78 साल का अतुल्य भारत: परिवर्तन का संक्षिप्त इतिहास
78 साल का अतुल्य भारत: परिवर्तन का संक्षिप्त इतिहास
Incredible India at 78: A Brief History of Transformation का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
15 अगस्त 2024 को, जब एक्सपर्टएक्स, 78 वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है तो वह, 1947 से लेकर अब तक की, भारत की यात्रा के बारे में भी बात करने जा रहा है।
ये जश्न मनाने और यह समझने का भी अवसर है कि, भारत का परिवर्तन इस समय के दौरान कितना उल्लेखनीय रहा है।
इसलिए, यहां उदाहरण के तौर पर उन देशों की सूची दी गई है, जिन्होंने 1930 के दशक से लेकर 1950 के अंत तक औपनिवेशिक शक्तियों से स्वतंत्रता प्राप्त की थी:
1930 का दशक:
इराक (ब्रिटेन से) - 1932
सऊदी अरब (एकीकरण और स्वतंत्रता) – 1932
1940 का दशक:
लेबनान (फ्रांस से) - 1943
सीरिया (फ्रांस से) - 1946
जॉर्डन (ब्रिटेन से) - 1946
फिलीपींस ( अमेरिका से) - 1946
भारत (ब्रिटेन से) - 1947
पाकिस्तान (ब्रिटेन से) - 1947
बर्मा (म्यांमार) (ब्रिटेन से) - 1948
श्रीलंका (सीलोन) (ब्रिटेन से) - 1948
इजराइल ( ब्रिटेन जनादेश से) - 1948
दक्षिण कोरिया (जापान से) - 1948
उत्तर कोरिया (जापान से) - 1948
इंडोनेशिया (नीदरलैंड से) - 1949
1950 का दशक:
लीबिया ( संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद से ) - 1951
कंबोडिया (फ्रांस से) - 1953
लाओस (फ्रांस से) - 1953
वियतनाम (फ्रांस से) - 1954
सूडान (ब्रिटेन और मिस्र से) - 1956
मोरक्को (फ्रांस और स्पेन से) - 1956
ट्यूनीशिया (फ्रांस से) - 1956
घाना (ब्रिटेन से) - 1957
मलेशिया (मलय संघ) (ब्रिटेन से) - 1957
गिनी (फ्रांस से) - 1958
इन सभी देशों के विपरीत तुलना करने पर हम पाते हैं कि, भारत ने अभूतपूर्व प्रगति की है। इस प्रगति के कई कारण हैं।
जैसे कि, भारत के छह ऐसे तत्व हैं, जो पिछले 78 वर्षों में भारत के विकास की कहानी, आकांक्षाओं और प्रगति को व्यापक रूप से चित्रित कर सकते हैं।
भारत, आर्थिक रूप से, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और राजनीतिक रूप से एक बहुआयामी देश के रूप में विकसित हुआ है और इसकी रक्षा क्षमताएं भी असाधारण हैं।
यह इसकी एक महत्वपूर्ण प्रगति है और केवल इस बात को रेखांकित करती है कि, एक राष्ट्र अपने भारतीय मूल्यों और परंपराओं से जुड़े रहते हुए भी कितना आगे बढ़ गया है।
तो, इसका पहला तत्व है, अर्थशास्त्र। जिसका एक सबसे अच्छा उदाहरण है कि, आज भारत अपने कृषि संघर्षों से उभरकर, कृषि के क्षेत्र में वैश्विक महाशक्ति बन गया है।
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भारत, आर्थिक रूप से, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और राजनीतिक रूप से एक बहुआयामी देश के रूप में विकसित हुआ है
1947 से, जिस वक्त भारत औपनिवेशिक शासन की लंबी छाया से बाहर निकला था, तब से ही यह मुख्य रूप से कृषि अर्थव्यवस्था ही रहा है किंतु, जिसका औद्योगिक आधार बहुत कमज़ोर था और यह एक कुटीर उद्योग से ज़्यादा कुछ नहीं था।
उस समय, कृषि के अंदर 70% आबादी काम करती थी, जो अकुशलता, कम उत्पादकता, मानसून पर अत्यधिक निर्भरता से ग्रस्त थी और समाज में ग़रीबी व्याप्त थी ।
आज, हालांकि, भारत का कृषि मार्ग बहुत अधिक मजबूत और लचीला है, और यह अतिरिक्त खाद्यान्न भी पैदा कर रहा है।
तो इस तरह भारत न केवल अपनी आबादी को खिला रहा है, इसका उपभोग कर रहा है, बल्कि भारत उन्हें जहाँ भी आवश्यक हो निर्यात करने में भी सक्षम है।
1950 में, भारत का कुल अनाज उत्पादन लगभग 50 लाख टन था, और 2023 में, यह लगभग 325 लाख टन था, जो कि छह गुना अधिक है।
आज भारत जीडीपी (GDP) के मामले में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसकी सेवाएं जीडीपी में 54% का योगदान देती हैं।
भारत ने अपने आर्थिक आधार का, उद्योग, कृषि और सेवाओं में विविधीकरण कर दिया है, जो कि आसान नहीं है।
इसका विदेशी मुद्रा भंडार (foreign reserves) 600 बिलियन डॉलर से अधिक है और यह इसकी आर्थिक नीति की ताकत दर्शाती है।
भारत की आर्थिक नीति, विवेक की नीति, बचत की नीति और व्यय की नीति, की बारीकी से जांच की जाती है, चाहे सरकार कोई भी हो। इस नीति ने देश को बाहरी झटकों से सफलतापूर्वक निपटने में सक्षम बनाया है।
चाहे वह 1990 के दशक के अंत में *एशियाई टाइगर्स (Asian tigers) का वित्तीय संकट हो, 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट हो या कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक व्यवधान हों, भारतीय अर्थव्यवस्था उन परिस्थियों में भी लचीली ही बनी रही।
