क्या मनुष्यों को अमर होना चाहिए ?
क्या मनुष्यों को अमर होना चाहिए ?
Should Humans be Immortal? का हिन्दी रूपांतर एवं सम्पादन
~ सोनू बिष्ट
दूसरे शब्दों में कहें तो, हम इंसानों की सही उम्र का भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. पूरे इतिहास में, मनुष्य लंबे समय तक और अनंत समय तक जीने के तरीके खोजने का प्रयास करता रहा है।
किसी ने भी जीवन के अंत के लिए सही संख्या प्रस्तुत करने की अगुवाई नही की। हमारे पास मौजूद सभी संख्याएँ युगों के माध्यम से इकठ्ठे किए हुए आँकड़े हैं। इनमें से विभिन्न संख्याएँ आज भी अस्तित्व में हैं।
जो विलासिता , आनंद और भौतिक आराम के जीवन, किसी क्षेत्र में युद्ध, भुखमरी या शांतिपूर्ण देश और वहाँ के स्वस्थ वातावरण आदि पर निर्भर है।
तो सही आयु कितनी है, और क्या मनुष्य को अनंत संख्या तक दीर्घायु प्राप्त करने का कठिन प्रयास करना चाहिए?
विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ कई वाद - विवाद सामने खुलकर आएंगे। जिनमें प्राथमिक तर्क है जीवन का प्राकृतिक चक्र, जिसके अनुसार अंत जरूरी है।
दूसरा उम्र बढ़ने की क्रिया के सिद्धान्त को ना मानने वाले कारक की तरह है, क्योंकि, ऐसे कई जानवर और पौधे हैं जो हजारों सालों से इस धरती पर हैं।
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हाथियों का औसत जीवनकाल 50 वर्ष और अधिकतम जीवन लगभग 70 वर्ष का होता है
अद्वैत (Adwaita), एक अलडबरा प्रजाति का विशाल कछुआ , अनुमानित आयु 255 वर्ष तक जीवित रहा। दाक्षायनी एक मादा एशियाई हाथी जब मरी तो, 88 वर्ष की थी। जबकि हाथियों का औसत जीवनकाल 50 वर्ष और अधिकतम जीवन लगभग 70 वर्ष का होता है।
यहां पर यह तर्क इस तथ्य का समर्थन करने के लिए दिया गया है कि सही देखभाल मिलने पर, जानवरों ने अपनी जैविक उम्र से बढ़कर जीवन जिया करीबन 40% अधिक ।
वर्तमान में उन्नत चिकित्सा प्रणालियों में मानव शरीर के अंगों का प्रतिस्थापन किया जा रहा है।
गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांसप्लांट),कॉर्निया प्रत्यारोपण (कॉर्निया लेंस ट्रांसप्लांट), केश प्रत्यारोपण (हेयर ट्रांसप्लांट) , हृदय प्रत्यारोपण ( हार्ट ट्रांसप्लांट), त्वचा का प्रत्यारोपण (स्किन ग्राफ्टिंग)
यकृत प्रत्यारोपण (लिवर ट्रांसप्लांट), घुटना प्रतिस्थापन (घुटना रिप्लेसमेंट), गतिप्रेरक और कृत्रिम वाहिका (पेसमेकर और स्टेंट), कृत्रिम पैर (प्रोस्थेटिक लेग्स) जैसे चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों ने अमरता प्राप्त करने की मानवीय खोज को सिद्ध करके दिखाया है।
यदि यह चलन जारी रहा, तो मानव जाति के शरीर के अंगों का पुनर्निर्माण हो सकता है। वे आखिरकार अमरत्व प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।
मशीन की शक्ति और कृत्रिम स्मृति के उपयोग से मस्तिष्क की शक्ति को भी बढ़ाया जा रहा है। निर्णयों के लिए डिजिटल रिकॉर्ड और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग अपेक्षित है।
आज, हमारे कई कार्य कंप्यूटरीकृत स्मृति (मेमोरी) प्रबंधन के साथ विस्तारित मस्तिष्क शक्ति द्वारा किए जाते हैं।
