कोविड के बाद सामान्य स्थिति में लौटना
भारत की चुनौतियां
कोविड के बाद सामान्य स्थिति में लौटना
भारत की चुनौतियां
After India Tames COVID का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
भारत को एक कठिन परिस्थिति से निपटना है। यह अपनी ही तरह की एक दुविधा है। कोविड अब एक पूर्ण विकसित महामारी नहीं है और न ही एक छोटी बीमारी जिसे स्थानीय और निजी अस्पताल प्रबंधित कर सकते हैं।
यह न तो लॉकडाउन में हो सकता है क्योंकि, कम मामलों की जानकारी मिली हैं और ना ही बिना किसी प्रतिबंध के पूरी तरह से खुल सकता हैं, जिससे एक और लहर के जोखिम का खतरा रहता है।
यदि प्रतिबंध बहुत लंबे होंगे तो, एक बड़ी आबादी अक्षम्य गरीबी में चली जाएगी। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाएगी और मंदी जारी रहेगी। कोविड लॉकडाउन से पहले ही, भारतीय अर्थव्यवस्था ठप चल रही थी।
यदि प्रतिबंध बहुत कम हैं तो, संक्रमण का उच्च जोखिम है। बदले में, यह घबराहट पैदा करेगा और फिर से लॉकडाउन को बढ़ावा देगा। पलटाव के निशान महाराष्ट्र और केरल में पहले ही देखे जा चुके हैं।
तो आखिर, भारत पूरी तरह से कैसे पुनरारंभ कर सकता है? अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से खुलने का सही समय क्या है? यह सभी देशों के सामने एक प्रश्न है, और प्रत्येक की अपनी अनोखी कोविड स्थिति है। इसलिए, कोई सटीक अनुभव पर आधारित सूत्र नहीं है।
हालाँकि प्रत्येक देश को अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी होती हैं, और उसे उसी के अनुसार मेल खाना चाहिए। लेकिन पुनः आरंभ करने का आधार कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम करना होगा।
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महामारीविज्ञान (Epidemiology) और विषाणु विज्ञान (Virology) के विज्ञान से विभिन्न गणितीय मापदंड उपलब्ध हैं
अगर भरोसा किया जाए तो आंकड़े भारत के पक्ष में हैं। यूरोप और अमरीका की तुलना में, संक्रमण और मृत्यु दर उल्लेखनीय रूप से कम रही है; इसलिए पुनः आरंभ करने के लिए एक विशिष्ट भारतीय दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
हम रोकथाम को कैसे परिभाषित करते हैं, और सुरक्षित मानदंड क्या है?
महामारीविज्ञान (Epidemiology) और विषाणु विज्ञान (Virology) के विज्ञान से विभिन्न गणितीय मापदंड उपलब्ध हैं। यह वह सीमा रेखा प्रदान करेगा जहां हम देश को पुनः आरंभ करने और सभी प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाने की अनुमति दे सकते हैं।
कुछ इसे * "सामूहिक प्रतिरक्षा" (Herd Immunity) भी कहते हैं। यह सिद्धांत रूप में अन्य सभी संक्रमणों के लिए भी काम कर सकता है, किन्तु, ब्रिटिश सरकार इस दृष्टिकोण के साथ बुरी तरह विफल रही।
भारत के लिए, भौगोलिक, सामाजिक और व्यावसायिक विविधता की अपनी प्रकृति के कारण, किसी अन्य अखंड देश की तुलना में पूरी तरह से पुनः आरंभ करने के लिए एक मार्ग खोजना अधिक जटिल है।
पहला कारण है कि, हम संक्रमितों की वास्तविक संख्या के बारे में नहीं जानते। वर्तमान में, परीक्षण बहुत कम है। दर्ज की गई संख्या उन संक्रमितों की हैं जो अस्पताल गए हैं या फिर यात्रा जैसे किसी विशेष उद्देश्य के लिए जिनकी जाँच हुई हैं।
इसलिए, सांख्यिकीय रूप से, संक्रमण का वास्तविक भौगोलिक या जनसांख्यिकीय वितरण अधिकतर अवैज्ञानिक है। अतः, वक्र बैठाना (Curve fitting) अस्पष्टता में किया गया एक अभ्यास होगा।
वर्तमान में, भारत सहित दुनिया भर की सभी सरकारें इसी स्थिति का सामना कर रही हैं। वे पूरी तरह से टीकाकरण कार्यक्रम की रणनीति पर निर्भर हैं जो, टीकाकरण और टीके के बीच संबंध पर निर्भर करता है और इसलिए वायरस के खिलाफ उनकी आबादी की रक्षा करता है।
