"मेक इन इंडिया" बनाम "मेड इन इंडिया"
"मेक इन इंडिया" बनाम "मेड इन इंडिया"
Made in India VS Make in India का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
"मेक इन इंडिया" नया आर्थिक नारा है, जिसका राष्ट्रवाद के साथ एक मिश्रण है। इसका इरादा देश की पिछली आर्थिक नीतियों में एक नयापन पैदा करना और एक नए उभरते हुए प्रभावशाली भारत को दुनिया के सामने एक विनिर्माण केंद्र के रूप में दिखाना है।
कई लोगों के लिए "मेड इन इंडिया" और "मेक इन इंडिया" देश की विनिर्माण नीति के केवल दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, किन्तु दोनों के बीच मूलभूत अंतर है।
मेक इन इंडिया
यह मुख्य रूप से विदेशी पूंजी और विदेशी ग्राहक से उत्पाद के डिजाइन पर आधारित है। आर्थिक सुधार के अपने शुरुआती दिनों में विनिर्माण का ऐसा ही चीनी मॉडल मौजूद था।
जब चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया, तब उसने विदेशी कंपनियों को अपने माल के निर्माण के लिए चीनी कारखानों और विनिर्माण क्षमताओं का उपयोग करने के लिए आमंत्रित किया।
इसलिए 30 साल की छोटी सी अवधि में ही चीन दुनिया का 'विनिर्माण केंद्र' (Manufacturing hub) बन गया।
सस्ते कच्चे माल और श्रम लागत के कारण, पश्चिमी देशों की कंपनियाँ चीनी निर्माताओं को अपना डिज़ाइन भेजने में सक्षम हैं, वे, सीधे उनके कारखानों में निवेश करती हैं, सस्ते कच्चे माल और श्रम लागत के कारण अपनी वस्तुएं निर्मित हुई पाते हैं।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, वही चीनी निर्माता अपने स्वयं के डिज़ाइनों को नया बनाने और विनिर्माण कार्यप्रणाली को विकसित करने में सक्षम हो गए, जो आज के समय में दुनिया में किसी भी और की तुलना में बेहतर हैं।
आज चीन द्वारा उत्पादित सामान, डिजाइन और लागत में बेहतर हैं।
यह एक अविश्वसनीय सफलता की कहानी है। चीन अब नई खोज और अनुसंधान की उत्कृष्ट और अपराजेय क्षमताओं के साथ माल के डिजाइन, विकास और उत्पादन करने में सक्षम है।
यह वह मॉडल था, जिसको भारत ने "मेक इन इंडिया" नीति को अपनाते हुए परिकल्पित किया है।
"मेक इन इंडिया" के साथ, उद्देश्य है कि भारतीय विनिर्माण पद्धतियों को दुनिया की सर्वोत्तम पद्धतियों के साथ एकीकृत करना और चीनी निर्माताओं और दुनिया की अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक प्रतिस्पर्धी बनना।
"मेक इन इंडिया" का नुकसान यह है कि, भारत में उत्पादित वस्तुओं की कोई ब्रांड पहचान नहीं होगी। उदाहरण के लिए, आज भी दुनिया जर्मन इंजीनियरिंग और जापानी नवीनीकरण की उत्कृष्टता को पहचानने में सक्षम है।
वही समान उत्कृष्टता हासिल करना मुश्किल है, यदि कोई देश सिर्फ किसी और के डिजाइन और विनिर्माण पद्धतियों के साथ सामान बना रहा है।
"मेक इन इंडिया" का एक अन्य तत्काल उद्देश्य व्यावसायिक गतिविधि की शुरुआत से ही लाभ को प्राप्त करना है।
यह केवल लाभ परिचालित गतिविधि होनी चाहिए क्योंकि, विदेशी निवेशक अपनी विनिर्माण पद्धतियों को उच्च लागत वाले पिछले स्थान से भारत में स्थानांतरित कर रहे होंगे, जो उत्पादन की लागत को कम करने का वादा करता है।
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"मेक इन इंडिया" का लाभ यह है कि, यह देश की जीडीपी संख्याओं में तेजी से योगदान देता है
"मेक इन इंडिया" का लाभ यह है कि, यह देश की जीडीपी संख्याओं में तेजी से योगदान देता है। तेजी से रिटर्न और उच्च व्यावसायिक गतिविधि, जो तुरंत सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करेगी।
कई निर्माताओं जो "मेक इन इंडिया" की अनुमति प्राप्त करने के लिए पंक्ति में खड़े है, उनके लिए सरकार को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्यों के आधार पर अपने निर्णय निर्धारण में सुधार करना होगा।
