दुनिया को गरीबों की जरूरत क्यों है?
दुनिया को गरीबों की जरूरत क्यों है?
Why World Needs Poor? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
सभी देशों के पास एक ही एकल बिंदु कार्यसूची (एजेंडा) है कि, वे अपने नागरिकों को अमीर बनाना चाहते हैं। इसका क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि, देश के पास अब गरीब नहीं रहेंगे?
किसी देश के लिए हरेक के अमीर होने का क्या मतलब है? क्या यह किसी देश के लिए संभव है कि, वह सिर्फ अमीरों के साथ काम करें?
ठीक है, हम सभी किसी न किसी प्रकार की आर्थिक समानता चाहते हैं, किन्तु बहुत अधिक समानता, आर्थिक व्यवस्था में निहित घर्षण बल को नष्ट कर देगा जो इसे चलाता है।
अगर सभी अमीर होंगे तो देश आर्थिक अनिश्चितता में फिसल जाएगा। अर्थव्यवस्था सड़क पर टायरों की तरह है, बहुत अधिक घर्षण, रुके हुए वाहन और बहुत कम चलने से अर्थव्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो जाती है।
गरीब की परिभाषा
गरीब और अमीर एक -दूसरे के सापेक्ष हैं। एक देश में कोई अमीर दूसरे अन्य देश में तुलना करने पर गरीब हो सकता है। यहां यह समझना जरूरी है कि, गरीब और गरीबी में क्या अंतर है।
यद्यपि अमीर की तुलना में गरीब एक सापेक्ष पद (relative term) है, गरीबी संसाधनों की कमी और बुनियादी जीवन को बनाए रखने में असमर्थता की सीमा है। यहां हम गरीबों पर चर्चा कर रहे हैं, न कि गरीबी पर और इसपर भी कि, सभी देशों को गरीबों की जरूरत क्यों है।
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गरीब और अमीर एक -दूसरे के सापेक्ष हैं
गरीब लोगों को, अधिक पाने के लिए और अधिक कठिन प्रयास करना होता है। आकांक्षा का एक ऐसा तत्व है, जो गरीबों से जुड़ा हुआ है, जो उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है और लाभ प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
अमीर और गरीब के बीच की असमानता उन अवसरों में अधिक पैसा कमाने का मौका देती है।
उपयोगी गरीब होने के साथ एक और शर्त जुड़ी हुई है। उसे एक 'कौशल' के साथ योग्य होना चाहिए जो अमीरों के लिए उपयोगी हो। उस कौशल को प्राप्त करने में विफलता, अमीरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के अवसर को अक्षम कर देगी।
गरीबों के शोषण से वैश्विक अर्थव्यवस्था कैसे चलती है?
मान लीजिए कि किसी देश में सभी अमीर हैं, तो कौन खाना बनाएगा, उनकी कारें चलाएगा, उनकी हवेलियों को साफ करेगा, बगीचों की देखभाल करेगा, दैनिक जरूरतों और कूरियर सामान बेचने के लिए बही -खाते की मशीन के पीछे बैठेगा।
हालांकि यह एक विस्तृत सूची नहीं है, लेकिन ये आवश्यक सेवाएं हैं, जो अमीरों को अपने दैनिक जीवन को चलाने के लिए आवश्यक हैं। आर्थिक दृष्टि से, ये निम्न-स्तर की नौकरियां हैं, जो अमीर नहीं करेंगे।
चूंकि वह यह नहीं करेंगे तो, किसी के लिए यह उत्तरदायित्व उठाने का एक अवसर है।
इन सेवाओं को करने के लिए गरीबों को कितना भुगतान किया जाएगा यह किसी दिए गए गुणवत्ता की मांग और आपूर्ति का मामला है।