इस बीच, जिन लोगों को टीका नहीं लगाया गया है, और यदि वे 14 दिनों तक बिना लक्षणों के है तो, वे कोविड-19 से पूरी तरह से मुक्त हैं। यह व्यापक रूप से समझा जाता है।
ये वे संख्याएँ हैं जिनका उपयोग स्वस्थ जनसंख्या को परिभाषित करने के लिए किया जाता है।
उस हिसाब से अगर कोई मोहल्ला पिछले 14 दिनों से लॉकडाउन में किसी संक्रमण से मुक्त है तो, क्या वह पुनः आरंभ हो सकता है? इसकी एक संभावना, केवल तब है यदि इस द्वीप ने एक एकांत द्वीप की तरह व्यवहार किया होता।
यह मॉडल वह है जिसे भारत को बनाना चाहिए और यह सामूहिक परीक्षण और 100% टीकाकरण से बचने का एकमात्र तरीका है।
संक्रमण के बारे में सच्चाई यह है कि, इसके प्रबंधन में कठिनाई है। सर्वोत्तम संभव परिणाम या सबसे अच्छी स्थिति तब है, जब तक देश को अपना रोगी संख्या 1 पूरी तरह से ठीक नही मिल जाता क्योंकि, तब तक बीमारी के पुनरावर्तन का उच्च जोखिम है।
फिर इसके संस्करण (वैरिएंट) के मामले हैं जो, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से इसकी जटिलता को प्रभावित करते हैं। हमारे पास दक्षिण अफ़्रीकी और ब्राज़ीलियाई संस्करण है जो, पहले से ही यूरोपीय लॉकडाउन और पुनरारंभ को प्रभावित कर रहे हैं।
बड़ा सवाल यह है कि, एक और संक्रमण को रोकने के लिए किसी देश या शहर में कितनी बार और कब तक लॉकडाउन किया जा सकता है?
स्पर्शोन्मुख वाहकों (अलाक्षणिक वाहक) के बारे में हालिया रिपोर्ट घातक है। इसका मतलब है कि, हमारे पास 14 दिनों तक टीकाकरण के बिना आबादी हो सकती है और कोविड वाहक अभी भी हो सकते हैं।
जैसा कि माना जाता है, इससे बचने का एकमात्र तरीका टीकाकरण, सामाजिक दूरी, हाथ की सफाई और चेहरे पर मास्क पहनना है।
हालांकि, यह एक गारंटीकृत (सुनिश्चित) तरीका नहीं है, किंतु, यह जोखिम को कम कर सकता है। हमें यह भी महसूस करना चाहिए कि, टीके पर बहुत अधिक निर्भर रहना विफलता का एक बिंदु बन जाएगा।
मान लीजिए कि, एक छोटे से इलाके में बीमारी का पुनरावर्तन होता है। फिर रणनीति क्या होगी? इसका एकमात्र उत्तर उस जगह को फिर से बंद करना है जैसा कि, अमरावती और पुणे के कुछ हिस्सों में हुआ था।
यदि स्थिति अभी भी नियंत्रण से बाहर होती है तो, हम वापस 22 मार्च 2020 में आ जाएंगे।
सरकार स्थानीय क्षेत्रों, गांवों, शहरों के लिए प्रतिबंधों के चक्र को दोहरा सकती है और यदि आवश्यक हो तो देश के लिए भी जब तब कि, रोगी संख्या 1 पूरी तरह से ठीक न हो जाए।
कोविड-19 संक्रामक रोग के दो भाग हैं- निवारक और उपचारात्मक।
रोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर रही है। हम, मनुष्य के रूप में, लगातार वायरस और बैक्टीरिया के बीच रहते हैं। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता है जो, हमें इनसे बचाती है।
एक औपचारिक रणनीति के तौर पर सामाजिक दूरी, हाथ की स्वच्छता और चेहरे पर मास्क का हमें प्रतिरक्षा बढ़ाने के उपायों के रूप में प्रसारण और अभ्यास करना चाहिए।
एक देश उतना ही मजबूत होता है, जितना उसके नागरिकों की प्रतिरोधक क्षमता। इसका अर्थ भोजन, व्यायाम और जीवन शैली के प्रकारों के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति बनाना भी हो सकता है।
उपचारात्मक पक्ष पर, अच्छी खबर यह है कि, टीके यहाँ हैं, और वह भी कई प्रकार के। हालाँकि, सभी के लिए उनकी उपलब्धता अभी भी एक मुद्दा है, किंतु, यथासमय इसे सुलझा लिया जाएगा।
फिर स्थायी दुष्प्रभावों के बारे में भी संदेह हैं। मध्यवर्ती व्यवस्था में, एकमात्र उम्मीद अब हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (Hydroxy Chloroquine) की प्रभावकारिता और प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के मिश्रण में एंटी-वायरल (Anti-viral) दवाओं पर रहती है।