परिणामस्वरूप, इसमें स्मृति स्मरण (मेमोरी रिकॉल) कम होता है, और कृत्रिम स्मृति स्मरण (मेमोरी रिकॉल) का उपयोग करके निर्णय- निर्धारण अधिक होता है।
छवियां, लेख (नोट्स), अलार्म, अनुस्मारक, दस्तावेज़, निर्देश- पुस्तिका, संदर्भ वीडियो, ऑडियो मनुष्यों को वह चीज़े याद करने में मदद कर रहे हैं जो, नहीं तो, आंशिक रूप से याद रहती और जल्द ही भुला दी जाती।
अब, ये सभी याद रखने वाली चीजें इंसान के पास स्थायी रूप से उपलब्ध हैं।
मानव उपभोग के कारण ग्रह पर अत्यधिक बोझ पड़ रहा है और यही वह स्थिति है जो अमरता को सीमित कर रही है।
मानव जाति पृथ्वी की स्वाभाविक सहयोगी होने से आगे बढ़कर, बदलकर उसकी उपभोक्ता और ग्रह के लिए बोझ बन गई है। कितनी बार, ऐसा हुआ है कि किसी वैज्ञानिक अध्ययन ने पृथ्वी पर पेड़ों की अत्यधिक संख्या पर सवाल उठाया है ?
इसका एक सरल सा उत्तर है।
पौधे और जानवर संसाधनों के निर्माता हैं, और वे प्रकृति में संतुलन लाते हैं। यदि मनुष्य अमरता प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उनके लिए एक सीख और संकेत है।
पौधों और जानवरों की तरह , उन्हें केवल 100% नवीकरणीय संसाधनों (renewal resources) का ही उपयोग करना चाहिए।
अभी, हम मानव अस्तित्व के आर्थिक मॉडल में हैं। प्रत्येक मनुष्य उपभोग की प्रति व्यक्ति इकाई है। इस मॉडल के आधार पर, अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली जीवित रहने के लिए काम करती है।
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मनुष्य नवीकरणीय संसाधनों का उपभोग करने वाले जानवरों के विपरीत, गैर-नवीकरणीय संसाधनों का उपभोग कर रहा है
जन्म से लेकर मृत्यु तक, मनुष्य नवीकरणीय संसाधनों का उपभोग करने वाले जानवरों के विपरीत, गैर-नवीकरणीय संसाधनों का उपभोग कर रहा है। शाकाहारी या मांसाहारी, अथवा प्राकृतिक जीवित प्राणी सभी प्रकृति का हिस्सा हैं। किन्तु, मनुष्य अप्राकृतिक हो गया है।
मनुष्यों को अमर क्यों बनाना चाहिए? इसके पीछे उद्देश्य क्या है ?
समाज में निरंतर सीखने की प्रवृति लाना । ज्ञान उम्र के साथ बढ़ता है और संचयी ज्ञान और बुद्धिमता ही ग्रह की बेहतरी के लिए सही होगा ।
मानवता के लिए, उच्च उपलब्धि प्राप्त किए हुए वैज्ञानिकों, शिक्षकों और न्यायाधीशों की जरूरत है। मुमकिन है कि, दुनिया उनके साथ रहने के लिए एक बेहतर जगह होगी। हालाँकि, यह केवल एक इच्छा सूची है।
अमरत्व इंसान के आचरण में अधिक धैर्य लाएगा । वर्तमान में, मनुष्य रिकॉर्ड समय में कार्य पूरे करने के लिए जल्दीबाज़ी में अपने काम कर रहे हैं। पिछली शताब्दी की तुलना में उच्चतर उपलब्धियों को कम करके आंका गया है।
यदि किसी कार्य को हाथ में लेने के लिए मनुष्य के पास असीमित समय होगा, तो गैलरी में उन खुरदरे चित्रों की तुलना में अधिक अनुकरणीय चित्र होंगे, जिन्हें आधुनिक कला कहा जाता है।
मूर्तियों को अधिक विवरण और जीवंतता के साथ बारीकी से तराशा जाएगा। साहित्य पहले की तरह लंबा और ज्ञान से भरपूर होगा।