एक आया की तनख्वाह आमतौर पर बच्चे की देखभाल करने वाली (Babysitter) से अधिक होती है। लेकिन निश्चित रूप से, आया नियोक्ता (Employer) की तरह अमीर नहीं हो सकती।
कौशल समूहों के एक बड़े बाजार में, जहां आपूर्ति अधिक है, गरीबों को अवसर तो मिलते हैं , लेकिन उन्हें कम भुगतान किया जाता है। सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से इसका अर्थ 'शोषण' हो सकता है।
यह अपरिहार्य है, क्योंकि इस तरह की नौकरियों के अधिकतर मामलों में लाभ को उच्चतम सीमा तक ले जाने के लिए अमीरों को यह इन्हें आउटसोर्स (Outsource) (बाहरी स्रोत से सेवाएँ प्राप्त करना) करने के लिए प्रेरित करता है।
काफी हद तक यही वर्तमान मॉडल है, जिस पर आज विश्व फल-फूल रहा है। चीन निर्माण केंद्रस्थल (manufacturing hub) है, जो कड़ी मेहनत कर रहा है।
प्रधान झंडों के निर्माण से लेकर उच्च प्रौद्योगिकी दूरसंचार इलेक्ट्रॉनिक्स तक, चीनी अपने प्राकृतिक संसाधनों और अपनी गरीब आबादी का उपयोग करते हैं। हालांकि एक अवधि में, उन गरीबों ने पैसा कमाया और आर्थिक प्रगति कर आगे बढ़ गए।
अमीर देशों का एक समान आउटसोर्सिंग मॉडल, मेक्सिको, ग्वाटेमाला के लिए और मुख्य रूप से अमेरिका और कनाडा के लिए लागू होता है। भारत, बांग्लादेश, मिस्र और श्रीलंका दुनिया भर में अमीर देशों की सेवा करने वाले गरीब व्यक्ति हैं।
चाहे वह बदबूदार चमड़े के कारख़ाने हों, भीड़-भाड़ वाली कपड़ा फैक्ट्रियाँ हों, चाय की पत्तियों को तोड़ने वाले मजदूर हों या कपास की बुनाई, अमीर देश सेवाओं के, नियोक्ता और खरीदार हैं। अमीर इन सेवाओं का उपयोग करने में लागत-लाभ देखते हैं।
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आकांक्षा का एक ऐसा तत्व है, जो गरीबों से जुड़ा हुआ है, जो उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है
विडंबना यह है कि, समान कार्य अपने ही देश के नागरिकों द्वारा किया जाता था, किन्तु अधिक कीमत पर, जो अब आउटसोर्स हो गया है। यूनाइटेड किंगडम का मैनचेस्टर कपड़ा निर्माण का केंद्र था, और ऐसा ही शेफील्ड, इस्पात के कारखाने के लिए था।
अमेरिका में पिट्सबर्ग देश का ढलाई घर (धातु या शीशे को गलाकर विभिन्न वस्तुएँ गढ़ने का कारख़ाना) था, जिसे अब चीन को आउटसोर्स किया गया है।
वर्तमान में, साथी नागरिक काम से बाहर हैं और उन्हें अपने ही देश में गरीब बना रहे हैं। सबसे गरीब को ढूँढ़कर उसे सबसे सस्ता करने का यह चक्र अमेरिका, यूरोप और मुख्य रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में चल रहा है।
वैश्वीकरण, काम के स्थान की चिंता किये बिना , लाभ को अधिकतम करने के लिए सस्ते अवसरों की खोज के साथ काम करता है।
एक उपयुक्त उदाहरण, जो विकासशील देशों को शामिल करते हुए वैश्वीकरण मॉडल को सरल बनाता है, वह है, कपड़ों की कहानी। विकसित देशों में बेचे जाने वाले सभी प्रमुख ब्रांड चीन, भारत, बांग्लादेश, कंबोडिया, फिलीपींस और श्रीलंका में बने हैं।
अमीर नियोक्ताओं को अपने उत्पादों पर जो मार्कअप (मूल्य वृद्धि) मिलता है, वह सौ गुना तक हो सकता है। यदि यह महिलाओं के हैंडबैग या जूते जैसी लक्जरी वस्तु है, तो मार्कअप (मूल्य वृद्धि) बड़ी तेजी से हजार गुना तक बढ़ जाता है।