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सड़कों, रेलमार्गों और हवाई अड्डों का एक विस्तृत नेटवर्क विकसित किया है, जो दुनिया में सबसे बड़ा है और देश भर में पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक, बिना किसी रुकावट की आपस में इनकी कनेक्टिविटी है।
भारत ने 50,000 किलोमीटर से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग बनाए हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर में मेट्रो रेल प्रणाली (metro rail systems) विश्व स्तरीय है। जिस तरह के यातायात साधनों को वे उपयोग में लाते हैं, वे दुनिया के किसी भी देश से पीछे नहीं है।
अनुकूलन (Adaptation) सिद्धान्त के एक विशेष चरित्र के रूप में, भारतीयों ने डिजिटल प्रौद्योगिकी से लेकर मोबाइल प्रौद्योगिकी तक को अपनाया है , और वर्तमान में देश में 70 करोड़ इंटरनेट के उपयोगकर्ता हैं।
इस तरह यह दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट बाजारों में से एक है।
एक *आलोचनात्मक अवलोकन (critical observation) के द्वारा, भारतीय अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने समय का उपयोग किया है संकट की स्थिति को उलटने के लिए और देश की आवश्यकताओं को समझने के लिए अपनी सर्वोत्तम आर्थिक सूझ-बूझ का उपयोग किया है।
1991 तक भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था की असल मजबूती और बुनियादी ढांचे को कमोबेश विकसित कर लिया था, जिसके आधार पर एक खुली अर्थव्यवस्था की शक्ति का शुभारंभ किया जा सकता था।
1991 के बाद, जब देश ने आर्थिक सुधार को होते देखा और अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया गया, तो इससे उद्यमों के वैश्विक बाजारों के दरवाजे खुल गए, और यहीं वह समय था जब महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत हुई और लाखों भारतीयों की संभावित उद्यमशीलता अस्तित्व में आई।
इसका दूसरा तत्व है, शिक्षा, जो 1947 से आजतक की अपनी यात्रा में, जब उसकी ज्ञान तक केवल सीमित पहुंच थी,आज वर्तमान में ज्ञान महाशक्ति बन गई है।
स्वतंत्रता के समय, निरक्षरता दर 80% से अधिक थी, और आज, भारत ने उन दयनीय आँकड़ों को उलट दिया है। आज, साक्षरता दर 80% से अधिक है।
1947 में आज़ादी मिलने पर, अपनी यात्रा के शुरुआत से ही भारत के नेताओं ने, सभी राजनीतिक वर्गों की परवाह किए बिना, शिक्षा को राष्ट्र निर्माण के साधन के रूप में प्राथमिकता दी, और इसने आने वाले समय में नाटकीय परिवर्तन के लिए मंच तैयार कर दिया।
वर्ष 2009 में, शिक्षा का अधिकार (Right to education) अधिनियम लागू हुआ था, किंतु, संसद के उस अधिनियम से पहले भी, भारत की सड़कों पर सुबह-सुबह घूमने वाला कोई भी व्यक्ति, सभी आर्थिक वर्गों से आने वाले हर आयु वर्ग के बच्चे को उतावलेपन से उनके स्कूल की ओर दौड़ते हुए देखता था।
उनके माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने या लंच बॉक्स पैक करने का काम करते हैं, जो उनके गुमनाम समर्पण को दर्शाता है, यह सुनिश्चित करने कर लिए कि उनके बच्चों को सही शिक्षा मिले।
भारत के भविष्य यानि भारत के वर्दीधारी बच्चों को शिक्षा की चाह में स्कूल जाते हुए देखना एक शानदार नजारा है, जिसकी प्रेरणा केवल भारत द्वारा अपनाई गई शिक्षा नीति से ही मिल सकती है।
देश के शहरों और गांवों में जगह - जगह पर 1000 से ज़्यादा विश्वविद्यालय और 40,000 कॉलेज हैं। इस तरह यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है।
हर साल 3.5 लाख छात्र, आईआईटी (IITs) और आईआईएम (IIMs) समेत विभिन्न संस्थानों में दाखिला लेते हैं। ये विश्वस्तरीय प्रमुख संस्थान हैं और शिक्षा और शोध में अपनी उत्कृष्टता के लिए उन्होंने दुनिया भर में मान्यता हासिल की है।
इसकी राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी और विशाल मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम (Massive open-line courses) निःशुल्क हैं।
यह देश के किसी भी कोने से लाखों छात्रों को अच्छी गुणवत्ता वाली और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करता है। डिजिटल इंडिया ने ई-लर्निंग
(E- learning ) के प्रसार को भी आसान कर दिया है।
ये सारी चीजें भारत के संकल्प को दर्शाते हैं कि वह अपनी पूरी जनसंख्या यानी अरबों की आबादी को शिक्षित करेगा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बीज और तर्क की शक्ति को शिक्षा में आत्मसात करेगा।
इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत एक वैश्विक ज्ञान शक्ति समूह (Global knowledge power bloc) के रूप में उभरा है और महत्वपूर्ण ढंग से अनुसंधान और विकास में अपना योगदान दे रहा है।
वास्तव में, यह कहना गलत नहीं होगा कि *वैज्ञानिक प्रकाशनों (scientific publications) को प्रकाशित करने की संख्या के मामले में, भारतीय, विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर हैं, चाहे वे भारत में हों या भारत के बाहर।
साइकिल क्रांति (bicycle revolution) या *मध्याह्न भोजन योजनाओं द्वारा बालिका शिक्षा को सक्षम बनाने पर जोर देने की पहलें किसी से पीछे नहीं है।
किसी अन्य विकसित देश में इस तरह के *सकारात्मक भेदभाव (positive discrimination) और सहायता प्रणालियां शायद ही कभी देखने को मिलती है।
इसलिए, निस्संदेह, भारत के शिक्षित होने की आकांक्षा और शिक्षा नीति, सभी भारतीयों के लिए अत्यधिक गर्व का प्रथम कारण रही है। शिक्षा प्रणाली, अपने देश की नियति को आकार देने वाली परिवर्तनकारी शक्ति का स्रोत रही है।
तीसरा तत्व है विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मानसिकता। भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी है और इसके पास आईआईटी (IITs), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स),(All India Institute of Medical Sciences) ,
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) (Indian Council for Agricultural Research), परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)
(Council for Scientific and Industrial Research) , राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (एनएसएम) (National Supercomputing Mission), मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएससी) (Human Spaceflight Centre),
*अटल नवाचार मिशन (एआईएम) (Atal Innovation Mission), डिजिलॉकर और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (DigiLocker and the Indian Space Research Organisation), जैसे कुछ प्रतिष्ठित संस्थान हैं।
ये इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए विख्यात केंद्र हैं, 1950 के दशक से ही ये विश्व की ईर्ष्या का कारण बनकर प्रगति कर रहे हैं।
भारत जितना संभव हो सके उतनी ही कम लागत पर रॉकेट और मिसाइलें प्रक्षेपित कर रहा है , चाहे वह मार्स ऑर्बिटर मिशन हो (Mars Orbiter mission) , मंगलयान (Mangalyaan) हो,
चंद्रयान (Chandrayaan) हो या इसरो की इन्सैट उपग्रह श्रृंखला हो (ISRO INSATS series of satellites) । ये उल्लेखनीय सफलता का एक चित्र हैं, और भारत पिछले 78 वर्षों से, इस सफलता को कदम दर कदम आगे बढ़ा रहा है।
भारत, दुनिया की आईटी सूचना प्रौद्योगिकी राजधानी है और इसका सॉफ्टवेयर उद्योग, 15000 करोड़ डॉलर की वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
भारत ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (Tata Consultancy services), इंफोसिस (Infosys), विप्रो (Wipro), टेकएम (Tech M ) और कई अन्य दिग्गज कंपनियों को बनाया है।
ये सभी कंपनियां वैश्विक खिलाड़ी हैं जो लाखों लोगों को रोजगार दे रही हैं। इन सभी बड़ी कंपनियों की वजह से ही इनकी ऐसी कई शाखाएं हैं जो भारत में लाखों लोगों को और दुनिया भर में भी लाखों भारतीयों को रोजगार दे रही हैं।
जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) एक ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, और विशेष रूप से, यह कोविड-19 महामारी के दौरान गर्व से दिखाई दिया जब भारत वैश्विक टीकाकरण उत्पादन में अग्रणी रहा था।
भारत दुनिया भर में कोविड के टीकों की लाखों खुराकें निर्यात कर रहा है।
आज भारत जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देश है और यह टीकों और जेनेरिक दवाओं की वैश्विक मांग का 50% उत्पादन करता है। कल्पना करें कि क्या 78 साल पहले यह संभव था।
परमाणु ऊर्जा, दूरसंचार और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत 2030 तक 450 गीगावाट (Gigawatts) नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) का
उत्पादन करेगा और जिस गति से भारत इस प्रौद्योगिकियों के कार्यान्वन में प्रगति कर रहा है, मुमकिन है कि, वह इस लक्ष्य को उस तारीख से बहुत पहले ही प्राप्त कर लेगा।