यह लंबे समय तक के लिए लाभ पहुचायेगा, क्यूंकि, सरकार "मेक इन इंडिया" के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने में अधिक कुशल होगी। इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि, काम पूरा करने की हड़बड़ी में यह प्रक्रिया पर्यावरणीय मुद्दों की अनदेखी कर सकती है।
चूंकि परियोजना की सफलता मुख्य रूप से सरकार की मंजूरी पर निर्भर करती है, इसलिए प्रणाली सरकार को प्रभावित करने, हितों के टकराव, नियमों को दरकिनार करने और अन्य नियमों को मोड़ने के लिए प्रवृत्त होगी।
समय बीतने के साथ, भारतीय ब्रांड अपनी पहचान और विशिष्टता खो देंगे। दुनिया भर के खरीदारों के लिए, यह उदाहरण के तौर पर, जैसे, जाना एक जर्मन ब्रांड के रूप में जाएगा, किन्तु बनाया भारत में जाएगा।
जब वे ब्रांड भारत में निर्माण बंद कर देंगे, तो कुल मिलाकर "मेड इन इंडिया" के रूप में पहचाने जाने योग्य कुछ भी नहीं बचेगा।
यहा पर एक बड़ी संभावना है कि, भारत नवीनीकरण और अनुसंधान की क्षमता का उपयोग करने में विफल हो सकता है, जिस समय वह दुनिया का विनिर्माण केंद्र (मैन्युफैक्चरिंग हब) है।
एक उदाहरण के रूप में, कपड़ा उद्योग कभी भारतीय निर्यात का सबसे महत्वपूर्ण भाग था किन्तु अब पश्चिम के पास बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका, फिलीपींस, ब्राजील और ग्वाटेमाला आदि में बने कपड़ों का ढेर है।
फैशन डिजाइनिंग की विशिष्टता और विशेषज्ञता धुंधली है और अपना व्यक्तित्व खो चुकी है।
वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करते हुए इनमें से कोई भी देश स्वतंत्र रूप से अपने माल का डिजाइन और निर्यात करने में सक्षम नहीं है। उन्हें पश्चिमी विक्री केंद्रों (कंपनियों) के समर्थन की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, जर्मन और जापानी इंजीनियरों द्वारा डिज़ाइन की गई कारें और वाहन अभी भी वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी के रूप में खड़े हुए हैं।
उनके पास चीन या अन्य जगहों पर निर्मित ऑटो पार्ट्स हैं किन्तु, फिर भी यह अपनी अनूठी वैश्विक स्थिति को मजबूती से बरकरार रखे हुए है। यह वैश्विक मंदी और कड़ी प्रतिस्पर्धा के सबसे खराब दौर को संभालने और उसपर नज़र रखने में मदद करने वाला है।
वह विदेशी ब्रांड जो "मेक इन इंडिया" के तहत निर्मित होंगे, भारतीय बाजार में अपना रास्ता खोज लेंगे। इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दो चीजें होंगी।
सबसे पहले, महँगाई बढ़ेगी , हालांकि रेंगते हुए, क्योंकि, उन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए डिज़ाइन किया गया है और अवैध व्यापार और तस्करी को रोकने के लिए उसी तरह से उनकी कीमतें तय की गई है। कार्यालय प्रिंटर, वाहन और मोबाइल फोन विशेष उदाहरण हैं।
दूसरा , भारतीय डिजाइन वाले भारतीय निर्माता धीरे-धीरे बाजार हिस्सेदारी खो देंगे, यहां तक कि, समान गुणवत्ता के साथ भी। भारतीय उपभोक्ताओं की विदेशी ब्रांडों के प्रति संवेदनशीलता, उनके निर्माण स्थान के बावजूद, भारतीय ब्रांडों की तुलना में उच्च और पसंदीदा है।
समग्र रूप से, यह "मेक इन इंडिया" और "सेल इन इंडिया" का संयोजन होगा, जिससे भारत के स्वदेशी विकास और विनिर्माण क्षमताओं में और गिरावट आएगी।
"मेक इन इंडिया" का एक और नकारात्मक पहलू है।
यह विदेशी कॉरपोरेट और कंपनियां होंगी जो भारत में विनिर्माण क्षमताओं में निवेश करेंगी। 'निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व' (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) की भूमिका और जिम्मेदारी कम हो जाएगी या कम प्राथमिकता के स्तर पर चढ़ जाएगी, खासकर एक महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के मामलों में।
जब भू-राजनीति और भारत की स्थिति की बात आती है तो, उनकी भी एक संदिग्ध भूमिका हो सकती है। इसकी बहुत अधिक संभावना है कि, विदेशी कंपनी भारत के राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल अन्य देशों में संचालन करें ।