वक़्त हाथ से निकल ना जाए ये डर समाप्त होने से हमारी रोजमर्रा की भागदौड़ भी खत्म हो जाएगी। गति का लक्ष्य कार्य की मात्रा के बजाय कार्य की गुणवत्ता पर होगा।
समय का एक अलग और नया अर्थ होगा।
दूसरी ओर, लंबे जीवन ने मनुष्यों को जीवन में चीजों को बहुत बाद में शुरू करने के लिए प्रेरित किया है। यह आज के समय मे कोई संयोग नहीं है।
वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति इस पद पर आसीन होने वाले इतिहास में सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं और ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) भी अब तक के इतिहास में दर्ज सबसे उम्रदराज सेवारत साम्राज्ञी हैं।
बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण जहां जल्द से जल्द कुछ हासिल करने की होड़ बढ़ गई है, वहीं देर से खिलने वाले व्यक्ति भी सभी क्षेत्रों में अपना महत्व तलाश रहे हैं। खिलाड़ी अपने खेल को लंबे समय तक टिकाए रख पा रहे हैं और उसी तरह शिक्षाविद् भी।
2019 में, 97 वर्ष की आयु के जॉन गुडइनफ (John Goodenough) को रसायन विज्ञान में उनके काम के लिए नोबेल ( Nobel) पुरस्कार मिला।
उसी तरह आर्थर अश्किन (Arthur Ashkin) 96 वर्ष और लियोनिद हर्विक्स (Leonid Hurwics) 90 वर्ष के थे जब उन्हें क्रमशः भौतिकी और अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पिछले कुछ वर्षों में, उम्र की तुलना में तंदरुस्ती में वृद्धि हुई है। तिथिपत्र (कैलेंडर) के वर्षों में उम्र का बढ़ना कम महत्वपूर्ण हो गया है।
इंसान का अमर हो जाना जोखिम के साथ भी आ सकता है। क्योंकि, क्या होगा अगर महान तानाशाह और नरसंहार करने वाले नेता हमेशा जीवित रहें?
क्या होता अगर हिटलर ( Hitler) और पोल पॉट (Pol Pot) वर्तमान में जीवित होते ? प्रभावों को संतुलित करने के लिए हमें एक ही समय में समान रूप से अच्छे इंसानों की आवश्यकता होगी।
नश्वर होना एक तुल्यकारक है। अतः सभी अच्छे और बुरे इंसानों का एक अंत समय होगा। इसके विपरीत, यदि इंसान का अमर होना वास्तविक हो जाता है, तो अच्छे और बुरे दोनों कभी समाप्त नहीं होंगे।
एक सकारात्मक मनोविज्ञान है जो आम जनता में व्याप्त है। जैसे कि अच्छे मनुष्य स्वर्ग में और बुरे मनुष्य नरक में जाते हैं। तो, मृत्यु के बाद स्वर्ग की तलाश के लिए लोगों में अच्छे कर्म करने के लिए एक प्रेरणा है।
यदि मृत्यु नहीं होगी तो स्वर्ग भी नहीं होगा, अधिकांश लोग आत्मसंतुष्ट हो जाएंगे और अच्छे कर्मों को करना टाल देंगे । इसका परिणाम समाज के लिए अत्यधिक घातक होगा।
धर्मों की भूमिका भी सवालों के घेरे में होगी. क्योंकि ,सभी धर्म स्वर्ग के भावनात्मक बिंदु के दायरे पर ही खेलते हैं।
अमरता के साथ, स्वर्ग की अवधारणा का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा और मुक्ति के स्रोत के रूप में विश्वास की प्रासंगिकता भी समाप्त हो जाएगी।
सबसे अधिक संभावना इस बात की है, कि सभी धर्म, भूखंड और बड़ी सदस्यता के लिए लड़ने वाले एक संघ के रूप में बदल जाएंगे।
अभी तक इसके कोई स्पष्ट उत्तर हमारे पास नहीं हैं, और हम केवल मूल्यांकन करते रहते हैं।
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