यह सब इसके वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और निश्चित रूप से इसके नीति निर्माताओं की कड़ी मेहनत और निष्ठा का ही परिणाम है, जो इसके वैश्विक नेता बनने की दूरदर्शिता का एक साक्ष्य है।
चौथा तत्व है भारतीय सशस्त्र बल। 1947 में भारत एक कमजोर देश था और आज यह एक सामरिक ताकत है।
सभी वैश्विक शक्तियां भारत को अपनी साझेदारी में शामिल करना चाहती हैं, चाहे वह रूसी गठबंधन हो या अमेरिकी गठबंधन।
भारत एक ऐसा रणनीतिक साझेदार है जो सबका पसंदीदा है और ऐसा इसलिए क्योंकि यह 20 लाख भारतीय सैनिकों के इतिहास पर आधारित है, जिन्होंने अपनी बहादुरी, पराक्रम और गौरव के साथ प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय मूल्यों का प्रमाण प्रस्तुत किया है।
औपनिवेशिक भारत ने ब्रिटिश झंडे के नीचे लड़ाई लड़ी। भारतीय सैनिकों ने भी आज़ाद हिंद फ़ौज के रूप में लड़ाई लड़ी, और इन सैनिकों का ट्रैक रिकॉर्ड (पिछला प्रदर्शन), चाहे उनकी वफादारी किसी भी पक्ष की तरफ हो, बेदाग रही है और ऐसा ही है।
1947 के बाद से कई युद्ध हुए हैं, जिसमें कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान युद्ध भी शामिल है, जिसमें भारतीय सेना कश्मीरियों के अधिकारों की रक्षा करने में सफल रही।
यहां पर चीन द्वारा भारत के साथ किए गए विश्वासघात और पंचशील समझौते (Panchsheel agreement) का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है।
लेकिन 1962 के धोखे के बाद सेना द्वारा शीघ्र ही सबक सीख लिए गए, और वे 1965 में पाकिस्तान के आक्रमण को कुचलने वाली तथा 1971 में बांग्लादेश बनाने वाली सैन्य शक्ति बन गए।
आज, भारतीय सशस्त्र बल विश्व में दूसरा सबसे बड़ा सशस्त्र बल हैं और इसमें 14 लाख सक्रिय जवान और अधिकारी हैं जो लगभग 15,000 किलोमीटर भूमि
सीमा और 7,500 किलोमीटर समुद्र तट की रक्षा कर रहे हैं, चाहे वह हिमालय का कठोर, ठंडा इलाका हो ,दक्षिण में अशांत समुद्र हों या पश्चिम में तपते रेगिस्तान। या फिर पूर्वोत्तर के अभेद्य इलाके हों ।
1974 में पोखरण 1 और 1998 में पोखरण 2 जैसे परमाणु परीक्षणों के साथ, भारत ने खुद को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया है, और इसने दुनिया यह भी दिखाया है कि वह किसी भी बाहरी खतरे के खिलाफ अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम है।
भारत अपनी ताकत के लिए परमाणु नीति के मूल सिद्धांत का भी उपयोग करता है, जो *"पहले प्रयोग नहीं" (No first use) पर आधारित है, और इसलिए,
भारत एक विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध (credible minimum deterrence) बनाए रखना जारी रखता है, जो जिम्मेदार परमाणु प्रबंधन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
दुनिया भर में इस बात का सम्मान किया जाता है कि भारत ने किसी भी देश को परमाणु हथियारों की धमकी नहीं दी है।
भारत ने तेजस (Tejas ) जैसा स्वदेशी लड़ाकू विमान विकसित किया हैं, तथा उसके पास अग्नि, नाग, ब्रह्मोस और पृथ्वी जैसी अनेक उन्नत मिसाइल प्रणालियां हैं, जिनमें से अनेक परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं।
आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है और इसके बेड़े में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी (nuclear-powered submarine) भी है, जिसकी कल्पना क्या 78 साल पहले की जा सकती थी।
वर्तमान में, भारत एक वांछित रणनीतिक साझेदार है । अमेरिका, रूस, फ्रांस और इज़राइल जैसी शक्तिशाली सैन्य शक्तियाँ भारत के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करना चाहती हैं।
वे उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के उद्यमों में भारत के साथ साझेदारी करने के अवसर तलाश रहे हैं।
रक्षा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड गठबंधन ( Quad alliance ), विश्व सुरक्षा और क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रमाण है।
इस तरह से, भारत की सैन्य ताकत ने कूटनीतिक प्रयासों के साथ मिलकर देश को, वैश्विक सुरक्षा ढांचे में, एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर दिया है, और यह एक शानदार उपलब्ध है।
1940 और 50 के दशक के आसपास स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले किसी भी देश के लिए भारतीय प्रगति अत्यधिक प्रभावशाली है।
पांचवां तत्व है राजनीतिक विकास । 1947 में भारत एक नवजात लोकतंत्र था, किंतु, 78 साल बाद, इसकी लोकतांत्रिक प्रणाली दुनिया भर में एक मिसाल है।
भारत एक वैश्विक कूटनीतिक खिलाड़ी है, और इसके *लोकतंत्र के मॉडल विशाल हैं। और इसका लोकतंत्र विकसित देशों के लिए भी एक बेमिसाल उदाहरण है।
