वैश्विक कचरा व्यापार: वैश्विक अन्याय
वैश्विक कचरा व्यापार: वैश्विक अन्याय
Global Waste Trade: Global Injustice का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
इस लेख में एक्सपर्टएक्स का उद्देश्य मुक्त व्यापार ( Free trade) के गहरे अन्याय, वैश्वीकरण के गम्भीर नकारात्मक पक्ष तथा भारत जैसे देशों पर, इसके कारण पड़ने वाले अनुचित बोझ पर पूर्ण रूप से प्रकाश डालना है।
इस प्रकार, वैश्विक कचरा व्यापार (Global waste trade) की अवधारणा,धनी *वैश्विक उत्तर जिसमें यूरोप, अमेरिका, कनाडा और कुछ अन्य देश शामिल है
और गरीब वैश्विक दक्षिण जिसमें, अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के देश सम्मिलित है, के बीच एक अत्यधिक असंतुलन के रूप में सामने आती है, जो इस मुद्दे के वैश्विक प्रभाव को उजागर करती है।
यहां पर संदर्भ स्थापित करने के लिए किसी घटना का उल्लेख करना बेहद जरूरी है।
अगस्त 1986 में, कियान शी (Qian Xi) नामक एक मालवाहक जहाज पर फिलाडेल्फिया (Philadelphia) यानी अमेरिका में स्थित एक भस्मक (incinerator) से लगभग 14,000 टन राख भरी गई थी।
इस जहाज को राख को अमेरिका के एक अन्य शहर, न्यू जर्सी (New Jersey) में फेंकना था, लेकिन तब इसे बंदरगाह में प्रवेश करने देने से मना कर दिया गया।
“
2019 के गार्जियन (Guardian ) के एक लेख के अनुसार, ब्रिटेन से हर महीने, हजारों टन इस्तेमाल किए गए टायर भारत आते हैं
विषाक्त अपशिष्ट (Toxic waste) से लदा यह जहाज़ 16 महीने की जोखिम भरी यात्रा पर निकला था, तथा अपने माल को उतारने के लिए जगह की तलाश में अटलांटिक महासागर को छान मार रहा था।
यह जहाज होंडुरास, पनामा, बरमूडा और डोमिनिकन गणराज्य में गया, लेकिन उसे वापस भेज दिया गया। सेनेगल, मोरक्को, यूगोस्लाविया, श्रीलंका और सिंगापुर में भी जहाज से बोझ उतारने की चालक दल की कोशिशें बेकार गईं।
इस सबसे विचलित हुए बिना अपने उद्देश्य में अडिग रहते हुए जहाज ने प्रयास किया अपनी पहचान बदलने का, उसने अलग-अलग जगहों पर दो बार अपना नाम बदला, लेकिन इसकी असली पहचान छिपाई नहीं जा सकी।
आखिर में, सभी विकल्पों के खत्म हो जाने तथा अपने ही देश द्वारा उतरने के लिए इनकार कर दिए जाने के बाद, जहाज ने अपने विषाक्त अपशिष्ट को अटलांटिक महासागर में कहीं फेंक दिया।
तो इस तरह यह एक विशिष्ट उदाहरण है जहां विकसित देश, अपने जहरीले कचरे को एक गरीब देश में डालना चाहते हैं।
1992 में पहली बार “विषाक्त उपनिवेशीकरण” (Toxic colonisation) शब्द जिम फुकेट (Jim Phuket) नामक एक कर्मठ कार्यकर्ता द्वारा गढ़ा गया था।
विषाक्त उपनिवेशीकरण से यह मतलब है कि, पश्चिम के औद्योगिक कचरे को भारत, वियतनाम और अफ्रीकी देशों जैसे तीसरी दुनिया के देशों के क्षेत्रों में डालना और यह एक सुस्थापित व्यवसाय है।
शुरुवात में यह अनाधिकारिक था किंतु, अब यह एक अच्छे व्यापार समझौते का हिस्सा बन गया है।
देश ऐसा क्यों होने देते हैं? प्रभावित समुदाय ऐसा होने देते हैं क्योंकि उनके पास संसाधनों और ज्ञान की कमी होती है, राजनीतिक संगठन में इसके प्रति
इच्छाशक्ति भी नहीं होती है, इन सभी कारणों के बीच खासकर बात यह है कि उन्हें जो पैसा मिल रहा है, वह देश की आबादी के लिए बहुत अच्छा है।
इस रीति से, वैश्विक अपशिष्ट व्यापार से लागत-लाभ जुड़ा हुआ है।
इसका अर्थ यह है कि जहां विकसित देशों को अपने अपशिष्ट के निर्यात से आर्थिक लाभ होता है, वहीं इसका खामियाजा *पर्यावरण क्षरण
(Environmental degradation) , स्वास्थ्य संबंधी खतरों और सामाजिक अन्याय के रूप में प्राप्तकर्ता देशों को उठाना पड़ता है।
2010 के जिनेवा सम्मेलन (Geneva Convention of 2010) में पीएचडी शोध के एक भाग के रूप में पेश किए गए एक अध्ययन से पता चला कि सोमालिया में
