भर में प्रकाशित पुस्तकों की संख्या लगभग 22 लाख है, जिनमें से भारत केवल 1.5 लाख शीर्षक प्रकाशित करता है
पुस्तकें विकसित हो सकती हैं, और आशावादी ढंग से वे इस तरह हमारी संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा बनी रहेंगी।
हमारी तेज़-तर्रार, अधीर दुनिया में, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, कुछ लोग मानते है कि, किताबें अब आवश्यक नहीं हैं।
आखिरकार, कोई भी एक लंबी विषय - वस्तु क्यों पढ़ना चाहेगा जब उसे त्वरित गूगल (Google) खोज के साथ वह जानकारी मिल सकती है जिसकी उसे आवश्यकता है?
हाल के वर्षों में, सामाजिक माध्यम (सोशल मीडिया) सूचना और मनोरंजन के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक बन गया है।
'फेसबुक', 'ट्विटर' और 'इंस्टाग्राम' जैसे मंचों के साथ, लोग वर्तमान घटनाओं पर आसानी से नवीनतम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, अपने विचार साझा कर सकते हैं और दोस्तों और परिवार के साथ जुड़ सकते हैं।
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, औसत व्यक्ति रोजाना लगभग चार से पांच घंटे सोशल मीडिया पर बिताता है। यह उनके जागने के समय का लगभग बीस प्रतिशत है। इसके अलावा, सामाजिक माध्यम के ये स्क्रॉलिंग घंटे हर बीतते साल के साथ बढ़ रहे हैं।
हमारी उंगलियों पर इतनी सामग्री उपलब्ध होने के कारण, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, बहुत से लोगों को पढ़ने के लिए समय निकालने में कठिनाई हो रही है।
किन्तु, प्रौद्योगिकी को इसके लिए धन्यवाद कि, अब हमारे पास नई चीजें सीखने के लिए पहले से कहीं अधिक विकल्प हैं।
अंकीय माध्यम (डिजिटल मीडिया) के उपभोग की तुलना किताब पढ़ने से करना गलत होगा। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों का उपयोग करते हुए दोनों की एक व्यक्ति के जीवन में अपनी जगह है।
हालाँकि, सामाजिक माध्यम को तत्क्षण प्रतिफल प्राप्त करने की भावना देने के लिए बनाया गया है जो, उपयोगकर्ताओं को एक लत की ओर धकेलता है, किन्तु, किताबें अतुलनीय हैं।
हालांकि कुछ का तर्क है कि, यह बदलाव समाज को नुकसान पहुंचाता है, पर कुछ अन्य का मानना है कि, यह प्रतिबिंबित करता है कि, लोग आजकल जानकारी का उपभोग कैसे करते हैं।
कुछ भी हो किन्तु, यह स्पष्ट है कि, हम ज्ञान तक कैसे पहुँचते हैं इसपर प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण रूप से असर डालती है।
हालांकि यह सच है कि, सामाजिक माध्यम ने सूचनाओं को जल्दी से उपभोग करना आसान बना दिया है। तो क्या, इसका अर्थ यह है कि, पुस्तकों को अनिवार्य रूप से प्रतिस्थापित किया जा रहा है?
इसके विपरीत, पढ़ने के बहुतायत लाभ साबित हुए हैं जो, किसी के ध्यान, धैर्य, व्याख्यात्मक कौशल और पूर्णतया ज्ञान में सुधार कर सकते हैं। इसे व्यक्ति की परिपक्वता के विकसित होने से भी जोड़ा गया है।
'कला के लिए राष्ट्रीय बंदोबस्ती' ( एनईए)
(National Endowment for the Arts) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा
गया है कि, जो लोग पढ़ते हैं उनमें "बड़ी शब्दावली, बेहतर पढ़ने की समझ और बेहतर संचार कौशल" होते हैं।
इसके अलावा, जो लोग लगातार पढ़ते हैं वे "लंबे अंशों को अधिक सटीक रूप से संक्षेप में प्रस्तुत कर सकते हैं, पात्रों का सूक्ष्म रूप से आंकलन कर सकते हैं, और उनमें मजबूत विश्लेषणात्मक कौशल भी होता है।
किताब पढ़ने से दिमाग का वह हिस्सा इस्तेमाल होता है, जो कोई और साधन नही करता। यह केवल सूचना एकत्र करने के बारे में नहीं है बल्कि, प्रक्रिया के माध्यम से जीने के बारे में है।
परिणामस्वरूप, वे एक अधिक डूबा हुआ अनुभव प्रदान करते हैं। पाठकों को दूसरी दुनिया में ले जाया जाता है और उन्हें अपनी गति से जानकारी को ढूंढ़ने की अनुमति दी जाती है। अन्य माध्यम के साथ, प्रबंधक द्वारा गति निर्धारित की जाती है।