भारतीय चुनाव आयोग ने 2024 के आम चुनाव 10 लाख मतदान केंद्रों पर लगभग 96 करोड़ वयस्क मतदाताओं के मताधिकार के साथ आयोजित किए।
उन्होंने मतदान को सुचारू रूप से चलाने के लिए 19 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया और 1.5 करोड़ कर्मचारियों और अधिकारियों को इस काम पर लगाया।
उन्होंने माल और अधिकारियों को आवाजाही के लिए 4,00,000 वाहनों, 1,700 सॉर्टियों (sorties) और 135 ट्रेनों का इस्तेमाल किया।
सत्ता का हस्तांतरण हमेशा बिना किसी रुकावट के रहा है और यह लोकतंत्र की मजबूती और भारतीय संविधान के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
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2024 के आम चुनाव 10 लाख मतदान केंद्रों पर लगभग 96 करोड़ वयस्क मतदाताओं के मताधिकार के साथ आयोजित किए
1947 में, भारत एक नवजात राजनीतिक इकाई था, और इसके सामने गरीबी, अशिक्षा और सांप्रदायिक तनाव जैसी बड़ी चुनौतियों के साथ विविध और
विभाजित आबादी को एकजुट करने का एक बहुत बड़ा कार्य था, लेकिन तब इसके नेताओं और नीति निर्माताओं ने 550 से अधिक रियासतों को एकीकृत करके भारतीय संघ का गठन किया था।
इन सभी बाधाओं के बावजूद, भारत ने 1950 में एक संवैधानिक लोकतंत्र (Democratic constitution) अपनाया, जिसने अपने सभी नागरिकों के लिए मौलिक मानवाधिकार (fundamental human rights) सुनिश्चित किए तथा न्याय, समानता और स्वतंत्रता पर आधारित शासन की रूपरेखा स्थापित की।
एक्सपर्टएक्स अपने सभी पाठकों को भारत के संविधान की रचना पर आधारित, 10-भाग की टेलीविजन मिनी-सीरीज़ (सीमित श्रृंखला) देखने की सलाह देता है। इसका निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया है और इसका नाम है "संविधान - भारतीय संविधान का निर्माण"।
यह सभी भारतीयों और दुनिया भर में राजनीति विज्ञान के छात्रों के लिए एक “जरूर देखिए” टेलीविजन मिनी-सीरीज़ है।
यह पूरी तरह से संविधान सभा के सदस्यों द्वारा की गई कड़ी मेहनत की और “ भारत का विचार” (Idea of india) इस विचारधारा को मजबूती से अपनाते हुए जिस तरह से उन्होंने मुद्दों की जटिलता का सफलतापूर्वक हल निकाला, इसकी सराहना करने में मदद करेगी।
78 वर्षों के बाद भी, भारतीय इस संविधान को गर्व के साथ कायम रखते हैं, इसका दृढ़तापूर्वक समर्थन करते हैं तथा इसकी अंतर्निहित भावना के प्रति निरंतर आभार व्यक्त करते हैं।
आज भारत के राजनीतिक परिदृश्य में 25 से ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियाँ हैं, जिनमें पूर्व में तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) से लेकर पश्चिम में एनसीपी (NCP), दक्षिण में डीएमके (DMK),
केरल में कम्युनिस्ट पार्टी (Communist party) से लेकर जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) तक शामिल हैं। देश भर में कई अन्य पार्टियाँ भी बिखरी हुई हैं जो भारतीयों की विविधता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
उनकी बहुतायत भारतीय लोकतंत्र की ताकत और लचीलेपन को दर्शाती है, नीतियों पर विविध विचारों के प्रति सम्मान, जो एक परिपक्व लोकतंत्र में ही ताकत के रूप में उभर कर आता है।
भारत 78 वर्षों में उस अच्छी समझ को हासिल करने में सक्षम रहा है।
ऐसे समय भी आए जब लोकतंत्र पर खतरा सिर पर मंडरा रहा था, लेकिन तब भारतीयों ने एकजुट होकर उन खतरों से निपटने के लिए विरोध प्रदर्शन किया।
इतिहास का वह हिस्सा हमें यह भरोसा दिलाता है कि भविष्य में भी भारत अपने संविधान और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम होगा और भारतीय लोकतंत्र की समग्र ताकत को बनाए रखेगा।
शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-aligned movement) में अपने नेतृत्व के साथ वैश्विक मंच पर भारत शासन में एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरा है।
इसने अपनी ताकत ,अपने मजबूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों से प्राप्त की है। परिणामस्वरूप, भारत अब संयुक्त राष्ट्र (United nations) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधारों की वकालत करने की स्थिति में है।
भारत ब्रिक्स संगठन (BRICS organisation), जी-20 (G- 20) और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation organisation) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम रहा है।