इसका अच्छा पहलू देखे तो, यदि उन अमीरों ने शोषण नहीं किया होता, तो गरीबों को बड़ी मिठाई के उस छोटे से हिस्से तक को भी पाने का अवसर नहीं मिलता।
अमीरी के ट्रिकल-डाउन इफ़ेक्ट (अमीरों से गरीबों की ओर धन प्रवाह) का चीन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसने लगभग 80 करोड़ लोगों को गरीबी के चंगुल से बाहर निकाला है।
प्राकृतिक साझेदार के रूप में, अमीर और गरीब दोनों को साथ-साथ मौजूद रहना है, जैसा कि, समग्र तस्वीर में देखा जा सकता है।
जब अमीर (अपेक्षाकृत) देशों को पता चलता है कि, उनका अपना महंगा है और कहीं और सस्ता है, तो वे अपने ठिकानों को स्थानांतरित कर देते हैं।
जिन सेवाओं को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है, उनके लिए अमीर देश, गरीबों को बाहर से आयात करते हैं। वे गरीबों को बेहतरीन कौशल प्रदान करने के लिए विंडरश, (WindRush) एच1बी जैसे कार्यक्रम चलाते हैं।
यूरोपीय संघ ने 2010 में रोमानिया और बुल्गारिया के लिए दरवाजे खोले। ये यूरोपीय संघ के दो सबसे गरीब देश थे। इससे पहले, यह पोलैंड था, जिसे संघ में अनुमति दी गई थी।
इस कदम से ब्रिटेन में आने वाले गरीबों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ और वे सस्ते में नौकरी करने लगे। इसके साथ ही यह ऐसे काम थे, जिनका उत्तरदायित्व लेने से अंग्रेज बहुत ज्यादा आत्मसंतुष्ट थे।
मैक्सिकन और लैटिन अमेरिकी प्रवासी श्रमिक,अमेरिका के विषम रोजगार बाजार की रीढ़ की हड्डी हैं। नौकरी की परिभाषा का पैमाना इतना बड़ा है कि, यह प्रवासी रूढ़िबद्ध धारणा की इन नौकरियों के साथ बदनाम होकर रह गए है।
गरीब-अमीर सहजीवन के साथ-साथ ऐसी कहानियां भी सामने आयी है, जिसमें फटे पुराने वस्त्रों में रहने वाले लोग अपार धन -संपत्ति में खेलने लगे। हमने यह ज्यादातर अमेरिका और चीन में देखा है, जब गरीबों ने सबसे अच्छा अमीर क्लब बनाया है।
बीजिंग ने अपने देश में अधिक अरबपति होने से न्यूयॉर्क को इस प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ दिया है।
लंदन आर्थिक रूप से गरीब प्रवासियों का शहर है, जो सेवाओं के लिए अत्यधिक बढ़ी हुई कीमतों को भुनाने के लिए एक झुंड में आते हैं।
वहाँ शेष यूरोप और एशिया से भी प्रवासी हैं। यही बात न्यूयॉर्क और लॉस एंजिल्स पर भी लागू होती है। पूरा मध्य पूर्व गरीब मजदूरों द्वारा बनाया गया है, मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि द्वारा।
भारतीय प्रतिभा पलायन एक गरीब का अमीर क्लब में दाखिल होने का विशिष्ट उदाहरण है । भारतीय शिक्षा प्रणाली ने पिछले 70 विषम वर्षों में उत्कृष्ट विज्ञान विशेषज्ञ पैदा किए थे।
अतः बिना किसी हिचकिचाहट के, अवसरों का लाभ उठाया गया। अमेरिका वह गंतव्य स्थान था, जहां एक कम आय वाले परिवार के महत्वाकांक्षी बच्चे को, अपने सपनों को पंख देने का मौका मिला।
अमेरिकी उद्योगतंत्र पटल भारतीयों से भरा हुआ है जो, इसे अपने ही देश की तरह चला रहे है। जो कभी गरीब थे, अब वे अमेरिका के अमीरों में से हैं। यह चक्र चलता रहता है।
तो वह क्या है जो, गरीबों को देश के लिए इतना महत्वपूर्ण बनाता है?