विदेशी कंपनियों के लिए, विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने के लिए सर्वोत्तम स्थान का मूल्यांकन करने के लिए, वे उन जगहों पर जाएंगे जहां पहले से ही प्रतिभा, तकनीकी क्षमताएं और स्थानीय सरकारों से 'कर प्रोत्साहन' (tax incentives) मौजूद हैं।
इसमें न केवल राज्य के भीतर बल्कि पूरे देश में असमान विकास लाने की क्षमता है। भारत के भीतर प्रतिस्पर्धा होगी और जिन राज्यों और स्थानों को विकास की आवश्यकता है वे, इसमे पिछड़ जाएंगे।
कई बहुराष्ट्रीय निगम हैं, जिनका दुनिया भर की सरकारों पर एक शक्तिशाली प्रभाव है। उनके पास पैसा और सॉफ्ट पावर है, जो भू-राजनीति को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है। ऐसे में भारत का शोषण होगा।
ऐसा ईस्ट इंडिया कंपनी मामले में, भारत के साथ पहले हो चुका है, जब वह स्थानीय सरकारों और राज्यों के अंदर चुपचाप घुस गई और अंततः देश पर शासन करने लगी।
हालांकि यह विचार असम्भव सा लगता है, किंतु हम सबूत के तौर पर देखते हैं कि, बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों ने सबसे परिपक्व देशों की सरकारी नीतियों को भी प्रभावित किया है।
"मेक इन इंडिया" में रुचि रखने वाली कंपनियां अपनी उत्पादन लागत को कम करने के लिए पूरी तरह से लाभ और उच्च उत्पादकता की तलाश में हैं।
उस समीकरण से, वे रणनीतिक रूप से 'स्वचालन' (Automation) को अपनाना और लगातार अपग्रेड करना चाहेंगे, जिसके परिणामस्वरूप देश में रोजगार की दर कम होगी।
स्थानीय आबादी का शोषण होगा क्योंकि स्वचालन का मतलब अत्यधिक कुशल कार्यबल होगा, वह भी कम संख्या में।
"मेक इन इंडिया" में रुचि रखने वाली कंपनियों में भी लेखांकन विधियों और हस्तांतरण मूल्य निर्धारण का उपयोग करके 'कर चोरी' के रास्ते तलाशने की क्षमता और प्रवृत्ति है। यह भारत सरकार को सीधे तौर पर राजस्व का नुकसान है।
तो, एक तरफ, ये कंपनियां उच्च मुनाफे के लिए काम कर रही हैं; दूसरी ओर, वे बहुत थोड़े से करों का भुगतान कर रही हैं और कम रोजगार पैदा कर रही हैं।
इस तरह के उदाहरण हमें मिल सकते हैं, जहां गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां भारी मुनाफा कमाती हैं, लेकिन नगण्य करों का भुगतान करती हैं।
मेड इन इंडिया
"मेड इन इंडिया" नीति के मामले में, स्वदेशी पूंजी, उद्यमिता डिजाइन निर्माण, भूमि, श्रम और लाभ इसमें है। यह भारत की ब्रांडिंग करने और वर्षों से भारतीय प्रतिष्ठा बनाने के बारे में है। बौद्धिक संपदा अधिकार भी भारत की कंपनी के होंगे।
"मेड इन इंडिया" का उद्देश्य विनिर्माण और वैज्ञानिक शक्ति का विकास, श्रमशक्ति क्षमताओं में सुधार, मानव संसाधनों की वृद्धि और प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना है।
समग्र रूप से, "मेड इन इंडिया" भारतीय उद्यमिता की स्थिति को ऊपर उठाने और विचारकों, डिजाइनरों और नवप्रवर्तकों (innovators) को स्थान देने के लिए सरकारी नीति के माध्यम से एक उपक्रम (Venture) है।
हालांकि, लंबी अवधि के नजरिए से, इसमें उच्च निवेश की आवश्यकता होगी। अपेक्षित परिणाम स्थानीय आबादी को रोजगार के रास्ते प्रदान करते हुए और देश से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करते हुए उद्योग क्षेत्र और इसकी संबद्ध सेवाओं का संपूर्ण वृद्धि और विकास है।
मेड इन इंडिया न्यूनतम आयात और अधिक स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास के बारे में है। यह आयात प्रतिस्थापन और उत्पादों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
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मेड इन इंडिया न्यूनतम आयात और अधिक स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास के बारे में है