भारत अमेरिका और रूसी ब्लॉक दोनों के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित कर रहा है, जिसमें दक्षिण एशिया क्षेत्र में उसका प्रभुत्व भी शामिल है।
भारतीय सेना को सलाम : भारत की कूटनीतिक पहलों के तहत, सेना ने 49, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को अंजाम दिया है और 78 वर्षों में लगभग 260,000 सैनिकों को इसमें तैनात करके अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है।
वे कोरिया, कांगो, कंबोडिया, सोमालिया, रवांडा, लेबनान और कई अन्य, जटिल और चुनौतीपूर्ण संघर्षरत क्षेत्रों में रहे हैं।
इन सभी स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने विभिन्न क्षमताओं के साथ अपनी सेवाएं दीं है, जैसे कि नागरिक पुलिस( Civilian police) ,
सैन्य पर्यवेक्षक (Military observers), मानवीय सहायता (Humanitarian assistance) , चुनाव निगरानी (Election monitoring) तथा संघर्षोत्तर
क्षेत्रों में पुनर्निर्माण प्रयास।
भारतीय सेना के लिए यह किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है, वे न केवल युद्ध लड़ने में बल्कि शांति स्थापित करने में भी भारत के साहस, पराक्रम और बहादुरी का उदाहरण रहे हैं।
एक नव स्वतंत्र राज्य के रूप में, मामूली शुरुआत से लेकर एक वैश्विक कूटनीतिक खिलाड़ी तक, भारत अपने संविधान की ताकत पर आधारित है और वैश्विक शांति के लिए अपने संकल्प पर खड़ा हुआ है।
भारत ने दुनिया के सामने अपनी लोकतांत्रिक मूल्यों की ताकत को दिखाया है।
आखिरी पर कमतर नहीं , छठा तत्व है ,इसकी विविधता। यह तत्व अनेकों बार खतरे में रहा है, लेकिन भारत अपनी अविश्वसनीय सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
दुनिया के सभी प्रमुख धर्म भारत में सम्मानपूर्वक विराजमान हैं।
मोटे तौर पर, वे धर्म है, हिंदू, इस्लाम, ईसाई , सिख,बौद्ध , जैन और यहूदी । इन सभी धर्मों में कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं।
22 आधिकारिक भाषाओं, 10,000 से ज़्यादा, लोगों द्वारा बोली जाने वाली 121 भाषाओं, कई बोलियों और अनगिनत लहज़ों के साथ, देश भर में लगभग 1600 भाषाएँ बोली जाती हैं।
यह भारतीय विविधता की वह परिभाषा है, जो दुनिया में कहीं और देखने को नही मिलती, जो इस देश को महान बनाती है।
हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों से कन्याकुमारी के आध्यात्मिक धूप से सराबोर तटों तक, जहाँ ‘विवेकानन्द स्मारक शिला’ (Vivekananda Rock Memorial) दुनिया को “वसुधैव कुटुम्बकम” की याद दिलाता है,
विविधता सिर्फ़ हर एक की पहचान का सम्मान करने में नहीं है, बल्कि इसकी ताकत एकजुटता में निहित है, जो 78 साल के इतिहास में बार-बार प्रदर्शित हुई है।
इस प्रकार, भारत आज दुनिया में आशा का प्रतीक बन चुका है, जो धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं से विभाजित है।
भारत विविधता में अविभाज्यता (Inseparability) की भावना को दर्शाता है, और यह एकजुटता हजारों वर्षों के साझा इतिहास में मौजूद है। यह भारत को सिर्फ़ एक देश नहीं बल्कि मानवता का जीवंत, सांस लेता उत्सव बनाता है।
78 वर्षों का यह उल्लेखनीय परिवर्तन सभी भारतीयों के लिए अत्यंत गर्व का विषय है।
यह संविधान की उस प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है जो देश के एक अरब लोगों को समृद्ध, संयुक्त और धर्मनिरपेक्ष बनाने तथा देश की सीमाओं के भीतर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए है।
भारत, लचीलेपन, दृढ़ संकल्प और प्रगति की एक कहानी है।
भारत अपने भविष्य की ओर देख रहा है और वैश्विक मंच पर अपने आरोहण के लिए तैयार है। यह अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और लोकतांत्रिक मूल्यों से मार्गदर्शित है।
इसलिए, प्रगति की इसकी यह यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है, बल्कि इसका सर्वश्रेष्ठ आना तो अभी बाकी है।
*चार एशियाई बाघ दुनिया की कुछ सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं को संदर्भित करते हैं - हांगकांग, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और ताइवान।
इन चार अर्थव्यवस्थाओं ने तेजी से औद्योगिकीकरण और बिजली की गति से विकास का अनुभव किया। 1960 और 1990 के दशक के बीच इनमें से प्रत्येक ने 70 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की।
इनमें से प्रत्येक एशियाई टाइगर्स अर्थव्यवस्था उन व्यवसायों के लिए जबरदस्त अवसर प्रदान करती है जो मजबूत, नए बाजारों में प्रवेश करना चाहते हैं।
*आलोचनात्मक अवलोकन क्या है?