इसकी परख करने के लिए, पाठक अपने द्वारा पढ़ी गई अंतिम पुस्तक के पात्रों को याद करने का प्रयास कर सकते हैं। इसकी तुलना पिछले कुछ दिनों में सामाजिक माध्यमों के हजारों नवीनीकरण (अपडेट) से करें। अनुभव की गुणवत्ता और मात्रा और उनसे प्राप्त आनन्द के बीच का अंतर एकदम भिन्न होगा।
मनोवैज्ञानिक रूप से, किताब पढ़ने से उपलब्धि और संपूर्णता की अनुभूति होती है। यह इंसान को एक आत्मविश्वासी बनाता है। कोई भी बहुत सारी किताबें पढ़कर शेखी बघार सकता है, भले ही वे उत्कृष्ट साहित्य की किताबें न हों।
इसके अलावा, किताबें वहनीय (पोर्टेबल) हैं और किसी के व्यक्तिगत संग्रह के लिए गर्व का कारण बन सकते हैं। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि, जो कोविड के दौरान एक अभ्यास के रूप में शुरू हुआ, अब एक चलन बन गया है।
लोग वीडियो कॉल के दौरान किताबों के सामने मुद्रा ( pose) देना चाहते हैं। अतः, लोग सुशिक्षित दिखने के लिए किताबों की अलमारी को अपनी पृष्ठभूमि के रूप में चुनते हैं और इसलिए विश्वसनीय लगते हैं।
नई दुनिया में, 'अनुबंध' और 'समझौते' जीवन जीने का एक तरीका है। लोगों को "नियम और शर्तों" या फिर सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों और सेवाओं के बीच छिपे हुए बारीक अक्षरों (fine print) को भी पढ़ना है।
"विस्तार पर ध्यान" (Attention to detail) और 'व्यापक पठन' (extensive reading) सफल लोगों की नई विशेषताएँ हैं। अतः, पढ़ने का अभ्यास अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
किताबें पढ़ने से आलोचनात्मक चिंतन और समझ को बढ़ावा मिलता है। ऐसे समय में जब हम पर हर तरफ से सूचनाओं की बौछार हो रही है ।
तब यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि, हम इन उड़ती ख़बरों के माध्यम से छान-बीन करे और साक्ष्य के आधार पर विचारशील तर्क तैयार कर सकें।
व्यापक फर्जी सूचना आजकल का तथ्य है। धार्मिक पाठ और इतिहास को गलत ढंग से पेश करना और उसका गलत अर्थ निकालने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
इन चीजों ने उस समाज में हिंसा और घृणा को भड़काया है जो कभी शांतिपूर्ण था। कुछ लोग बढ़ा चढ़ा कर की गई गलतबयानी को राष्ट्रवाद के वैश्विक उदय का श्रेय देते हैं।
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मनोवैज्ञानिक रूप से, किताब पढ़ने से उपलब्धि और संपूर्णता की अनुभूति होती है
"दुनिया में केवल एक ही चीज अच्छी है, ज्ञान और केवल एक ही चीज बुरी है वो है, अज्ञान।" --- महान दार्शनिक सुकरात
यदि लोगों ने अधिक पढ़ा होता, तो वे इन गुस्सा भड़काने वाली सतही सूचनाओं के साथ नहीं बहते। परिणामस्वरूप, दुनिया में ज्यादातर हुई अशांति की घटनाएं घटित नही होती।
आखिर में, पढ़ना एक लंबे दिन के बाद आराम करने और तनावमुक्त होने का एक शानदार तरीका हो सकता है।
टेलीविजन देखने, चैनलों को अंतहीन रूप से बदलते रहने या सोशल मीडिया के माध्यम से असीमित रूप से स्क्रॉल करने के विपरीत पढ़ने के लिए पूर्ण ध्यान की आवश्यकता होती है। इन्हीं सब कारणों से प्रतिदिन पढ़ना अत्यावश्यक है ।
यदि किताबें पढ़ने वाले लोगों का जीवन उन लोगों की तुलना में अधिक रोमांचक होता है जो, किताबें नही पढ़ते और यदि किसी राष्ट्र की समृद्धि उसके साक्षर नागरिकों पर निर्भर करती है। तो, पढ़ने की आदतों में कमी से नीति निर्माताओं को चिंतित होना चाहिए।
एक राष्ट्र की समृद्धि उसके साक्षर नागरिकों पर निर्भर करती है।
इसके विपरीत, सामाजिक माध्यम और ऑडियो पुस्तकें सुनना बौद्धिक गुणवत्ता में बहुत अधिक उथला और निम्न है।
यह साहित्य की परिवर्तनकारी शक्ति के लिए साहित्यिक पठन के एक राष्ट्रव्यापी पुनर्जागरण को प्रेरित करने और इस परिवर्तन को सभी नागरिकों के जीवन में लाने का समय है।
इन सभी कारणों से, हमें दूसरों को, विशेषकर नई पीढ़ी को अंकीय (डिजिटल) ध्यान भंग करने वाले माध्यमों से दूर रखने और अधिक पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का एक प्रयास करना चाहिए।
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