रक्षा क्षमताओं में "मेड इन इंडिया" ने भी भारत को आत्मनिर्भर बनाया और विदेशी शक्तियों के जोखिम को कम किया। हालांकि, भारत में रक्षा उत्पादन की गुणवत्ता के मुद्दे हैं, फिर भी सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। वास्तव में, वे आयात से सस्ते हैं।
इसलिए, भारत ने अपनी रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बनाए रखा है। नतीजतन, आज भारत एफ-16 के निर्माण के लिए एक विनिर्माण गंतव्य है। कुछ समय पहले तक, वे अमेरिका की सरकार के लिए एक 'राजकीय भेद' थे।
यदि भारत ने अपने रक्षा उड्डयन के लिए अपनी "मेड इन इंडिया" क्षमताओं का विकास नहीं किया होता, तो F-16 के मूल उपकरण निर्माताओं ने इसके उत्पादन के लिए भारत की तरफ नहीं देखा होता या उसका मूल्यांकन नहीं किया होता।
वे रणनीतिक रूप से स्वचालन को अपनाना और लगातार अपग्रेड करना चाहेंगे, जिसके परिणामस्वरूप देश में रोजगार दर कम होगी।
अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में, भारत "मेड इन इंडिया" क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो रणनीतिक हैं। भारत को उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए वैश्विक बाजार से कम तापमानयुक्त इंजन (cryogenic engines) तक की पहुंच से वंचित कर दिया गया था।
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अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में, भारत "मेड इन इंडिया" क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो रणनीतिक हैं
हालांकि, कुछ दशकों के विकास के बाद, अफ्रीकी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रम (Aids) के लिए कम तापमानयुक्त इंजन का निर्माण और उपयोग करना संभव हो गया। आज, भारत के पास स्वदेशी 'कम तापमानयुक्त इंजन' तकनीक है।
यह परमाणु अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों के लिए भी अच्छा है जहां, भारत को अपने दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए किसी विदेशी सरकार की क्षमताओं और दबावों पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है।
"मेड इन इंडिया" एक दीर्घकालिक रणनीतिक नीति है, जहां मुनाफ़ा लोगों के लाभ के बाद आता है। इसके विपरीत, "मेक इन इंडिया" एक व्यावसायिक प्रस्ताव है जो, जीडीपी संख्याओं में लाभ और वृद्धि जैसे तेज परिणाम देगा।
इसलिए, यह जरूरी नहीं कि, यह भारतीयों की श्रमशक्ति के विकास की ओर ले जाये, किन्तु निश्चित रूप से देश में नकदी प्रवाह में सुधार करेगा।
"मेड इन इंडिया" के मामले में, सभी करों का पारदर्शी रूप से हिसाब रखा और सरकार को भुगतान किया जाता है। यह जनता और प्रेस के सीधे दायरे में भी है, जो स्थानीय राजनेताओं और राष्ट्रीय सरकार पर भी पकड़ रखता है और उनके किसी भी कार्यों के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराता है।
एक विदेशी कंपनी के मामले में, वे अंतरराष्ट्रीय कानूनों की भी निंदा करते हैं,जो भारतीय कानूनों के साथ संघर्ष कर सकते हैं और उन्हें जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया को कमजोर कर सकते हैं।
खुली बहस
देश में स्थापित किसी भी व्यवसाय के लिए, आर्थिक लागतों और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से संबंधित सामाजिक लाभों और लागतों का मूल्यांकन होना चाहिए।
इसके विपरीत, सामाजिक मूल्य में वह सामाजिक बलिदान भी शामिल होना चाहिए जो जनसंख्या को व्यवसाय को बनाए रखने के लिए करना पड़ता है। इसमें स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों की कमी, वानिकी और जल आपूर्ति, खानों और खनिजों की गुणवत्ता में बदलाव के लिए जवाबदेही भी शामिल है।
आदिवासी और स्थानीय संस्कृति का विस्थापन एक गंभीर मुद्दा है।
ये अस्पष्ट हानि हैं और इन हानियों को आधिकारिक तौर पर, मापने योग्य और जवाबदेह बनाने के लिए एक विधि तैयार की जानी चाहिए।
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