घरेलू प्रवास
देश के भीतर, असमानता आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है। जनसंख्या कम कमाई वाले स्थानों से अधिक उपयुक्त स्थानों की ओर बढ़ती है। प्रवासी मजदूर भिन्न मौसम में अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
यह अजीबोग़रीब प्रकृति है जो, सभी देशों में व्याप्त है। लोग विचित्र कामों के लिए बड़े शहरों में जाते हैं और उन कामों के लिए वहाँ उन्हें अधिक भुगतान किया जाता है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि, यह अजीबोग़रीब प्रकृति विकासशील देशों के शहरों पर लागू नहीं होती है।
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देश के भीतर, असमानता आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है
बीजिंग, नई दिल्ली, इस्तांबुल, मुंबई, जकार्ता आदि घरेलू प्रवास के लिए गंतव्य स्थान हैं। इन शहरों में अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रवासियों की बाढ़ आ जाती है जो समृद्ध शहरों के (तथाकथित) कम वेतन वाली नौकरी के प्रोफाइल का समर्थन करते हैं।
मुंबई में शहर की आधी से ज्यादा आबादी प्रवासी है। कई लोगों ने मुंबई को अपना घर बना लिया है, क्योंकि कई पीढ़ियों ने इसके गतिशील और लचीले कारोबारी माहौल में आजीविका पाई है।
गरीबी से अमीरी तक पहुँचने की कहानियां हर गली मुहल्ले में सुनने को मिल जाती हैं और असमानता को पार करने की यह यात्रा कई और लोगों के लिए प्रेरणादायक है।
जैसा कि इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि, एक सामान्य कड़ी को काम करने की ऐसी कठिन स्थिति में डाला गया है,जहाँ वह काम की परिस्थितियों के बारे में शिकायत किए बिना कड़ी मेहनत कर रहा है।
यह एक बेहतर जीवन की तलाश है जो, उन्हें कठोर परिश्रमी बनाती है और वे मुख्य रूप से उन लोगों से प्रेरित होते है, जिनके लिए वे (नियोक्ता) काम करते हैं।
कड़ी मेहनत करने में बिताए गए हर मिनट में इन लोगों के लिए अधिक कमाई करने और अपने घरों का भरण -पोषण करने की खुशी है।
तो, एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के अंदर कितनी गरीब आबादी की जरूरत होती है?
एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए बहुत सारे गरीबों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक कार्य जिसे आउटसोर्स किया जाता है, उसे करने के लिए बहुत से लोग होने चाहिए।
यह पैसे को प्रसारित करेगा और अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाएगा। इस निर्णय में कोई भी विचार करने की आवश्यकता नही कि, सस्ती सेवाएं गरीबों को अधिक रोजगार योग्य बनाती हैं।
भारत में अमेरिका और यूरोप की तुलना में कहीं अधिक व्यक्तिगत ड्राइवर हैं। अमेरिका और यूरोप की तुलना में मध्य-पूर्व में कहीं अधिक गृहसेविकाएं (नौकरानियाँ) हैं। कौशल आसानी से उपलब्ध है और किराए पर लेने पर यह सस्ता है। अमीर अनेक प्रकार के छोटे कामों के लिए गरीबों को रखने का खर्चा वहन कर सकते हैं ।
वह इनपर लगने वाले प्रयासों के समय को बचा बचाकर अपना ध्यान केवल मूल्य वर्धित कार्यों में केंद्रित कर सकते है। डीवाईआई (DYI ) (इसे स्वयं करें) का दायरा राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और उत्पादकता को खत्म करता है ।
अमीर देश इसके परिणाम भुगत रहे हैं किन्तु, इसके बावजूद वे अपने डीवाईआई (DYI) कौशल पर गर्व करते है।