जहरीले और *रेडियोधर्मी कचरे (Radioactive waste) की निरंतर डंपिंग से वहाँ की जनसंख्या पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप कैंसर, समय से पहले गर्भपात और जन्मजात दोषों जैसी बीमारियों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
इस समय के दौरान, गैर-सरकारी संगठनों सहित कई संगठनों ने वैश्वीकरण के नाम पर चल रहे इस अपराध के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और आवाज उठाने का अपना काम शुरू किया।
उनमें से एक है बेसल एक्शन नेटवर्क (Basel Action Network BAN), जो एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी (Non-profit organization) संगठन है, जो जहरीले रासायनिक संकट के वैश्वीकरण को रोकने के लिए काम करता है।
वैश्विक पर्यावरणीय अन्याय के प्रभाव और जहरीले व्यापार की आर्थिक निष्फलता पर बेन (BAN) संगठन के ध्यान देने से संभावित समाधानों की आशा मिलती है।
जहरीले व्यापार का एक अन्य प्रमुख उदाहरण जहाज़ कबाड़ उद्योग (Ship scrapping industries) है, जो मुख्य रूप से विकासशील देशों में किया जाता है।
ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इन देशों में पर्यावरण के अनुकूल व्यावसायिक कानून (environmentally friendly occupational laws) नहीं हैं।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत जहाज़ों को तोड़ने में सबसे आगे है, उसके बाद चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान का नंबर आता है।
2009 के एक कुख्यात मामले में, एक फ्रांसीसी विमानवाहक पोत जहाज, टूटने के लिए भारत आ रहा था, लेकिन सरकार ने उसे अनुमति नहीं दी, क्योंकि उसमें एस्बेस्टस (Asbestos) था।
इसपर बहुत सारी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति हुई, लेकिन अंत में भारत ने इसका विरोध किया और जहाज को अनुमति नहीं दी गई।
इसके बाद यह कहां गया, हमें नहीं मालूम।
इससे वैश्विक कचरा व्यापार और विकासशील देशों में जहरीले पदार्थों की डंपिंग के पीछे की नैतिकता का सवाल उठता है। यह सोच आखिर कहां से उत्पन्न हुई?
क्या यह अज्ञानता का मामला है या फिर व्यापार के वैश्वीकरण में छिपी एक सोची-समझी रणनीति का मामला है?
इसलिए, इस सवाल पर पूछताछ की जानी चाहिए ।
यह पाया गया कि, लॉरेंस समर्स (Lawrence Summers) नाम के एक व्यक्ति है, जिन्हें हम लैरी समर्स के नाम से जानते हैं।
जो हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के निदेशक, अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के आर्थिक सलाहकार, तथा विश्व व्यापार संगठन के मुख्य अर्थशास्त्री थे।
उन्होंने, 1991 में, अपने एक लीक हुए गोपनीय ज्ञापन ( confidential memo) में वैश्विक कचरा व्यापार के पक्ष में तर्क दिया था।
उनके अनुसार, विश्व बैंक (World bank) को कम विकसित देशों में गंदे उद्योगों के अधिक स्थानांतरण को प्रोत्साहित करना चाहिए।
गरीब वैश्विक दक्षिण (Poor global south) के विचार को समझना बहुत जरूरी है, जिसमें भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान तथा अन्य देश, साथ ही साथ अफ्रीकी देश शामिल हैं, जिनका उपयोग विकसित देशों के कचरे को डंप करने के लिए किया जाएगा।
यह बहुत उलझन में डालने वाली बात है कि क्या, ये चमकदार प्रबंधन पद्धतियां दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालयों से आती हैं और क्या यह स्वार्थी विचार भी छात्रों को उनकी बढ़िया शिक्षा के हिस्से के रूप में, बांटा जाता है?
यह सोचना पर मजबूर करने वाला है कि यदि केमैन द्वीप समूह या ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह जैसे देश, *कर के स्वर्ग (Tax havens) हैं, तो क्या भारत, दुनिया में प्रदूषण के लिए पनाहगाह है, और क्या भारत की ही तरह अन्य देश भी है जैसे कि, घाना और अफ्रीकी देश?
क्या वैश्विक दक्षिण के इन देशों को वैश्विक उत्तर, द्वारा जो कि समृद्ध वैश्विक उत्तर के देश है , जहरीले औद्योगिक कचरे के पुनर्चक्रण के लिए, प्रदूषण के पनाहगाह के रूप में भी देखा जा रहा है?