आलोचनात्मक अवलोकन सूक्ष्म विवरणों पर ध्यान देने की क्षमता है जो हमें परिस्थितियों को अधिक कुशलता से संभालने में सक्षम बनाती है।
महत्वपूर्ण रूप से, आलोचनात्मक अवलोकन "आलोचनात्मक सोच" से अलग है। आलोचनात्मक सोच में ऐसे कौशल शामिल होते हैं जो किसी व्यक्ति को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए तथ्यों और सूचनाओं का विश्लेषण करने की अनुमति देते हैं।
दूसरी ओर, आलोचनात्मक अवलोकन में किसी व्यक्ति, प्रक्रिया या स्थिति को पढ़ने और नई जानकारी प्राप्त करने का कौशल शामिल होता है।
जो लोग आलोचनात्मक अवलोकन में अच्छे होते हैं, वे अक्सर ऐसी चीज़ों को नोटिस करते हैं जो दूसरे लोग नहीं देख पाते।
कई व्यापारिक नेता यह मान लेते हैं कि यह कौशल लोगों में जन्मजात होता है: “या तो लोगों में यह होता है, या नहीं होता।”
इसके विपरीत, हमने पाया है कि यह ऐसी चीज़ है जिसे प्रशिक्षण के माध्यम से सिखाया और निखारा जा सकता है।
यह अच्छी बात है क्योंकि आलोचनात्मक अवलोकन आज व्यवसाय में किसी व्यक्ति के लिए सबसे आवश्यक सॉफ्ट स्किल्स में से एक है ।
और अधिकांश कौशलों की तरह, अपने कर्मचारियों को इसमें प्रशिक्षित करना प्रतिभा पूल में पहले से विकसित कौशल खोजने से कहीं ज़्यादा आसान हो सकता है।
*वैज्ञानिक प्रकाशन से तात्पर्य वैज्ञानिक पत्रिकाओं में नए विचारों और सिद्धांतों के प्रकाशन के माध्यम से ज्ञान के प्रसार से है, जिससे वैज्ञानिक समुदाय को जानकारी की पुष्टि या अस्वीकृति करने की अनुमति मिलती है।
*मध्याह्न भोजन क्या है?
मध्याह्न भोजन भारत में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पीएम-पोषण (पोषण शक्ति निर्माण) पहल (पूर्व में मध्याह्न भोजन योजना) के एक भाग के रूप में प्रदान किया जाने वाला स्कूल दोपहर का भोजन है, जिसका उद्देश्य उनके पोषण स्तर में सुधार करना और उनकी शिक्षा का समर्थन करना है।
नवंबर 2001 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया था, "हम राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देते हैं कि वे प्रत्येक सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालय में प्रत्येक बच्चे को तैयार मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराकर मध्याह्न भोजन योजना को लागू करें।"
भारत में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था से निम्नलिखित में मदद मिली है:
स्कूलों में नामांकन बढ़ाना
उपस्थिति में वृद्धि
कक्षा में भूख को कम करना
कक्षा में छात्रों को ध्यान केंद्रित करने में मदद करना
छात्रों के बीच स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाना
बच्चों में कुपोषण के मुद्दे पर ध्यान देना
रोजगार के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना
बच्चों में सामाजिकीकरण में सुधार
*सकारात्मक भेदभाव, जिसे अक्सर सकारात्मक कार्रवाई या अधिमान्य उपचार के रूप में संदर्भित किया जाता है, एक सक्रिय दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य
ऐतिहासिक रूप से वंचित या कम प्रतिनिधित्व वाले व्यक्तियों या समूहों को अधिमान्य उपचार या अवसर प्रदान करके ऐतिहासिक अन्याय और प्रणालीगत असमानताओं को दूर करना है।
*अटल नवाचार मिशन
अटल नवाचार मिशन (एआईएम) की स्थापना नीति आयोग द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य स्कूलों, शैक्षिक संगठनों, अनुसंधान संस्थानों और एमएसएमई सहित उद्योगों में नवाचार और उद्यमिता का माहौल बनाना और प्रोत्साहित करना है।
AIM के दो कार्य हैं:
नवप्रवर्तकों को वित्तीय सहायता के साथ-साथ मार्गदर्शन के माध्यम से उद्यमी बनने के लिए प्रोत्साहित करके उद्यमशीलता को बढ़ावा देना
एक ऐसा मंच बनाकर नवाचार को बढ़ावा देना जहां समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के माध्यम से विचार उत्पन्न किए जाएं
एआईएम ने इन कार्यों के समर्थन के लिए चार कार्यक्रम बनाए हैं:
अटल टिंकरिंग लैब्स
अटल इन्क्यूबेशन केंद्र
अटल न्यू इंडिया चुनौतियां और अटल ग्रैंड चुनौतियां
मेंटर इंडिया
इन कार्यक्रमों के अलावा, एआईएम नवाचार का माहौल बनाने के लिए शिक्षाविदों, उद्योगों, गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों के साथ सहयोग भी करता है।
*लोकतंत्र के मॉडल कई सैद्धांतिक ढाँचे या पद्धतियाँ हैं। यह लोकतांत्रिक समाज की संरचना और संचालन की व्याख्या करता है।
ये मॉडल सत्ता को कैसे संगठित किया जाता है, निर्णय कैसे लिए जाते हैं, नागरिक कैसे भाग लेते हैं और लोकतांत्रिक समाज में सरकार का उद्देश्य क्या है, इस पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
जिम्मेदारी, प्रतिनिधित्व और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के साधन।
प्रत्येक प्रतिमान द्वारा सभी को अलग-अलग तरीकों से प्रस्तुत किया जाता है। विभिन्न लोकतांत्रिक मॉडलों को जानने से दुनिया भर में लोकतांत्रिक प्रणालियों के मूल्यांकन और विश्लेषण में सुविधा होती है और लोकतांत्रिक सुधारों और संवर्द्धन पर बातचीत का मार्गदर्शन होता है।
प्रतिनिधि लोकतंत्र, सहभागी लोकतंत्र, विचार-विमर्श लोकतंत्र और महानगरीय लोकतंत्र लोकप्रिय मॉडलों में से हैं। हालाँकि, कई अन्य भी हैं। ये मॉडल लोकतांत्रिक शासन के विविध तरीकों के बारे में जानकारी देते हैं।
इसे कैसे लागू किया जा सकता है और नागरिक राजनीतिक प्रक्रिया में कैसे शामिल हो सकते हैं।
*पूरे इतिहास में लोकतंत्र के कई मॉडल प्रस्तावित और लागू किए गए हैं। इनमें से कुछ मुख्य मॉडल इस प्रकार हैं:
प्रतिनिधि लोकतंत्र: यह लोकतंत्र का सबसे आम मॉडल है। जहाँ नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जो उनकी ओर से निर्णय लेते हैं।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र: इस मॉडल में, नागरिक जनमत संग्रह या टाउन हॉल बैठकों के माध्यम से निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं।
संसदीय लोकतंत्र: कार्यकारी शाखा विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है, और सरकार संसद में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन द्वारा गठित होती है।
राष्ट्रपति लोकतंत्र: राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली कार्यकारी शाखा विधायिका से अलग होती है। नागरिक सीधे राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं और महत्वपूर्ण शक्ति रखते हैं।
सर्वसम्मति लोकतंत्र: लोकतंत्र का यह मॉडल निर्णय लेने की प्रक्रिया में विभिन्न समूहों और हितधारकों के बीच आम सहमति और समावेशिता तक पहुंचने पर जोर देता है।
विचार-विमर्शात्मक लोकतंत्र सामूहिक निर्णय तक पहुंचने के लिए नागरिकों के बीच सूचित और तर्कसंगत विचार-विमर्श पर केंद्रित है।
सहभागी लोकतंत्र: नागरिक जमीनी स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, जिससे प्रत्यक्ष भागीदारी और सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
हाइब्रिड लोकतंत्र: यह मॉडल लोकतंत्र के विभिन्न रूपों के तत्वों को जोड़ता है, तथा देश की विशिष्ट आवश्यकताओं और संदर्भ के अनुरूप उन्हें अनुकूलित करता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये मॉडल परस्पर अनन्य नहीं हैं, तथा कई देश अपनी अनूठी लोकतांत्रिक प्रणाली बनाने के लिए विभिन्न मॉडलों की विशेषताओं का मिश्रण अपनाते हैं।
NAM 120 विकासशील देशों का एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जो प्रमुख शक्ति ब्लॉकों के साथ गुटनिरपेक्षता के विचार (सही और गलत में अन्तर करके सदा सही नीति का समर्थन करना) में विश्वास करता है।
इसकी स्थापना 1961 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू , मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टीटो के नेतृत्व में बेलग्रेड, पूर्व यूगोस्लाविया में हुई थी ।
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