ये ऐसी दवाएं हैं जो, असामान्य रूप से लंबे समय से उपयोग में हैं। दुष्प्रभाव व्यापक रूप से आबादी को ज्ञात हैं। तो, आश्चर्य का कोई तत्व मौजूद नहीं है।
महामारी में रहते हुए एक साल बाद, लोग सामाजिक दूरी और स्वच्छता के नियमों का पालन करने के आदी हो गए हैं। टीका अपनी भूमिका निभाएगा, जब कभी भी यह सभी के लिए उपलब्ध होगा।
मुझे डर है कि, लॉकडाउन और पुनरारंभ का यह चक्र 2023 तक जारी रहेगा। उम्मीद है कि, प्रत्येक चक्र में इसका प्रभाव कम होगा क्योंकि, लोगों और सरकारों ने पहले ही इसके साथ रहना और इसके आसपास अपना रास्ता खोजना सीख लिया है।
अनुमान लगाना आसान है कि, यह एक लंबी दूरी की यात्रा होने जा रही है।
जैसा कि देश प्रतिबंधों से जूझ रहा है, पहले से ही हम गरीबी के पुनरुत्थान को देखते हैं। देश की आर्थिक व्यवस्था की परीक्षा हो रही है, और हम विफल हो रहे हैं।
लाखों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के सभी बड़े-बड़े दावे गलत साबित हुए हैं। जीवन भर के लिए वित्तीय सुरक्षा की तो बात ही छोड़िए इसके विपरीत जो सामने नज़र आ रहा है वह है एक बड़ी आबादी का संकट, जिसके पास एक सप्ताह से अधिक का वित्तीय भंडार नहीं है।
गरीबी एक मूक हत्यारे की तरह होगी जो, कोविड-19 के पीछे खड़ी होगी। यदि गरीबी को दूर करने के लिए निर्णायक कदम नहीं उठाए गए तो सामाजिक अशांति लॉकडाउन के सकारात्मक पहलुओं को बिगाड़ देगी।
इसके विपरीत भी एक स्थिति है और तथ्य यह है कि, जनता बेचैन है और हताशा में सरकार जोखिम भरे कदम उठा रही है।
अर्थव्यवस्था को पुनः आरंभ करने की आवश्यकता है, किंतु, संक्रमण, प्रतिबंध और परिणामी गरीबी के जोखिम इसके ना शुरू होने की वजहें है।
भारत में बहुसंख्यक लोगों को रोजगार देने वाले छोटे व्यवसायों की परस्पर संबद्धता निराशाजनक उपायों को जोड़ रही है।
यह हमें प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर लाता है। अधिकांश कृषि गतिविधि मौसमी मजदूरों द्वारा की जाती है, जो लाखों की संख्या में बड़े राज्यों में चले जाते हैं।
वर्तमान में, वे फंस गए हैं क्योंकि, राष्ट्रीय परिवहन भी प्रतिबंधित है।
उन्हें कृषि गतिविधि के लिए सही जगह पर ले जाने का मतलब है पूरे रेलवे और परिवहन व्यवस्था को फिर से शुरू करना।
यह एक पेचीदा प्रस्ताव है और फिर से अव्यवस्था और बेकाबू संक्रमण का खतरा है।
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स्पर्शोन्मुख वाहकों (अलाक्षणिक वाहक) के बारे में हालिया रिपोर्ट घातक है
सिंगापुर में संक्रमण की पुनरावृत्ति देखी गई मुख्य रूप से प्रवासी श्रमिकों के शयनगृह के कारण।
यह सब उस समय हुआ जब दुनिया उनके रोकथाम के प्रयासों की सराहना कर रही थी, और फिर कुछ मामलों ने सफलता की कहानी को एक दुखद कहानी में बदल दिया था।
सिंगापुर से मिली सीख यह दर्शाती है कि, भारत को अपने प्रवासी श्रमिकों को कितनी सावधानी से संभालना चाहिए।
इस लॉकडाउन का एक सामाजिक पहलू भी है। कई प्रवासी लॉकडाउन के चलते अपने गांव चले गए हैं। आमतौर पर, घर वापस आने वाले परिवार शहरों में प्रवासी आय से आर्थिक रूप से सहायता प्राप्त करते हैं। उस हालत में यह अचानक बंद हो गया था।
अतः, भारत को कृषि गतिविधि के साथ फिर से शुरुवात करनी चाहिए। यदि महामारी के कारण गरीबी उन्मूलन प्राथमिकता है तो, इसे आसानी से अप्रतिबंधित किया जा सकता है।
* “किसी समाज या समूह के कुछ प्रतिशत लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के माध्यम से किसी संक्रामक रोग के प्रसार को रोकना है।”
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