यहां कुछ और उदाहरण दिए जा रहे हैं जिससे आपको पता चलेगा कि किस प्रकार भारत, प्रदूषण का पनाहगाह है।
25 से अधिक देशों ने पुनर्चक्रण के नाम पर भारत में 1,21,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा डाला है।
पीटीआई (PTI) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि 1,21,000 मीट्रिक टन में से 55,000 मीट्रिक टन, प्लास्टिक कचरा, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आयात किया गया था।
दिसंबर 2022 की ब्लूमबर्ग (Bloomberg) की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेज़न (Amazon) से प्लास्टिक रैपर, कार्डबोर्ड कचरा (गत्ता) और लिफाफे का कचरा भारत के मुजफ्फरनगर में अवैध डंप साइटों और औद्योगिक भट्टियों में पहुंचा दिया गया है।
एक तरह से अमेरिका से आई अमेज़न कंपनी के रैपरों के जलने से पैदा हुआ जहरीला पदार्थ मुजफ्फरनगर के लोगों के फेफड़ों में समा गया है।
अमेज़न के लिफाफे पूरी तरह से कागज़ या कार्डबोर्ड नहीं हैं। उनमें प्लास्टिक के कुछ हिस्से भी होते हैं।
इसके अलावा, इन रैपरों में प्लास्टिक की लगभग दो प्रतिशत तक की मात्रा को इस्तेमाल करने की अनुमति है, लेकिन यह पांच प्रतिशत तक भी हो सकती है, जिससे इन्हें जलाने या पुनर्चक्रित करने पर इससे होने वाला नुकसान दोगुना बढ़ जाता है।
उस हिसाब से, अकेले पिछले दो वर्षों में मुमकिन है कि, भारत में कागज़ की थोक में पांच लाख टन प्लास्टिक कचरा छिपा हुआ होगा।
एक अन्य उदाहरण यह है कि 2021 में भारत ने, अमेरिका, कनाडा और जर्मनी से प्लास्टिक की पानी की बोतलों के आयात की अनुमति दी, जो लगभग 90,000 टन बेकार पड़ी प्लास्टिक बोतलों के बराबर है।
ये विश्व के लिए, भारत को प्रदूषण या औद्योगिक कचरे के लिए एक पनाहगाह बताने के कुछ उदाहरण मात्र हैं।
2019 के गार्जियन (Guardian ) के एक लेख के अनुसार, ब्रिटेन से हर महीने, हजारों टन इस्तेमाल किए गए टायर भारत आते हैं, जहां उन्हें औद्योगिक ईंधन बनाने के लिए पायरोलिसिस संयंत्रों में डाल दिया जाता है।
यद्यपि इन टायरों को जलाना कुछ नियमों के तहत होता है, लेकिन इससे हवा में जहरीले पदार्थों सहित भारी धातुएं जैसे बेंजीन (Benzene), डाइऑक्सिन ( Dioxins) और कैंसरकारी रसायन (carcinogenic chemicals) निकलते हैं।
इस तरह से यहां पर ,भारत से पूछा जाने वाला बड़ा सवाल यह है कि ब्रिटेन अपने देश में ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
अमेज़न के लिफाफे पुनर्चक्रण के लिए भारत में क्यों आते हैं, उन्हें अमेरिका में ही पुनर्चक्रित क्यों नहीं किया जाता ?
क्या भारत औद्योगिक कचरे का डंपिंग स्थान बन गया है?
भारत सरकार इस वैश्विक कचरे के व्यापार में सक्रिय क्यों है?
यह हम भारतीयों के जीवन पर क्या प्रभाव डाल रहा है और क्या यह उचित है?
और अंतिम सवाल यह कि, भारतीय खुद को इस वैश्विक पर्यावरणीय अन्याय का शिकार क्यों बनने दे रहे हैं?