गरीबों के शोषण को सीमित करना समाज कल्याण शासन पर निर्भर है। औपनिवेशिक काल में गुलाम और बंधुआ मजदूर हुआ करते थे। यह कुछ ऐसा है, जो आज के समय में कोई नहीं चाहता।
किन्तु दूसरी ओर, कोई भी नियमित और अकुशल नौकरी के लिए भाग्य का भुगतान नहीं करना चाहता है।
यदि समाज और देश, सामान्य रूप से, मानवाधिकारों का सम्मान कर सकते हैं और काम करने की अच्छी स्थिति प्रदान कर सकते हैं, तो देश में गरीब होना अर्थव्यवस्था के लिए काम करता है। विशेष रूप से, दुनिया के सबसे अमीर लोगों की तुलना में हम सभी गरीब हैं।
क़ामयाब गरीब
जैसा कि उदाहरणों ने प्रदर्शित किया है अमीर, गरीबों को भुगतान करने को तैयार है , जिसने कई देशों की किस्मत बदली है।
चीन और भारत दो ऐसे प्रतीक है, जिन्होंने, अपने कौशल का उपयोग करके अमीर देशों में सेवाएं दी और अपनी आबादी के एक विशाल हिस्से को गरीबी से बाहर निकाला ।
विकसित और विकासशील देशों के बीच असमानता ने चीन और भारत को एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था में बदल दिया है। चीन में कुल मिलाकर पूरे यूरोप की तुलना में अधिक अरबपति हैं।
चीन और अमेरिका के बाद भारत में अरबपतियों की दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी है। यह सब पिछले 70 साल की मेहनत का नतीजा है।
जबकि, इन तथाकथित गरीब देशों ने अपनी सेवाओं का निर्यात करके बहुत कमाई की है और इसे उन्होंने अपनी भलाई के लिए इस्तेमाल किया है।
उन्होंने अपने देश को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में निर्मित किया है। उन्होंने कई क्षेत्रों में विश्व नेता बनने के अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाया है।
चीन के पास तीव्र गति के रेलवे का सबसे बड़ा नेटवर्क है और अब वह उस विशेषज्ञता को दुनिया के बाकी हिस्सों में निर्यात कर रहा है। इसने एक विश्व नेता के रूप में परमाणु ऊर्जा उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक्स में अपनी विशेषज्ञता विकसित की है।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, दवा निर्माण और सूचना प्रौद्योगिकी कौशल विकसित देशों के लिए ईर्ष्या का कारण हैं। इन सभी को पिछले 70 वर्षों में केवल अमीर देशों से प्राप्त आय के कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग के उपयोग से प्राप्त किया गया है।
पोलैंड एक और मामला है, जहां, उसने अपने मजबूत विनिर्माण और सेवा गंतव्य को स्थापित करने के लिए समृद्ध यूरोपीय देशों से कमाई का प्रभावी ढंग से उपयोग किया है।
हालाँकि, यही समान विकल्प मेक्सिको के लिए अच्छा नहीं रहा है। बाद की सरकारें इसमें विफल रही हैं और देश नशीले पदार्थों और गरीबी की समस्याओं में गहरा धँस गया है।
गरीब देशों की सफलता उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व में निहित है और इस पर भी कि वे इन अवसरों को अपने देशवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किस प्रकार रूपांतरित करते हैं।
जैसा कि पहले कहा गया था , गरीब और अमीर एक-दूसरे के सापेक्ष हैं। अर्थशास्त्र का चक्र तेजी से मुड़ता है और लोगों के जीवनकाल के भीतर ही हम परिवर्तन देख सकते हैं।
वास्तव में, प्रगतिशील अमीरों को सफलतापूर्वक चलाने के लिए दुनिया को अनिवार्य रूप से अच्छी गुणवत्ता वाले गरीबों की जरूरत है।
अतः एक के बिना दूसरा जीवित नहीं रह सकता।
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