*उत्तर-दक्षिण विभाजन (या वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण) पृथ्वी का एक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विभाजन है जो 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में लोकप्रिय हुआ।
आम तौर पर, वैश्विक उत्तर की परिभाषाओं में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, लगभग सभी यूरोपीय देश, इज़राइल, साइप्रस, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
वैश्विक दक्षिण अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, प्रशांत द्वीप समूह और मध्य पूर्व सहित एशिया के विकासशील देशों से बना है।
इसे आम तौर पर ब्राजील, भारत और चीन का घर माना जाता है, जो इंडोनेशिया और मैक्सिको के साथ भूमि क्षेत्र और जनसंख्या के मामले में सबसे बड़े दक्षिणी राज्य हैं।
उत्तर ज्यादातर पश्चिमी दुनिया से जुड़ा हुआ है, जबकि दक्षिण काफी हद तक विकासशील देशों (पहले "तीसरी दुनिया" कहा जाता था) और पूर्वी दुनिया से मेल खाता है।
दोनों समूहों को अक्सर धन, आर्थिक विकास, आय असमानता, लोकतंत्र और राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के उनके अलग-अलग स्तरों के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है, जैसा कि स्वतंत्रता सूचकांकों द्वारा परिभाषित किया गया है।
वे राज्य जिन्हें आम तौर पर वैश्विक उत्तर के हिस्से के रूप में देखा जाता है, वे अधिक समृद्ध, कम असमान और अधिक लोकतांत्रिक माने जाते हैं तथा विकसित देश माने जाते हैं जो तकनीकी रूप से उन्नत निर्मित उत्पादों का निर्यात करते हैं;
दक्षिणी राज्य आम तौर पर युवा, अधिक नाजुक लोकतंत्रों वाले गरीब विकासशील देश हैं जो प्राथमिक क्षेत्र के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर हैं और अक्सर उत्तरी राज्यों द्वारा पिछले उपनिवेशवाद का इतिहास साझा करते हैं
*रेडियोधर्मी अपशिष्ट एक प्रकार का खतरनाक अपशिष्ट है जिसमें रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं ।
रेडियोधर्मी अपशिष्ट कई गतिविधियों का परिणाम है, जिसमें परमाणु चिकित्सा , परमाणु अनुसंधान , परमाणु ऊर्जा उत्पादन, परमाणु विघटन , दुर्लभ-पृथ्वी खनन और परमाणु हथियार पुनर्संसाधन (reprocessing ) शामिल हैं।
रेडियोधर्मी अपशिष्ट को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है: निम्न-स्तरीय अपशिष्ट ( Low- level waste) (एलएलडब्ल्यू), जैसे कागज, पुराने कपड़ों के टुकड़े, उपकरण, कपड़े, जिनमें अल्प मात्रा में अधिकतर अल्पकालिक रेडियोधर्मिता होती है; मध्यम-स्तरीय अपशिष्ट (आईएलडब्ल्यू) (Intermediate - level waste) , जिसमें उच्च मात्रा में रेडियोधर्मिता होती है और उसे कुछ
परिरक्षण की आवश्यकता होती है; और उच्च-स्तरीय अपशिष्ट (एचएलडब्ल्यू) (High- level waste), जो क्षय ताप के कारण अत्यधिक रेडियोधर्मी और गर्म होता है, इसलिए उसे ठंडा करने और परिरक्षण (shielding) की आवश्यकता होती है।
पर्यावरणीय गिरावट का मतलब है हवा, पानी और मिट्टी जैसे संसाधनों की कमी के कारण पर्यावरण में गिरावट, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश और वन्यजीवों का विलुप्त होना।
यह किसी भी पर्यावरणीय परिवर्तन या गड़बड़ी की विशेषता है जिसे हानिकारक या अवांछनीय माना जाता है।
भूमि और मृदा क्षरण अपर्याप्त कृषि पद्धतियों, उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग तथा लैंडफिल से रिसाव के कारण होता है।
जल प्रदूषण के कारण महासागरों में कचरे का अनुचित निपटान, अवैध डंपिंग, तथा निकटवर्ती नदियों या झीलों में भारी मात्रा में औद्योगिक अपशिष्ट छोड़े जाने के कारण जल क्षरण होता है।
वायुमंडलीय क्षरण में वायु प्रदूषण, कण प्रदूषण और ओजोन परत का क्षरण शामिल है।
शोर और प्रकाश सहित प्रदूषण के विभिन्न अन्य रूप, पर्यावरणीय क्षरण में योगदान करते हैं, जो भूमि, जल और वायुमंडल से आगे तक फैलता है।
*कर के स्वर्ग या 'टैक्स हेवन' (tax haven) उन देशों को कहते हैं जहाँ अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम कर लगता है, या बिलकुल कर नहीं लगता। ऐसे देशों में कर के अलावा भी बहुत सी गतिविधियाँ चलतीं हैं।
ऐसे देश टैक्स में किसी प्रकार की पारदर्शिता नहीं रखते न ही किसी प्रकार की वित्तीय जानकारी को साझा करते हैं। ये देश उन लोगों के लिए स्वर्ग (हैवन) हैं, जो टैक्स चोरी करके पैसे इन देशों में जमा कर देते हैं।
ऐसे देशों में पैसे जमा करने पर वे पैसे जमा करने वाले व्यक्ति या संस्था के बारे में कुछ भी नहीं पूछते। यही कारण है कि टैक्स चोरों के लिए ऐसे देश स्वर्ग जैसे होते हैं, जो अपने देश से पैसे इन देशों में कालेधन के रूप में जमा कर देते हैं।
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